Hindi Page 449

ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਮੁਸਕਿ ਝਕੋਲਿਆ ਸਭੁ ਜਨਮੁ ਧਨੁ ਧੰਨਾ ॥੧॥
जनु नानकु मुसकि झकोलिआ सभु जनमु धनु धंना ॥१॥
नानक प्रभु की सुगन्धि में सुगन्धित हो गया है और उसका जन्म धन्य एवं सम्पूर्ण हो गया है॥ १॥

ਹਰਿ ਪ੍ਰੇਮ ਬਾਣੀ ਮਨੁ ਮਾਰਿਆ ਅਣੀਆਲੇ ਅਣੀਆ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥
हरि प्रेम बाणी मनु मारिआ अणीआले अणीआ राम राजे ॥
हरि की प्रेम वाणी का तीक्ष्ण बाण मेरे हृदय को लगा है।

ਜਿਸੁ ਲਾਗੀ ਪੀਰ ਪਿਰੰਮ ਕੀ ਸੋ ਜਾਣੈ ਜਰੀਆ ॥
जिसु लागी पीर पिरम की सो जाणै जरीआ ॥
जिसे प्रेम की पीड़ा सताती है, वही जानता है कि इसे कैसे सहन किया जाना चाहिए।

ਜੀਵਨ ਮੁਕਤਿ ਸੋ ਆਖੀਐ ਮਰਿ ਜੀਵੈ ਮਰੀਆ ॥
जीवन मुकति सो आखीऐ मरि जीवै मरीआ ॥
जो अपने अहंत्व को मारता है और मोह से अलग होकर जीवन व्यतीत करता है, वही जीवन्मुक्त कहा जाता है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਹਰਿ ਜਗੁ ਦੁਤਰੁ ਤਰੀਆ ॥੨॥
जन नानक सतिगुरु मेलि हरि जगु दुतरु तरीआ ॥२॥
हे हरि ! नानक को सतिगुरु से मिला दीजिए चूंकि वह विषम संसार-सागर से पार हो जाए॥ २॥

ਹਮ ਮੂਰਖ ਮੁਗਧ ਸਰਣਾਗਤੀ ਮਿਲੁ ਗੋਵਿੰਦ ਰੰਗਾ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥
हम मूरख मुगध सरणागती मिलु गोविंद रंगा राम राजे ॥
हम मूर्ख एवं अज्ञानी तेरी शरण आए हैं, हे रंगीले गोविन्द ! हमें मिलो।

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਇਕ ਮੰਗਾ ॥
गुरि पूरै हरि पाइआ हरि भगति इक मंगा ॥
पूर्ण गुरु के द्वारा हरि पाया जा सकता है, इसलिए मैं गुरु से हरि की भक्ति ही माँगता हूँ।

ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਤਨੁ ਸਬਦਿ ਵਿਗਾਸਿਆ ਜਪਿ ਅਨਤ ਤਰੰਗਾ ॥
मेरा मनु तनु सबदि विगासिआ जपि अनत तरंगा ॥
मेरा मन एवं तन गुरु के शब्द से खिल गए हैं और मैं अनंत लहरों वाले प्रभु का सुमिरन करता हूँ।

ਮਿਲਿ ਸੰਤ ਜਨਾ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਨਾਨਕ ਸਤਸੰਗਾ ॥੩॥
मिलि संत जना हरि पाइआ नानक सतसंगा ॥३॥
संतजनों से मिलकर नानक को सुसंगति में प्रभु की प्राप्ति हुई है॥ ३॥

ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਸੁਣਿ ਬੇਨਤੀ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥
दीन दइआल सुणि बेनती हरि प्रभ हरि राइआ राम राजे ॥
हे दीनदयालु ! हे जगत के बादशाह ! मेरी विनती सुनो।

ਹਉ ਮਾਗਉ ਸਰਣਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਕੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮੁਖਿ ਪਾਇਆ ॥
हउ मागउ सरणि हरि नाम की हरि हरि मुखि पाइआ ॥
मैं हरि-नाम की शरण माँगता हूँ, मैंने हरि-नाम अपने मुँह में डाल लिया है अर्थात् मैं अपने मुँह से हरि-नाम ही जपता रहता हूँ।

ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਹਰਿ ਬਿਰਦੁ ਹੈ ਹਰਿ ਲਾਜ ਰਖਾਇਆ ॥
भगति वछलु हरि बिरदु है हरि लाज रखाइआ ॥
भक्तवत्सल होना हरि का प्रारम्भ से ही विरद् है, हरि ने मेरी लाज रख ली है।

ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਸਰਣਾਗਤੀ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਤਰਾਇਆ ॥੪॥੮॥੧੫॥
जनु नानकु सरणागती हरि नामि तराइआ ॥४॥८॥१५॥
नानक हरि की शरण में आ गया है और हरि-नाम ने उसे भवसागर से तार दिया है। ४॥ ८ ॥ १५ ॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
आसा महला ४ ॥
आसा महला ४ ॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਢੂੰਢਿ ਢੂਢੇਦਿਆ ਹਰਿ ਸਜਣੁ ਲਧਾ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥
गुरमुखि ढूंढि ढूढेदिआ हरि सजणु लधा राम राजे ॥
गुरुमुख बनकर खोजते-खोजते मैंने हरि सज्जन ढूंढ लिया है।

ਕੰਚਨ ਕਾਇਆ ਕੋਟ ਗੜ ਵਿਚਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਿਧਾ ॥
कंचन काइआ कोट गड़ विचि हरि हरि सिधा ॥
मेरी कंचन काया के कोटगढ़ में हरि-प्रभु प्रगट हुआ है।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਹੀਰਾ ਰਤਨੁ ਹੈ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਤਨੁ ਵਿਧਾ ॥
हरि हरि हीरा रतनु है मेरा मनु तनु विधा ॥
हरि-परमेश्वर एक हीरा एवं रत्न है, जिससे मेरा मन एवं तन बिंध गया है।

ਧੁਰਿ ਭਾਗ ਵਡੇ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਨਾਨਕ ਰਸਿ ਗੁਧਾ ॥੧॥
धुरि भाग वडे हरि पाइआ नानक रसि गुधा ॥१॥
हे नानक ! आदि से अहोभाग्य के कारण मैंने हरि को पा लिया है। मैं उसके अमृत रस में भीग गया हूँ॥ १॥

ਪੰਥੁ ਦਸਾਵਾ ਨਿਤ ਖੜੀ ਮੁੰਧ ਜੋਬਨਿ ਬਾਲੀ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥
पंथु दसावा नित खड़ी मुंध जोबनि बाली राम राजे ॥
मैं सुन्दर कमसिन नारी नित्य खड़ी अपने प्रभु के पास जाने का मार्ग पूछती हूँ।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਚੇਤਾਇ ਗੁਰ ਹਰਿ ਮਾਰਗਿ ਚਾਲੀ ॥
हरि हरि नामु चेताइ गुर हरि मारगि चाली ॥
हे गुरु ! मुझे हरि का नाम याद कराते रहो, जिससे मैं हरि के मार्ग पर चल सकूं।

ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਨਾਮੁ ਆਧਾਰੁ ਹੈ ਹਉਮੈ ਬਿਖੁ ਜਾਲੀ ॥
मेरै मनि तनि नामु आधारु है हउमै बिखु जाली ॥
मेरे मन एवं तन को प्रभु-नाम का ही आधार है और मैंने अहंकार के विष को जला दिया है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਿਲਿਆ ਬਨਵਾਲੀ ॥੨॥
जन नानक सतिगुरु मेलि हरि हरि मिलिआ बनवाली ॥२॥
हे हरि ! नानक को सच्चे गुरु से मिला दो, चूंकि जिसे भी ईश्वर मिला है, गुरु के माध्यम से ही मिला है॥ २॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਿਆਰੇ ਆਇ ਮਿਲੁ ਮੈ ਚਿਰੀ ਵਿਛੁੰਨੇ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥
गुरमुखि पिआरे आइ मिलु मै चिरी विछुंने राम राजे ॥
हे प्रियतम प्रभु ! गुरु के द्वारा मुझे आकर मिलो क्योंकि मैं चिरकाल से तुझ से बिछुड़ा हुआ हूँ।

ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਤਨੁ ਬਹੁਤੁ ਬੈਰਾਗਿਆ ਹਰਿ ਨੈਣ ਰਸਿ ਭਿੰਨੇ ॥
मेरा मनु तनु बहुतु बैरागिआ हरि नैण रसि भिंने ॥
मेरा तन एवं मन बहुत वैराग्यवान हो गया है और मेरे नेत्र हरि के रस से भीगे हुए हैं।

ਮੈ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਪਿਆਰਾ ਦਸਿ ਗੁਰੁ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਮਨੁ ਮੰਨੇ ॥
मै हरि प्रभु पिआरा दसि गुरु मिलि हरि मनु मंने ॥
हे गुरुदेव ! मुझे प्रियतम हरि-प्रभु के बारे में बता दो, तांकि उससे मिलकर मेरा मन प्रसन्न हो जाए।

ਹਉ ਮੂਰਖੁ ਕਾਰੈ ਲਾਈਆ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਕੰਮੇ ॥੩॥
हउ मूरखु कारै लाईआ नानक हरि कमे ॥३॥
हे नानक ! मुझ मूर्ख को हरि ने अपने नाम-सुमिरन के कार्य में लगा दिया है॥ ३॥

ਗੁਰ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਭਿੰਨੀ ਦੇਹੁਰੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਬੁਰਕੇ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥
गुर अम्रित भिंनी देहुरी अम्रितु बुरके राम राजे ॥
गुरु का शरीर हरि-नामामृत से भीगा हुआ है और उसने नामामृत मुझ पर छिड़क दिया है।

ਜਿਨਾ ਗੁਰਬਾਣੀ ਮਨਿ ਭਾਈਆ ਅੰਮ੍ਰਿਤਿ ਛਕਿ ਛਕੇ ॥
जिना गुरबाणी मनि भाईआ अम्रिति छकि छके ॥
जिन लोगों को अपने मन में गुरु की वाणी अच्छी लगती है, वे अमृत का निरन्तर पान करते हैं।

ਗੁਰ ਤੁਠੈ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਚੂਕੇ ਧਕ ਧਕੇ ॥
गुर तुठै हरि पाइआ चूके धक धके ॥
गुरु की कृपा-दृष्टि से मैंने प्रभु को पा लिया है और अब जन्म-मरण के धक्के नहीं लगेंगे।

ਹਰਿ ਜਨੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹੋਇਆ ਨਾਨਕੁ ਹਰਿ ਇਕੇ ॥੪॥੯॥੧੬॥
हरि जनु हरि हरि होइआ नानकु हरि इके ॥४॥९॥१६॥
प्रभु का सेवक परमेश्वर का रूप बन गया है। हे नानक ! प्रभु एवं उसका सेवक एक रूप ही हैं॥ ४॥ ६॥ १६॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
आसा महला ४ ॥
आसा महला ४ ॥

ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰ ਹੈ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਸੇ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥
हरि अम्रित भगति भंडार है गुर सतिगुर पासे राम राजे ॥
गुरु सतिगुरु के पास अमृतमयी हरि-भक्ति का भण्डार विद्यमान है।

ਗੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਚਾ ਸਾਹੁ ਹੈ ਸਿਖ ਦੇਇ ਹਰਿ ਰਾਸੇ ॥
गुरु सतिगुरु सचा साहु है सिख देइ हरि रासे ॥
गुरु सतिगुरु सच्चा साहूकार है, वही अपने सिक्खों को हरि-नाम रूपी पूंजी प्रदान करता है।

ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਵਣਜਾਰਾ ਵਣਜੁ ਹੈ ਗੁਰੁ ਸਾਹੁ ਸਾਬਾਸੇ ॥
धनु धंनु वणजारा वणजु है गुरु साहु साबासे ॥
व्यापारी सिक्ख एवं उसका व्यापार धन्य-धन्य है, गुरु साहूकार को शाबाश है।

ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਗੁਰੁ ਤਿਨੑੀ ਪਾਇਆ ਜਿਨ ਧੁਰਿ ਲਿਖਤੁ ਲਿਲਾਟਿ ਲਿਖਾਸੇ ॥੧॥
जनु नानकु गुरु तिन्ही पाइआ जिन धुरि लिखतु लिलाटि लिखासे ॥१॥
हे नानक ! गुरु को उन्होंने ही पाया है, जिनके मस्तक पर आदि से ही किस्मत का लेख लिखा होता है। १ ।

ਸਚੁ ਸਾਹੁ ਹਮਾਰਾ ਤੂੰ ਧਣੀ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਵਣਜਾਰਾ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥
सचु साहु हमारा तूं धणी सभु जगतु वणजारा राम राजे ॥
हे मेरे मालिक ! एक तू ही हमारा सच्चा साहूकार है। समूचा जगत तेरा व्यापारी है।

ਸਭ ਭਾਂਡੇ ਤੁਧੈ ਸਾਜਿਆ ਵਿਚਿ ਵਸਤੁ ਹਰਿ ਥਾਰਾ ॥
सभ भांडे तुधै साजिआ विचि वसतु हरि थारा ॥
हे प्रभु ! सभी जीव रूपी बर्तन तेरे द्वारा ही उत्पादित हैं। इनके भीतर तेरी ही आत्मा व्यापक है।

ਜੋ ਪਾਵਹਿ ਭਾਂਡੇ ਵਿਚਿ ਵਸਤੁ ਸਾ ਨਿਕਲੈ ਕਿਆ ਕੋਈ ਕਰੇ ਵੇਚਾਰਾ ॥
जो पावहि भांडे विचि वसतु सा निकलै किआ कोई करे वेचारा ॥
जिस वस्तु को तुम बर्तन में डालते हो, केवल वही बाहर निकलती है अर्थात् जो पदार्थ तुम शरीरों में डालते हो, वही प्रगट होता है। कोई जीव बेचारा क्या कर सकता है ?”

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