ਬੁਢਾ ਹੋਆ ਸੇਖ ਫਰੀਦੁ ਕੰਬਣਿ ਲਗੀ ਦੇਹ ॥
बुढा होआ सेख फरीदु क्मबणि लगी देह ॥
शेख फरीद अब बूढ़ा हो गया है, बुढ़ापे के कारण उसका शरीर कांपने लग गया है।
ਜੇ ਸਉ ਵਰ੍ਹ੍ਹਿਆ ਜੀਵਣਾ ਭੀ ਤਨੁ ਹੋਸੀ ਖੇਹ ॥੪੧॥
जे सउ वर्हिआ जीवणा भी तनु होसी खेह ॥४१॥
यदि सौ बरस भी जीने को मिल जाएँ तो भी इस शरीर ने मिट्टी ही होना है॥४१॥
ਫਰੀਦਾ ਬਾਰਿ ਪਰਾਇਐ ਬੈਸਣਾ ਸਾਂਈ ਮੁਝੈ ਨ ਦੇਹਿ ॥
फरीदा बारि पराइऐ बैसणा सांई मुझै न देहि ॥
फरीद जी गुज़ारिश करते हैं कि हे मालिक ! मुझे पराए द्वार पर बैठने मत देना अर्थात् किसी पर निर्भर मत करना।
ਜੇ ਤੂ ਏਵੈ ਰਖਸੀ ਜੀਉ ਸਰੀਰਹੁ ਲੇਹਿ ॥੪੨॥
जे तू एवै रखसी जीउ सरीरहु लेहि ॥४२॥
पर यदि तूने मुझे किसी पर निर्भर ही रखना है तो बेहतर है कि शरीर में से मेरी जान निकाल ले ॥४२॥
ਕੰਧਿ ਕੁਹਾੜਾ ਸਿਰਿ ਘੜਾ ਵਣਿ ਕੈ ਸਰੁ ਲੋਹਾਰੁ ॥
कंधि कुहाड़ा सिरि घड़ा वणि कै सरु लोहारु ॥
फरीद जी लोहार को संबोधन करते हैं कि तू कंधे पर कुल्हाड़ी और सिर पर पानी का घड़ा रखकर घूम रहा है।
ਫਰੀਦਾ ਹਉ ਲੋੜੀ ਸਹੁ ਆਪਣਾ ਤੂ ਲੋੜਹਿ ਅੰਗਿਆਰ ॥੪੩॥
फरीदा हउ लोड़ी सहु आपणा तू लोड़हि अंगिआर ॥४३॥
हे लोहार ! तू उस वृक्ष को काटना चाहता है, जिसके नीचे मैं बैठा हुआ हूँ। फरीद जी कहते हैं कि मैं अपने मालिक को बंदगी द्वारा ढूंढ रहा हूँ और तू कोयले की तलाश में है॥ ४३ ॥
ਫਰੀਦਾ ਇਕਨਾ ਆਟਾ ਅਗਲਾ ਇਕਨਾ ਨਾਹੀ ਲੋਣੁ ॥
फरीदा इकना आटा अगला इकना नाही लोणु ॥
(बाबा फरीद जी अमीर अथवा गरीब पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं) हे फरीद ! किसी के पास जरूरत से अधिक खाने के लिए आटा है और किसी के पास नमक तक नहीं।
ਅਗੈ ਗਏ ਸਿੰਞਾਪਸਨਿ ਚੋਟਾਂ ਖਾਸੀ ਕਉਣੁ ॥੪੪॥
अगै गए सिंञापसनि चोटां खासी कउणु ॥४४॥
परलोक में जाकर ही पता चलेगा कि इन दोनों में से किसे दण्ड प्राप्त होता है।॥४४॥
ਪਾਸਿ ਦਮਾਮੇ ਛਤੁ ਸਿਰਿ ਭੇਰੀ ਸਡੋ ਰਡ ॥
पासि दमामे छतु सिरि भेरी सडो रड ॥
जिसके पास नगाड़े, सिर पर छत्र झूलते थे, शहनाइयाँ गूंजती थीं और भाट महिमा गाते थे।
ਜਾਇ ਸੁਤੇ ਜੀਰਾਣ ਮਹਿ ਥੀਏ ਅਤੀਮਾ ਗਡ ॥੪੫॥
जाइ सुते जीराण महि थीए अतीमा गड ॥४५॥
आखिरकार ऐसे राजा-महाराज भी कब्र-चिताओं में सदा की नींद सो गए और यतीमों में जा मिले ॥ ४५ ॥
ਫਰੀਦਾ ਕੋਠੇ ਮੰਡਪ ਮਾੜੀਆ ਉਸਾਰੇਦੇ ਭੀ ਗਏ ॥
फरीदा कोठे मंडप माड़ीआ उसारेदे भी गए ॥
हे फरीद ! सुन्दर घर, महल, भवन बनाने वाले भी संसार छोड़कर चले गए।
ਕੂੜਾ ਸਉਦਾ ਕਰਿ ਗਏ ਗੋਰੀ ਆਇ ਪਏ ॥੪੬॥
कूड़ा सउदा करि गए गोरी आइ पए ॥४६॥
वे दुनिया में झूठा सौदा करते हुए कब्र-श्मशानों में जा पड़े ॥४६॥
ਫਰੀਦਾ ਖਿੰਥੜਿ ਮੇਖਾ ਅਗਲੀਆ ਜਿੰਦੁ ਨ ਕਾਈ ਮੇਖ ॥
फरीदा खिंथड़ि मेखा अगलीआ जिंदु न काई मेख ॥
हे फरीद ! शरीर रूपी कफनी को अनेकों नाड़ियों के टॉके लगे हुए हैं परन्तु प्राणों को कोई टॉका नहीं लगा हुआ है।
ਵਾਰੀ ਆਪੋ ਆਪਣੀ ਚਲੇ ਮਸਾਇਕ ਸੇਖ ॥੪੭॥
वारी आपो आपणी चले मसाइक सेख ॥४७॥
अपनी-अपनी बारी आने पर सूफी पीर अथवा शेख सब चले गए हैं।॥ ४७ ॥
ਫਰੀਦਾ ਦੁਹੁ ਦੀਵੀ ਬਲੰਦਿਆ ਮਲਕੁ ਬਹਿਠਾ ਆਇ ॥
फरीदा दुहु दीवी बलंदिआ मलकु बहिठा आइ ॥
हे फरीद ! दो ऑखों के दीयों के जलते ही मौत का फरिश्ता आकर बैठ गया।
ਗੜੁ ਲੀਤਾ ਘਟੁ ਲੁਟਿਆ ਦੀਵੜੇ ਗਇਆ ਬੁਝਾਇ ॥੪੮॥
गड़ु लीता घटु लुटिआ दीवड़े गइआ बुझाइ ॥४८॥
उसने शरीर रूपी किले पर कब्जा कर लिया, इस तरह आत्मा को लूटकर दो दीयों को बुझा गया। अर्थात् शरीर को प्राणविहीन करके ऑखों की रोशनी बंद कर गया ॥४८॥
ਫਰੀਦਾ ਵੇਖੁ ਕਪਾਹੈ ਜਿ ਥੀਆ ਜਿ ਸਿਰਿ ਥੀਆ ਤਿਲਾਹ ॥
फरीदा वेखु कपाहै जि थीआ जि सिरि थीआ तिलाह ॥
फरीद जी कहते हैं कि देख ! कपास का क्या हाल हुआ है (बेलने में बेला गया) तिलों की क्या दशा हुई है। (कोल्हू में पेर कर तेल निकाल दिया गया)
ਕਮਾਦੈ ਅਰੁ ਕਾਗਦੈ ਕੁੰਨੇ ਕੋਇਲਿਆਹ ॥
कमादै अरु कागदै कुंने कोइलिआह ॥
गन्ने को बेलन में डालकर रस निकाल दिया और कागज़ भी किस तरह पेरा जाता है।हॉडी को बारंबार आग पर रखकर खाना पकाया जाता है और कोयले को हर रोज़ जलाया जाता है।
ਮੰਦੇ ਅਮਲ ਕਰੇਦਿਆ ਏਹ ਸਜਾਇ ਤਿਨਾਹ ॥੪੯॥
मंदे अमल करेदिआ एह सजाइ तिनाह ॥४९॥
जो लोग बुरे कर्म करते हैं, उनको सख्त सजा मिलती है।॥४६ ॥
ਫਰੀਦਾ ਕੰਨਿ ਮੁਸਲਾ ਸੂਫੁ ਗਲਿ ਦਿਲਿ ਕਾਤੀ ਗੁੜੁ ਵਾਤਿ ॥
फरीदा कंनि मुसला सूफु गलि दिलि काती गुड़ु वाति ॥
फरीद जी दंभी फकीरों की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि बेशक कंधे पर मुसल्ला और गले पर कफनी ली हुई है। दिल में काटने के लिए छुरी है, मुंह में गुड़ की तरह मीठी-मीठी बातें करते हैं।
ਬਾਹਰਿ ਦਿਸੈ ਚਾਨਣਾ ਦਿਲਿ ਅੰਧਿਆਰੀ ਰਾਤਿ ॥੫੦॥
बाहरि दिसै चानणा दिलि अंधिआरी राति ॥५०॥
बाहर से समाज के सामने भले पुरुष दिखाई दे रहे हैं, परन्तु दिल में काली रात की तरह बुरे हैं॥५० ॥
ਫਰੀਦਾ ਰਤੀ ਰਤੁ ਨ ਨਿਕਲੈ ਜੇ ਤਨੁ ਚੀਰੈ ਕੋਇ ॥
फरीदा रती रतु न निकलै जे तनु चीरै कोइ ॥
बाबा फरीद जी कहते हैं- रब की बंदगी में मस्त पुरुषों का यदि कोई शरीर चीर भी दे तो उनका रक्त नहीं निकलता।
ਜੋ ਤਨ ਰਤੇ ਰਬ ਸਿਉ ਤਿਨ ਤਨਿ ਰਤੁ ਨ ਹੋਇ ॥੫੧॥
जो तन रते रब सिउ तिन तनि रतु न होइ ॥५१॥
चूंकि रब की बंदगी में रत रहने वालों के शरीर में रक्त नहीं होता ॥५१॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਇਹੁ ਤਨੁ ਸਭੋ ਰਤੁ ਹੈ ਰਤੁ ਬਿਨੁ ਤੰਨੁ ਨ ਹੋਇ ॥
इहु तनु सभो रतु है रतु बिनु तंनु न होइ ॥
(श्री गुरु अमरदास जी बाबा फरीद के उपरोक्त श्लोक पर स्पष्ट करते हैं कि) इस शरीर में रक्त ही रक्त है और रक्त के बिना शरीर नहीं होता।
ਜੋ ਸਹ ਰਤੇ ਆਪਣੇ ਤਿਤੁ ਤਨਿ ਲੋਭੁ ਰਤੁ ਨ ਹੋਇ ॥
जो सह रते आपणे तितु तनि लोभु रतु न होइ ॥
जो लोग अपने मालिक की बंदगी में लीन होते हैं, उनके शरीर में दरअसल लोभ रूपी रक्त नहीं होता।
ਭੈ ਪਇਐ ਤਨੁ ਖੀਣੁ ਹੋਇ ਲੋਭੁ ਰਤੁ ਵਿਚਹੁ ਜਾਇ ॥
भै पइऐ तनु खीणु होइ लोभु रतु विचहु जाइ ॥
मालिक के भय में रहने से इनका शरीर क्षीण होता है और जिससे लोभ-रक्त निकल जाता है।
ਜਿਉ ਬੈਸੰਤਰਿ ਧਾਤੁ ਸੁਧੁ ਹੋਇ ਤਿਉ ਹਰਿ ਕਾ ਭਉ ਦੁਰਮਤਿ ਮੈਲੁ ਗਵਾਇ ॥
जिउ बैसंतरि धातु सुधु होइ तिउ हरि का भउ दुरमति मैलु गवाइ ॥
जैसे अग्नि में स्वर्ण इत्यादि धातु शुद्ध हो जाती है, वैसे ही परमात्मा का भय दुर्मति की मैल दूर कर देता है।
ਨਾਨਕ ਤੇ ਜਨ ਸੋਹਣੇ ਜਿ ਰਤੇ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਲਾਇ ॥੫੨॥
नानक ते जन सोहणे जि रते हरि रंगु लाइ ॥५२॥
गुरु नानक कथन करते हैं कि वही भक्तजन सुन्दर हैं, जो परमात्मा की भक्ति में लीन होते हैं।॥५२॥
ਫਰੀਦਾ ਸੋਈ ਸਰਵਰੁ ਢੂਢਿ ਲਹੁ ਜਿਥਹੁ ਲਭੀ ਵਥੁ ॥
फरीदा सोई सरवरु ढूढि लहु जिथहु लभी वथु ॥
फरीद जी कहते हैं कि गुरु रूपी ऐसा सरोवर ढूंढ लो, जहाँ से सब वस्तुएँ प्राप्त होती हैं।
ਛਪੜਿ ਢੂਢੈ ਕਿਆ ਹੋਵੈ ਚਿਕੜਿ ਡੁਬੈ ਹਥੁ ॥੫੩॥
छपड़ि ढूढै किआ होवै चिकड़ि डुबै हथु ॥५३॥
मामूली तालाब ढूंढने का कोई लाभ नहीं, वहाँ तो कीचड़ में हाथ डूबेगा अर्थात् कुसंगति से बदनामी ही होगी ॥५३॥
ਫਰੀਦਾ ਨੰਢੀ ਕੰਤੁ ਨ ਰਾਵਿਓ ਵਡੀ ਥੀ ਮੁਈਆਸੁ ॥
फरीदा नंढी कंतु न राविओ वडी थी मुईआसु ॥
हे फरीद ! जवानी में पति-प्रभु का सुख प्राप्त न किया और जब उम्र पूरी होने पर मर गई तो
ਧਨ ਕੂਕੇਂਦੀ ਗੋਰ ਮੇਂ ਤੈ ਸਹ ਨਾ ਮਿਲੀਆਸੁ ॥੫੪॥
धन कूकेंदी गोर में तै सह ना मिलीआसु ॥५४॥
जीव-स्त्री कब्र में पुकार करती है, हे प्रभु! मेरा तुझ से मिलन नहीं हुआ ॥५४॥
ਫਰੀਦਾ ਸਿਰੁ ਪਲਿਆ ਦਾੜੀ ਪਲੀ ਮੁਛਾਂ ਭੀ ਪਲੀਆਂ ॥
फरीदा सिरु पलिआ दाड़ी पली मुछां भी पलीआं ॥
फरीद जी कहते हैं कि सिर के बाल, दाढ़ी-मूंछे सफेद हो गए हैं अर्थात् बुढ़ापा आ गया है,
ਰੇ ਮਨ ਗਹਿਲੇ ਬਾਵਲੇ ਮਾਣਹਿ ਕਿਆ ਰਲੀਆਂ ॥੫੫॥
रे मन गहिले बावले माणहि किआ रलीआं ॥५५॥
परन्तु हे बावले मन ! अब भी तू रंगरलियाँ ही मना रहा है।॥५५॥
ਫਰੀਦਾ ਕੋਠੇ ਧੁਕਣੁ ਕੇਤੜਾ ਪਿਰ ਨੀਦੜੀ ਨਿਵਾਰਿ ॥
फरीदा कोठे धुकणु केतड़ा पिर नीदड़ी निवारि ॥
फरीद जी समझाते हैं कि घर की छत पर कितना भागा जा सकता है ? अर्थात् घर की छत समान यह जिंदगी भी थोड़ी ही है। अपनी नींद को दूर कर लो।
ਜੋ ਦਿਹ ਲਧੇ ਗਾਣਵੇ ਗਏ ਵਿਲਾੜਿ ਵਿਲਾੜਿ ॥੫੬॥
जो दिह लधे गाणवे गए विलाड़ि विलाड़ि ॥५६॥
जो दिन तुझे गिनती के मिले हैं, वे गुजरते जा रहे हैं।॥ ५६ ॥
ਫਰੀਦਾ ਕੋਠੇ ਮੰਡਪ ਮਾੜੀਆ ਏਤੁ ਨ ਲਾਏ ਚਿਤੁ ॥
फरीदा कोठे मंडप माड़ीआ एतु न लाए चितु ॥
बाबा फरीद सावधान करते हुए कहते हैं कि सुन्दर घर, मकान एवं महलों में दिल मत लगाओ।
ਮਿਟੀ ਪਈ ਅਤੋਲਵੀ ਕੋਇ ਨ ਹੋਸੀ ਮਿਤੁ ॥੫੭॥
मिटी पई अतोलवी कोइ न होसी मितु ॥५७॥
क्योंकि मरने के बाद तेरे ऊपर बेशुमार मिट्टी ही पड़नी है और कोई मित्र नहीं होगा ॥ ५७ ॥
ਫਰੀਦਾ ਮੰਡਪ ਮਾਲੁ ਨ ਲਾਇ ਮਰਗ ਸਤਾਣੀ ਚਿਤਿ ਧਰਿ ॥
फरीदा मंडप मालु न लाइ मरग सताणी चिति धरि ॥
फरीद जी पुनः चेताते हैं कि बड़े मकानों एवं धन-दौलत से ही दिल न लगाओ, मौत अटल है, इसे सदा याद रखना।