ਮਨ ਕਠੋਰੁ ਅਜਹੂ ਨ ਪਤੀਨਾ ॥
मन कठोरु अजहू न पतीना ॥
उसका कठोर मन फिर भी संतुष्ट नहीं हुआ।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਹਮਰਾ ਗੋਬਿੰਦੁ ॥
कहि कबीर हमरा गोबिंदु ॥
कबीर जी कहते हैं कि गोविंद हमारा रखवाला है,
ਚਉਥੇ ਪਦ ਮਹਿ ਜਨ ਕੀ ਜਿੰਦੁ ॥੪॥੧॥੪॥
चउथे पद महि जन की जिंदु ॥४॥१॥४॥
भक्त के प्राण तुरीयावस्था में बसते हैं ॥ ४॥ १॥ ४॥
ਗੋਂਡ ॥
गोंड ॥
गोंड ॥
ਨਾ ਇਹੁ ਮਾਨਸੁ ਨਾ ਇਹੁ ਦੇਉ ॥
ना इहु मानसु ना इहु देउ ॥
यह (आत्मा) न ही मनुष्य है और न ही यह देवता है।
ਨਾ ਇਹੁ ਜਤੀ ਕਹਾਵੈ ਸੇਉ ॥
ना इहु जती कहावै सेउ ॥
न ही यह ब्रह्मचारी और न ही शैव कहलाता है।
ਨਾ ਇਹੁ ਜੋਗੀ ਨਾ ਅਵਧੂਤਾ ॥
ना इहु जोगी ना अवधूता ॥
न ही यह कोई योगी है और न ही कोई अवधूत है।
ਨਾ ਇਸੁ ਮਾਇ ਨ ਕਾਹੂ ਪੂਤਾ ॥੧॥
ना इसु माइ न काहू पूता ॥१॥
न ही इसकी कोई जन्म देने वाली माता है और न ही यह किसी का पुत्र है॥ १॥
ਇਆ ਮੰਦਰ ਮਹਿ ਕੌਨ ਬਸਾਈ ॥
इआ मंदर महि कौन बसाई ॥
काया रूपी मन्दिर में कौन निवास कर रहा है,
ਤਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਕੋਊ ਪਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ता का अंतु न कोऊ पाई ॥१॥ रहाउ ॥
इसका रहस्य कोई नहीं पा सकता॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾ ਇਹੁ ਗਿਰਹੀ ਨਾ ਓਦਾਸੀ ॥
ना इहु गिरही ना ओदासी ॥
न ही यह गृहस्थी है और न ही उदासी हैं।
ਨਾ ਇਹੁ ਰਾਜ ਨ ਭੀਖ ਮੰਗਾਸੀ ॥
ना इहु राज न भीख मंगासी ॥
न ही यह कोई राजा है और न ही कोई भीख माँगने वाला भिखारी है।
ਨਾ ਇਸੁ ਪਿੰਡੁ ਨ ਰਕਤੂ ਰਾਤੀ ॥
ना इसु पिंडु न रकतू राती ॥
न इसका कोई शरीर है और न ही थोड़ा-सा रक्त है।
ਨਾ ਇਹੁ ਬ੍ਰਹਮਨੁ ਨਾ ਇਹੁ ਖਾਤੀ ॥੨॥
ना इहु ब्रहमनु ना इहु खाती ॥२॥
न यह कोई ब्राह्मण है और न ही क्षत्रिय है॥३॥
ਨਾ ਇਹੁ ਤਪਾ ਕਹਾਵੈ ਸੇਖੁ ॥
ना इहु तपा कहावै सेखु ॥
यह कोई तपस्वी अथवा शेख भी नहीं कहलाता।
ਨਾ ਇਹੁ ਜੀਵੈ ਨ ਮਰਤਾ ਦੇਖੁ ॥
ना इहु जीवै न मरता देखु ॥
न ही यह जिंदा देखा जाता है और न ही यह मरता देखा जाता है।
ਇਸੁ ਮਰਤੇ ਕਉ ਜੇ ਕੋਊ ਰੋਵੈ ॥
इसु मरते कउ जे कोऊ रोवै ॥
यदि कोई इस आत्मा को मरता समझ कर रोता है तो
ਜੋ ਰੋਵੈ ਸੋਈ ਪਤਿ ਖੋਵੈ ॥੩॥
जो रोवै सोई पति खोवै ॥३॥
वह अपनी इज्जत गंवा देता है॥ ३॥
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਮੈ ਡਗਰੋ ਪਾਇਆ ॥
गुर प्रसादि मै डगरो पाइआ ॥
गुरु की कृपा से मैंने सन्मार्ग पा लिया है और
ਜੀਵਨ ਮਰਨੁ ਦੋਊ ਮਿਟਵਾਇਆ ॥
जीवन मरनु दोऊ मिटवाइआ ॥
जन्म-मरण दोनों को मिटवा लिया है।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਇਹੁ ਰਾਮ ਕੀ ਅੰਸੁ ॥
कहु कबीर इहु राम की अंसु ॥
हे कबीर ! यह आत्मा तो राम की अंश है,
ਜਸ ਕਾਗਦ ਪਰ ਮਿਟੈ ਨ ਮੰਸੁ ॥੪॥੨॥੫॥
जस कागद पर मिटै न मंसु ॥४॥२॥५॥
जैसे कागज पर लिखी हुई स्याही कभी नहीं मिटती, वैसे ही आत्मा कभी नाश नहीं होती॥ ४॥३॥ ५ ॥
ਗੋਂਡ ॥
गोंड ॥
गोंड॥
ਤੂਟੇ ਤਾਗੇ ਨਿਖੁਟੀ ਪਾਨਿ ॥
तूटे तागे निखुटी पानि ॥
धागे टूट गए हैं और पाण समाप्त हो गया है,
ਦੁਆਰ ਊਪਰਿ ਝਿਲਕਾਵਹਿ ਕਾਨ ॥
दुआर ऊपरि झिलकावहि कान ॥
द्वार पर तोरण चमक रहे हैं और
ਕੂਚ ਬਿਚਾਰੇ ਫੂਏ ਫਾਲ ॥
कूच बिचारे फूए फाल ॥
बेचारे कूच टूट कर फैले हुए हैं।
ਇਆ ਮੁੰਡੀਆ ਸਿਰਿ ਚਢਿਬੋ ਕਾਲ ॥੧॥
इआ मुंडीआ सिरि चढिबो काल ॥१॥
इस लड़के (कबीर) के सिर पर काल सवार हो गया है॥ १॥
ਇਹੁ ਮੁੰਡੀਆ ਸਗਲੋ ਦ੍ਰਬੁ ਖੋਈ ॥
इहु मुंडीआ सगलो द्रबु खोई ॥
इस लड़के ने अपना सारा धन गंवा दिया है और
ਆਵਤ ਜਾਤ ਨਾਕ ਸਰ ਹੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आवत जात नाक सर होई ॥१॥ रहाउ ॥
घर में आने जाने वाले संत-महात्माओं ने मेरे नाक में दम कर दिया है।॥१॥ रहाउ ॥
ਤੁਰੀ ਨਾਰਿ ਕੀ ਛੋਡੀ ਬਾਤਾ ॥
तुरी नारि की छोडी बाता ॥
इसने खड्डी की लठ और तानी तनने वाली नलकियों की तो बात करनी ही छोड़ दी है और
ਰਾਮ ਨਾਮ ਵਾ ਕਾ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ॥
राम नाम वा का मनु राता ॥
इसका मन तो राम नाम में ही लीन हो गया है।
ਲਰਿਕੀ ਲਰਿਕਨ ਖੈਬੋ ਨਾਹਿ ॥
लरिकी लरिकन खैबो नाहि ॥
इसकी लड़की – लड़के को पेट भर भोजन नसीब नहीं लेकिन
ਮੁੰਡੀਆ ਅਨਦਿਨੁ ਧਾਪੇ ਜਾਹਿ ॥੨॥
मुंडीआ अनदिनु धापे जाहि ॥२॥
साधु-संत पेट भर कर तृप्त हो कर जाते है। ॥ २ ॥
ਇਕ ਦੁਇ ਮੰਦਰਿ ਇਕ ਦੁਇ ਬਾਟ ॥
इक दुइ मंदरि इक दुइ बाट ॥
एक दो साधु तो घर में पहले ही बैठे होते है और एक दो अन्य चले आते है।
ਹਮ ਕਉ ਸਾਥਰੁ ਉਨ ਕਉ ਖਾਟ ॥
हम कउ साथरु उन कउ खाट ॥
हमे सोने के लिए तो चटाई नसीब नहीं होती किन्तु साधुओं को चारपाई मिल जाती है।
ਮੂਡ ਪਲੋਸਿ ਕਮਰ ਬਧਿ ਪੋਥੀ ॥
मूड पलोसि कमर बधि पोथी ॥
वे अपनी कमर से पोथी बाँधकर सिर पर हाथ फेरते हुए घर की ओर चले आते हैं।
ਹਮ ਕਉ ਚਾਬਨੁ ਉਨ ਕਉ ਰੋਟੀ ॥੩॥
हम कउ चाबनु उन कउ रोटी ॥३॥
हमें चबाने के लिए भुने हुए दाने मिलते हैं किन्तु उन्हें रोटी खिलाई जाती है। ३॥
ਮੁੰਡੀਆ ਮੁੰਡੀਆ ਹੂਏ ਏਕ ॥
मुंडीआ मुंडीआ हूए एक ॥
यह लड़का और साधु आपस में एक हो गए हैं।
ਏ ਮੁੰਡੀਆ ਬੂਡਤ ਕੀ ਟੇਕ ॥
ए मुंडीआ बूडत की टेक ॥
यह साधुजन डूबते लोगों का सहारा हैं।
ਸੁਨਿ ਅੰਧਲੀ ਲੋਈ ਬੇਪੀਰਿ ॥
सुनि अंधली लोई बेपीरि ॥
कबीर जी का कथन है कि हे ज्ञानहीन एवं निगुरी लोई ! जरा सुन!
ਇਨੑ ਮੁੰਡੀਅਨ ਭਜਿ ਸਰਨਿ ਕਬੀਰ ॥੪॥੩॥੬॥
इन्ह मुंडीअन भजि सरनि कबीर ॥४॥३॥६॥
तू भी मांगकर इन साधुओं की शरण में आ जा ॥४॥३॥६॥
ਗੋਂਡ ॥
गोंड ॥
गोंड ॥
ਖਸਮੁ ਮਰੈ ਤਉ ਨਾਰਿ ਨ ਰੋਵੈ ॥
खसमु मरै तउ नारि न रोवै ॥
जब माया रूपी नारी का स्वामी मर जाता है तो वह रोती नहीं,
ਉਸੁ ਰਖਵਾਰਾ ਅਉਰੋ ਹੋਵੈ ॥
उसु रखवारा अउरो होवै ॥
क्योंकि उसका रखवाला कोई अन्य बन जाता है।
ਰਖਵਾਰੇ ਕਾ ਹੋਇ ਬਿਨਾਸ ॥
रखवारे का होइ बिनास ॥
जब उस रखवाले का नाश हो जाता है तो
ਆਗੈ ਨਰਕੁ ਈਹਾ ਭੋਗ ਬਿਲਾਸ ॥੧॥
आगै नरकु ईहा भोग बिलास ॥१॥
इहलोक में भोग-विलास करने वाला आगे परलोक में नरक ही भोगता है। १॥
ਏਕ ਸੁਹਾਗਨਿ ਜਗਤ ਪਿਆਰੀ ॥
एक सुहागनि जगत पिआरी ॥
एक माया रूपी सुहागिन सारे जगत् की प्यारी बनी हुई है और
ਸਗਲੇ ਜੀਅ ਜੰਤ ਕੀ ਨਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सगले जीअ जंत की नारी ॥१॥ रहाउ ॥
यह सब जीवों की नारी है ॥१॥ रहाउ ॥
ਸੋਹਾਗਨਿ ਗਲਿ ਸੋਹੈ ਹਾਰੁ ॥
सोहागनि गलि सोहै हारु ॥
माया रूपी सुहागिन के गले में पड़ा हुआ विकारों का हार पड़ा है।
ਸੰਤ ਕਉ ਬਿਖੁ ਬਿਗਸੈ ਸੰਸਾਰੁ ॥
संत कउ बिखु बिगसै संसारु ॥
संतों को यह विष के समान बुरी नजर आती है।
ਕਰਿ ਸੀਗਾਰੁ ਬਹੈ ਪਖਿਆਰੀ ॥
करि सीगारु बहै पखिआरी ॥
यह माया रुपी नारी वेश्या की तरह श्रृंगार लगाकर बैठती है,
ਸੰਤ ਕੀ ਠਿਠਕੀ ਫਿਰੈ ਬਿਚਾਰੀ ॥੨॥
संत की ठिठकी फिरै बिचारी ॥२॥
परन्तु संतों द्वारा ठुकराई होने के कारण यह बेचारी भटकती ही रहती है।२॥
ਸੰਤ ਭਾਗਿ ਓਹ ਪਾਛੈ ਪਰੈ ॥
संत भागि ओह पाछै परै ॥
यह भागकर संतों के पीछे पड़ी रहती है
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਮਾਰਹੁ ਡਰੈ ॥
गुर परसादी मारहु डरै ॥
लेकिन गुरु-कृपा से मार से डरती भी है।
ਸਾਕਤ ਕੀ ਓਹ ਪਿੰਡ ਪਰਾਇਣਿ ॥
साकत की ओह पिंड पराइणि ॥
शाक्त जीवों का पोषण करने वाली यह प्राणप्रिया है।
ਹਮ ਕਉ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਪਰੈ ਤ੍ਰਖਿ ਡਾਇਣਿ ॥੩॥
हम कउ द्रिसटि परै त्रखि डाइणि ॥३॥
परन्तु मुझे तो यह रक्त पियासु डायन लगती है ॥३॥
ਹਮ ਤਿਸ ਕਾ ਬਹੁ ਜਾਨਿਆ ਭੇਉ ॥
हम तिस का बहु जानिआ भेउ ॥
मैंने इसका सारा भेद जान लिया,”
ਜਬ ਹੂਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਮਿਲੇ ਗੁਰਦੇਉ ॥
जब हूए क्रिपाल मिले गुरदेउ ॥
जब कृपालु होकर गुरुदेव मिल गए।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਅਬ ਬਾਹਰਿ ਪਰੀ ॥
कहु कबीर अब बाहरि परी ॥
कबीर जी कहते हैं कि अब यह माया मेरे मन में से बाहर निकल गई है और
ਸੰਸਾਰੈ ਕੈ ਅੰਚਲਿ ਲਰੀ ॥੪॥੪॥੭॥
संसारै कै अंचलि लरी ॥४॥४॥७॥
संसार के आंचल में जा लगी है ॥४॥४॥७॥