Hindi Page 1179

ਜਨ ਕੇ ਸਾਸ ਸਾਸ ਹੈ ਜੇਤੇ ਹਰਿ ਬਿਰਹਿ ਪ੍ਰਭੂ ਹਰਿ ਬੀਧੇ ॥
जन के सास सास है जेते हरि बिरहि प्रभू हरि बीधे ॥
दास की जितनी भी जीवन सॉसें हैं, प्रभु प्रेम के विरह में विंध चुकी हैं।

ਜਿਉ ਜਲ ਕਮਲ ਪ੍ਰੀਤਿ ਅਤਿ ਭਾਰੀ ਬਿਨੁ ਜਲ ਦੇਖੇ ਸੁਕਲੀਧੇ ॥੨॥
जिउ जल कमल प्रीति अति भारी बिनु जल देखे सुकलीधे ॥२॥
ज्यों कमल का जल से अत्यंत गहरा प्रेम होता है और जल को देखे बिना कुम्हला जाता है॥२॥

ਜਨ ਜਪਿਓ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਨਰਹਰਿ ਉਪਦੇਸਿ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਧੇ ॥
जन जपिओ नामु निरंजनु नरहरि उपदेसि गुरू हरि प्रीधे ॥
भक्तों ने पावन प्रभु-नाम का ही जाप किया है, गुरु के उपदेश से उनको प्रभु साक्षात् दृष्टिगत हो गया है।

ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੀ ਹਉਮੈ ਮਲੁ ਨਿਕਸੀ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤਿ ਹਰਿ ਜਲਿ ਨੀਧੇ ॥੩॥
जनम जनम की हउमै मलु निकसी हरि अम्रिति हरि जलि नीधे ॥३॥
जब हरि नाम रूपी अमृत जल प्राप्त हुआ तो उनकी जन्म-जन्मांतर की अहम् की मैल निकल गई॥३॥

ਹਮਰੇ ਕਰਮ ਨ ਬਿਚਰਹੁ ਠਾਕੁਰ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਪੈਜ ਰਖਹੁ ਅਪਨੀਧੇ ॥
हमरे करम न बिचरहु ठाकुर तुम्ह पैज रखहु अपनीधे ॥
हे ठाकुर ! हमारे कर्मों का ख्याल मत करो, अपने भक्त की तुम लाज रखो।

ਹਰਿ ਭਾਵੈ ਸੁਣਿ ਬਿਨਉ ਬੇਨਤੀ ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਪਵੀਧੇ ॥੪॥੩॥੫॥
हरि भावै सुणि बिनउ बेनती जन नानक सरणि पवीधे ॥४॥३॥५॥
नानक विनयपूर्वक कहते हैं कि हे प्रभु ! जैसे तेरी मर्जी हो हमारी विनती सुनो, हम तेरी शरण में पड़े हुए हैं।॥४॥३॥५॥

ਬਸੰਤੁ ਹਿੰਡੋਲ ਮਹਲਾ ੪ ॥
बसंतु हिंडोल महला ४ ॥
बसंतु हिंडोल महला ४॥

ਮਨੁ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਭਰਮਿ ਭਰਮਿ ਬਹੁ ਧਾਵੈ ਤਿਲੁ ਘਰਿ ਨਹੀ ਵਾਸਾ ਪਾਈਐ ॥
मनु खिनु खिनु भरमि भरमि बहु धावै तिलु घरि नही वासा पाईऐ ॥
मन पल-पल भ्रमों में बहुत दौड़ता है और तिल मात्र भी अपने घर में नहीं रहता।

ਗੁਰਿ ਅੰਕਸੁ ਸਬਦੁ ਦਾਰੂ ਸਿਰਿ ਧਾਰਿਓ ਘਰਿ ਮੰਦਰਿ ਆਣਿ ਵਸਾਈਐ ॥੧॥
गुरि अंकसु सबदु दारू सिरि धारिओ घरि मंदरि आणि वसाईऐ ॥१॥
जब गुरु शब्द रूपी दवा से सिर पर अंकुश लगाता है तो यह अपने घर आकर स्थित हो जाता है॥१॥

ਗੋਬਿੰਦ ਜੀਉ ਸਤਸੰਗਤਿ ਮੇਲਿ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ॥
गोबिंद जीउ सतसंगति मेलि हरि धिआईऐ ॥
हे गोविन्द ! सत्संगति से मिला दो ताकि तेरा भजन करते रहें।

ਹਉਮੈ ਰੋਗੁ ਗਇਆ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਧਿ ਲਗਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउमै रोगु गइआ सुखु पाइआ हरि सहजि समाधि लगाईऐ ॥१॥ रहाउ ॥
जब सहज स्वभाव प्रभु में ध्यान लगाया जाता है तो अहम् का रोग दूर होकर सुख प्राप्त हो जाता है॥१॥रहाउ॥।

ਘਰਿ ਰਤਨ ਲਾਲ ਬਹੁ ਮਾਣਕ ਲਾਦੇ ਮਨੁ ਭ੍ਰਮਿਆ ਲਹਿ ਨ ਸਕਾਈਐ ॥
घरि रतन लाल बहु माणक लादे मनु भ्रमिआ लहि न सकाईऐ ॥
हृदय-घर में बहुत सारे रत्न, मोती एवं माणिक्य भरे हुए हैं परन्तु मन भटकन में पड़कर इसे प्राप्त नहीं कर पाता।

ਜਿਉ ਓਡਾ ਕੂਪੁ ਗੁਹਜ ਖਿਨ ਕਾਢੈ ਤਿਉ ਸਤਿਗੁਰਿ ਵਸਤੁ ਲਹਾਈਐ ॥੨॥
जिउ ओडा कूपु गुहज खिन काढै तिउ सतिगुरि वसतु लहाईऐ ॥२॥
ज्यों भूमि में से पानी तलाश करने वाला तत्क्षण भूमि से कुआँ निकाल लेता है, त्यों सतगुरु नाम रूपी वस्तु पा लेता है॥२॥

ਜਿਨ ਐਸਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਾਧੁ ਨ ਪਾਇਆ ਤੇ ਧ੍ਰਿਗੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਨਰ ਜੀਵਾਈਐ ॥
जिन ऐसा सतिगुरु साधु न पाइआ ते ध्रिगु ध्रिगु नर जीवाईऐ ॥
जिसने ऐसा सतगुरु साधुजन नहीं पाया, उस व्यक्ति का जीना धिक्कार योग्य है।

ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਪੁੰਨਿ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ਕਉਡੀ ਬਦਲੈ ਜਾਈਐ ॥੩॥
जनमु पदारथु पुंनि फलु पाइआ कउडी बदलै जाईऐ ॥३॥
यह मनुष्य जन्म उसे पुण्य फल के रूप में प्राप्त होता है, परन्तु नाम बिना कौड़ियों के दाम जाता है।॥३॥

ਮਧੁਸੂਦਨ ਹਰਿ ਧਾਰਿ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰੂ ਮਿਲਾਈਐ ॥
मधुसूदन हरि धारि प्रभ किरपा करि किरपा गुरू मिलाईऐ ॥
हे प्रभु ! कृपा धारण करो; कृपा करके गुरु से मिला दो।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਿਰਬਾਣ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਈਐ ॥੪॥੪॥੬॥
जन नानक निरबाण पदु पाइआ मिलि साधू हरि गुण गाईऐ ॥४॥४॥६॥
नानक का मत है कि साधु पुरुष के संग भगवान का गुणगान किया जाए तो निर्वाण पद प्राप्त हो जाता है॥४॥४॥६॥

ਬਸੰਤੁ ਹਿੰਡੋਲ ਮਹਲਾ ੪ ॥
बसंतु हिंडोल महला ४ ॥
बसंतु हिंडोल महला ४॥

ਆਵਣ ਜਾਣੁ ਭਇਆ ਦੁਖੁ ਬਿਖਿਆ ਦੇਹ ਮਨਮੁਖ ਸੁੰਞੀ ਸੁੰਞੁ ॥
आवण जाणु भइआ दुखु बिखिआ देह मनमुख सुंञी सुंञु ॥
स्वेच्छाचारी मनुष्य विषय-विकारों में दुखी रहता है, इस तरह नामविहीन शरीर सूना ही रहता है, अतः उसे जन्म-मरण का बन्धन बना रहता है।

ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਖਿਨੁ ਪਲੁ ਨਹੀ ਚੇਤਿਆ ਜਮਿ ਪਕਰੇ ਕਾਲਿ ਸਲੁੰਞੁ ॥੧॥
राम नामु खिनु पलु नही चेतिआ जमि पकरे कालि सलुंञु ॥१॥
वह पल भर भी राम नाम का चिन्तन नहीं करता, परिणामस्वरूप काल उसे पकड़कर ले जाता है।॥ १॥

ਗੋਬਿੰਦ ਜੀਉ ਬਿਖੁ ਹਉਮੈ ਮਮਤਾ ਮੁੰਞੁ ॥
गोबिंद जीउ बिखु हउमै ममता मुंञु ॥
हे गोविन्द ! अहंकार रूपी जहर एवं ममत्व को समाप्त कर दो।

ਸਤਸੰਗਤਿ ਗੁਰ ਕੀ ਹਰਿ ਪਿਆਰੀ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਭੁੰਞੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतसंगति गुर की हरि पिआरी मिलि संगति हरि रसु भुंञु ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु को गुरु की सत्संगति ही प्यारी लगती है, संगत में शामिल होकर हरिनाम रस का आनंद पाओ॥१॥रहाउ॥।

ਸਤਸੰਗਤਿ ਸਾਧ ਦਇਆ ਕਰਿ ਮੇਲਹੁ ਸਰਣਾਗਤਿ ਸਾਧੂ ਪੰਞੁ ॥
सतसंगति साध दइआ करि मेलहु सरणागति साधू पंञु ॥
हे प्रभु ! दया करके साधुओं की सत्संगति में मिला दो, ताकि हम साधुओं की शरण में पड़े रहें।

ਹਮ ਡੁਬਦੇ ਪਾਥਰ ਕਾਢਿ ਲੇਹੁ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਦੁਖ ਭੰਞੁ ॥੨॥
हम डुबदे पाथर काढि लेहु प्रभ तुम्ह दीन दइआल दुख भंञु ॥२॥
विकारों में डूब रहे हम जैसे पत्थरों को हे प्रभु ! निकाल लो, तुम दीनदयालु एवं दुख नाशक हो।॥२॥

ਹਰਿ ਉਸਤਤਿ ਧਾਰਹੁ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਸੁਆਮੀ ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਬੁਧਿ ਲੰਞੁ ॥
हरि उसतति धारहु रिद अंतरि सुआमी सतसंगति मिलि बुधि लंञु ॥
हे स्वामी ! हृदय में अपनी स्तुति बसा दो, ताकि सत्संगत में मिलकर बुद्धि उज्ज्वल हो जाए।

ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਹਮ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗਾਨੀ ਹਮ ਹਰਿ ਵਿਟਹੁ ਘੁਮਿ ਵੰਞੁ ॥੩॥
हरि नामै हम प्रीति लगानी हम हरि विटहु घुमि वंञु ॥३॥
हमारा हरि-नाम से ही प्रेम लगा हुआ है और हम प्रभु पर कुर्बान जाते हैं।॥३॥

ਜਨ ਕੇ ਪੂਰਿ ਮਨੋਰਥ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦੇਵਹੁ ਹਰਿ ਲੰਞੁ ॥
जन के पूरि मनोरथ हरि प्रभ हरि नामु देवहु हरि लंञु ॥
हे प्रभु ! दास के सभी मनोरथ पूरे कर दो और नाम ही प्रदान करो।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਤਨਿ ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਹੈ ਗੁਰਿ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦੀਓ ਹਰਿ ਭੰਞੁ ॥੪॥੫॥੭॥੧੨॥੧੮॥੭॥੩੭॥
जन नानक मनि तनि अनदु भइआ है गुरि मंत्रु दीओ हरि भंञु ॥४॥५॥७॥१२॥१८॥७॥३७॥
नानक का कथन है कि गुरु ने हरिनाम मंत्र प्रदान किया तो मन तन में आनंद उत्पन्न हो गया ॥४॥५॥७॥१२॥१८॥७॥३७॥

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