ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
सलोकु मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਨਾਨਕ ਮੇਰੁ ਸਰੀਰ ਕਾ ਇਕੁ ਰਥੁ ਇਕੁ ਰਥਵਾਹੁ ॥
नानक मेरु सरीर का इकु रथु इकु रथवाहु ॥
हे नानक ! चौरासी लाख योनियों में सुमेरु पर्वत समान मानव-शरीर सर्वोच्च है। इस शरीर का एक रथ एवं एक रथवान है।
ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਫੇਰਿ ਵਟਾਈਅਹਿ ਗਿਆਨੀ ਬੁਝਹਿ ਤਾਹਿ ॥
जुगु जुगु फेरि वटाईअहि गिआनी बुझहि ताहि ॥
युग-युग के पश्चात् ये बदलते रहते हैं और ज्ञानी पुरुष ही इस भेद को समझते हैं।
ਸਤਜੁਗਿ ਰਥੁ ਸੰਤੋਖ ਕਾ ਧਰਮੁ ਅਗੈ ਰਥਵਾਹੁ ॥
सतजुगि रथु संतोख का धरमु अगै रथवाहु ॥
सतियुग में मानव-शरीर का रथ संतोष का था और धर्म रथवान था।
ਤ੍ਰੇਤੈ ਰਥੁ ਜਤੈ ਕਾ ਜੋਰੁ ਅਗੈ ਰਥਵਾਹੁ ॥
त्रेतै रथु जतै का जोरु अगै रथवाहु ॥
त्रैता युग में (मानव-शरीर का) रथ यतीत्व का था और बाहुबल रथवान था।
ਦੁਆਪੁਰਿ ਰਥੁ ਤਪੈ ਕਾ ਸਤੁ ਅਗੈ ਰਥਵਾਹੁ ॥
दुआपुरि रथु तपै का सतु अगै रथवाहु ॥
द्वापर युग में (मानव-शरीर का) रथ तपस्या का था और सत्य रथवान था।
ਕਲਜੁਗਿ ਰਥੁ ਅਗਨਿ ਕਾ ਕੂੜੁ ਅਗੈ ਰਥਵਾਹੁ ॥੧॥
कलजुगि रथु अगनि का कूड़ु अगै रथवाहु ॥१॥
कलियुग में (मानव शरीर का) रथ तृष्णा रूपी अग्नि का रथ है और झूठ इसका रथवान है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਸਾਮ ਕਹੈ ਸੇਤੰਬਰੁ ਸੁਆਮੀ ਸਚ ਮਹਿ ਆਛੈ ਸਾਚਿ ਰਹੇ ॥ ਸਭੁ ਕੋ ਸਚਿ ਸਮਾਵੈ ॥
साम कहै सेत्मबरु सुआमी सच महि आछै साचि रहे ॥ सभु को सचि समावै ॥
सामवेद कहता है कि जगत का स्वामी प्रभु श्वेत-वस्त्रों वाला है। सतियुग में प्रत्येक मनुष्य सत्य को चाहता था, सत्य में विचरता था और सत्य में ही समा जाता था।
ਰਿਗੁ ਕਹੈ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਦੇਵਾ ਮਹਿ ਸੂਰੁ ॥
रिगु कहै रहिआ भरपूरि ॥ राम नामु देवा महि सूरु ॥
ऋग्वेद कहता है कि प्रभु सर्वव्यापक है और सभी देवताओं में परमात्मा का राम नाम सर्वश्रेष्ठ है।
ਨਾਇ ਲਇਐ ਪਰਾਛਤ ਜਾਹਿ ॥ ਨਾਨਕ ਤਉ ਮੋਖੰਤਰੁ ਪਾਹਿ ॥
नाइ लइऐ पराछत जाहि ॥ नानक तउ मोखंतरु पाहि ॥
राम नाम के सुमिरन द्वारा प्रायश्चित हो जाता है अर्थात् पाप निवृत हो जाते हैं।हे नानक ! राम नाम लेने से ही मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
ਜੁਜ ਮਹਿ ਜੋਰਿ ਛਲੀ ਚੰਦ੍ਰਾਵਲਿ ਕਾਨੑ ਕ੍ਰਿਸਨੁ ਜਾਦਮੁ ਭਇਆ ॥
जुज महि जोरि छली चंद्रावलि कान्ह क्रिसनु जादमु भइआ ॥
यजुर्वेद के समय (द्वापर में) यादव वंश के कृष्ण-कन्हैया हुए, जिन्होंने अपने बाहुबल से चंद्रावलि को छल लिया था।
ਪਾਰਜਾਤੁ ਗੋਪੀ ਲੈ ਆਇਆ ਬਿੰਦ੍ਰਾਬਨ ਮਹਿ ਰੰਗੁ ਕੀਆ ॥
पारजातु गोपी लै आइआ बिंद्राबन महि रंगु कीआ ॥
श्रीकृष्ण अपनी गोपी (सत्यभामा) हेतु इन्द्र के उद्यान से पारिजात (कल्पवृक्ष) ले आए थे और वृन्दावन में कौतुक रचे तथा आनंद मनाते रहे।
ਕਲਿ ਮਹਿ ਬੇਦੁ ਅਥਰਬਣੁ ਹੂਆ ਨਾਉ ਖੁਦਾਈ ਅਲਹੁ ਭਇਆ ॥
कलि महि बेदु अथरबणु हूआ नाउ खुदाई अलहु भइआ ॥
कलयुग में अथर्ववेद प्रसिद्ध हुआ तथा उसके अनुसार प्रभु का नाम ‘अल्लाह एवं ‘खुदा’ विख्यात हो गया।
ਨੀਲ ਬਸਤ੍ਰ ਲੇ ਕਪੜੇ ਪਹਿਰੇ ਤੁਰਕ ਪਠਾਣੀ ਅਮਲੁ ਕੀਆ ॥
नील बसत्र ले कपड़े पहिरे तुरक पठाणी अमलु कीआ ॥
लोगों ने नीले रंग के वस्त्र पहने तथा तुकों एवं मुगलों का शासन हो गया।
ਚਾਰੇ ਵੇਦ ਹੋਏ ਸਚਿਆਰ ॥
चारे वेद होए सचिआर ॥
इस तरह चारों वेद-सामवेद, ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद सच्चे कहे गए।
ਪੜਹਿ ਗੁਣਹਿ ਤਿਨੑ ਚਾਰ ਵੀਚਾਰ ॥
पड़हि गुणहि तिन्ह चार वीचार ॥
उनको पढ़ने एवं अध्ययन करने से मनुष्य उनमें चार सिद्धांत प्राप्त करता है।
ਭਾਉ ਭਗਤਿ ਕਰਿ ਨੀਚੁ ਸਦਾਏ ॥ ਤਉ ਨਾਨਕ ਮੋਖੰਤਰੁ ਪਾਏ ॥੨॥
भाउ भगति करि नीचु सदाए ॥ तउ नानक मोखंतरु पाए ॥२॥
हे नानक ! यदि मनुष्य प्रभु की भक्ति करके अपने आपको विनीत कहलवाए तो ही वह मोक्ष प्राप्त करता है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਟਹੁ ਵਾਰਿਆ ਜਿਤੁ ਮਿਲਿਐ ਖਸਮੁ ਸਮਾਲਿਆ ॥
सतिगुर विटहु वारिआ जितु मिलिऐ खसमु समालिआ ॥
मैं अपने सतिगुरु पर बलिहारी जाता हूँ, जिनके मिलन से भगवान का सिमरन किया है।
ਜਿਨਿ ਕਰਿ ਉਪਦੇਸੁ ਗਿਆਨ ਅੰਜਨੁ ਦੀਆ ਇਨੑੀ ਨੇਤ੍ਰੀ ਜਗਤੁ ਨਿਹਾਲਿਆ ॥
जिनि करि उपदेसु गिआन अंजनु दीआ इन्ही नेत्री जगतु निहालिआ ॥
जिसने मुझे उपदेश देकर ज्ञान का सुरमा प्रदान किया है और इन नेत्रों से मैंने जगत के सत्य को देख लिया है।
ਖਸਮੁ ਛੋਡਿ ਦੂਜੈ ਲਗੇ ਡੁਬੇ ਸੇ ਵਣਜਾਰਿਆ ॥
खसमु छोडि दूजै लगे डुबे से वणजारिआ ॥
जो व्यापारी (प्राणी) अपने प्रभु-पति को त्यागकर द्वैतवाद में लीन हुए, वे डूब गए हैं।
ਸਤਿਗੁਰੂ ਹੈ ਬੋਹਿਥਾ ਵਿਰਲੈ ਕਿਨੈ ਵੀਚਾਰਿਆ ॥
सतिगुरू है बोहिथा विरलै किनै वीचारिआ ॥
सतिगुरु संसार-सागर में से पार करवाने वाला एक जहाज है, कुछ विरले पुरुष ही इसे अनुभव करते है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਿਆ ॥੧੩॥
करि किरपा पारि उतारिआ ॥१३॥
अपनी कृपा करके वह उनको संसार-सागर से पार कर देता है।॥ १३॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
सलोकु मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਸਿੰਮਲ ਰੁਖੁ ਸਰਾਇਰਾ ਅਤਿ ਦੀਰਘ ਅਤਿ ਮੁਚੁ ॥
सिमल रुखु सराइरा अति दीरघ अति मुचु ॥
सेमल का वृक्ष बड़ा सीधा, अत्यंत ऊँचा एवं बहुत मोटा होता है।
ਓਇ ਜਿ ਆਵਹਿ ਆਸ ਕਰਿ ਜਾਹਿ ਨਿਰਾਸੇ ਕਿਤੁ ॥
ओइ जि आवहि आस करि जाहि निरासे कितु ॥
कितने ही पक्षी उसका फल खाने की आशा करके इसके पास आते हैं परन्तु निराश होकर चले जाते हैं।
ਫਲ ਫਿਕੇ ਫੁਲ ਬਕਬਕੇ ਕੰਮਿ ਨ ਆਵਹਿ ਪਤ ॥
फल फिके फुल बकबके कमि न आवहि पत ॥
चूंकि इसके फल बहुत फीके, फूल बकबके एवं पते किसी काम के नहीं होते।
ਮਿਠਤੁ ਨੀਵੀ ਨਾਨਕਾ ਗੁਣ ਚੰਗਿਆਈਆ ਤਤੁ ॥
मिठतु नीवी नानका गुण चंगिआईआ ततु ॥
हे नानक ! नम्रता बड़ी मीठी होती है और यह सब गुणों एवं अच्छाइयों का निचोड़ है अर्थात् सर्वोत्तम गुण है।
ਸਭੁ ਕੋ ਨਿਵੈ ਆਪ ਕਉ ਪਰ ਕਉ ਨਿਵੈ ਨ ਕੋਇ ॥
सभु को निवै आप कउ पर कउ निवै न कोइ ॥
हरेक मनुष्य अपने स्वार्थ हेतु झुकता है परन्तु दूसरों की भलाई हेतु कोई नहीं झुकता।
ਧਰਿ ਤਾਰਾਜੂ ਤੋਲੀਐ ਨਿਵੈ ਸੁ ਗਉਰਾ ਹੋਇ ॥
धरि ताराजू तोलीऐ निवै सु गउरा होइ ॥
यदि कोई वस्तु तराजू पर रख कर तौली जाए तो तराजू का जो पलड़ा झुकता है, वही भारी होता है।
ਅਪਰਾਧੀ ਦੂਣਾ ਨਿਵੈ ਜੋ ਹੰਤਾ ਮਿਰਗਾਹਿ ॥
अपराधी दूणा निवै जो हंता मिरगाहि ॥
मृग के शिकारी की भाँति अपराधी दुगुना झुकता है परन्तु
ਸੀਸਿ ਨਿਵਾਇਐ ਕਿਆ ਥੀਐ ਜਾ ਰਿਦੈ ਕੁਸੁਧੇ ਜਾਹਿ ॥੧॥
सीसि निवाइऐ किआ थीऐ जा रिदै कुसुधे जाहि ॥१॥
सिर झुकाने से क्या प्राप्त हो सकता है जब मनुष्य हृदय से ही मैला हो जाता है।॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਪੜਿ ਪੁਸਤਕ ਸੰਧਿਆ ਬਾਦੰ ॥
पड़ि पुसतक संधिआ बादं ॥
पण्डित (वेद इत्यादि धार्मिक ग्रंथ) पुस्तकें पढ़ता है, सन्ध्या-वन्दन एवं वाद-विवाद करता है।
ਸਿਲ ਪੂਜਸਿ ਬਗੁਲ ਸਮਾਧੰ ॥
सिल पूजसि बगुल समाधं ॥
वह पत्थरों की पूजा करता है और बगुलों की भाँति समाधि लगाता है।
ਮੁਖਿ ਝੂਠ ਬਿਭੂਖਣ ਸਾਰੰ ॥
मुखि झूठ बिभूखण सारं ॥
वह अपने मुख से झूठ बोलता है और सुन्दर आभूषणों की तरह दिखाता है।
ਤ੍ਰੈਪਾਲ ਤਿਹਾਲ ਬਿਚਾਰੰ ॥
त्रैपाल तिहाल बिचारं ॥
वह दिन में तीन बार गायत्री मंत्र का पाठ करता है।
ਗਲਿ ਮਾਲਾ ਤਿਲਕੁ ਲਿਲਾਟੰ ॥
गलि माला तिलकु लिलाटं ॥
गले में माला और माथे पर तिलक धारण करता है।
ਦੁਇ ਧੋਤੀ ਬਸਤ੍ਰ ਕਪਾਟੰ ॥
दुइ धोती बसत्र कपाटं ॥
दुहरी धोती पहनता और सिर पर वस्त्र भी रखता है।
ਜੇ ਜਾਣਸਿ ਬ੍ਰਹਮੰ ਕਰਮੰ ॥
जे जाणसि ब्रहमं करमं ॥
परन्तु यदि यह पण्डित ब्रह्म का कर्म जानता हो तो
ਸਭਿ ਫੋਕਟ ਨਿਸਚਉ ਕਰਮੰ ॥
सभि फोकट निसचउ करमं ॥
उसे पता लगेगा कि यह सभी निश्चय कर्म व्यर्थ के आडम्बर हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਨਿਹਚਉ ਧਿਆਵੈ ॥
कहु नानक निहचउ धिआवै ॥
हे नानक ! श्रद्धा धारण करके भगवान का ध्यान करना चाहिए।
ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਵਾਟ ਨ ਪਾਵੈ ॥੨॥
विणु सतिगुर वाट न पावै ॥२॥
सतिगुरु के मार्गदर्शन के बिना नाम-सिमरन का मार्ग नहीं मिलता ॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਕਪੜੁ ਰੂਪੁ ਸੁਹਾਵਣਾ ਛਡਿ ਦੁਨੀਆ ਅੰਦਰਿ ਜਾਵਣਾ ॥
कपड़ु रूपु सुहावणा छडि दुनीआ अंदरि जावणा ॥
इस शरीर रूपी सुन्दर वस्त्र एवं सौन्दर्य को इस दुनिया में ही छोड़कर जीव ने जाना है।
ਮੰਦਾ ਚੰਗਾ ਆਪਣਾ ਆਪੇ ਹੀ ਕੀਤਾ ਪਾਵਣਾ ॥
मंदा चंगा आपणा आपे ही कीता पावणा ॥
जीव ने स्वयं अपने अच्छे-बुरे कर्मों का फल भोगना है।
ਹੁਕਮ ਕੀਏ ਮਨਿ ਭਾਵਦੇ ਰਾਹਿ ਭੀੜੈ ਅਗੈ ਜਾਵਣਾ ॥
हुकम कीए मनि भावदे राहि भीड़ै अगै जावणा ॥
मनुष्य इहलोक में चाहे मन लुभावने हुक्म लागू करता रहे परन्तु परलोक में उसे कठिन मार्ग में से गुजरना होगा।