ਬਲਵੰਤਿ ਬਿਆਪਿ ਰਹੀ ਸਭ ਮਹੀ ॥
बलवंति बिआपि रही सभ मही ॥
यह बलवान माया सभी के भीतर वास कर रही है।
ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਨਸਿ ਕੋਊ ਮਰਮਾ ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਲਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अवरु न जानसि कोऊ मरमा गुर किरपा ते लही ॥१॥ रहाउ ॥
उसका मर्म (भेद) गुरु की कृपा से ही पाया जाता है, दूसरा कोई भी इसे नहीं जानता ॥ १॥ रहाउ॥
ਜੀਤਿ ਜੀਤਿ ਜੀਤੇ ਸਭਿ ਥਾਨਾ ਸਗਲ ਭਵਨ ਲਪਟਹੀ ॥
जीति जीति जीते सभि थाना सगल भवन लपटही ॥
यह प्रबल माया सदैव से सभी स्थान विजय करती आ रही है तथा वह समूचे जगत से लिपटी हुई है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਾਧ ਤੇ ਭਾਗੀ ਹੋਇ ਚੇਰੀ ਚਰਨ ਗਹੀ ॥੨॥੫॥੧੪॥
कहु नानक साध ते भागी होइ चेरी चरन गही ॥२॥५॥१४॥
हे नानक ! परन्तु वह प्रबल माया साधु के पास से दूर भाग गई है और दासी बनकर उसने साधु के चरण पकड़ लिए हैं।॥ २॥ ५॥ १४॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
गूजरी महला ५ ॥
ਦੁਇ ਕਰ ਜੋੜਿ ਕਰੀ ਬੇਨੰਤੀ ਠਾਕੁਰੁ ਅਪਨਾ ਧਿਆਇਆ ॥
दुइ कर जोड़ि करी बेनंती ठाकुरु अपना धिआइआ ॥
मैंने अपने दोनों हाथ जोड़कर विनती की और अपने ठाकुर जी का ध्यान किया है।
ਹਾਥ ਦੇਇ ਰਾਖੇ ਪਰਮੇਸਰਿ ਸਗਲਾ ਦੁਰਤੁ ਮਿਟਾਇਆ ॥੧॥
हाथ देइ राखे परमेसरि सगला दुरतु मिटाइआ ॥१॥
परमेश्वर ने अपना हाथ देकर मेरी रक्षा की है तथा मेरे समस्त कष्ट मिटा दिए हैं।॥ १॥
ਠਾਕੁਰ ਹੋਏ ਆਪਿ ਦਇਆਲ ॥
ठाकुर होए आपि दइआल ॥
ठाकुर आप दयालु हुआ है।
ਭਈ ਕਲਿਆਣ ਆਨੰਦ ਰੂਪ ਹੁਈ ਹੈ ਉਬਰੇ ਬਾਲ ਗੁਪਾਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भई कलिआण आनंद रूप हुई है उबरे बाल गुपाल ॥१॥ रहाउ ॥
चारों ओर कल्याण एवं हर्षोल्लास हो गया है। उसने अपने बालकों (जीवों) का उद्धार कर दिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਮਿਲਿ ਵਰ ਨਾਰੀ ਮੰਗਲੁ ਗਾਇਆ ਠਾਕੁਰ ਕਾ ਜੈਕਾਰੁ ॥
मिलि वर नारी मंगलु गाइआ ठाकुर का जैकारु ॥
अपने वर (प्रभु-पति) से मिलकर नारी (जीव-स्त्री) मंगल गीत गा रही है और अपने ठाकुर का जय-जयकार कर रही है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਬਲਿਹਾਰੀ ਜਿਨਿ ਸਭ ਕਾ ਕੀਆ ਉਧਾਰੁ ॥੨॥੬॥੧੫॥
कहु नानक तिसु गुर बलिहारी जिनि सभ का कीआ उधारु ॥२॥६॥१५॥
हे नानक ! मैं उस गुरु पर बलिहारी जाता हूँ, जिसने सबका उद्धार कर दिया है। २॥ ६ ॥ १५ ॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
गूजरी महला ५ ॥
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਭਾਈ ਸੁਤ ਬੰਧਪ ਤਿਨ ਕਾ ਬਲੁ ਹੈ ਥੋਰਾ ॥
मात पिता भाई सुत बंधप तिन का बलु है थोरा ॥
इन्सान को अपने माता-पिता, भाई, पुत्र एवं संबंधियों का बल थोड़ा ही मिलता है।
ਅਨਿਕ ਰੰਗ ਮਾਇਆ ਕੇ ਪੇਖੇ ਕਿਛੁ ਸਾਥਿ ਨ ਚਾਲੈ ਭੋਰਾ ॥੧॥
अनिक रंग माइआ के पेखे किछु साथि न चालै भोरा ॥१॥
मैंने माया के अनेक रंग देखे हैं परन्तु अल्पमात्र कुछ भी इन्सान के साथ नहीं जाता ॥ १॥
ਠਾਕੁਰ ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਆਹਿ ਨ ਮੋਰਾ ॥
ठाकुर तुझ बिनु आहि न मोरा ॥
हे मेरे ठाकुर ! तुम्हारे बिना मेरा कोई भी नहीं है।
ਮੋਹਿ ਅਨਾਥ ਨਿਰਗੁਨ ਗੁਣੁ ਨਾਹੀ ਮੈ ਆਹਿਓ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰਾ ਧੋਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मोहि अनाथ निरगुन गुणु नाही मै आहिओ तुम्हरा धोरा ॥१॥ रहाउ ॥
मैं गुणहीन अनाथ हूँ, मुझ में कोई गुण मौजूद नहीं और मुझे तुम्हारा ही सहारा चाहिए॥ १॥ रहाउ॥
ਬਲਿ ਬਲਿ ਬਲਿ ਬਲਿ ਚਰਣ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ਈਹਾ ਊਹਾ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰਾ ਜੋਰਾ ॥
बलि बलि बलि बलि चरण तुम्हारे ईहा ऊहा तुम्हारा जोरा ॥
मैं तेरे चरणों पर बार-बार बलिहारी एवं कुर्बान जाता हूँ। लोक-परलोक में तुम्हारा ही जोर है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਨਾਨਕ ਦਰਸੁ ਪਾਇਓ ਬਿਨਸਿਓ ਸਗਲ ਨਿਹੋਰਾ ॥੨॥੭॥੧੬॥
साधसंगि नानक दरसु पाइओ बिनसिओ सगल निहोरा ॥२॥७॥१६॥
हे नानक ! सत्संगति में मैंने प्रभु के दर्शन कर लिए हैं तथा दूसरों का अनुग्रह खत्म हो गया है॥ २॥ ७ ॥ १६ ॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
गूजरी महला ५ ॥
ਆਲ ਜਾਲ ਭ੍ਰਮ ਮੋਹ ਤਜਾਵੈ ਪ੍ਰਭ ਸੇਤੀ ਰੰਗੁ ਲਾਈ ॥
आल जाल भ्रम मोह तजावै प्रभ सेती रंगु लाई ॥
संत घर के जाल, भ्रम एवं मोह से मुक्त करा देता है और जीव का प्रभु से प्रेम डाल देता है।
ਮਨ ਕਉ ਇਹ ਉਪਦੇਸੁ ਦ੍ਰਿੜਾਵੈ ਸਹਜਿ ਸਹਜਿ ਗੁਣ ਗਾਈ ॥੧॥
मन कउ इह उपदेसु द्रिड़ावै सहजि सहजि गुण गाई ॥१॥
वह मन को यह उपदेश दृढ़ करता है कि सहज-सहज प्रभु का गुणगान करते रहोll १॥
ਸਾਜਨ ਐਸੋ ਸੰਤੁ ਸਹਾਈ ॥
साजन ऐसो संतु सहाई ॥
हे साजन ! संत जी ऐसे सहायक हैं कि
ਜਿਸੁ ਭੇਟੇ ਤੂਟਹਿ ਮਾਇਆ ਬੰਧ ਬਿਸਰਿ ਨ ਕਬਹੂੰ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिसु भेटे तूटहि माइआ बंध बिसरि न कबहूं जाई ॥१॥ रहाउ ॥
जिनके दर्शन मात्र से ही माया के बन्धन कट जाते हैं और मनुष्य प्रभु को कदाचित विस्मृत नहीं करता ॥ १॥ रहाउ॥
ਕਰਤ ਕਰਤ ਅਨਿਕ ਬਹੁ ਭਾਤੀ ਨੀਕੀ ਇਹ ਠਹਰਾਈ ॥
करत करत अनिक बहु भाती नीकी इह ठहराई ॥
अनेक प्रकार के कर्म एवं विधियाँ करते हुए अंततः यही निष्कर्ष अच्छा लगा है कि
ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਵੈ ਨਾਨਕ ਭਵਜਲੁ ਪਾਰਿ ਪਰਾਈ ॥੨॥੮॥੧੭॥
मिलि साधू हरि जसु गावै नानक भवजलु पारि पराई ॥२॥८॥१७॥
हे नानक ! जो मनुष्य साधु से मिलकर हरि का यशगान पकड़ता है, यह भयसागर से पार हो जाता है। २॥ ८ ॥ १७ ॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
गूजरी महला ५ ॥
ਖਿਨ ਮਹਿ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਨਹਾਰਾ ਕੀਮਤਿ ਜਾਇ ਨ ਕਰੀ ॥
खिन महि थापि उथापनहारा कीमति जाइ न करी ॥
भगवान एक क्षण में ही पैदा करने तथा ध्वस्त (नाश) करने में सक्षम है। इसलिए उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
ਰਾਜਾ ਰੰਕੁ ਕਰੈ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਨੀਚਹ ਜੋਤਿ ਧਰੀ ॥੧॥
राजा रंकु करै खिन भीतरि नीचह जोति धरी ॥१॥
एक क्षण में ही वह राजा को रंक बना देता है और नीच कहलवाने वालों के अन्तर में अपनी ज्योति प्रज्वलित कर देता है॥ १॥
ਧਿਆਈਐ ਅਪਨੋ ਸਦਾ ਹਰੀ ॥
धिआईऐ अपनो सदा हरी ॥
सदैव ही अपने हरि का ध्यान करना चाहिए।
ਸੋਚ ਅੰਦੇਸਾ ਤਾ ਕਾ ਕਹਾ ਕਰੀਐ ਜਾ ਮਹਿ ਏਕ ਘਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सोच अंदेसा ता का कहा करीऐ जा महि एक घरी ॥१॥ रहाउ ॥
जिस जीवन में इन्सान ने एक घड़ी भर अर्थात् थोड़ी देर के लिए ही रहना है, उस बारे चिंता एवं फिक्र क्यों किया जाए॥ १॥ रहाउ॥
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਟੇਕ ਪੂਰੇ ਮੇਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਮਨ ਸਰਨਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੈ ਪਰੀ ॥
तुम्हरी टेक पूरे मेरे सतिगुर मन सरनि तुम्हारै परी ॥
हे मेरे पूर्ण सतगुरु ! हमें तुम्हारी ही टेक है और मेरे मन ने तेरी शरण ली है।
ਅਚੇਤ ਇਆਨੇ ਬਾਰਿਕ ਨਾਨਕ ਹਮ ਤੁਮ ਰਾਖਹੁ ਧਾਰਿ ਕਰੀ ॥੨॥੯॥੧੮॥
अचेत इआने बारिक नानक हम तुम राखहु धारि करी ॥२॥९॥१८॥
हे नानक ! हम ज्ञानहीन एवं नासमझ बालक हैं, अपना हाथ देकर आप हमारी रक्षा कीजिए॥ २॥ ६ ॥ १८ ॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
गूजरी महला ५ ॥
ਤੂੰ ਦਾਤਾ ਜੀਆ ਸਭਨਾ ਕਾ ਬਸਹੁ ਮੇਰੇ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥
तूं दाता जीआ सभना का बसहु मेरे मन माही ॥
हे परमात्मा ! तू सभी जीवों का दाता है, मेरे मन में भी आकर बस जाओ।
ਚਰਣ ਕਮਲ ਰਿਦ ਮਾਹਿ ਸਮਾਏ ਤਹ ਭਰਮੁ ਅੰਧੇਰਾ ਨਾਹੀ ॥੧॥
चरण कमल रिद माहि समाए तह भरमु अंधेरा नाही ॥१॥
जिस हृदय में तेरे सुन्दर कमल-चरण बस जाते हैं, वहाँ कोई भ्रम एवं अज्ञानता का अन्धेरा नहीं रहता ॥ १॥
ਠਾਕੁਰ ਜਾ ਸਿਮਰਾ ਤੂੰ ਤਾਹੀ ॥
ठाकुर जा सिमरा तूं ताही ॥
हे मेरे ठाकुर ! मैं जहाँ कहीं भी तुझे याद करता हूँ, वहाँ ही तुझे पाता हूँ।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸਰਬ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਕ ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਦਾ ਸਲਾਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करि किरपा सरब प्रतिपालक प्रभ कउ सदा सलाही ॥१॥ रहाउ ॥
हे समस्त जीवों के पालनहार प्रभु ! मुझ पर कृपा करो चूंकि मैं सदैव ही तुम्हारा स्तुतिगान करता रहूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ਸਮਾਰਉ ਤੁਮ ਹੀ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਆਹੀ ॥
सासि सासि तेरा नामु समारउ तुम ही कउ प्रभ आही ॥
हे प्रभु ! मैं श्वास-श्वास से तुम्हारा नाम-स्मरण करता हूँ तथा सदैव तेरे मिलन की अभिलाषा करता हूँ।
ਨਾਨਕ ਟੇਕ ਭਈ ਕਰਤੇ ਕੀ ਹੋਰ ਆਸ ਬਿਡਾਣੀ ਲਾਹੀ ॥੨॥੧੦॥੧੯॥
नानक टेक भई करते की होर आस बिडाणी लाही ॥२॥१०॥१९॥
हे नानक ! मुझे केवल सृष्टिकर्ता प्रभु का ही सहारा है और मैंने अन्य समस्त पराई आशा त्याग दी है॥ २ ॥ १० ॥ १६ ॥