Hindi Page 936

ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਕਰਿ ਮੁਏ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਦੁਖੁ ਭਾਲਿ ॥
मेरी मेरी करि मुए विणु नावै दुखु भालि ॥
कितने ही जीव यह माया मेरी है, कहते हुए प्रभु नाम के बिना दुख भोगते हुए जीवन त्याग गए हैं।

ਗੜ ਮੰਦਰ ਮਹਲਾ ਕਹਾ ਜਿਉ ਬਾਜੀ ਦੀਬਾਣੁ ॥
गड़ मंदर महला कहा जिउ बाजी दीबाणु ॥
बाजीगर की खेल की तरह राजाओं के दुर्ग, मन्दिर, महल और उनका दरबार कहाँ रह जाता है ?

ਨਾਨਕ ਸਚੇ ਨਾਮ ਵਿਣੁ ਝੂਠਾ ਆਵਣ ਜਾਣੁ ॥
नानक सचे नाम विणु झूठा आवण जाणु ॥
हे नानक ! ईश्वर के सच्चे नाम के बिना जीव का आवागमन सब झूठा है।

ਆਪੇ ਚਤੁਰੁ ਸਰੂਪੁ ਹੈ ਆਪੇ ਜਾਣੁ ਸੁਜਾਣੁ ॥੪੨॥
आपे चतुरु सरूपु है आपे जाणु सुजाणु ॥४२॥
परमात्मा आप ही चतुर एवं सुन्दर है और आप ही बुद्धिमान एवं सर्वज्ञाता है ॥ ४२ ॥

ਜੋ ਆਵਹਿ ਸੇ ਜਾਹਿ ਫੁਨਿ ਆਇ ਗਏ ਪਛੁਤਾਹਿ ॥
जो आवहि से जाहि फुनि आइ गए पछुताहि ॥
जो भी जन्म लेता है, उसकी मृत्यु अटल है और जन्म-मरण के चक्र में पड़कर जीव पछताता रहता है।

ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਮੇਦਨੀ ਘਟੈ ਨ ਵਧੈ ਉਤਾਹਿ ॥
लख चउरासीह मेदनी घटै न वधै उताहि ॥
यह चौरासी लाख योनियों वाली पृथ्वी उनके जन्म-मरण से न कभी घटती हैं और न ही कभी बढ़ती है।

ਸੇ ਜਨ ਉਬਰੇ ਜਿਨ ਹਰਿ ਭਾਇਆ ॥
से जन उबरे जिन हरि भाइआ ॥
जिन्हें ईश्वर भा गया है, उनका उद्धार हो गया है।

ਧੰਧਾ ਮੁਆ ਵਿਗੂਤੀ ਮਾਇਆ ॥
धंधा मुआ विगूती माइआ ॥
उनकी दुनिया की लालसा साप्त हो गई हैं और माया भी प्रभावित नहीं कर रही।

ਜੋ ਦੀਸੈ ਸੋ ਚਾਲਸੀ ਕਿਸ ਕਉ ਮੀਤੁ ਕਰੇਉ ॥
जो दीसै सो चालसी किस कउ मीतु करेउ ॥
दुनिया में जो कुछ भी नजर आ रहा है, वह नाशवान है, फिर मैं किसे मित्र बनाऊँ।

ਜੀਉ ਸਮਪਉ ਆਪਣਾ ਤਨੁ ਮਨੁ ਆਗੈ ਦੇਉ ॥
जीउ समपउ आपणा तनु मनु आगै देउ ॥
मैं अपना जीवन उसे समर्पित कर दूंगा और तन-मन भी उसे न्यौछावर कर दूंगा।

ਅਸਥਿਰੁ ਕਰਤਾ ਤੂ ਧਣੀ ਤਿਸ ਹੀ ਕੀ ਮੈ ਓਟ ॥
असथिरु करता तू धणी तिस ही की मै ओट ॥
हे सृजनहार ! एक तू ही स्थिर रहने वाला है। मुझे तो उस मालिक का ही सहारा है।

ਗੁਣ ਕੀ ਮਾਰੀ ਹਉ ਮੁਈ ਸਬਦਿ ਰਤੀ ਮਨਿ ਚੋਟ ॥੪੩॥
गुण की मारी हउ मुई सबदि रती मनि चोट ॥४३॥
गुणों की मारी हुई अहंकार भावना समाप्त हो गई है, जब मन ब्रह्म-शब्द में लीन हुआ तो विकारों को बड़ी चोट लगी ॥४३॥

ਰਾਣਾ ਰਾਉ ਨ ਕੋ ਰਹੈ ਰੰਗੁ ਨ ਤੁੰਗੁ ਫਕੀਰੁ ॥
राणा राउ न को रहै रंगु न तुंगु फकीरु ॥
राणा-राव, अमीर-गरीब एवं फकीर कोई भी सदा नहीं रहता, चूंकि सबकी मृत्यु अटल है।

ਵਾਰੀ ਆਪੋ ਆਪਣੀ ਕੋਇ ਨ ਬੰਧੈ ਧੀਰ ॥
वारी आपो आपणी कोइ न बंधै धीर ॥
अपनी-अपनी बारी आने पर सभी जगत से चले जाते हैं और कोई भी उन्हें रोक नहीं सकता।

ਰਾਹੁ ਬੁਰਾ ਭੀਹਾਵਲਾ ਸਰ ਡੂਗਰ ਅਸਗਾਹ ॥
राहु बुरा भीहावला सर डूगर असगाह ॥
गहरे सागर एवं ऊँचे पहाड़ों वाले पथ की तरह मृत्यु का मार्ग बहुत बुरा एवं भयानक है।

ਮੈ ਤਨਿ ਅਵਗਣ ਝੁਰਿ ਮੁਈ ਵਿਣੁ ਗੁਣ ਕਿਉ ਘਰਿ ਜਾਹ ॥
मै तनि अवगण झुरि मुई विणु गुण किउ घरि जाह ॥
मैं अपने शरीर पर अनेक अवगुणों के कारण दुखी हूँ, फिर गुणों के बिना मैं अपने सच्चे घर में कैसे जाऊँ ?

ਗੁਣੀਆ ਗੁਣ ਲੇ ਪ੍ਰਭ ਮਿਲੇ ਕਿਉ ਤਿਨ ਮਿਲਉ ਪਿਆਰਿ ॥
गुणीआ गुण ले प्रभ मिले किउ तिन मिलउ पिआरि ॥
गुणवान जीव अपने गुण साथ लेकर प्रभु से मिल गए हैं, मैं उनसे प्रेमपूर्वक कैसे मिलू?

ਤਿਨ ਹੀ ਜੈਸੀ ਥੀ ਰਹਾਂ ਜਪਿ ਜਪਿ ਰਿਦੈ ਮੁਰਾਰਿ ॥
तिन ही जैसी थी रहां जपि जपि रिदै मुरारि ॥
मेरी कामना है कि हृदय में प्रभु का नाम जप-जपकर मैं भी उन जैसी गुणवान बनी रहूं।

ਅਵਗੁਣੀ ਭਰਪੂਰ ਹੈ ਗੁਣ ਭੀ ਵਸਹਿ ਨਾਲਿ ॥
अवगुणी भरपूर है गुण भी वसहि नालि ॥
दुनिया में प्रत्येक जीव अवगुणों से भरा हुआ है, परन्तु गुण भी उनके साथ ही बसते हैं।

ਵਿਣੁ ਸਤਗੁਰ ਗੁਣ ਨ ਜਾਪਨੀ ਜਿਚਰੁ ਸਬਦਿ ਨ ਕਰੇ ਬੀਚਾਰੁ ॥੪੪॥
विणु सतगुर गुण न जापनी जिचरु सबदि न करे बीचारु ॥४४॥
जब तक जीव शब्द का चिंतन नहीं करता, सतिगुरु के बिना उसे गुण हासिल नहीं होते ॥४४॥

ਲਸਕਰੀਆ ਘਰ ਸੰਮਲੇ ਆਏ ਵਜਹੁ ਲਿਖਾਇ ॥
लसकरीआ घर समले आए वजहु लिखाइ ॥
जिंदगी के इस खेल में कुछ जीवों ने अपनी स्थिति संभाल ली है और भाग्य लिखाकर ही आए हैं।

ਕਾਰ ਕਮਾਵਹਿ ਸਿਰਿ ਧਣੀ ਲਾਹਾ ਪਲੈ ਪਾਇ ॥
कार कमावहि सिरि धणी लाहा पलै पाइ ॥
वे वहीं कार्य करते हैं, जो मालिक ने सौंपा हैं और इस प्रकार लाभ प्राप्त करते हैं।

ਲਬੁ ਲੋਭੁ ਬੁਰਿਆਈਆ ਛੋਡੇ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰਿ ॥
लबु लोभु बुरिआईआ छोडे मनहु विसारि ॥
उन्होंने लालच, लोभ एवं बुराईयों को छोड़ कर मन से भुला दिया है।

ਗੜਿ ਦੋਹੀ ਪਾਤਿਸਾਹ ਕੀ ਕਦੇ ਨ ਆਵੈ ਹਾਰਿ ॥
गड़ि दोही पातिसाह की कदे न आवै हारि ॥
वे जग रूपी दुर्ग में रहते हुए अपने मालिक की स्तुति करते रहते है और जीवन में कभी पराजित नहीं होते।

ਚਾਕਰੁ ਕਹੀਐ ਖਸਮ ਕਾ ਸਉਹੇ ਉਤਰ ਦੇਇ ॥
चाकरु कहीऐ खसम का सउहे उतर देइ ॥
जो कोई खुद को अपने मालिक का चाकर कहलवाता है, पर उसके सामने उत्तर देता है अर्थात् आज्ञा का पालन नहीं करता,

ਵਜਹੁ ਗਵਾਏ ਆਪਣਾ ਤਖਤਿ ਨ ਬੈਸਹਿ ਸੇਇ ॥
वजहु गवाए आपणा तखति न बैसहि सेइ ॥
वह अपनी मेहनत गंवा लेता हैं और उच्च पद पर नहीं बैठता।

ਪ੍ਰੀਤਮ ਹਥਿ ਵਡਿਆਈਆ ਜੈ ਭਾਵੈ ਤੈ ਦੇਇ ॥
प्रीतम हथि वडिआईआ जै भावै तै देइ ॥
प्रियतम्-प्रभु के हाथ में सब बड़ाईयाँ हैं, जिसे चाहता है, उसे ही देता है।

ਆਪਿ ਕਰੇ ਕਿਸੁ ਆਖੀਐ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ਕਰੇਇ ॥੪੫॥
आपि करे किसु आखीऐ अवरु न कोइ करेइ ॥४५॥
वह स्वयं ही सबकुछ करता है, अन्य किसी को क्यों कहा जाए? उसके अलावा अन्य कोई भी करने वाला नहीं ॥४५॥

ਬੀਜਉ ਸੂਝੈ ਕੋ ਨਹੀ ਬਹੈ ਦੁਲੀਚਾ ਪਾਇ ॥
बीजउ सूझै को नही बहै दुलीचा पाइ ॥
ईश्वर केअतिरिक्त अन्य कोई भी ऐसा नहीं सूझाता जो सदा विश्व का शासन चलाता है।

ਨਰਕ ਨਿਵਾਰਣੁ ਨਰਹ ਨਰੁ ਸਾਚਉ ਸਾਚੈ ਨਾਇ ॥
नरक निवारणु नरह नरु साचउ साचै नाइ ॥
वह पुरुषोत्तम् प्रभु ही नरक से निवारण करने वाला है, जिसका नाम सदैव सत्य है।

ਵਣੁ ਤ੍ਰਿਣੁ ਢੂਢਤ ਫਿਰਿ ਰਹੀ ਮਨ ਮਹਿ ਕਰਉ ਬੀਚਾਰੁ ॥
वणु त्रिणु ढूढत फिरि रही मन महि करउ बीचारु ॥
मैं उसे वन-वन ढूंढती रहती हैं और मन में उसका ही विचार करती हैं कि

ਲਾਲ ਰਤਨ ਬਹੁ ਮਾਣਕੀ ਸਤਿਗੁਰ ਹਾਥਿ ਭੰਡਾਰੁ ॥
लाल रतन बहु माणकी सतिगुर हाथि भंडारु ॥
लाल, रत्न एवं माणिक्य रूपी गुणों का भण्डार सतिगुरु के हाथ में है।

ਊਤਮੁ ਹੋਵਾ ਪ੍ਰਭੁ ਮਿਲੈ ਇਕ ਮਨਿ ਏਕੈ ਭਾਇ ॥
ऊतमु होवा प्रभु मिलै इक मनि एकै भाइ ॥
यदि मुझे प्रभु मिल जाए तो मैं उत्तम हो जाऊँ और एकाग्रचित होकर उसके प्रेम में ही लीन रहें।

ਨਾਨਕ ਪ੍ਰੀਤਮ ਰਸਿ ਮਿਲੇ ਲਾਹਾ ਲੈ ਪਰਥਾਇ ॥
नानक प्रीतम रसि मिले लाहा लै परथाइ ॥
हे नानक ! यदि प्रियतम का नामामृत प्राप्त हो जाए तो लाभ प्राप्त करके परलोक में चली जाऊँ।

ਰਚਨਾ ਰਾਚਿ ਜਿਨਿ ਰਚੀ ਜਿਨਿ ਸਿਰਿਆ ਆਕਾਰੁ ॥
रचना राचि जिनि रची जिनि सिरिआ आकारु ॥
जिस परमेश्वर ने यह विश्व बनाया है, जिसने सारी रचना करके जीवों को उत्पन्न किया है,

ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੇਅੰਤੁ ਧਿਆਈਐ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ॥੪੬॥
गुरमुखि बेअंतु धिआईऐ अंतु न पारावारु ॥४६॥
उसका न कोई अंत है और न ही आर-पार है, उस बेअंत परमात्मा का गुरु के माध्यम से ध्यान करना चाहिए ॥ ४६ ॥

ੜਾੜੈ ਰੂੜਾ ਹਰਿ ਜੀਉ ਸੋਈ ॥
ड़ाड़ै रूड़ा हरि जीउ सोई ॥
ड़-वह प्रभु अत्यंत सुन्दर है और

ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਰਾਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
तिसु बिनु राजा अवरु न कोई ॥
उसके अलावा अन्य कोई दुनिया का राजा नहीं है।

ੜਾੜੈ ਗਾਰੁੜੁ ਤੁਮ ਸੁਣਹੁ ਹਰਿ ਵਸੈ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥
ड़ाड़ै गारुड़ु तुम सुणहु हरि वसै मन माहि ॥
ड़-तुम गुरु मंत्र सुन लो, हरि मन में बस जाता है।

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਮਤੁ ਕੋ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਹਿ ॥
गुर परसादी हरि पाईऐ मतु को भरमि भुलाहि ॥
गुरु की कृपा से ही परमात्मा प्राप्त होता है, इसलिए किसी भ्र्म में मत भटको।

ਸੋ ਸਾਹੁ ਸਾਚਾ ਜਿਸੁ ਹਰਿ ਧਨੁ ਰਾਸਿ ॥
सो साहु साचा जिसु हरि धनु रासि ॥
वही सच्चा साहूकार है, जिसके पास हरि-धन रूपी पूंजी है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਪੂਰਾ ਤਿਸੁ ਸਾਬਾਸਿ ॥
गुरमुखि पूरा तिसु साबासि ॥
वहीं पूर्ण गुरुमुख है, उसे मेरी शाबाश है।

ਰੂੜੀ ਬਾਣੀ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਬੀਚਾਰਿ ॥
रूड़ी बाणी हरि पाइआ गुर सबदी बीचारि ॥
शब्द-गुरु द्वारा विचार करने से सुन्दर वाणी द्वारा ईश्वर को पाया जा सकता है।

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