ਅਭੈ ਪਦੁ ਦਾਨੁ ਸਿਮਰਨੁ ਸੁਆਮੀ ਕੋ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਬੰਧਨ ਛੋਰਿ ॥੨॥੫॥੯॥
अभै पदु दानु सिमरनु सुआमी को प्रभ नानक बंधन छोरि ॥२॥५॥९॥
हे मेरे स्वामी ! मुझे अभय पद एवं सिमरन का दान प्रदान करो। हे नानक ! वह प्रभु जीवों के बन्धन काटने वाला है ॥२॥५॥९॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
जैतसरी महला ५ ॥
जैतसरी महला ५ ॥
ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਚਿਤਵਤ ਬਰਸਤ ਮੇਂਹ ॥
चात्रिक चितवत बरसत मेंह ॥
जैसे पपीहे को हर समय वर्षा की अभिलाषा रहती है,
ਕ੍ਰਿਪਾ ਸਿੰਧੁ ਕਰੁਣਾ ਪ੍ਰਭ ਧਾਰਹੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਕੋ ਨੇਂਹ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
क्रिपा सिंधु करुणा प्रभ धारहु हरि प्रेम भगति को नेंह ॥१॥ रहाउ ॥
वैसे ही हे कृपा के समुद्र प्रभु ! मुझ पर करुणा करो ताकि तेरी प्रेम-भक्ति से मेरी प्रीति बनी रहे ॥१॥ रहाउ ॥
ਅਨਿਕ ਸੂਖ ਚਕਵੀ ਨਹੀ ਚਾਹਤ ਅਨਦ ਪੂਰਨ ਪੇਖਿ ਦੇਂਹ ॥
अनिक सूख चकवी नही चाहत अनद पूरन पेखि देंह ॥
चकवी को अनेक सुखों की लालसा नहीं, परन्तु सूर्य को देखकर वह आनंद से भर जाती है।
ਆਨ ਉਪਾਵ ਨ ਜੀਵਤ ਮੀਨਾ ਬਿਨੁ ਜਲ ਮਰਨਾ ਤੇਂਹ ॥੧॥
आन उपाव न जीवत मीना बिनु जल मरना तेंह ॥१॥
मछली जल के अलावा किसी अन्य उपाय द्वारा जीवित नहीं रह सकती और जल के बिना वह अपने प्राण त्याग देती है ॥१॥
ਹਮ ਅਨਾਥ ਨਾਥ ਹਰਿ ਸਰਣੀ ਅਪੁਨੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇਂਹ ॥
हम अनाथ नाथ हरि सरणी अपुनी क्रिपा करेंह ॥
हे मेरे मालिक ! तेरे बिना हम अनाथ हैं, हे प्रभु ! कृपा करके अपनी शरण में रखो।
ਚਰਣ ਕਮਲ ਨਾਨਕੁ ਆਰਾਧੈ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਆਨ ਨ ਕੇਂਹ ॥੨॥੬॥੧੦॥
चरण कमल नानकु आराधै तिसु बिनु आन न केंह ॥२॥६॥१०॥
नानक तो प्रभु के चरण-कमलों की ही आराधना करता है और उसके बिना उसे कुछ भी उपयुक्त नहीं।॥२॥६॥१०॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
जैतसरी महला ५ ॥
जैतसरी महला ५ ॥
ਮਨਿ ਤਨਿ ਬਸਿ ਰਹੇ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਾਨ ॥
मनि तनि बसि रहे मेरे प्रान ॥
मेरे प्राणों का आधार परमात्मा मेरे मन एवं तन में बस रहा है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਭੇਟੇ ਪੂਰਨ ਪੁਰਖ ਸੁਜਾਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करि किरपा साधू संगि भेटे पूरन पुरख सुजान ॥१॥ रहाउ ॥
वह चतुर परमपुरुष सर्वव्यापी है और अपनी कृपा करके साधु की संगति द्वारा मुझे मिला है॥१॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰੇਮ ਠਗਉਰੀ ਜਿਨ ਕਉ ਪਾਈ ਤਿਨ ਰਸੁ ਪੀਅਉ ਭਾਰੀ ॥
प्रेम ठगउरी जिन कउ पाई तिन रसु पीअउ भारी ॥
उसने जिन मनुष्यों के मुँह में प्रेम की ठग-बूटी डाल दी है, उन्होंने उत्तम हरि-नाम रूपी रस पान कर लिया है।
ਤਾ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ਕੁਦਰਤਿ ਕਵਨ ਹਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ॥੧॥
ता की कीमति कहणु न जाई कुदरति कवन हम्हारी ॥१॥
मैं उनका मूल्यांकन बता नहीं सकता, क्योंकि ऐसा करने की मुझ में कौन-सी क्षमता है?॥१॥
ਲਾਇ ਲਏ ਲੜਿ ਦਾਸ ਜਨ ਅਪੁਨੇ ਉਧਰੇ ਉਧਰਨਹਾਰੇ ॥
लाइ लए लड़ि दास जन अपुने उधरे उधरनहारे ॥
प्रभु ने अपने भक्तों को अपने आंचल के साथ लगा लिया है और वे पार होने वाले भवसागर से पार हो गए है।
ਪ੍ਰਭੁ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਓ ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਦੁਆਰੇ ॥੨॥੭॥੧੧॥
प्रभु सिमरि सिमरि सिमरि सुखु पाइओ नानक सरणि दुआरे ॥२॥७॥११॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे प्रभु ! तेरा बारंबार सिमरन करने से ही सुख प्राप्त हुआ है और मैं तेरे द्वार पर तेरी शरण में आया हूँ॥ २॥ ७ ॥ ११॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
जैतसरी महला ५ ॥
जैतसरी महला ५ ॥
ਆਏ ਅਨਿਕ ਜਨਮ ਭ੍ਰਮਿ ਸਰਣੀ ॥
आए अनिक जनम भ्रमि सरणी ॥
हे ईश्वर ! अनेक जन्म भटकने के पश्चात् हम तेरी शरण में आए हैं।
ਉਧਰੁ ਦੇਹ ਅੰਧ ਕੂਪ ਤੇ ਲਾਵਹੁ ਅਪੁਨੀ ਚਰਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उधरु देह अंध कूप ते लावहु अपुनी चरणी ॥१॥ रहाउ ॥
हमारे शरीर को अज्ञानता के कुएँ में से बाहर निकाल दो और अपने चरणों में लगा लो॥ १॥ रहाउ॥
ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਕਿਛੁ ਕਰਮੁ ਨ ਜਾਨਾ ਨਾਹਿਨ ਨਿਰਮਲ ਕਰਣੀ ॥
गिआनु धिआनु किछु करमु न जाना नाहिन निरमल करणी ॥
मैं ज्ञान, ध्यान एवं शुभ कर्म कुछ भी नहीं जानता और न ही मेरा जीवन-आचरण शुद्ध है।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕੈ ਅੰਚਲਿ ਲਾਵਹੁ ਬਿਖਮ ਨਦੀ ਜਾਇ ਤਰਣੀ ॥੧॥
साधसंगति कै अंचलि लावहु बिखम नदी जाइ तरणी ॥१॥
हे प्रभु ! मुझे संतों की शरण में लगा दो ताकि उनकी संगति में रहकर विषम संसार नदिया से पार हो जाऊँ ॥१॥
ਸੁਖ ਸੰਪਤਿ ਮਾਇਆ ਰਸ ਮੀਠੇ ਇਹ ਨਹੀ ਮਨ ਮਹਿ ਧਰਣੀ ॥
सुख स्मपति माइआ रस मीठे इह नही मन महि धरणी ॥
संसार की सुख-सम्पति एवं माया के मीठे रसों को अपने मन में धारण नहीं करना चाहिए।
ਹਰਿ ਦਰਸਨ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਪਾਵਤ ਹਰਿ ਨਾਮ ਰੰਗ ਆਭਰਣੀ ॥੨॥੮॥੧੨॥
हरि दरसन त्रिपति नानक दास पावत हरि नाम रंग आभरणी ॥२॥८॥१२॥
हे नानक ! भगवान के दर्शनों से तृप्त हो गया हूँ और भगवान के नाम की प्रीति ही मेरा आभूषण है॥ २॥ ८॥ १२ ॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
जैतसरी महला ५ ॥
जैतसरी महला ५ ॥
ਹਰਿ ਜਨ ਸਿਮਰਹੁ ਹਿਰਦੈ ਰਾਮ ॥
हरि जन सिमरहु हिरदै राम ॥
हे भक्तजनों ! अपने हृदय में राम का नाम-सिमरन करते रहो।
ਹਰਿ ਜਨ ਕਉ ਅਪਦਾ ਨਿਕਟਿ ਨ ਆਵੈ ਪੂਰਨ ਦਾਸ ਕੇ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि जन कउ अपदा निकटि न आवै पूरन दास के काम ॥१॥ रहाउ ॥
भक्तजन के समीप कोई भी मुसीबत नहीं आती और दासों के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।॥१॥ रहाउ ॥
ਕੋਟਿ ਬਿਘਨ ਬਿਨਸਹਿ ਹਰਿ ਸੇਵਾ ਨਿਹਚਲੁ ਗੋਵਿਦ ਧਾਮ ॥
कोटि बिघन बिनसहि हरि सेवा निहचलु गोविद धाम ॥
भगवान की उपासना करने से करोड़ों ही विघ्न नष्ट हो जाते हैं और गोविन्द का अटल धाम प्राप्त हो जाता है।
ਭਗਵੰਤ ਭਗਤ ਕਉ ਭਉ ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ਆਦਰੁ ਦੇਵਤ ਜਾਮ ॥੧॥
भगवंत भगत कउ भउ किछु नाही आदरु देवत जाम ॥१॥
भगवान के भक्त को किसी भी प्रकार का डर प्रभावित नहीं करता और मृत्यु का देवता यमराज भी उसका पूर्ण आदर करता है॥१॥
ਤਜਿ ਗੋਪਾਲ ਆਨ ਜੋ ਕਰਣੀ ਸੋਈ ਸੋਈ ਬਿਨਸਤ ਖਾਮ ॥
तजि गोपाल आन जो करणी सोई सोई बिनसत खाम ॥
ईश्वर को त्याग कर अन्य किए गए सभी कर्म क्षणभंगुर एवं झूठे हैं।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਹਿਰਦੈ ਗਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਖ ਸਮੂਹ ਬਿਸਰਾਮ ॥੨॥੯॥੧੩॥
चरन कमल हिरदै गहु नानक सुख समूह बिसराम ॥२॥९॥१३॥
हे नानक ! अपने हृदय में प्रभु के चरण कमल धारण कर लो, क्योंकि उसके चरण सर्व सुखों का परम निवास है॥ २॥ ६॥ १३॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੯
जैतसरी महला ९
जैतसरी महला ९
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਭੂਲਿਓ ਮਨੁ ਮਾਇਆ ਉਰਝਾਇਓ ॥
भूलिओ मनु माइआ उरझाइओ ॥
मेरा भूला हुआ (पथ विचलित) मन माया के मोह में ही उलझा हुआ है।
ਜੋ ਜੋ ਕਰਮ ਕੀਓ ਲਾਲਚ ਲਗਿ ਤਿਹ ਤਿਹ ਆਪੁ ਬੰਧਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो जो करम कीओ लालच लगि तिह तिह आपु बंधाइओ ॥१॥ रहाउ ॥
लालच में आकर इसने जो भी कर्म किए हैं, उन सभी के साथ स्वयं को ही बंधनों में फँसा रहा है॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਮਝ ਨ ਪਰੀ ਬਿਖੈ ਰਸ ਰਚਿਓ ਜਸੁ ਹਰਿ ਕੋ ਬਿਸਰਾਇਓ ॥
समझ न परी बिखै रस रचिओ जसु हरि को बिसराइओ ॥
इसे सत्य के मार्ग की कोई सूझ नहीं पड़ी और यह विषय-विकारों के स्वादों में ही लीन रहा और इसने हरि-यश को भुला दिया।
ਸੰਗਿ ਸੁਆਮੀ ਸੋ ਜਾਨਿਓ ਨਾਹਿਨ ਬਨੁ ਖੋਜਨ ਕਉ ਧਾਇਓ ॥੧॥
संगि सुआमी सो जानिओ नाहिन बनु खोजन कउ धाइओ ॥१॥
स्वामी प्रभु तो हृदय में साथ ही है परन्तु उसे जानता ही नहीं और व्यर्थ ही भगवान की खोज हेतु जंगलों में दौड़ता रहा।॥ १॥