Hindi Page 1137

ਖਟੁ ਸਾਸਤ੍ਰ ਮੂਰਖੈ ਸੁਨਾਇਆ ॥
खटु सासत्र मूरखै सुनाइआ ॥
मूर्ख को छः शास्त्र सुनाना ऐसे निरर्थक है,

ਜੈਸੇ ਦਹ ਦਿਸ ਪਵਨੁ ਝੁਲਾਇਆ ॥੩॥
जैसे दह दिस पवनु झुलाइआ ॥३॥
जैसे दसों दिशाओं में वायु गुजर जाती है।॥३॥

ਬਿਨੁ ਕਣ ਖਲਹਾਨੁ ਜੈਸੇ ਗਾਹਨ ਪਾਇਆ ॥
बिनु कण खलहानु जैसे गाहन पाइआ ॥
जिस प्रकार दाने के बिना खलिहान के गाहन से कुछ भी नहीं मिलता,

ਤਿਉ ਸਾਕਤ ਤੇ ਕੋ ਨ ਬਰਾਸਾਇਆ ॥੪॥
तिउ साकत ते को न बरासाइआ ॥४॥
वैसे ही मायावी मनुष्य से किसी को फायदा नहीं होता।॥४॥

ਤਿਤ ਹੀ ਲਾਗਾ ਜਿਤੁ ਕੋ ਲਾਇਆ ॥
तित ही लागा जितु को लाइआ ॥
जिधर (शुभाशुभ कर्म की तरफ) उसने जीव को लगाया हुआ है, वह उधर ही लगा हुआ है,”

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭਿ ਬਣਤ ਬਣਾਇਆ ॥੫॥੫॥
कहु नानक प्रभि बणत बणाइआ ॥५॥५॥
नानक का मत है कि प्रभु ने ऐसा विधान बनाया हुआ है।॥५॥ ५॥

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥

ਜੀਉ ਪ੍ਰਾਣ ਜਿਨਿ ਰਚਿਓ ਸਰੀਰ ॥
जीउ प्राण जिनि रचिओ सरीर ॥
आत्मा-प्राण देकर जिसने शरीर बनाया है,

ਜਿਨਹਿ ਉਪਾਏ ਤਿਸ ਕਉ ਪੀਰ ॥੧॥
जिनहि उपाए तिस कउ पीर ॥१॥
जिसने पैदा किया है, उसे ही हमारी फिक्र है॥१॥

ਗੁਰੁ ਗੋਬਿੰਦੁ ਜੀਅ ਕੈ ਕਾਮ ॥ ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਜਾ ਕੀ ਸਦ ਛਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु गोबिंदु जीअ कै काम ॥ हलति पलति जा की सद छाम ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु-परमेश्वर ही जीव के काम आने वाले हैं और लोक-परलोक में सदा उनका ही आसरा है॥१॥

ਪ੍ਰਭੁ ਆਰਾਧਨ ਨਿਰਮਲ ਰੀਤਿ ॥
प्रभु आराधन निरमल रीति ॥
प्रभु की आराधना ही निर्मल जीवन-आचरण है,

ਸਾਧਸੰਗਿ ਬਿਨਸੀ ਬਿਪਰੀਤਿ ॥੨॥
साधसंगि बिनसी बिपरीति ॥२॥
साधु पुरुषों की संगत में खोटी बुद्धि नष्ट हो जाती है।॥२॥

ਮੀਤ ਹੀਤ ਧਨੁ ਨਹ ਪਾਰਣਾ ॥ ਧੰਨਿ ਧੰਨਿ ਮੇਰੇ ਨਾਰਾਇਣਾ ॥੩॥
मीत हीत धनु नह पारणा ॥ धंनि धंनि मेरे नाराइणा ॥३॥
मित्र-शुभचिंतक अथवा धन-दौलत कोई साथ नहीं देता अपितु अंत तक साथ देने वाला मेरा परमेश्वर धन्य एवं महान् है॥३॥

ਨਾਨਕੁ ਬੋਲੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ॥
नानकु बोलै अम्रित बाणी ॥
नानक तो अमृतवाणी ही बोलता है और

ਏਕ ਬਿਨਾ ਦੂਜਾ ਨਹੀ ਜਾਣੀ ॥੪॥੬॥
एक बिना दूजा नही जाणी ॥४॥६॥
एक ईश्वर के सिवा अन्य को नहीं मानता॥४॥६॥

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥

ਆਗੈ ਦਯੁ ਪਾਛੈ ਨਾਰਾਇਣ ॥
आगै दयु पाछै नाराइण ॥
आगे-पीछे नारायण-स्वरूप परमेश्वर ही है और

ਮਧਿ ਭਾਗਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸਾਇਣ ॥੧॥
मधि भागि हरि प्रेम रसाइण ॥१॥
मध्य भाग में भी उसका प्रेम रस है॥१॥

ਪ੍ਰਭੂ ਹਮਾਰੈ ਸਾਸਤ੍ਰ ਸਉਣ ॥
प्रभू हमारै सासत्र सउण ॥
प्रभु ही हमारे शास्त्र अथवा शगुन है,

ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਗ੍ਰਿਹ ਭਉਣ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सूख सहज आनंद ग्रिह भउण ॥१॥ रहाउ ॥
वही सहज सुख, आनंद देने वाला घर है॥१॥ रहाउ॥

ਰਸਨਾ ਨਾਮੁ ਕਰਨ ਸੁਣਿ ਜੀਵੇ ॥
रसना नामु करन सुणि जीवे ॥
जिव्हा हरिनाम जपकर व कान उसका यश सुनकर जीवन पा रहे हैं,

ਪ੍ਰਭੁ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਅਮਰ ਥਿਰੁ ਥੀਵੇ ॥੨॥
प्रभु सिमरि सिमरि अमर थिरु थीवे ॥२॥
प्रभु का स्मरण कर हम निश्चय हो गए हैं।॥२॥

ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਦੂਖ ਨਿਵਾਰੇ ॥
जनम जनम के दूख निवारे ॥
ईश्वर ने जन्म-जन्मांतर के दुखों का निवारण कर दिया है,

ਅਨਹਦ ਸਬਦ ਵਜੇ ਦਰਬਾਰੇ ॥੩॥
अनहद सबद वजे दरबारे ॥३॥
उसके दरबार में अनाहत शब्द गूंजता रहता है॥३॥

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਲੀਏ ਮਿਲਾਏ ॥ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਗਤਿ ਆਏ ॥੪॥੭॥
करि किरपा प्रभि लीए मिलाए ॥ नानक प्रभ सरणागति आए ॥४॥७॥
उसने कृपा करके हमें साथ मिला लिया हे नानक, जब हम प्रभु की शरण में आए।॥४॥ ७॥

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥

ਕੋਟਿ ਮਨੋਰਥ ਆਵਹਿ ਹਾਥ ॥
कोटि मनोरथ आवहि हाथ ॥
कैरोड़ों मनोरथ पूरे हो जाते हैं,

ਜਮ ਮਾਰਗ ਕੈ ਸੰਗੀ ਪਾਂਥ ॥੧॥
जम मारग कै संगी पांथ ॥१॥
मौत के रास्ते पर भी हरिनाम ही साथ देता है।॥१॥

ਗੰਗਾ ਜਲੁ ਗੁਰ ਗੋਬਿੰਦ ਨਾਮ ॥
गंगा जलु गुर गोबिंद नाम ॥
परमेश्वर का नाम गंगा-जल है,

ਜੋ ਸਿਮਰੈ ਤਿਸ ਕੀ ਗਤਿ ਹੋਵੈ ਪੀਵਤ ਬਹੁੜਿ ਨ ਜੋਨਿ ਭ੍ਰਮਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो सिमरै तिस की गति होवै पीवत बहुड़ि न जोनि भ्रमाम ॥१॥ रहाउ ॥
जो स्मरण करता है, उसकी मुक्ति हो जाती है और इसका पान करने से पुनः योनि चक्र में नहीं आना पड़ता॥१॥ रहाउ॥

ਪੂਜਾ ਜਾਪ ਤਾਪ ਇਸਨਾਨ ॥
पूजा जाप ताप इसनान ॥
पूजा-पाठ, जाप-तपस्या, तीर्थ-स्नान इत्यादि

ਸਿਮਰਤ ਨਾਮ ਭਏ ਨਿਹਕਾਮ ॥੨॥
सिमरत नाम भए निहकाम ॥२॥
नाम-स्मरण के सन्मुख निष्फल सिद्ध होते हैं।॥२॥

ਰਾਜ ਮਾਲ ਸਾਦਨ ਦਰਬਾਰ ॥ ਸਿਮਰਤ ਨਾਮ ਪੂਰਨ ਆਚਾਰ ॥੩॥
राज माल सादन दरबार ॥ सिमरत नाम पूरन आचार ॥३॥
राज, माल, महल एवं परिवार का कोई लाभ नहीं, नाम-स्मरण ही पूर्ण आचरण है।॥३॥

ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਇਹੁ ਕੀਆ ਬੀਚਾਰੁ ॥
नानक दास इहु कीआ बीचारु ॥
दास नानक ने यही विचार किया है कि

ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮ ਮਿਥਿਆ ਸਭ ਛਾਰੁ ॥੪॥੮॥
बिनु हरि नाम मिथिआ सभ छारु ॥४॥८॥
हरिनाम स्मरण के सिवा सब मिथ्या एवं धूल मात्र है॥४॥ ८॥

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥

ਲੇਪੁ ਨ ਲਾਗੋ ਤਿਲ ਕਾ ਮੂਲਿ ॥
लेपु न लागो तिल का मूलि ॥
जहर का किंचित मात्र भी असर नहीं हुआ,

ਦੁਸਟੁ ਬ੍ਰਾਹਮਣੁ ਮੂਆ ਹੋਇ ਕੈ ਸੂਲ ॥੧॥
दुसटु ब्राहमणु मूआ होइ कै सूल ॥१॥
पर जहर देने वाला दुष्ट ब्राह्मण उदर-शूल के कारण मृत्यु को प्राप्त हो गया॥१॥

ਹਰਿ ਜਨ ਰਾਖੇ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਆਪਿ ॥
हरि जन राखे पारब्रहमि आपि ॥
परब्रह्म ने स्वयं ही दास को बचाया है और

ਪਾਪੀ ਮੂਆ ਗੁਰ ਪਰਤਾਪਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पापी मूआ गुर परतापि ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु के प्रताप से वह पापी मौत की नींद सो गया॥१॥ रहाउ॥

ਅਪਣਾ ਖਸਮੁ ਜਨਿ ਆਪਿ ਧਿਆਇਆ ॥
अपणा खसमु जनि आपि धिआइआ ॥
दास ने अपने मालिक का ही ध्यान किया है और

ਇਆਣਾ ਪਾਪੀ ਓਹੁ ਆਪਿ ਪਚਾਇਆ ॥੨॥
इआणा पापी ओहु आपि पचाइआ ॥२॥
वह पापी मूर्ख ब्राह्मण स्वयं ही दुखी होकर मरा है॥२॥

ਪ੍ਰਭ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਅਪਣੇ ਦਾਸ ਕਾ ਰਖਵਾਲਾ ॥
प्रभ मात पिता अपणे दास का रखवाला ॥
प्रभु हमारा माता-पिता है, वही अपने दास की रक्षा करने वाला है और

ਨਿੰਦਕ ਕਾ ਮਾਥਾ ਈਹਾਂ ਊਹਾ ਕਾਲਾ ॥੩॥
निंदक का माथा ईहां ऊहा काला ॥३॥
निंदक का यहाँ (लोक) वहाँ (परलोक) मुँह काला हो गया है॥३॥

ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੀ ਪਰਮੇਸਰਿ ਸੁਣੀ ਅਰਦਾਸਿ ॥
जन नानक की परमेसरि सुणी अरदासि ॥
नानक का कथन है कि जब परमेश्वर ने अपने दास की प्रार्थना सुनी तो

ਮਲੇਛੁ ਪਾਪੀ ਪਚਿਆ ਭਇਆ ਨਿਰਾਸੁ ॥੪॥੯॥
मलेछु पापी पचिआ भइआ निरासु ॥४॥९॥
बुरी नीयत वाला पापी हताश हो गया॥ ४॥६॥ {उल्लेखनीय है कि एक बार पृथी चंद को अनुरोध पर ब्राह्मण नौकर ने गुरु-पुत्र हरिगोबिंद को जहर दे दिया, परन्तु परब्रह्म की कृपा से ज़हर का कोई असर तो न हुआ अपितु इसको विपरीत ब्राह्मण उदर-शूल के कारण संसार छोड़ गया।}”

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥

ਖੂਬੁ ਖੂਬੁ ਖੂਬੁ ਖੂਬੁ ਖੂਬੁ ਤੇਰੋ ਨਾਮੁ ॥
खूबु खूबु खूबु खूबु खूबु तेरो नामु ॥
हे ईश्वर ! वाह वाह !! तेरा नाम कितना खूब है,

ਝੂਠੁ ਝੂਠੁ ਝੂਠੁ ਝੂਠੁ ਦੁਨੀ ਗੁਮਾਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
झूठु झूठु झूठु झूठु दुनी गुमानु ॥१॥ रहाउ ॥
यह दुनिया का घमण्ड तो झूठा ही है॥१॥ रहाउ॥

ਨਗਜ ਤੇਰੇ ਬੰਦੇ ਦੀਦਾਰੁ ਅਪਾਰੁ ॥
नगज तेरे बंदे दीदारु अपारु ॥
तेरे सेवक बहुत अच्छे हैं और तेरे दीदार भी अपार हैं।

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