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ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਏਕੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥੪॥੩॥੫੪॥
अंतरि बाहरि एकु दिखाइआ ॥४॥३॥५४॥
भीतर एवं बाहर अब उन्होंने मुझे एक ईश्वर दिखा दिया है॥ ४॥ ३॥ ५४॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥

ਪਾਵਤੁ ਰਲੀਆ ਜੋਬਨਿ ਬਲੀਆ ॥
पावतु रलीआ जोबनि बलीआ ॥
जवानी के जोश में मनुष्य अनेक आनन्द भोगता है।

ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਮਾਟੀ ਸੰਗਿ ਰਲੀਆ ॥੧॥
नाम बिना माटी संगि रलीआ ॥१॥
परन्तु प्रभु-नाम के बिना अन्त में मिट्टी के साथ मिल जाता है॥ १॥

ਕਾਨ ਕੁੰਡਲੀਆ ਬਸਤ੍ਰ ਓਢਲੀਆ ॥
कान कुंडलीआ बसत्र ओढलीआ ॥
(हे भाई!) मनुष्य कानों में कुण्डल एवं सुन्दर वस्त्र पहनता है।

ਸੇਜ ਸੁਖਲੀਆ ਮਨਿ ਗਰਬਲੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सेज सुखलीआ मनि गरबलीआ ॥१॥ रहाउ ॥
कोमल सुखदायक बिस्तरों पर सोता है परन्तु वह अपने चित्त में इन सुख के साधनों का अभिमान करता है॥ १॥ रहाउ॥

ਤਲੈ ਕੁੰਚਰੀਆ ਸਿਰਿ ਕਨਿਕ ਛਤਰੀਆ ॥
तलै कुंचरीआ सिरि कनिक छतरीआ ॥
मनुष्य के पास सवारी के लिए हाथी एवं सिर पर सोने का छत्र झूल रहा है परन्तु

ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਬਿਨਾ ਲੇ ਧਰਨਿ ਗਡਲੀਆ ॥੨॥
हरि भगति बिना ले धरनि गडलीआ ॥२॥
भगवान की भक्ति के बिना वह धरती के नीचे दफना दिया जाता है। २॥

ਰੂਪ ਸੁੰਦਰੀਆ ਅਨਿਕ ਇਸਤਰੀਆ ॥
रूप सुंदरीआ अनिक इसतरीआ ॥
इन्सान चाहे रूपवान सुन्दरियों एवं अनेक स्त्रियों के साथ भोग-विलास करता है

ਹਰਿ ਰਸ ਬਿਨੁ ਸਭਿ ਸੁਆਦ ਫਿਕਰੀਆ ॥੩॥
हरि रस बिनु सभि सुआद फिकरीआ ॥३॥
परन्तु हरि रस के बिना ये सभी आस्वादन फीके हैं॥३॥

ਮਾਇਆ ਛਲੀਆ ਬਿਕਾਰ ਬਿਖਲੀਆ ॥
माइआ छलीआ बिकार बिखलीआ ॥
यह माया तो धोखेबाज ही है और काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार इत्यादि विकार विष समान हैं।

ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਪੁਰਖ ਦਇਅਲੀਆ ॥੪॥੪॥੫੫॥
सरणि नानक प्रभ पुरख दइअलीआ ॥४॥४॥५५॥
नानक का कथन है कि हे दया के सागर, हे सर्वशक्तिमान प्रभु ! मै तेरी ही शरण में हूँ॥ ४॥ ४॥ ५५ ॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥

ਏਕੁ ਬਗੀਚਾ ਪੇਡ ਘਨ ਕਰਿਆ ॥
एकु बगीचा पेड घन करिआ ॥
यह दुनिया एक बगीचा है जिसमें बहुत सारे पेड़ लगे हुए हैं।

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਤਹਾ ਮਹਿ ਫਲਿਆ ॥੧॥
अम्रित नामु तहा महि फलिआ ॥१॥
पेड़ों में नामामृत रूपी फल लगा हुआ है॥ १॥

ਐਸਾ ਕਰਹੁ ਬੀਚਾਰੁ ਗਿਆਨੀ ॥
ऐसा करहु बीचारु गिआनी ॥
हे ज्ञानी ! कोई ऐसा विचार करो,”

ਜਾ ਤੇ ਪਾਈਐ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਨੀ ॥
जा ते पाईऐ पदु निरबानी ॥
जिससे तुझे निर्वाण पद प्राप्त हो।

ਆਸਿ ਪਾਸਿ ਬਿਖੂਆ ਕੇ ਕੁੰਟਾ ਬੀਚਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹੈ ਭਾਈ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आसि पासि बिखूआ के कुंटा बीचि अम्रितु है भाई रे ॥१॥ रहाउ ॥
हे भाई !बगीचे के आसपास विष के कुण्ड हैं और इसके बीच अमृत भी मौजूद है॥ १॥ रहाउ॥

ਸਿੰਚਨਹਾਰੇ ਏਕੈ ਮਾਲੀ ॥
सिंचनहारे एकै माली ॥
इसे सीचने वाला गुरु-परमात्मा रूपी एक बागबां है।

ਖਬਰਿ ਕਰਤੁ ਹੈ ਪਾਤ ਪਤ ਡਾਲੀ ॥੨॥
खबरि करतु है पात पत डाली ॥२॥
वह हरेक पते एवं डाल की रखवाली करता है॥२॥

ਸਗਲ ਬਨਸਪਤਿ ਆਣਿ ਜੜਾਈ ॥
सगल बनसपति आणि जड़ाई ॥
यह बागवां सारी वनस्पति लाकर यहॉ लगाता है।

ਸਗਲੀ ਫੂਲੀ ਨਿਫਲ ਨ ਕਾਈ ॥੩॥
सगली फूली निफल न काई ॥३॥
सबको फल लगता है, कोई भी फल के बिना नहीं। ३॥

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਫਲੁ ਨਾਮੁ ਜਿਨਿ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਆ ॥
अम्रित फलु नामु जिनि गुर ते पाइआ ॥
हे दास नानक ! जिसने गुरु से नामामृत का फल प्राप्त किया है,”

ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤਰੀ ਤਿਨਿ ਮਾਇਆ ॥੪॥੫॥੫੬॥
नानक दास तरी तिनि माइआ ॥४॥५॥५६॥
वह माया रूपी भवसागर से पार हो गया है॥ ४ ॥ ५॥ ५६॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥

ਰਾਜ ਲੀਲਾ ਤੇਰੈ ਨਾਮਿ ਬਨਾਈ ॥
राज लीला तेरै नामि बनाई ॥
हे सत्य के पुंज ! तेरे नाम ने ही मुझे राज-सुख प्रदान किए हैं।

ਜੋਗੁ ਬਨਿਆ ਤੇਰਾ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਈ ॥੧॥
जोगु बनिआ तेरा कीरतनु गाई ॥१॥
तेरा कीर्ति-गान करने से मुझे योग प्राप्त हो गया है॥ १॥

ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਬਨੇ ਤੇਰੈ ਓਲ੍ਹ੍ਹੈ ॥ ਭ੍ਰਮ ਕੇ ਪਰਦੇ ਸਤਿਗੁਰ ਖੋਲ੍ਹ੍ਹੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सरब सुखा बने तेरै ओल्है ॥ भ्रम के परदे सतिगुर खोल्हे ॥१॥ रहाउ ॥
तेरी शरण में मुझे सर्व सुख हासिल होता है। सतिगुरु ने भ्रम के पर्दे खोल दिए हैं।॥ १॥ रहाउ॥

ਹੁਕਮੁ ਬੂਝਿ ਰੰਗ ਰਸ ਮਾਣੇ ॥
हुकमु बूझि रंग रस माणे ॥
हे परमेश्वर ! तेरी रज़ा को समझकर मैं आत्मिक आनंद भोगता हूँ।

ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਮਹਾ ਨਿਰਬਾਣੇ ॥੨॥
सतिगुर सेवा महा निरबाणे ॥२॥
सतगुरु की सेवा करने से मुझे महानिर्वाण पद प्राप्त हो गया है॥ २ ॥

ਜਿਨਿ ਤੂੰ ਜਾਤਾ ਸੋ ਗਿਰਸਤ ਉਦਾਸੀ ਪਰਵਾਣੁ ॥
जिनि तूं जाता सो गिरसत उदासी परवाणु ॥
जो तुझे समझता है, वह चाहे गृहस्थी हो अथवा त्यागी तेरे द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है।

ਨਾਮਿ ਰਤਾ ਸੋਈ ਨਿਰਬਾਣੁ ॥੩॥
नामि रता सोई निरबाणु ॥३॥
जो मनुष्य हरि-नाम में अनुरक्त है, वही संन्यासी है॥ ३॥

ਜਾ ਕਉ ਮਿਲਿਓ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨਾ ॥
जा कउ मिलिओ नामु निधाना ॥
नानक का कथन है कि हे मेरे मालिक ! जिसे तेरा नाम-भण्डार मिल गया है,”

ਭਨਤਿ ਨਾਨਕ ਤਾ ਕਾ ਪੂਰ ਖਜਾਨਾ ॥੪॥੬॥੫੭॥
भनति नानक ता का पूर खजाना ॥४॥६॥५७॥
उसके भण्डार सदैव भरे रहते हैं॥ ४॥ ६॥ ५७ ॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥

ਤੀਰਥਿ ਜਾਉ ਤ ਹਉ ਹਉ ਕਰਤੇ ॥
तीरथि जाउ त हउ हउ करते ॥
हे सज्जन ! यदि मैं किसी तीर्थ पर जाता हूँ तो वहाँ मुझे ‘मैं’ ‘मैं अहंकार करते हुए बहुत सारे लोग मिलते हैं।

ਪੰਡਿਤ ਪੂਛਉ ਤ ਮਾਇਆ ਰਾਤੇ ॥੧॥
पंडित पूछउ त माइआ राते ॥१॥
यदि मैं पण्डितों बाबत पूछता हूँ तो वे भी माया में ही लीन देखता हूँ॥ १॥

ਸੋ ਅਸਥਾਨੁ ਬਤਾਵਹੁ ਮੀਤਾ ॥
सो असथानु बतावहु मीता ॥
हे मित्र ! मुझे वह पावन स्थान बताओ

ਜਾ ਕੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਨੀਤਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जा कै हरि हरि कीरतनु नीता ॥१॥ रहाउ ॥
जहाँ नित्य भगवान का भजन-कीर्तन होता है॥ १॥ रहाउ॥

ਸਾਸਤ੍ਰ ਬੇਦ ਪਾਪ ਪੁੰਨ ਵੀਚਾਰ ॥
सासत्र बेद पाप पुंन वीचार ॥
शास्त्र एवं वेद पाप-पुण्य का विचार वर्णन करते हैं और कहते हैं कि

ਨਰਕਿ ਸੁਰਗਿ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਅਉਤਾਰ ॥੨॥
नरकि सुरगि फिरि फिरि अउतार ॥२॥
मनुष्य पाप-पुण्य कर्म करने से ही बार-बार नरक-स्वर्ग में जन्म लेता है॥ २॥

ਗਿਰਸਤ ਮਹਿ ਚਿੰਤ ਉਦਾਸ ਅਹੰਕਾਰ ॥
गिरसत महि चिंत उदास अहंकार ॥
गृहस्थ जीवन में चिन्ता है और विरक्त में अहंकार है।

ਕਰਮ ਕਰਤ ਜੀਅ ਕਉ ਜੰਜਾਰ ॥੩॥
करम करत जीअ कउ जंजार ॥३॥
कर्मकाण्डों के संस्कार करना तो जीव हेतु एक जंजाल ही है॥३॥

ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਮਨੁ ਵਸਿ ਆਇਆ ॥
प्रभ किरपा ते मनु वसि आइआ ॥
जिस मनुष्य का मन प्रभु की कृपा से वश में आ जाता है,”

ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਰੀ ਤਿਨਿ ਮਾਇਆ ॥੪॥
नानक गुरमुखि तरी तिनि माइआ ॥४॥
हे नानक ! वह गुरुमुख बनकर माया के सागर से पार हो जाता है॥ ४॥

ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਈਐ ॥
साधसंगि हरि कीरतनु गाईऐ ॥
सुसंगति में हरि का कीर्ति-गान करना चाहिए और

ਇਹੁ ਅਸਥਾਨੁ ਗੁਰੂ ਤੇ ਪਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੭॥੫੮॥
इहु असथानु गुरू ते पाईऐ ॥१॥ रहाउ दूजा ॥७॥५८॥
यह स्थान गुरु द्वारा ही मिलता है। १॥ रहाउ दूसरा ॥ ७॥ ५८ ॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥

ਘਰ ਮਹਿ ਸੂਖ ਬਾਹਰਿ ਫੁਨਿ ਸੂਖਾ ॥
घर महि सूख बाहरि फुनि सूखा ॥
मेरे हृदय-घर में सुख ही सुख है और घर के बाहर भी (दुनिया में निर्वाह करते हुए) सुख ही सुख है।

ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਸਗਲ ਬਿਨਾਸੇ ਦੂਖਾ ॥੧॥
हरि सिमरत सगल बिनासे दूखा ॥१॥
हरि का सिमरन करने से सभी दुख-क्लेश नाश हो गए हैं।॥ १॥

ਸਗਲ ਸੂਖ ਜਾਂ ਤੂੰ ਚਿਤਿ ਆਵੈਂ ॥
सगल सूख जां तूं चिति आंवैं ॥
हे हरि ! जब तू मेरे मन में याद आता है तो मुझे सभी सुख प्राप्त हो जाते हैं।

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