ਕਿਉ ਨ ਮਰੀਜੈ ਰੋਇ ਜਾ ਲਗੁ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵਹੀ ॥੧॥
किउ न मरीजै रोइ जा लगु चिति न आवही ॥१॥
जब तक तू मेरे चित्त में आकर नहीं बसता, तब तक क्यों न मैं रो रो कर मृत्यु को प्राप्त हो जाऊँ।१॥
ਮਃ ੨ ॥
मः २ ॥
महला २॥
ਜਾਂ ਸੁਖੁ ਤਾ ਸਹੁ ਰਾਵਿਓ ਦੁਖਿ ਭੀ ਸੰਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿਓਇ ॥
जां सुखु ता सहु राविओ दुखि भी सम्हालिओइ ॥
अगर सुख हो तो भी पति-प्रभु को स्मरण करो और दुख में भी उसकी स्मृति में लीन रहो।
ਨਾਨਕੁ ਕਹੈ ਸਿਆਣੀਏ ਇਉ ਕੰਤ ਮਿਲਾਵਾ ਹੋਇ ॥੨॥
नानकु कहै सिआणीए इउ कंत मिलावा होइ ॥२॥
नानक कहते हैं कि हे बुद्धिमान स्त्री ! इस प्रकार पति-प्रभु से सच्चा मिलन होता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी।
ਹਉ ਕਿਆ ਸਾਲਾਹੀ ਕਿਰਮ ਜੰਤੁ ਵਡੀ ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ॥
हउ किआ सालाही किरम जंतु वडी तेरी वडिआई ॥
हे ईश्वर ! तेरी महिमा बहुत बड़ी है, फिर मैं कीड़े जैसा छोटा-सा जीव तेरी क्या स्तुति करूं ?
ਤੂ ਅਗਮ ਦਇਆਲੁ ਅਗੰਮੁ ਹੈ ਆਪਿ ਲੈਹਿ ਮਿਲਾਈ ॥
तू अगम दइआलु अगमु है आपि लैहि मिलाई ॥
तू अगम्य, दयालु एवं अपरंपार है और स्वयं ही अपने साथ मिला लेता है।
ਮੈ ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਬੇਲੀ ਕੋ ਨਹੀ ਤੂ ਅੰਤਿ ਸਖਾਈ ॥
मै तुझ बिनु बेली को नही तू अंति सखाई ॥
तेरे सिवा मेरा कोई साथी नहीं है और अन्तिम समय तू ही सहायक होता है।
ਜੋ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਗਤੀ ਤਿਨ ਲੈਹਿ ਛਡਾਈ ॥
जो तेरी सरणागती तिन लैहि छडाई ॥
जो तेरी शरण में आता है, तू उसे यम से छुड़ा लेता है।
ਨਾਨਕ ਵੇਪਰਵਾਹੁ ਹੈ ਤਿਸੁ ਤਿਲੁ ਨ ਤਮਾਈ ॥੨੦॥੧॥
नानक वेपरवाहु है तिसु तिलु न तमाई ॥२०॥१॥
हे नानक ! परमात्मा बेपरवाह है और उसे तिल मात्र भी किसी प्रकार का लालच नहीं ॥ २०॥ १॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਬਾਣੀ ਸ੍ਰੀ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ਤਥਾ ਸਭਨਾ ਭਗਤਾ ਕੀ ॥
रागु सूही बाणी स्री कबीर जीउ तथा सभना भगता की ॥
रागु सूही बाणी स्री कबीर जीउ तथा सभना भगता की ॥
ਕਬੀਰ ਕੇ
कबीर के
कबीर के
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਅਵਤਰਿ ਆਇ ਕਹਾ ਤੁਮ ਕੀਨਾ ॥
अवतरि आइ कहा तुम कीना ॥
हे भाई ! दुर्लभ मानव-जन्म लेकर तूने क्या किया है?
ਰਾਮ ਕੋ ਨਾਮੁ ਨ ਕਬਹੂ ਲੀਨਾ ॥੧॥
राम को नामु न कबहू लीना ॥१॥
राम का नाम तो कभी मुख से लिया ही नहीं ॥ १॥
ਰਾਮ ਨ ਜਪਹੁ ਕਵਨ ਮਤਿ ਲਾਗੇ ॥
राम न जपहु कवन मति लागे ॥
राम का नाम न जपकर तू कौन-सी मति में लग गया है।
ਮਰਿ ਜਇਬੇ ਕਉ ਕਿਆ ਕਰਹੁ ਅਭਾਗੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मरि जइबे कउ किआ करहु अभागे ॥१॥ रहाउ ॥
हे अभागे ! तू मृत्यु के समय भी क्या कर रहा है।१॥ रहाउ॥
ਦੁਖ ਸੁਖ ਕਰਿ ਕੈ ਕੁਟੰਬੁ ਜੀਵਾਇਆ ॥
दुख सुख करि कै कुट्मबु जीवाइआ ॥
तूने दुखों को भी सुख मानकर अपने परिवार का पोषण किया और
ਮਰਤੀ ਬਾਰ ਇਕਸਰ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੨॥
मरती बार इकसर दुखु पाइआ ॥२॥
अब मृत्यु के समय भी दुख ही दुख भोग रहा है॥ २॥
ਕੰਠ ਗਹਨ ਤਬ ਕਰਨ ਪੁਕਾਰਾ ॥
कंठ गहन तब करन पुकारा ॥
अब जब यमदूतों ने तुझे गले से पकड़ लिया है तो तू जोर-जोर से चिल्ला रहा है।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਆਗੇ ਤੇ ਨ ਸੰਮ੍ਹ੍ਹਾਰਾ ॥੩॥੧॥
कहि कबीर आगे ते न सम्हारा ॥३॥१॥
कबीर जी कहते हैं कि हे भाई ! तूने पहले ही ईश्वर का स्मरण क्यों नहीं किया ॥ ३॥ १ ॥
ਸੂਹੀ ਕਬੀਰ ਜੀ ॥
सूही कबीर जी ॥
सूही कबीर जी ॥
ਥਰਹਰ ਕੰਪੈ ਬਾਲਾ ਜੀਉ ॥
थरहर क्मपै बाला जीउ ॥
जीव-रूपी कन्या मिलन के समय थर-थर कांपती है और
ਨਾ ਜਾਨਉ ਕਿਆ ਕਰਸੀ ਪੀਉ ॥੧॥
ना जानउ किआ करसी पीउ ॥१॥
यह नहीं जानती कि उसका प्रियतम उससे क्या करेगा ॥ १॥
ਰੈਨਿ ਗਈ ਮਤ ਦਿਨੁ ਭੀ ਜਾਇ ॥
रैनि गई मत दिनु भी जाइ ॥
उसकी जवानी रूपी रात्रि नाम-सिमरन के बिना ही बीत गई है और उसे डर है कि उसका बुढापा रूपी दिन भी यूं ही न गुजर जाए।
ਭਵਰ ਗਏ ਬਗ ਬੈਠੇ ਆਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भवर गए बग बैठे आइ ॥१॥ रहाउ ॥
उसके काले केश रूपी भवरे उड़ चुके हैं और सफेद केश रूपी बगुले आकर बैठ गए हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਾਚੈ ਕਰਵੈ ਰਹੈ ਨ ਪਾਨੀ ॥
काचै करवै रहै न पानी ॥
कच्चे घड़े में पानी कभी नहीं रहता, वैसे ही यह शरीर है।
ਹੰਸੁ ਚਲਿਆ ਕਾਇਆ ਕੁਮਲਾਨੀ ॥੨॥
हंसु चलिआ काइआ कुमलानी ॥२॥
जब आत्मा रूपी हंस उड़ जाता है तो शरीर मुरझा जाता है॥ २॥
ਕੁਆਰ ਕੰਨਿਆ ਜੈਸੇ ਕਰਤ ਸੀਗਾਰਾ ॥
कुआर कंनिआ जैसे करत सीगारा ॥
जैसे कुमारी कन्या अपना श्रृंगार करती है लेकिन
ਕਿਉ ਰਲੀਆ ਮਾਨੈ ਬਾਝੁ ਭਤਾਰਾ ॥੩॥
किउ रलीआ मानै बाझु भतारा ॥३॥
अपने पति के बिना वह रंगरलियां नहीं मना सकती ॥ ३॥
ਕਾਗ ਉਡਾਵਤ ਭੁਜਾ ਪਿਰਾਨੀ ॥
काग उडावत भुजा पिरानी ॥
पति-प्रभु की प्रतीक्षा में कौआ उड़ाते हुए मेरी बाँहें थक चुकी हैं, पर पति-परमेश्वर नहीं आया।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਇਹ ਕਥਾ ਸਿਰਾਨੀ ॥੪॥੨॥
कहि कबीर इह कथा सिरानी ॥४॥२॥
कबीर जी कहते हैं कि मेरी यह जीवन-कथा अब समाप्त हो गई है॥ ४ ॥ २ ॥
ਸੂਹੀ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ॥
सूही कबीर जीउ ॥
सूही कबीर जीउ ॥
ਅਮਲੁ ਸਿਰਾਨੋ ਲੇਖਾ ਦੇਨਾ ॥
अमलु सिरानो लेखा देना ॥
अब तेरा अब इस शरीर पर अख्तियार समाप्त हो गया है और तुझे अपने कर्मों का लेखा देना पड़ेगा
ਆਏ ਕਠਿਨ ਦੂਤ ਜਮ ਲੇਨਾ ॥
आए कठिन दूत जम लेना ॥
कठोर स्वभाव वाले यमदूत जीव को लेने के लिए आ गए हैं और
ਕਿਆ ਤੈ ਖਟਿਆ ਕਹਾ ਗਵਾਇਆ ॥
किआ तै खटिआ कहा गवाइआ ॥
वे उससे कहते हैं कि इस जगत् में आकर तूने क्या अर्जित किया है और क्या गंवाया है ?
ਚਲਹੁ ਸਿਤਾਬ ਦੀਬਾਨਿ ਬੁਲਾਇਆ ॥੧॥
चलहु सिताब दीबानि बुलाइआ ॥१॥
शीघ्र चलो, तुझे यमराज ने बुलाया है॥ १॥
ਚਲੁ ਦਰਹਾਲੁ ਦੀਵਾਨਿ ਬੁਲਾਇਆ ॥
चलु दरहालु दीवानि बुलाइआ ॥
इसी हालत में चलो, यमराज ने अपनी कचहरी में बुलाया है।
ਹਰਿ ਫੁਰਮਾਨੁ ਦਰਗਹ ਕਾ ਆਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि फुरमानु दरगह का आइआ ॥१॥ रहाउ ॥
परमात्मा के दरबार का हुक्म आया है॥ १॥ रहाउ॥
ਕਰਉ ਅਰਦਾਸਿ ਗਾਵ ਕਿਛੁ ਬਾਕੀ ॥
करउ अरदासि गाव किछु बाकी ॥
जीव कहता है कि हे यमदूतो ! मैं आप से प्रार्थना करता हूँ कि मेरी कुछ रकम गाँव में से लेनी शेष रहती है।
ਲੇਉ ਨਿਬੇਰਿ ਆਜੁ ਕੀ ਰਾਤੀ ॥
लेउ निबेरि आजु की राती ॥
में आज रात को ही वह लेन देन समाप्त कर लूंगा।
ਕਿਛੁ ਭੀ ਖਰਚੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰਾ ਸਾਰਉ ॥
किछु भी खरचु तुम्हारा सारउ ॥
कुछ तुम्हारे खर्च का भी प्रबंध कर लूंगा।
ਸੁਬਹ ਨਿਵਾਜ ਸਰਾਇ ਗੁਜਾਰਉ ॥੨॥
सुबह निवाज सराइ गुजारउ ॥२॥
सुबह की नमाज सराय में ही पढ़ लूंगा ॥ २ ॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਾ ਕਉ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਲਾਗਾ ॥
साधसंगि जा कउ हरि रंगु लागा ॥
साधु संगती में मिलकर जिसे हरी का रंग लग गया है
ਧਨੁ ਧਨੁ ਸੋ ਜਨੁ ਪੁਰਖੁ ਸਭਾਗਾ ॥
धनु धनु सो जनु पुरखु सभागा ॥
वह धन्य है, वही भाग्यशाली पुरुष है।
ਈਤ ਊਤ ਜਨ ਸਦਾ ਸੁਹੇਲੇ ॥
ईत ऊत जन सदा सुहेले ॥
ऐसा व्यक्ति लोक-परलोक दोनों में सुखी रहता है।
ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਜੀਤਿ ਅਮੋਲੇ ॥੩॥
जनमु पदारथु जीति अमोले ॥३॥
उसने अमूल्य जन्म पदार्थ जीत लिया है॥ ३॥
ਜਾਗਤੁ ਸੋਇਆ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥
जागतु सोइआ जनमु गवाइआ ॥
जो व्यक्ति सचेत रहता हुआ भी अज्ञान की नींद में सोया रहा है, उसने अपना अमूल्य जन्म व्यर्थ गंवा लिया है।
ਮਾਲੁ ਧਨੁ ਜੋਰਿਆ ਭਇਆ ਪਰਾਇਆ ॥
मालु धनु जोरिआ भइआ पराइआ ॥
उसने जो धन संपत्ति अर्जित की थी, उसके मरणोपरांत सब पराया हो गया है।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਤੇਈ ਨਰ ਭੂਲੇ ॥
कहु कबीर तेई नर भूले ॥
कबीर जी कहते हैं कि वही व्यक्ति भूले हुए हैं,
ਖਸਮੁ ਬਿਸਾਰਿ ਮਾਟੀ ਸੰਗਿ ਰੂਲੇ ॥੪॥੩॥
खसमु बिसारि माटी संगि रूले ॥४॥३॥
जो परमात्मा को भुलाकर मिट्टी में मिल गए हैं।॥ ४॥ ३॥