Hindi Page 810

ਸ੍ਰਮੁ ਕਰਤੇ ਦਮ ਆਢ ਕਉ ਤੇ ਗਨੀ ਧਨੀਤਾ ॥੩॥
स्रमु करते दम आढ कउ ते गनी धनीता ॥३॥
जो व्यक्ति पहले आधे-आधे दाम के लिए मेहनत करते थे, अब वह धनवान माने जाते हैं। ३॥

ਕਵਨ ਵਡਾਈ ਕਹਿ ਸਕਉ ਬੇਅੰਤ ਗੁਨੀਤਾ ॥
कवन वडाई कहि सकउ बेअंत गुनीता ॥
हे बेअंत गुणों के भण्डार ! मैं तेरी कौन-कौन-सी बड़ाई कर सकता हूँ ?

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੋਹਿ ਨਾਮੁ ਦੇਹੁ ਨਾਨਕ ਦਰ ਸਰੀਤਾ ॥੪॥੭॥੩੭॥
करि किरपा मोहि नामु देहु नानक दर सरीता ॥४॥७॥३७॥
नानक विनती करता है कि हे प्रभु ! कृपा करके मुझे अपना नाम दीजिए, मैं तेरे दर्शनों का अभिलाषी हूँ॥ ४॥ ७॥ ३७ ॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਅਹੰਬੁਧਿ ਪਰਬਾਦ ਨੀਤ ਲੋਭ ਰਸਨਾ ਸਾਦਿ ॥
अह्मबुधि परबाद नीत लोभ रसना सादि ॥
अहम्-भावना के कारण इन्सान नित्य झगड़ा करता रहता है और जीभ के स्वाद में फँसकर बड़ा लोभ करता है।

ਲਪਟਿ ਕਪਟਿ ਗ੍ਰਿਹਿ ਬੇਧਿਆ ਮਿਥਿਆ ਬਿਖਿਆਦਿ ॥੧॥
लपटि कपटि ग्रिहि बेधिआ मिथिआ बिखिआदि ॥१॥
वह अपने घर के सदस्यों के मोह में फँसा हुआ लोगों से छल-कपट करता है और झूठे विकारों इत्यादि में बँधा रहता है॥ १ ॥

ਐਸੀ ਪੇਖੀ ਨੇਤ੍ਰ ਮਹਿ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ॥
ऐसी पेखी नेत्र महि पूरे गुर परसादि ॥
पूर्ण गुरु की कृपा से मैंने उनकी ऐसी दुर्दशा अपनी आंखों से देखी है।

ਰਾਜ ਮਿਲਖ ਧਨ ਜੋਬਨਾ ਨਾਮੈ ਬਿਨੁ ਬਾਦਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राज मिलख धन जोबना नामै बिनु बादि ॥१॥ रहाउ ॥
राज्य, सम्पति, धन एवं यौवन ये सभी भगवन्नाम बिना व्यर्थ हैं ॥१॥ रहाउ ॥

ਰੂਪ ਧੂਪ ਸੋਗੰਧਤਾ ਕਾਪਰ ਭੋਗਾਦਿ ॥
रूप धूप सोगंधता कापर भोगादि ॥
सुन्दर रूप वाले पदार्थ, धूप, सुगन्धि, वस्त्र एवं स्वादिष्ट भोजन इत्यादि सभी

ਮਿਲਤ ਸੰਗਿ ਪਾਪਿਸਟ ਤਨ ਹੋਏ ਦੁਰਗਾਦਿ ॥੨॥
मिलत संगि पापिसट तन होए दुरगादि ॥२॥
पापी मनुष्य के तन को छू कर दुर्गन्धयुक्त बन जाते हैं।॥ २॥

ਫਿਰਤ ਫਿਰਤ ਮਾਨੁਖੁ ਭਇਆ ਖਿਨ ਭੰਗਨ ਦੇਹਾਦਿ ॥
फिरत फिरत मानुखु भइआ खिन भंगन देहादि ॥
अनेक योनियों में भटकने के पश्चात् जीव को अमूल्य मनुष्य-जीवन मिला है और इसकी देह क्षणभंगुर है।

ਇਹ ਅਉਸਰ ਤੇ ਚੂਕਿਆ ਬਹੁ ਜੋਨਿ ਭ੍ਰਮਾਦਿ ॥੩॥
इह अउसर ते चूकिआ बहु जोनि भ्रमादि ॥३॥
इस सुनहरी अवसर से चूक कर जीव दोबारा अनेक योनियों में भटकता है॥ ३॥

ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਗੁਰ ਮਿਲੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਬਿਸਮਾਦ ॥
प्रभ किरपा ते गुर मिले हरि हरि बिसमाद ॥
प्रभु-कृपा से जिस व्यक्ति को गुरु मिल जाता है, वह अद्भुत रूप वाले हरि का नाम जपता रहता है।

ਸੂਖ ਸਹਜ ਨਾਨਕ ਅਨੰਦ ਤਾ ਕੈ ਪੂਰਨ ਨਾਦ ॥੪॥੮॥੩੮॥
सूख सहज नानक अनंद ता कै पूरन नाद ॥४॥८॥३८॥
हे नानक ! उसे सहज सुख एवं आनंद प्राप्त हो जाता है और मन में अनहद नाद गूंजने लग जाते हैं।॥ ४॥ ८ ॥ ३८ ॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਚਰਨ ਭਏ ਸੰਤ ਬੋਹਿਥਾ ਤਰੇ ਸਾਗਰੁ ਜੇਤ ॥
चरन भए संत बोहिथा तरे सागरु जेत ॥
संतों के चरण जहाज बन गए हैं, जिस द्वारा अनेक जीव भवसागर से पार हो गए हैं।

ਮਾਰਗ ਪਾਏ ਉਦਿਆਨ ਮਹਿ ਗੁਰਿ ਦਸੇ ਭੇਤ ॥੧॥
मारग पाए उदिआन महि गुरि दसे भेत ॥१॥
गुरु ने प्रभु मिलन का भेद बताया है और उन्हें संसार रूपी वन में भ्रमभुलैया से सन्मार्ग लगा दिया है। १॥

ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹੇਤ ॥
हरि हरि हरि हरि हरि हरे हरि हरि हरि हेत ॥
सदैव ‘हरि-हरि-हरि-हरि’ मंत्र को जपते रहो,

ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਸੋਵਤੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਚੇਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ऊठत बैठत सोवते हरि हरि हरि चेत ॥१॥ रहाउ ॥
हरि-नाम से प्रेम करो, उठते-बैठते तथा सोते वक्त हमेशा परमेश्वर को याद करो ॥ १॥ रहाउ॥

ਪੰਚ ਚੋਰ ਆਗੈ ਭਗੇ ਜਬ ਸਾਧਸੰਗੇਤ ॥
पंच चोर आगै भगे जब साधसंगेत ॥
जब साधु-संगति की तो काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार रूपी पाँच चोर भाग गए।

ਪੂੰਜੀ ਸਾਬਤੁ ਘਣੋ ਲਾਭੁ ਗ੍ਰਿਹਿ ਸੋਭਾ ਸੇਤ ॥੨॥
पूंजी साबतु घणो लाभु ग्रिहि सोभा सेत ॥२॥
नाम रूपी पूंजी को बचाते हुए उन्होंने बहुत लाभ हासिल किया है और वे शोभा सहित अपने घर लौट आए हैं ॥ २ ॥

ਨਿਹਚਲ ਆਸਣੁ ਮਿਟੀ ਚਿੰਤ ਨਾਹੀ ਡੋਲੇਤ ॥
निहचल आसणु मिटी चिंत नाही डोलेत ॥
वहीं अब अटल आसन प्राप्त कर लिया है, उनकी सब चिन्ताएँ मिट गई हैं और अब वे कभी भी डगमगाते नहीं।

ਭਰਮੁ ਭੁਲਾਵਾ ਮਿਟਿ ਗਇਆ ਪ੍ਰਭ ਪੇਖਤ ਨੇਤ ॥੩॥
भरमु भुलावा मिटि गइआ प्रभ पेखत नेत ॥३॥
अपने नेत्रों से प्रभु के साक्षात दर्शन करने से उनका भ्रम-भुलावा मिट गया है॥ ३॥

ਗੁਣ ਗਭੀਰ ਗੁਨ ਨਾਇਕਾ ਗੁਣ ਕਹੀਅਹਿ ਕੇਤ ॥
गुण गभीर गुन नाइका गुण कहीअहि केत ॥
परमात्मा गुणों का गहरा सागर है, सर्व गुणों का मालिक है। फिर उसके कितने गुण वर्णन किए जा सकते हैं ?

ਨਾਨਕ ਪਾਇਆ ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰੇਤ ॥੪॥੯॥੩੯॥
नानक पाइआ साधसंगि हरि हरि अम्रेत ॥४॥९॥३९॥
हे नानक ! साधु की संगति में मिलकर हरि नाम रूपी अमृत पा लिया है। ४॥ ६॥ ३६ ॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਬਿਨੁ ਸਾਧੂ ਜੋ ਜੀਵਨਾ ਤੇਤੋ ਬਿਰਥਾਰੀ ॥
बिनु साधू जो जीवना तेतो बिरथारी ॥
साधु की संगति के बिना जितना भी हमारा जीवन था, वह व्यर्थ बीत गया है।

ਮਿਲਤ ਸੰਗਿ ਸਭਿ ਭ੍ਰਮ ਮਿਟੇ ਗਤਿ ਭਈ ਹਮਾਰੀ ॥੧॥
मिलत संगि सभि भ्रम मिटे गति भई हमारी ॥१॥
लेकिन अब साधु-संगति मिलने से सारे भ्रम मिट गए हैं और हमारी गति हो गई है॥ १॥

ਜਾ ਦਿਨ ਭੇਟੇ ਸਾਧ ਮੋਹਿ ਉਆ ਦਿਨ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥
जा दिन भेटे साध मोहि उआ दिन बलिहारी ॥
जिस दिन मुझे साधु मिले थे, मैं उस दिन पर बलिहारी जाता हूँ।

ਤਨੁ ਮਨੁ ਅਪਨੋ ਜੀਅਰਾ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਹਉ ਵਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तनु मनु अपनो जीअरा फिरि फिरि हउ वारी ॥१॥ रहाउ ॥
मैं अपना तन, मन एवं प्राण बार-बार साधु पर न्योछावर करता हूँ॥ १॥ रहाउ ॥

ਏਤ ਛਡਾਈ ਮੋਹਿ ਤੇ ਇਤਨੀ ਦ੍ਰਿੜਤਾਰੀ ॥
एत छडाई मोहि ते इतनी द्रिड़तारी ॥
साधु ने मुझसे अहंत्व छुड़वा दिया है और इतनी दृढ़ता प्रदान की है कि

ਸਗਲ ਰੇਨ ਇਹੁ ਮਨੁ ਭਇਆ ਬਿਨਸੀ ਅਪਧਾਰੀ ॥੨॥
सगल रेन इहु मनु भइआ बिनसी अपधारी ॥२॥
अब मेरा यह मन सबकी चरण-धूलि बन चुका है और सारा अपनापन नाश हो गया है ॥२॥

ਨਿੰਦ ਚਿੰਦ ਪਰ ਦੂਖਨਾ ਏ ਖਿਨ ਮਹਿ ਜਾਰੀ ॥
निंद चिंद पर दूखना ए खिन महि जारी ॥
उन्होंने मेरे मन में पराई निंदा एवं दूसरों का बुरा सोचना एक क्षण में ही जला दिए हैं।

ਦਇਆ ਮਇਆ ਅਰੁ ਨਿਕਟਿ ਪੇਖੁ ਨਾਹੀ ਦੂਰਾਰੀ ॥੩॥
दइआ मइआ अरु निकटि पेखु नाही दूरारी ॥३॥
अब मुझ में इतनी दया एवं प्रेम की भावना है कि सब जीवों में बस रहे ईश्वर को निकट ही देखता हूँ और उसे दूर नहीं समझता॥ ३॥

ਤਨ ਮਨ ਸੀਤਲ ਭਏ ਅਬ ਮੁਕਤੇ ਸੰਸਾਰੀ ॥
तन मन सीतल भए अब मुकते संसारी ॥
मेरा तन-मन शीतल हो गए हैं और अब मैं संसार के बन्धनों से मुक्त हो गया हूँ।

ਹੀਤ ਚੀਤ ਸਭ ਪ੍ਰਾਨ ਧਨ ਨਾਨਕ ਦਰਸਾਰੀ ॥੪॥੧੦॥੪੦॥
हीत चीत सभ प्रान धन नानक दरसारी ॥४॥१०॥४०॥
हे नानक ! प्रभु के दर्शन ही मेरा धन, प्राण हित-चित इत्यादि सबकुछ है॥ ४ ॥ १० ॥ ४० ॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਟਹਲ ਕਰਉ ਤੇਰੇ ਦਾਸ ਕੀ ਪਗ ਝਾਰਉ ਬਾਲ ॥
टहल करउ तेरे दास की पग झारउ बाल ॥
हे ईश्वर ! मैं तेरे दास की सेवा करता हूँ और अपने केशों से उसके चरण झाड़ता हूँ।

ਮਸਤਕੁ ਅਪਨਾ ਭੇਟ ਦੇਉ ਗੁਨ ਸੁਨਉ ਰਸਾਲ ॥੧॥
मसतकु अपना भेट देउ गुन सुनउ रसाल ॥१॥
मैं अपना मस्तक उसे भेंट करता हूँ और उससे तेरे रसीले गुण सुनता हूँ॥ १॥

ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਮਿਲਤੇ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਜੀਓ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਮਿਲਹੁ ਦਇਆਲ ॥
तुम्ह मिलते मेरा मनु जीओ तुम्ह मिलहु दइआल ॥
हे दयाल ! तुम मुझे आन मिलो, क्योंकि तुझे मिलकर ही मेरा मन जीवन प्राप्त करता है।

ਨਿਸਿ ਬਾਸੁਰ ਮਨਿ ਅਨਦੁ ਹੋਤ ਚਿਤਵਤ ਕਿਰਪਾਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
निसि बासुर मनि अनदु होत चितवत किरपाल ॥१॥ रहाउ ॥
हे कृपा के सागर ! तुझे याद करके रात-दिन मेरे मन में आनंद बना रहता है॥ १॥ रहाउ॥

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