ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੀਤਿਆ ਬਹੁਰਿ ਨ ਜੂਐ ਹਾਰਿ ॥੧॥
जनमु पदारथु गुरमुखि जीतिआ बहुरि न जूऐ हारि ॥१॥
गुरु के सान्निध्य में मानव-जीवन को जीत लिया है और पुनः जुए में नहीं हारता॥१॥
ਆਠ ਪਹਰ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਵਹ ਪੂਰਨ ਸਬਦਿ ਬੀਚਾਰਿ ॥
आठ पहर प्रभ के गुण गावह पूरन सबदि बीचारि ॥
पूर्ण शब्द के चिन्तन द्वारा आठ प्रहर मैं प्रभु का गुणगान करता हूँ।
ਨਾਨਕ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸੁ ਜਨੁ ਤੇਰਾ ਪੁਨਹ ਪੁਨਹ ਨਮਸਕਾਰਿ ॥੨॥੮੯॥੧੧੨॥
नानक दासनि दासु जनु तेरा पुनह पुनह नमसकारि ॥२॥८९॥११२॥
हे प्रभु! नानक तेरे दासों का दास है और बार-बार तुझे प्रणाम करता है॥२॥ ८६ ॥ ११२ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਪੋਥੀ ਪਰਮੇਸਰ ਕਾ ਥਾਨੁ ॥
पोथी परमेसर का थानु ॥
पावन आदि ग्रंथ में परमेश्वर का ही आवास है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਗਾਵਹਿ ਗੁਣ ਗੋਬਿੰਦ ਪੂਰਨ ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साधसंगि गावहि गुण गोबिंद पूरन ब्रहम गिआनु ॥१॥ रहाउ ॥
साधु-पुरुष मिलकर प्रभु का गुणगान करते हैं और उनको पूर्ण ब्रह्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है।॥१॥रहाउ॥।
ਸਾਧਿਕ ਸਿਧ ਸਗਲ ਮੁਨਿ ਲੋਚਹਿ ਬਿਰਲੇ ਲਾਗੈ ਧਿਆਨੁ ॥
साधिक सिध सगल मुनि लोचहि बिरले लागै धिआनु ॥
साधक, सिद्ध, सभी मुनिजन आकांक्षा करते हैं, पर विरले का ही ध्यान लगता है।
ਜਿਸਹਿ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਹੋਇ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਪੂਰਨ ਤਾ ਕੋ ਕਾਮੁ ॥੧॥
जिसहि क्रिपालु होइ मेरा सुआमी पूरन ता को कामु ॥१॥
जिस पर मेरा स्वामी कृपालु होता है, उसकी हर कामना पूर्ण होती है॥१॥
ਜਾ ਕੈ ਰਿਦੈ ਵਸੈ ਭੈ ਭੰਜਨੁ ਤਿਸੁ ਜਾਨੈ ਸਗਲ ਜਹਾਨੁ ॥
जा कै रिदै वसै भै भंजनु तिसु जानै सगल जहानु ॥
जिसके हृदय में भयभंजन परमेश्वर बस जाता है, उसे समूचा संसार जानता है।
ਖਿਨੁ ਪਲੁ ਬਿਸਰੁ ਨਹੀ ਮੇਰੇ ਕਰਤੇ ਇਹੁ ਨਾਨਕੁ ਮਾਂਗੈ ਦਾਨੁ ॥੨॥੯੦॥੧੧੩॥
खिनु पलु बिसरु नही मेरे करते इहु नानकु मांगै दानु ॥२॥९०॥११३॥
हे मेरे प्रभु ! नानक यही वर चाहता है कि तू पल भर भी भूल मत ॥२॥९०॥११३॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਵੂਠਾ ਸਰਬ ਥਾਈ ਮੇਹੁ ॥
वूठा सरब थाई मेहु ॥
हर जगह पर कृपा की बारिश हुई है।
ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਗਾਉ ਹਰਿ ਜਸੁ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਗਟਿਓ ਨੇਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अनद मंगल गाउ हरि जसु पूरन प्रगटिओ नेहु ॥१॥ रहाउ ॥
आनंद-मंगल से हरि का यश गाओ, उसका प्रेम चारों ओर प्रगट हो गया है॥१॥ रहाउ॥।
ਚਾਰਿ ਕੁੰਟ ਦਹ ਦਿਸਿ ਜਲ ਨਿਧਿ ਊਨ ਥਾਉ ਨ ਕੇਹੁ ॥
चारि कुंट दह दिसि जल निधि ऊन थाउ न केहु ॥
दसों दिशाओं, पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण सबमें प्रेम का सागर ईश्वर विद्यमान है, उसके बिना कोई स्थान नहीं।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ਗੋਬਿੰਦ ਪੂਰਨ ਜੀਅ ਦਾਨੁ ਸਭ ਦੇਹੁ ॥੧॥
क्रिपा निधि गोबिंद पूरन जीअ दानु सभ देहु ॥१॥
कृपानिधि पूर्ण परमेश्वर सब को देता रहता है॥१॥
ਸਤਿ ਸਤਿ ਹਰਿ ਸਤਿ ਸੁਆਮੀ ਸਤਿ ਸਾਧਸੰਗੇਹੁ ॥
सति सति हरि सति सुआमी सति साधसंगेहु ॥
ईश्वर सत्य है, शाश्वत-स्वरूप है और साधुओं की संगत भी सत्य है।
ਸਤਿ ਤੇ ਜਨ ਜਿਨ ਪਰਤੀਤਿ ਉਪਜੀ ਨਾਨਕ ਨਹ ਭਰਮੇਹੁ ॥੨॥੯੧॥੧੧੪॥
सति ते जन जिन परतीति उपजी नानक नह भरमेहु ॥२॥९१॥११४॥
हे नानक ! जिन लोगों के मन में सत्य पर पूर्ण निष्ठा होती हैं, वे कभी नहीं भटकते ॥२॥ ६१ ॥ ११४ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਗੋਬਿਦ ਜੀਉ ਤੂ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰ ॥
गोबिद जीउ तू मेरे प्रान अधार ॥
हे गोविन्द ! तू मेरे प्राणों का आसरा है।
ਸਾਜਨ ਮੀਤ ਸਹਾਈ ਤੁਮ ਹੀ ਤੂ ਮੇਰੋ ਪਰਵਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साजन मीत सहाई तुम ही तू मेरो परवार ॥१॥ रहाउ ॥
तू ही मेरा साजन, मित्र एवं मददगार है और तू ही मेरा परिवार है॥१॥रहाउ॥।
ਕਰੁ ਮਸਤਕਿ ਧਾਰਿਓ ਮੇਰੈ ਮਾਥੈ ਸਾਧਸੰਗਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥
करु मसतकि धारिओ मेरै माथै साधसंगि गुण गाए ॥
तूने मेरे माथे पर अपना हाथ रखा तो साधुओं के संग तेरे ही गुण गाए।
ਤੁਮਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਸਭ ਫਲ ਪਾਏ ਰਸਕਿ ਰਾਮ ਨਾਮ ਧਿਆਏ ॥੧॥
तुमरी क्रिपा ते सभ फल पाए रसकि राम नाम धिआए ॥१॥
तुम्हारी कृपा से सभी फल प्राप्त हुए हैं और आनंदपूर्वक तेरे नाम का भजन किया है॥१॥
ਅਬਿਚਲ ਨੀਵ ਧਰਾਈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਕਬਹੂ ਡੋਲਤ ਨਾਹੀ ॥
अबिचल नीव धराई सतिगुरि कबहू डोलत नाही ॥
सच्चे गुरु ने भक्ति की अटल नीव स्थापित की है, अब मन कभी नहीं डोलता।
ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਜਬ ਭਏ ਦਇਆਰਾ ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਨਿਧਿ ਪਾਂਹੀ ॥੨॥੯੨॥੧੧੫॥
गुर नानक जब भए दइआरा सरब सुखा निधि पांही ॥२॥९२॥११५॥
हे नानक ! जब गुरु परमेश्वर दयालु हो गया तो सर्व सुखों के भण्डार पा लिए ॥२॥ ६२ ॥ ११५ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਨਿਬਹੀ ਨਾਮ ਕੀ ਸਚੁ ਖੇਪ ॥
निबही नाम की सचु खेप ॥
ईश्वर के नाम का सच्चा व्यवसाय ही निभने वाला है।
ਲਾਭੁ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ਨਿਧਿ ਧਨੁ ਬਿਖੈ ਮਾਹਿ ਅਲੇਪ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
लाभु हरि गुण गाइ निधि धनु बिखै माहि अलेप ॥१॥ रहाउ ॥
ईश्वर के गुणानुवाद से सुखों का लाभ होता है और विकारों से निर्लिप्त रहा जाता है॥१॥रहाउ॥।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਗਲ ਸੰਤੋਖੇ ਆਪਨਾ ਪ੍ਰਭੁ ਧਿਆਇ ॥
जीअ जंत सगल संतोखे आपना प्रभु धिआइ ॥
अपने प्रभु का भजन करके सभी जीवों को संतोष प्राप्त हुआ है।
ਰਤਨ ਜਨਮੁ ਅਪਾਰ ਜੀਤਿਓ ਬਹੁੜਿ ਜੋਨਿ ਨ ਪਾਇ ॥੧॥
रतन जनमु अपार जीतिओ बहुड़ि जोनि न पाइ ॥१॥
उन्होंने अपना अमूल्य जीवन जीत लिया है और योनि-चक्र से मुक्ति पा गए हैं।॥१॥
ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦਇਆਲ ਗੋਬਿਦ ਭਇਆ ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ॥
भए क्रिपाल दइआल गोबिद भइआ साधू संगु ॥
जब दयालु प्रभु कृपा करता है तो साधु पुरुषों की संगत मिल जाती है।
ਹਰਿ ਚਰਨ ਰਾਸਿ ਨਾਨਕ ਪਾਈ ਲਗਾ ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਰੰਗੁ ॥੨॥੯੩॥੧੧੬॥
हरि चरन रासि नानक पाई लगा प्रभ सिउ रंगु ॥२॥९३॥११६॥
हे नानक ! फिर हरि-चरणों की राशि प्राप्त हो जाती है और प्रभु से ही रंग लगा रहता है।॥२॥ ६३॥११६॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਮਾਈ ਰੀ ਪੇਖਿ ਰਹੀ ਬਿਸਮਾਦ ॥
माई री पेखि रही बिसमाद ॥
हे माँ! प्रभु का कौतुक देखकर आश्चर्यचकित हो गई हूँ।
ਅਨਹਦ ਧੁਨੀ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਮੋਹਿਓ ਅਚਰਜ ਤਾ ਕੇ ਸ੍ਵਾਦ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अनहद धुनी मेरा मनु मोहिओ अचरज ता के स्वाद ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा मन अनहद धुन से मोहित हो गया है और उसका आनंद अद्भुत है॥१॥रहाउ॥।
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਬੰਧਪ ਹੈ ਸੋਈ ਮਨਿ ਹਰਿ ਕੋ ਅਹਿਲਾਦ ॥
मात पिता बंधप है सोई मनि हरि को अहिलाद ॥
ईश्वर ही मेरा माता-पिता एवं बंधु है और मन को उसी से अटूट प्रेम है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਗਾਏ ਗੁਨ ਗੋਬਿੰਦ ਬਿਨਸਿਓ ਸਭੁ ਪਰਮਾਦ ॥੧॥
साधसंगि गाए गुन गोबिंद बिनसिओ सभु परमाद ॥१॥
साधु पुरुषों के साथ गोविंद के गुण गाए हैं, जिससे सभी भूलें नष्ट हो गई हैं।॥ १॥
ਡੋਰੀ ਲਪਟਿ ਰਹੀ ਚਰਨਹ ਸੰਗਿ ਭ੍ਰਮ ਭੈ ਸਗਲੇ ਖਾਦ ॥
डोरी लपटि रही चरनह संगि भ्रम भै सगले खाद ॥
मेरी डोरी उसके चरणों के साथ लिपट गई है और सभी भ्रम भय दूर हो गए हैं।
ਏਕੁ ਅਧਾਰੁ ਨਾਨਕ ਜਨ ਕੀਆ ਬਹੁਰਿ ਨ ਜੋਨਿ ਭ੍ਰਮਾਦ ॥੨॥੯੪॥੧੧੭॥
एकु अधारु नानक जन कीआ बहुरि न जोनि भ्रमाद ॥२॥९४॥११७॥
हे नानक ! दास ने एक ईश्वर को आसरा बना लिया है और अब वह पुनः योनियों के चक्र से छूट गया है॥२॥ ६४ ॥ ११७ ॥