Hindi Page 1387

ਦੇਹੁ ਦਰਸੁ ਮਨਿ ਚਾਉ ਭਗਤਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਠਹਰਾਵੈ ॥
देहु दरसु मनि चाउ भगति इहु मनु ठहरावै ॥
मन में यह चाव है कि अपने दर्शन प्रदान करो, तेरी भक्ति से यह मन स्थिर होता है।

ਬਲਿਓ ਚਰਾਗੁ ਅੰਧੵਾਰ ਮਹਿ ਸਭ ਕਲਿ ਉਧਰੀ ਇਕ ਨਾਮ ਧਰਮ ॥
बलिओ चरागु अंध्यार महि सभ कलि उधरी इक नाम धरम ॥
अंधेरे में तेरे नाम का दीया प्रज्वलित हुआ है, जिससे कलियुगी जीवों का उद्धार हुआ है और तेरा नाम स्मरण ही धर्म-कर्म है।

ਪ੍ਰਗਟੁ ਸਗਲ ਹਰਿ ਭਵਨ ਮਹਿ ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਗੁਰੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ॥੯॥
प्रगटु सगल हरि भवन महि जनु नानकु गुरु पारब्रहम ॥९॥
पंचम गुरु फुरमान करते हैं कि पूरे संसार में परब्रह्म रूप गुरु (नानक) प्रगट हुआ है॥६॥

ਸਵਈਏ ਸ੍ਰੀ ਮੁਖਬਾਕੵ ਮਹਲਾ ੫
सवये स्री मुखबाक्य महला ५
सवये स्री मुखबाक्य महला ५

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਕਾਚੀ ਦੇਹ ਮੋਹ ਫੁਨਿ ਬਾਂਧੀ ਸਠ ਕਠੋਰ ਕੁਚੀਲ ਕੁਗਿਆਨੀ ॥
काची देह मोह फुनि बांधी सठ कठोर कुचील कुगिआनी ॥
यह शरीर जो नाश होने वाला है, मोह-माया में फँसा हुआ है। मैं मूर्ख, कठोर, पापों से मलिन एवं अज्ञानी हूँ।

ਧਾਵਤ ਭ੍ਰਮਤ ਰਹਨੁ ਨਹੀ ਪਾਵਤ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੀ ਗਤਿ ਨਹੀ ਜਾਨੀ ॥
धावत भ्रमत रहनु नही पावत पारब्रहम की गति नही जानी ॥
मन इधर-उधर दौड़ता रहता है, टिक नहीं पाता और इसने परब्रह्म की महिमा को नहीं जाना।

ਜੋਬਨ ਰੂਪ ਮਾਇਆ ਮਦ ਮਾਤਾ ਬਿਚਰਤ ਬਿਕਲ ਬਡੌ ਅਭਿਮਾਨੀ ॥
जोबन रूप माइआ मद माता बिचरत बिकल बडौ अभिमानी ॥
यह यौवन, रूप-सौंदर्य माया के नशे में मस्त है और मैं बड़ा अभिमानी बनकर विचरन कर रहा हूँ।

ਪਰ ਧਨ ਪਰ ਅਪਵਾਦ ਨਾਰਿ ਨਿੰਦਾ ਯਹ ਮੀਠੀ ਜੀਅ ਮਾਹਿ ਹਿਤਾਨੀ ॥
पर धन पर अपवाद नारि निंदा यह मीठी जीअ माहि हितानी ॥
पराया धन, पराया झगड़ा, नारी एवं लोगों की निंदा ही मन को मीठी एवं अच्छी लगती है।

ਬਲਬੰਚ ਛਪਿ ਕਰਤ ਉਪਾਵਾ ਪੇਖਤ ਸੁਨਤ ਪ੍ਰਭ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
बलबंच छपि करत उपावा पेखत सुनत प्रभ अंतरजामी ॥
मैं छिप-छिपकर छल-कपट एवं मक्कारी के उपाय करता हूँ, लेकिन अन्तर्यामी प्रभु सब करतूतें देख एवं सुन रहा है।

ਸੀਲ ਧਰਮ ਦਯਾ ਸੁਚ ਨਾਸ੍ਤਿ ਆਇਓ ਸਰਨਿ ਜੀਅ ਕੇ ਦਾਨੀ ॥
सील धरम दया सुच नास्ति आइओ सरनि जीअ के दानी ॥
मुझ में कोई शील, धर्म, दया, सादगी इत्यादि नहीं, अतः प्राणदाता प्रभु की शरण में आ गया हूँ।

ਕਾਰਣ ਕਰਣ ਸਮਰਥ ਸਿਰੀਧਰ ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਨਾਨਕ ਕੇ ਸੁਆਮੀ ॥੧॥
कारण करण समरथ सिरीधर राखि लेहु नानक के सुआमी ॥१॥
हे श्रीधर ! तू करण कारण है, सर्व समर्थ है, हे नानक के स्वामी ! मुझे संसार के बन्धनों से बचा लो॥१॥

ਕੀਰਤਿ ਕਰਨ ਸਰਨ ਮਨਮੋਹਨ ਜੋਹਨ ਪਾਪ ਬਿਦਾਰਨ ਕਉ ॥
कीरति करन सरन मनमोहन जोहन पाप बिदारन कउ ॥
ईश्वर का कीर्तिगान करना एवं उसकी शरण में आना, दोनों काम पापों को नष्ट करने वाले हैं।

ਹਰਿ ਤਾਰਨ ਤਰਨ ਸਮਰਥ ਸਭੈ ਬਿਧਿ ਕੁਲਹ ਸਮੂਹ ਉਧਾਰਨ ਸਉ ॥
हरि तारन तरन समरथ सभै बिधि कुलह समूह उधारन सउ ॥
निरंकार संसार-समुद्र से पार उतारने वाला है, वह सब करने में समर्थ और सम्पूर्ण कुलों का उद्धार करने वाला है।

ਚਿਤ ਚੇਤਿ ਅਚੇਤ ਜਾਨਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਭਰਮ ਅੰਧੇਰ ਮੋਹਿਓ ਕਤ ਧਂਉ ॥
चित चेति अचेत जानि सतसंगति भरम अंधेर मोहिओ कत धंउ ॥
हे अचेत मन ! संत पुरुषों की संगत में उपदेश लेकर ईश्वर का स्मरण कर, क्यों मोह के अंधेरे में भटक रहा है।

ਮੂਰਤ ਘਰੀ ਚਸਾ ਪਲੁ ਸਿਮਰਨ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਰਸਨਾ ਸੰਗਿ ਲਉ ॥
मूरत घरी चसा पलु सिमरन राम नामु रसना संगि लउ ॥
जिव्हा से घड़ी, मुहूर्त, या पल भर राम नाम का स्मरण कर लो।

ਹੋਛਉ ਕਾਜੁ ਅਲਪ ਸੁਖ ਬੰਧਨ ਕੋਟਿ ਜਨੰਮ ਕਹਾ ਦੁਖ ਭਂਉ ॥
होछउ काजु अलप सुख बंधन कोटि जनम कहा दुख भंउ ॥
ओच्छे कार्य अल्प सुख देने वाले हैं, करोड़ों जन्म बन्धनों में फंसकर दुख भोगने की तैयारी किसलिए कर रहे हो?

ਸਿਖੵਾ ਸੰਤ ਨਾਮੁ ਭਜੁ ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਰੰਗਿ ਆਤਮ ਸਿਉ ਰਂਉ ॥੨॥
सिख्या संत नामु भजु नानक राम रंगि आतम सिउ रंउ ॥२॥
गुरु नानक समझाते हैं कि संतों की शिक्षानुसार परमात्मा का भजन करो, अन्तर्मन में प्रभु-रंग में ही लीन रहो।॥ २॥

ਰੰਚਕ ਰੇਤ ਖੇਤ ਤਨਿ ਨਿਰਮਿਤ ਦੁਰਲਭ ਦੇਹ ਸਵਾਰਿ ਧਰੀ ॥
रंचक रेत खेत तनि निरमित दुरलभ देह सवारि धरी ॥
हे जीव ! ईश्वर ने पिता का थोड़ा-सा वीर्य माँ के गर्भ में डालकर दुर्लभ शरीर बना दिया।

ਖਾਨ ਪਾਨ ਸੋਧੇ ਸੁਖ ਭੁੰਚਤ ਸੰਕਟ ਕਾਟਿ ਬਿਪਤਿ ਹਰੀ ॥
खान पान सोधे सुख भुंचत संकट काटि बिपति हरी ॥
तुझे खाने-पीने, अनेकों सुख-सुविधाएँ प्रदान की, तेरे संकटों को काट कर विपतियाँ हरण कर ली।

ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਭਾਈ ਅਰੁ ਬੰਧਪ ਬੂਝਨ ਕੀ ਸਭ ਸੂਝ ਪਰੀ ॥
मात पिता भाई अरु बंधप बूझन की सभ सूझ परी ॥
तुझे माता-पिता, भाई एवं रिश्तेरदारों को समझने की सूझ प्रदान की।

ਬਰਧਮਾਨ ਹੋਵਤ ਦਿਨ ਪ੍ਰਤਿ ਨਿਤ ਆਵਤ ਨਿਕਟਿ ਬਿਖੰਮ ਜਰੀ ॥
बरधमान होवत दिन प्रति नित आवत निकटि बिखम जरी ॥
धीरे-धीरे दिन-प्रतिदिन तू बढ़ता गया और इस तरह विषम बुढ़ापा निकट आ गया।

ਰੇ ਗੁਨ ਹੀਨ ਦੀਨ ਮਾਇਆ ਕ੍ਰਿਮ ਸਿਮਰਿ ਸੁਆਮੀ ਏਕ ਘਰੀ ॥
रे गुन हीन दीन माइआ क्रिम सिमरि सुआमी एक घरी ॥
हे गुणविहीन, दीन, माया के कीड़े ! एक घड़ी भर उस स्वामी का स्मरण कर ले।

ਕਰੁ ਗਹਿ ਲੇਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ਨਾਨਕ ਕਾਟਿ ਭਰੰਮ ਭਰੀ ॥੩॥
करु गहि लेहु क्रिपाल क्रिपा निधि नानक काटि भरम भरी ॥३॥
नानक विनती करते हैं, हे कृपानिधि ! कृपा करके हमारा हाथ थाम ले और भ्रम की गठरी काट दे॥३ ॥

ਰੇ ਮਨ ਮੂਸ ਬਿਲਾ ਮਹਿ ਗਰਬਤ ਕਰਤਬ ਕਰਤ ਮਹਾਂ ਮੁਘਨਾਂ ॥
रे मन मूस बिला महि गरबत करतब करत महां मुघनां ॥
हे मन ! तेरा आचरण इस प्रकार है, ज्यों चूहा बिल में अहंकार करता है और महांमूखों जैसी हरकतें करता है।

ਸੰਪਤ ਦੋਲ ਝੋਲ ਸੰਗਿ ਝੂਲਤ ਮਾਇਆ ਮਗਨ ਭ੍ਰਮਤ ਘੁਘਨਾ ॥
स्मपत दोल झोल संगि झूलत माइआ मगन भ्रमत घुघना ॥
तू माया के झूले को झूलता हुआ उसी में मस्त रहता है और उल्लू की तरह भटकता है।

ਸੁਤ ਬਨਿਤਾ ਸਾਜਨ ਸੁਖ ਬੰਧਪ ਤਾ ਸਿਉ ਮੋਹੁ ਬਢਿਓ ਸੁ ਘਨਾ ॥
सुत बनिता साजन सुख बंधप ता सिउ मोहु बढिओ सु घना ॥
अपने पुत्र, पत्नी, दोस्तों एवं रिश्तेदारों के सुख के साथ तेरा बहुत मोह बढ़ गया है,

ਬੋਇਓ ਬੀਜੁ ਅਹੰ ਮਮ ਅੰਕੁਰੁ ਬੀਤਤ ਅਉਧ ਕਰਤ ਅਘਨਾਂ ॥
बोइओ बीजु अहं मम अंकुरु बीतत अउध करत अघनां ॥
जो तूने अहंकार का बीज बोया था, उसका अंकुर फूट गया है और पूरी जिन्दगी पापों में गुजर गई।

ਮਿਰਤੁ ਮੰਜਾਰ ਪਸਾਰਿ ਮੁਖੁ ਨਿਰਖਤ ਭੁੰਚਤ ਭੁਗਤਿ ਭੂਖ ਭੁਖਨਾ ॥
मिरतु मंजार पसारि मुखु निरखत भुंचत भुगति भूख भुखना ॥
मौत रूपी बिल्ली मुँह फैलाकर तुझे देख रही है, परन्तु संसार के सुख-वैभव भोगकर भूखा ही बना हुआ है।

ਸਿਮਰਿ ਗੁਪਾਲ ਦਇਆਲ ਸਤਸੰਗਤਿ ਨਾਨਕ ਜਗੁ ਜਾਨਤ ਸੁਪਨਾ ॥੪॥
सिमरि गुपाल दइआल सतसंगति नानक जगु जानत सुपना ॥४॥
गुरु नानक का कथन है कि संसार को सपना मानकर सत्संगत में दयालु प्रभु का भजन करो ॥४ ॥

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