ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥
ਹੇ ਗੋਬਿੰਦ ਹੇ ਗੋਪਾਲ ਹੇ ਦਇਆਲ ਲਾਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे गोबिंद हे गोपाल हे दइआल लाल ॥१॥ रहाउ ॥
हे गोविन्द, हे जगत पालक, हे दीनदयालु !॥१॥रहाउ॥
ਪ੍ਰਾਨ ਨਾਥ ਅਨਾਥ ਸਖੇ ਦੀਨ ਦਰਦ ਨਿਵਾਰ ॥੧॥
प्रान नाथ अनाथ सखे दीन दरद निवार ॥१॥
हे प्राणनाथ ! हे गरीबों के साथी ! तू दीनों के दर्द दूर करने वाला है॥१॥
ਹੇ ਸਮ੍ਰਥ ਅਗਮ ਪੂਰਨ ਮੋਹਿ ਮਇਆ ਧਾਰਿ ॥੨॥
हे सम्रथ अगम पूरन मोहि मइआ धारि ॥२॥
हे सर्वशक्तिमान, अगम्य परिपूर्ण परमेश्वर ! मुझ पर अपनी कृपा करो॥२॥
ਅੰਧ ਕੂਪ ਮਹਾ ਭਇਆਨ ਨਾਨਕ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰ ॥੩॥੮॥੩੦॥
अंध कूप महा भइआन नानक पारि उतार ॥३॥८॥३०॥
नानक की विनती है कि जगत रूपी महा भयानक अंधे कुएं से पार उतार दो॥३॥८॥३०॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੧ ਅਸਟਪਦੀਆ ਘਰੁ ੧
मलार महला १ असटपदीआ घरु १
मलार महला १ असटपदीआ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਚਕਵੀ ਨੈਨ ਨੀਂਦ ਨਹਿ ਚਾਹੈ ਬਿਨੁ ਪਿਰ ਨੀਂਦ ਨ ਪਾਈ ॥
चकवी नैन नींद नहि चाहै बिनु पिर नींद न पाई ॥
प्रियतम की जुदाई में चकवी की आँखों में नींद नहीं आती, प्रियतम के बिना जागती रहती है।
ਸੂਰੁ ਚਰ੍ਹੈ ਪ੍ਰਿਉ ਦੇਖੈ ਨੈਨੀ ਨਿਵਿ ਨਿਵਿ ਲਾਗੈ ਪਾਂਈ ॥੧॥
सूरु चर्है प्रिउ देखै नैनी निवि निवि लागै पांई ॥१॥
जब सूर्योदय होता है तो अपने प्रियतम को आँखों से देखकर झुक-झुक कर नमन करती है॥१॥
ਪਿਰ ਭਾਵੈ ਪ੍ਰੇਮੁ ਸਖਾਈ ॥
पिर भावै प्रेमु सखाई ॥
प्रियतम का सहाई प्रेम ही अच्छा लगता है।
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਘੜੀ ਨਹੀ ਜਗਿ ਜੀਵਾ ਐਸੀ ਪਿਆਸ ਤਿਸਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तिसु बिनु घड़ी नही जगि जीवा ऐसी पिआस तिसाई ॥१॥ रहाउ ॥
उसके दर्शनों की ऐसी प्यास लगी है कि उसके बिना संसार में घड़ी भर जीना मुश्किल हो गया है॥१॥रहाउ॥
ਸਰਵਰਿ ਕਮਲੁ ਕਿਰਣਿ ਆਕਾਸੀ ਬਿਗਸੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਈ ॥
सरवरि कमलु किरणि आकासी बिगसै सहजि सुभाई ॥
कमल सरोवर में रहता है, सूरज की किरण आकाश में है, सहज स्वाभाविक किरण से ही कमल खिल उठता है।
ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰੀਤਿ ਬਨੀ ਅਭ ਐਸੀ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਈ ॥੨॥
प्रीतम प्रीति बनी अभ ऐसी जोती जोति मिलाई ॥२॥
प्रियतम प्रभु के साथ ऐसा प्रेम हो गया है, ज्यों ज्योति में ज्योति मिल जाती है॥२॥
ਚਾਤ੍ਰਿਕੁ ਜਲ ਬਿਨੁ ਪ੍ਰਿਉ ਪ੍ਰਿਉ ਟੇਰੈ ਬਿਲਪ ਕਰੈ ਬਿਲਲਾਈ ॥
चात्रिकु जल बिनु प्रिउ प्रिउ टेरै बिलप करै बिललाई ॥
चातक जल के बिना प्रिय प्रिय रटता हुआ बिल -बिलाता है।
ਘਨਹਰ ਘੋਰ ਦਸੌ ਦਿਸਿ ਬਰਸੈ ਬਿਨੁ ਜਲ ਪਿਆਸ ਨ ਜਾਈ ॥੩॥
घनहर घोर दसौ दिसि बरसै बिनु जल पिआस न जाई ॥३॥
बादल दसों दिशाओं में गूंजता हुआ तो बरसता है, ज्यों चातक की स्वाति बूंद बिना प्यास दूर नहीं होती, वैसे ही भक्तों की स्थिति है, जिनकी प्यास हरिनाम जल से ही दूर होती है॥३॥
ਮੀਨ ਨਿਵਾਸ ਉਪਜੈ ਜਲ ਹੀ ਤੇ ਸੁਖ ਦੁਖ ਪੁਰਬਿ ਕਮਾਈ ॥
मीन निवास उपजै जल ही ते सुख दुख पुरबि कमाई ॥
मछली जल में रहती है, वही उत्पन्न होती है और पूर्व कर्मों के कारण सुख दुख पाती है।
ਖਿਨੁ ਤਿਲੁ ਰਹਿ ਨ ਸਕੈ ਪਲੁ ਜਲ ਬਿਨੁ ਮਰਨੁ ਜੀਵਨੁ ਤਿਸੁ ਤਾਂਈ ॥੪॥
खिनु तिलु रहि न सकै पलु जल बिनु मरनु जीवनु तिसु तांई ॥४॥
वह जल के बिना पल भी रह नहीं सकती, जल ही उसका जीवन है और जल बिना वह मर जाती है वैसे ही परमात्मा की भक्ति भक्तों के जीवन का आधार है॥४॥
ਧਨ ਵਾਂਢੀ ਪਿਰੁ ਦੇਸ ਨਿਵਾਸੀ ਸਚੇ ਗੁਰ ਪਹਿ ਸਬਦੁ ਪਠਾਈਂ ॥
धन वांढी पिरु देस निवासी सचे गुर पहि सबदु पठाईं ॥
परदेस में बैठी जीव-स्त्री सच्चे गुरु के द्वारा देश में रहने वाले प्रियतम प्रभु को सन्देश भेजती है।
ਗੁਣ ਸੰਗ੍ਰਹਿ ਪ੍ਰਭੁ ਰਿਦੈ ਨਿਵਾਸੀ ਭਗਤਿ ਰਤੀ ਹਰਖਾਈ ॥੫॥
गुण संग्रहि प्रभु रिदै निवासी भगति रती हरखाई ॥५॥
वह गुणों को इकठ्ठा कर प्रभु को दिल में बसाती है और उसकी भक्ति में लीन रहकर प्रसन्न होती है।॥५॥
ਪ੍ਰਿਉ ਪ੍ਰਿਉ ਕਰੈ ਸਭੈ ਹੈ ਜੇਤੀ ਗੁਰ ਭਾਵੈ ਪ੍ਰਿਉ ਪਾਈਂ ॥
प्रिउ प्रिउ करै सभै है जेती गुर भावै प्रिउ पाईं ॥
सब जीव-स्त्रियां प्रियतम को पाना चाहती हैं, जब गुरु को उपयुक्त लगता है, वे प्रियतम को पा लेती हैं।
ਪ੍ਰਿਉ ਨਾਲੇ ਸਦ ਹੀ ਸਚਿ ਸੰਗੇ ਨਦਰੀ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਈ ॥੬॥
प्रिउ नाले सद ही सचि संगे नदरी मेलि मिलाई ॥६॥
गुरु कृपा करके सदा के लिए प्रभु से मिला देता है॥६॥
ਸਭ ਮਹਿ ਜੀਉ ਜੀਉ ਹੈ ਸੋਈ ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥
सभ महि जीउ जीउ है सोई घटि घटि रहिआ समाई ॥
सब में प्राण ज्योति व्याप्त है, घट-घट में वह प्रभु ही समा रहा है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਘਰ ਹੀ ਪਰਗਾਸਿਆ ਸਹਜੇ ਸਹਜਿ ਸਮਾਈ ॥੭॥
गुर परसादि घर ही परगासिआ सहजे सहजि समाई ॥७॥
गुरु की कृपा से हृदय घर में ही सत्य का आलोक हो गया है और सहज स्वाभाविक प्रभु में विलीन हूँ॥७॥
ਅਪਨਾ ਕਾਜੁ ਸਵਾਰਹੁ ਆਪੇ ਸੁਖਦਾਤੇ ਗੋਸਾਂਈਂ ॥
अपना काजु सवारहु आपे सुखदाते गोसांईं ॥
वह सुख देने वाला मालिक स्वयं ही अपने कार्य सम्पन्न करता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਘਰ ਹੀ ਪਿਰੁ ਪਾਇਆ ਤਉ ਨਾਨਕ ਤਪਤਿ ਬੁਝਾਈ ॥੮॥੧॥
गुर परसादि घर ही पिरु पाइआ तउ नानक तपति बुझाई ॥८॥१॥
गुरु नानक फुरमाते हैं कि गुरु की कृपा से जब हृदय घर में प्रभु को पा लिया तो शान्ति प्राप्त हो गई॥८॥१॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मलार महला १ ॥
मलार महला १ ॥
ਜਾਗਤੁ ਜਾਗਿ ਰਹੈ ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਮੈ ਕੋ ਨਾਹੀ ॥
जागतु जागि रहै गुर सेवा बिनु हरि मै को नाही ॥
गुरु की सेवा में जागरूक सेवक को यह ज्ञान हो जाता है कि ईश्वर के बिना मेरा कोई आधार नहीं।
ਅਨਿਕ ਜਤਨ ਕਰਿ ਰਹਣੁ ਨ ਪਾਵੈ ਆਚੁ ਕਾਚੁ ਢਰਿ ਪਾਂਹੀ ॥੧॥
अनिक जतन करि रहणु न पावै आचु काचु ढरि पांही ॥१॥
ज्यों ऑच पर कॉच ढल जाता है, वैसे ही अनेक कोशिशें करने पर भी शरीर वैसा नहीं रहता और ढल जाता है॥१॥
ਇਸੁ ਤਨ ਧਨ ਕਾ ਕਹਹੁ ਗਰਬੁ ਕੈਸਾ ॥
इसु तन धन का कहहु गरबु कैसा ॥
हे भाई ! बताओ, इस तन एवं धन का अहंकार किसलिए है।
ਬਿਨਸਤ ਬਾਰ ਨ ਲਾਗੈ ਬਵਰੇ ਹਉਮੈ ਗਰਬਿ ਖਪੈ ਜਗੁ ਐਸਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बिनसत बार न लागै बवरे हउमै गरबि खपै जगु ऐसा ॥१॥ रहाउ ॥
अरे पगले ! इसे नाश होते कोई देरी नहीं लगती, अभिमान में पूरा जगत ऐसे ही तबाह हो रहा है॥१॥रहाउ॥
ਜੈ ਜਗਦੀਸ ਪ੍ਰਭੂ ਰਖਵਾਰੇ ਰਾਖੈ ਪਰਖੈ ਸੋਈ ॥
जै जगदीस प्रभू रखवारे राखै परखै सोई ॥
सम्पूर्ण सृष्टि में जगदीश की जय-जयकार हो रही है, वही रखवाला है और वही परख करता है।
ਜੇਤੀ ਹੈ ਤੇਤੀ ਤੁਝ ਹੀ ਤੇ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਸਰਿ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥੨॥
जेती है तेती तुझ ही ते तुम्ह सरि अवरु न कोई ॥२॥
जितनी भी दुनिया है, उसी से उत्पन्न होती है, तुम्हारे जैसा अन्य कोई नहीं॥२॥
ਜੀਅ ਉਪਾਇ ਜੁਗਤਿ ਵਸਿ ਕੀਨੀ ਆਪੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਅੰਜਨੁ ॥
जीअ उपाइ जुगति वसि कीनी आपे गुरमुखि अंजनु ॥
सब जीवों को उत्पन्न करके परमात्मा ने जीवन-युक्ति अपने वश में की हुई है और ज्ञान का सुरमा देने वाला गुरु भी वह स्वयं ही है।
ਅਮਰੁ ਅਨਾਥ ਸਰਬ ਸਿਰਿ ਮੋਰਾ ਕਾਲ ਬਿਕਾਲ ਭਰਮ ਭੈ ਖੰਜਨੁ ॥੩॥
अमरु अनाथ सरब सिरि मोरा काल बिकाल भरम भै खंजनु ॥३॥
वह अमर है, स्वयंभू है, सर्वशक्तिमान है, वह काल का भी काल है और वह भ्रम एवं भय को नष्ट करने वाला है।॥३॥