Hindi Page 1415

ਆਤਮਾ ਰਾਮੁ ਨ ਪੂਜਨੀ ਦੂਜੈ ਕਿਉ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥
आतमा रामु न पूजनी दूजै किउ सुखु होइ ॥
अन्तरात्मा में प्रभु की पूजा नहीं करता, फिर द्वैतभाव में कैसे सुख मिल सकता है।

ਹਉਮੈ ਅੰਤਰਿ ਮੈਲੁ ਹੈ ਸਬਦਿ ਨ ਕਾਢਹਿ ਧੋਇ ॥
हउमै अंतरि मैलु है सबदि न काढहि धोइ ॥
उसके मन में अहंकार की मैल भरी रहती है और शब्द से उस मैल को नहीं धोता।

ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਮੈਲਿਆ ਮੁਏ ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਖੋਇ ॥੨੦॥
नानक बिनु नावै मैलिआ मुए जनमु पदारथु खोइ ॥२०॥
हे नानक ! परमात्मा के नाम बिना स्वेच्छाचारी अहंकार की मैल में खत्म हो जाते हैं और अपना जीवन व्यर्थ ही खो देते हैं।॥२०॥

ਮਨਮੁਖ ਬੋਲੇ ਅੰਧੁਲੇ ਤਿਸੁ ਮਹਿ ਅਗਨੀ ਕਾ ਵਾਸੁ ॥
मनमुख बोले अंधुले तिसु महि अगनी का वासु ॥
मनमति लोग अंधे एवं बहरे हैं, उनके मन में तृष्णा की अग्नि ही रहती है।

ਬਾਣੀ ਸੁਰਤਿ ਨ ਬੁਝਨੀ ਸਬਦਿ ਨ ਕਰਹਿ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ॥
बाणी सुरति न बुझनी सबदि न करहि प्रगासु ॥
वे वाणी को नहीं समझते और न ही शब्द-प्रभु का प्रकाश करते हैं।

ਓਨਾ ਆਪਣੀ ਅੰਦਰਿ ਸੁਧਿ ਨਹੀ ਗੁਰ ਬਚਨਿ ਨ ਕਰਹਿ ਵਿਸਾਸੁ ॥
ओना आपणी अंदरि सुधि नही गुर बचनि न करहि विसासु ॥
उनको तो अपनी होश नहीं, गुरु के वचन पर भी भरोसा नहीं करते।

ਗਿਆਨੀਆ ਅੰਦਰਿ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਹੈ ਨਿਤ ਹਰਿ ਲਿਵ ਸਦਾ ਵਿਗਾਸੁ ॥
गिआनीआ अंदरि गुर सबदु है नित हरि लिव सदा विगासु ॥
ज्ञानी के मन में गुरु उपदेश अवस्थित होता है और वह ईश्वर के ध्यान में सदैव प्रसन्न रहता है।

ਹਰਿ ਗਿਆਨੀਆ ਕੀ ਰਖਦਾ ਹਉ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਾਸੁ ॥
हरि गिआनीआ की रखदा हउ सद बलिहारी तासु ॥
ज्ञानी को प्रभु ही मोह-माया से बचाता है, ऐसे व्यक्ति पर तो मैं सदैव कुर्बान जाता हूँ।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੋ ਹਰਿ ਸੇਵਦੇ ਜਨ ਨਾਨਕੁ ਤਾ ਕਾ ਦਾਸੁ ॥੨੧॥
गुरमुखि जो हरि सेवदे जन नानकु ता का दासु ॥२१॥
गुरु नानक फुरमाते हैं कि जो गुरुमुख जन ईश्वर की आराधना करते हैं, हम उनके दास हैं॥२१॥

ਮਾਇਆ ਭੁਇਅੰਗਮੁ ਸਰਪੁ ਹੈ ਜਗੁ ਘੇਰਿਆ ਬਿਖੁ ਮਾਇ ॥
माइआ भुइअंगमु सरपु है जगु घेरिआ बिखु माइ ॥
माया जहरीली नागिन है, इसके जहर ने पूरे जगत को घेर रखा है।

ਬਿਖੁ ਕਾ ਮਾਰਣੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹੈ ਗੁਰ ਗਰੁੜ ਸਬਦੁ ਮੁਖਿ ਪਾਇ ॥
बिखु का मारणु हरि नामु है गुर गरुड़ सबदु मुखि पाइ ॥
हरिनाम इस जहर का अंत करने वाला है और गुरु रूपी गरुड़ शब्द मुख में डालता है।

ਜਿਨ ਕਉ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਤਿਨ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲਿਆ ਆਇ ॥
जिन कउ पूरबि लिखिआ तिन सतिगुरु मिलिआ आइ ॥
जिनके भाग्य में प्रारम्भ से लिखा होता है, उनका सतिगुरु से मिलाप हो जाता है।

ਮਿਲਿ ਸਤਿਗੁਰ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਇਆ ਬਿਖੁ ਹਉਮੈ ਗਇਆ ਬਿਲਾਇ ॥
मिलि सतिगुर निरमलु होइआ बिखु हउमै गइआ बिलाइ ॥
सतिगुरु से मिलकर मन निर्मल हो जाता है और अभिमान रूपी जहर बाहर निकल जाता है।

ਗੁਰਮੁਖਾ ਕੇ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਸੋਭਾ ਪਾਇ ॥
गुरमुखा के मुख उजले हरि दरगह सोभा पाइ ॥
गुरुमुख प्राणियों के मुख उज्ज्वल होते हैं और वे प्रभु-दरबार में शोभा के पात्र बनते हैं।

ਜਨ ਨਾਨਕੁ ਸਦਾ ਕੁਰਬਾਣੁ ਤਿਨ ਜੋ ਚਾਲਹਿ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਇ ॥੨੨॥
जन नानकु सदा कुरबाणु तिन जो चालहि सतिगुर भाइ ॥२२॥
गुरु नानक फुरमाते हैं- जो सतिगुरु की आज्ञानुसार चलते हैं, मैं उन पर सदैव कुर्बान जाता हूँ॥ २२॥

ਸਤਿਗੁਰ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਵੈਰੁ ਹੈ ਨਿਤ ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
सतिगुर पुरखु निरवैरु है नित हिरदै हरि लिव लाइ ॥
प्रेम की मूर्त सतिगुरु निर्वेर है, उसके दिल में हरदम प्रभु-भक्ति की लगन लगी रहती है।

ਨਿਰਵੈਰੈ ਨਾਲਿ ਵੈਰੁ ਰਚਾਇਦਾ ਅਪਣੈ ਘਰਿ ਲੂਕੀ ਲਾਇ ॥
निरवैरै नालि वैरु रचाइदा अपणै घरि लूकी लाइ ॥
जो सज्जनों से वैर करता है, वह अपने घर में आग लगाता है।

ਅੰਤਰਿ ਕ੍ਰੋਧੁ ਅਹੰਕਾਰੁ ਹੈ ਅਨਦਿਨੁ ਜਲੈ ਸਦਾ ਦੁਖੁ ਪਾਇ ॥
अंतरि क्रोधु अहंकारु है अनदिनु जलै सदा दुखु पाइ ॥
मन में क्रोध एवं अहंकार के कारण वह प्रतिदिन जलता है और सदैव दुखी होता है।

ਕੂੜੁ ਬੋਲਿ ਬੋਲਿ ਨਿਤ ਭਉਕਦੇ ਬਿਖੁ ਖਾਧੇ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥
कूड़ु बोलि बोलि नित भउकदे बिखु खाधे दूजै भाइ ॥
वह झूठ बोल-बोलकर नित्य भौंकता है और द्वैतभाव में जहर सेवन करता है।

ਬਿਖੁ ਮਾਇਆ ਕਾਰਣਿ ਭਰਮਦੇ ਫਿਰਿ ਘਰਿ ਘਰਿ ਪਤਿ ਗਵਾਇ ॥
बिखु माइआ कारणि भरमदे फिरि घरि घरि पति गवाइ ॥
ऐसे व्यक्ति माया जहर की खातिर भटकते हैं और घर-घर इज्जत गंवाते हैं।

ਬੇਸੁਆ ਕੇਰੇ ਪੂਤ ਜਿਉ ਪਿਤਾ ਨਾਮੁ ਤਿਸੁ ਜਾਇ ॥
बेसुआ केरे पूत जिउ पिता नामु तिसु जाइ ॥
वेश्या के पुत्र की तरह उनको (गुरु) पिता का नाम नहीं मिलता।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਨੀ ਕਰਤੈ ਆਪਿ ਖੁਆਇ ॥
हरि हरि नामु न चेतनी करतै आपि खुआइ ॥
वे ईश्वर को याद नहीं करते और स्वयं ही दुख-तकलीफों में ख्वार होते हैं।

ਹਰਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀਅਨੁ ਜਨ ਵਿਛੁੜੇ ਆਪਿ ਮਿਲਾਇ ॥
हरि गुरमुखि किरपा धारीअनु जन विछुड़े आपि मिलाइ ॥
परमात्मा कृपा करके स्वयं ही बिछुड़े हुओं को मिला लेता है।

ਜਨ ਨਾਨਕੁ ਤਿਸੁ ਬਲਿਹਾਰਣੈ ਜੋ ਸਤਿਗੁਰ ਲਾਗੇ ਪਾਇ ॥੨੩॥
जन नानकु तिसु बलिहारणै जो सतिगुर लागे पाइ ॥२३॥
गुरु नानक फुरमाते हैं- जो सतिगुरु के चरणों में लगते हैं, मैं उन पर कुर्बान जाता हूँ॥२३॥

ਨਾਮਿ ਲਗੇ ਸੇ ਊਬਰੇ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਜਮ ਪੁਰਿ ਜਾਂਹਿ ॥
नामि लगे से ऊबरे बिनु नावै जम पुरि जांहि ॥
हरिनाम में लीन होने वाले तो बच जाते हैं, अन्यथा नाम से विहीन रहकर यमपुरी जाना पड़ता है।

ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸੁਖੁ ਨਹੀ ਆਇ ਗਏ ਪਛੁਤਾਹਿ ॥੨੪॥
नानक बिनु नावै सुखु नही आइ गए पछुताहि ॥२४॥
हे नानक ! हरिनाम के बिना सुख प्राप्त नहीं होता और जीव आवागमन में पछताता रहता है॥२४ ॥

ਚਿੰਤਾ ਧਾਵਤ ਰਹਿ ਗਏ ਤਾਂ ਮਨਿ ਭਇਆ ਅਨੰਦੁ ॥
चिंता धावत रहि गए तां मनि भइआ अनंदु ॥
जब चिन्ता-बेचैनी दूर हो जाती है तो मन में आनंद पैदा होता है।

ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦੀ ਬੁਝੀਐ ਸਾ ਧਨ ਸੁਤੀ ਨਿਚਿੰਦ ॥
गुर प्रसादी बुझीऐ सा धन सुती निचिंद ॥
गुरु की कृपा से तथ्य को समझने वाली जीव-स्त्री बेफिक्र होकर सोती है।

ਜਿਨ ਕਉ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਤਿਨੑਾ ਭੇਟਿਆ ਗੁਰ ਗੋਵਿੰਦੁ ॥
जिन कउ पूरबि लिखिआ तिन्हा भेटिआ गुर गोविंदु ॥
जिनके भाग्य में पूर्व से लिखा होता है, उनकी गुरु-परमेश्वर से भेंट हो जाती है।

ਨਾਨਕ ਸਹਜੇ ਮਿਲਿ ਰਹੇ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਪਰਮਾਨੰਦੁ ॥੨੫॥
नानक सहजे मिलि रहे हरि पाइआ परमानंदु ॥२५॥
हे नानक ! जो सहज-स्वाभाविक मिले रहते हैं, वही परमानंद प्रभु को पाते हैं॥२५॥

ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਨਿ ਆਪਣਾ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਵੀਚਾਰਿ ॥
सतिगुरु सेवनि आपणा गुर सबदी वीचारि ॥
जो गुरु-शब्द का चिंतन करते हुए सतिगुरु की सेवा करते हैं।

ਸਤਿਗੁਰ ਕਾ ਭਾਣਾ ਮੰਨਿ ਲੈਨਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਰਖਹਿ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥
सतिगुर का भाणा मंनि लैनि हरि नामु रखहि उर धारि ॥
सतिगुरु की रज़ा को मानकर परमात्मा को अपने दिल में बसाते हैं,”

ਐਥੈ ਓਥੈ ਮੰਨੀਅਨਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਲਗੇ ਵਾਪਾਰਿ ॥
ऐथै ओथै मंनीअनि हरि नामि लगे वापारि ॥
वे लोक-परलोक में यश पाते हैं और हरिनाम के व्यापार में लीन रहते हैं।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦਿ ਸਿਞਾਪਦੇ ਤਿਤੁ ਸਾਚੈ ਦਰਬਾਰਿ ॥
गुरमुखि सबदि सिञापदे तितु साचै दरबारि ॥
वे गुरु के उपदेश से सच्चे दरबार में माननीय होते हैं।

ਸਚਾ ਸਉਦਾ ਖਰਚੁ ਸਚੁ ਅੰਤਰਿ ਪਿਰਮੁ ਪਿਆਰੁ ॥
सचा सउदा खरचु सचु अंतरि पिरमु पिआरु ॥
इनके मन में प्रभु से प्रेम बना रहता है और इनका सौदा एवं खर्च सब सच्चा होता है।

ਜਮਕਾਲੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵਈ ਆਪਿ ਬਖਸੇ ਕਰਤਾਰਿ ॥
जमकालु नेड़ि न आवई आपि बखसे करतारि ॥
यमराज इनके निकट भी नहीं आता और प्रभु स्वयं ही बख्श देता है।

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