Hindi Page 43

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सिरीरागु महला ५ ॥  
श्रीरागु महला ५ ॥   

ਭਲਕੇ ਉਠਿ ਪਪੋਲੀਐ ਵਿਣੁ ਬੁਝੇ ਮੁਗਧ ਅਜਾਣਿ ॥
भलके उठि पपोलीऐ विणु बुझे मुगध अजाणि ॥  
मनुष्य प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर अपनी देहि का पालन-पोषण करता है, किन्तु जब तक ईश्वर बारे ज्ञान नहीं होता, वह मूर्ख तथा नासमझ ही बना रहता है।   

ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਚਿਤਿ ਨ ਆਇਓ ਛੁਟੈਗੀ ਬੇਬਾਣਿ ॥
सो प्रभु चिति न आइओ छुटैगी बेबाणि ॥  
यदि परमेश्वर को स्मरण न किया तो व्यर्थ ही यह (देहि) उजाड़ श्मशान घाट में दी जाएगी।   

ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਤੀ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ਸਦਾ ਸਦਾ ਰੰਗੁ ਮਾਣਿ ॥੧॥
सतिगुर सेती चितु लाइ सदा सदा रंगु माणि ॥१॥
यदि इस देहि में अर्थात् मानव योनि में रहते हम सतिगुरु को हृदय में बसा लें तो सदैव के लिए आनंद की प्राप्ति होगी॥१॥   

ਪ੍ਰਾਣੀ ਤੂੰ ਆਇਆ ਲਾਹਾ ਲੈਣਿ ॥
प्राणी तूं आइआ लाहा लैणि ॥   
हे नश्वर प्राणी ! तुम मानव-योनि में लाभ प्राप्ति हेतु आया था।   

ਲਗਾ ਕਿਤੁ ਕੁਫਕੜੇ ਸਭ ਮੁਕਦੀ ਚਲੀ ਰੈਣਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
लगा कितु कुफकड़े सभ मुकदी चली रैणि ॥१॥ रहाउ ॥   
हे प्राणी ! तुम व्यर्थ के कर्मो में संलग्न क्यों हो गए हो ? जिससे शनैः शनैः तेरी सारी जीवन रात्रि समाप्त होती जा रही है ॥१॥ रहाउ ॥   

ਕੁਦਮ ਕਰੇ ਪਸੁ ਪੰਖੀਆ ਦਿਸੈ ਨਾਹੀ ਕਾਲੁ ॥
कुदम करे पसु पंखीआ दिसै नाही कालु ॥ 
जिस तरह पशु-पक्षी क्रीड़ा मग्न रहते हैं और मृत्यु के बारे कुछ नहीं सूझता।

ਓਤੈ ਸਾਥਿ ਮਨੁਖੁ ਹੈ ਫਾਥਾ ਮਾਇਆ ਜਾਲਿ ॥                                                                                                                          
ओतै साथि मनुखु है फाथा माइआ जालि ॥  
इसी प्रकार मनुष्य है जो मोह-माया के जाल में फँसा हुआ है।

ਮੁਕਤੇ ਸੇਈ ਭਾਲੀਅਹਿ ਜਿ ਸਚਾ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ॥੨॥
मुकते सेई भालीअहि जि सचा नामु समालि ॥२॥   
जो प्राणी सच्चे परमेश्वर के नाम की आराधना करते हैं, उन्हें ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। २॥

ਜੋ ਘਰੁ ਛਡਿ ਗਵਾਵਣਾ ਸੋ ਲਗਾ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥  
जो घरु छडि गवावणा सो लगा मन माहि ॥
वह घर जिसे त्यागकर खाली कर देना है, वह मन से जुड़ा हुआ है।

ਜਿਥੈ ਜਾਇ ਤੁਧੁ ਵਰਤਣਾ ਤਿਸ ਕੀ ਚਿੰਤਾ ਨਾਹਿ ॥
जिथै जाइ तुधु वरतणा तिस की चिंता नाहि ॥  
तुझे उसकी कोई चिन्ता नहीं, जहाँ जाकर तूने निवास करना है।   

ਫਾਥੇ ਸੇਈ ਨਿਕਲੇ ਜਿ ਗੁਰ ਕੀ ਪੈਰੀ ਪਾਹਿ ॥੩॥
फाथे सेई निकले जि गुर की पैरी पाहि ॥३॥  
जो प्राणी गुरु के चरण आश्रय में आ जाते हैं, वह फाँसी अर्थात् जीवन-मृत्यु के चक्कर से मोक्ष प्राप्त करते हैं।॥३॥   

ਕੋਈ ਰਖਿ ਨ ਸਕਈ ਦੂਜਾ ਕੋ ਨ ਦਿਖਾਇ ॥
कोई रखि न सकई दूजा को न दिखाइ ॥  
गुरु के बिना कोई बचा नहीं सकता। मुझे अन्य कोई दिखाई नहीं देता।   

ਚਾਰੇ ਕੁੰਡਾ ਭਾਲਿ ਕੈ ਆਇ ਪਇਆ ਸਰਣਾਇ ॥
चारे कुंडा भालि कै आइ पइआ सरणाइ ॥   
मैं चारों दिशाओं में खोज-भाल करके गुरु की शरण में आ गया हूँ।   

ਨਾਨਕ ਸਚੈ ਪਾਤਿਸਾਹਿ ਡੁਬਦਾ ਲਇਆ ਕਢਾਇ ॥੪॥੩॥੭੩॥                                                             
नानक सचै पातिसाहि डुबदा लइआ कढाइ ॥४॥३॥७३॥  
हे नानक ! मैं डूब रहा था, परन्तु सच्चे पातशाह ने मेरी रक्षा करके मुझे पार कर दिया है ॥४ ॥ ३ ॥ ७३ ॥   

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सिरीरागु महला ५ ॥   
श्रीरागु महला ५ ॥       

ਘੜੀ ਮੁਹਤ ਕਾ ਪਾਹੁਣਾ ਕਾਜ ਸਵਾਰਣਹਾਰੁ ॥
घड़ी मुहत का पाहुणा काज सवारणहारु ॥  
तुम घड़ी दो घड़ी के अतिथि बनकर उस दुनिया में आए हो, अतः अपना सिमरन रूपी कार्य संसार लो।   

ਮਾਇਆ ਕਾਮਿ ਵਿਆਪਿਆ ਸਮਝੈ ਨਾਹੀ ਗਾਵਾਰੁ ॥
माइआ कामि विआपिआ समझै नाही गावारु ॥   
किन्तु जीव तो मोह-माया व कामवासना में ही लिप्त है और जीवन के असल मनोरथ को यह मुर्ख समझ ही नहीं रहा।   

ਉਠਿ ਚਲਿਆ ਪਛੁਤਾਇਆ ਪਰਿਆ ਵਸਿ ਜੰਦਾਰ ॥੧॥
उठि चलिआ पछुताइआ परिआ वसि जंदार ॥१॥  
जब इस से यह कूच कर करेगा और यमों के वश में हो जाएगा, तब यह पश्चाताप करेगा ॥ १॥   

ਅੰਧੇ ਤੂੰ ਬੈਠਾ ਕੰਧੀ ਪਾਹਿ ॥
अंधे तूं बैठा कंधी पाहि ॥   
हे अज्ञानी मनुष्य ! तू काल रूपी नदी के तट पर विराजमान है। अर्थात् मृत्यु रूपी सागर के तट पर बैठे हुए हो।   

ਜੇ ਹੋਵੀ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਤਾ ਗੁਰ ਕਾ ਬਚਨੁ ਕਮਾਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जे होवी पूरबि लिखिआ ता गुर का बचनु कमाहि ॥१॥ रहाउ ॥  
यदि तेरे पूर्व कर्म शुभ हैं तो तू गुरु के उपदेश को पा सकता है ॥ १॥ रहाउ॥   

ਹਰੀ ਨਾਹੀ ਨਹ ਡਡੁਰੀ ਪਕੀ ਵਢਣਹਾਰ ॥
हरी नाही नह डडुरी पकी वढणहार ॥   
जैसे कच्ची फ़सल,कच्ची-पक्की अथवा पूर्ण पक्की फसल किसी भी अवस्था में काटी जा सकती है, वैसे ही बाल्यावस्था, युवावस्था अथवा वृद्धावस्था में कभी भी मृत्यु आ सकती है।   

ਲੈ ਲੈ ਦਾਤ ਪਹੁਤਿਆ ਲਾਵੇ ਕਰਿ ਤਈਆਰੁ ॥                                                                                                            
लै लै दात पहुतिआ लावे करि तईआरु ॥ 
जैसे फसल काटने वाले दरांत लेकर कृषक के बुलावे पर फसल काटने के लिए तैयार हो जाते हैं, वैसे ही यम के आदेश पर यमदूत किसी भी समय पाश लेकर मानव को लेने आ जाते हैं।

ਜਾ ਹੋਆ ਹੁਕਮੁ ਕਿਰਸਾਣ ਦਾ ਤਾ ਲੁਣਿ ਮਿਣਿਆ ਖੇਤਾਰੁ ॥੨॥
जा होआ हुकमु किरसाण दा ता लुणि मिणिआ खेतारु ॥२॥   
जब कृषक का आदेश हुआ तो फसल काटने वाले सारा खेत काट कर नाप लेते हैं और अपना पारिश्रमिक ले लेते हैं, वैसे ही कृषक रूपी परमात्मा के आदेश होते ही यमदूत मानव जीव का शरीर रूपी खेत नाप लेते हैं अर्थात् श्वासों की गिनती करते हैं और श्वास पूरे होते ही शरीर रूपी खेत श्वास रूपी फसल से रिक्त कर देते हैं।॥ २॥   

ਪਹਿਲਾ ਪਹਰੁ ਧੰਧੈ ਗਇਆ ਦੂਜੈ ਭਰਿ ਸੋਇਆ ॥
पहिला पहरु धंधै गइआ दूजै भरि सोइआ ॥
मानव की आयु का प्रथम भाग बाल्यावस्था तो क्रीड़ा में व्यतीत हो गया तथा दूसरा भाग किशोरावस्था गहन निद्रा में चला गया।

ਤੀਜੈ ਝਾਖ ਝਖਾਇਆ ਚਉਥੈ ਭੋਰੁ ਭਇਆ ॥
तीजै झाख झखाइआ चउथै भोरु भइआ ॥  
तीसरा भाग युवावस्था सांसारिक व्यर्थ कार्यो में गुजर गया तथा चौथा भाग वृद्धावस्था के आते ही काल रूपी दिन उदय हो गया।   

ਕਦ ਹੀ ਚਿਤਿ ਨ ਆਇਓ ਜਿਨਿ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਦੀਆ ॥੩॥
कद ही चिति न आइओ जिनि जीउ पिंडु दीआ ॥३॥   
इतने लम्बे समय में वह परमात्मा स्मरण नहीं हुआ, जिसने यह मानव तन प्रदान किया है॥ ३॥   

ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕਉ ਵਾਰਿਆ ਜੀਉ ਕੀਆ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥
साधसंगति कउ वारिआ जीउ कीआ कुरबाणु ॥
गुरु जी कथन करते है कि मैंने तो साधु-संगति पर जीवन न्योछावर कर दिया।   

ਜਿਸ ਤੇ ਸੋਝੀ ਮਨਿ ਪਈ ਮਿਲਿਆ ਪੁਰਖੁ ਸੁਜਾਣੁ ॥ 
जिस ते सोझी मनि पई मिलिआ पुरखु सुजाणु ॥ 
मुझे ऐसा सतिगुरु रूपी मित्र मिल गया है, जिससे मेरे अन्तर्मन में उस परमात्मा का ज्ञान प्रकाश उदय हुआ।   

ਨਾਨਕ ਡਿਠਾ ਸਦਾ ਨਾਲਿ ਹਰਿ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਜਾਣੁ ॥੪॥੪॥੭੪॥
नानक डिठा सदा नालि हरि अंतरजामी जाणु ॥४॥४॥७४॥   
हे नानक ! उस अन्तर्यामी परमात्मा को जान लो, जो सबके साथ रहता है ॥ ४॥ ४ ॥ ७४ ॥   

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सिरीरागु महला ५ ॥   
श्रीरागु महला ५ ॥   

ਸਭੇ ਗਲਾ ਵਿਸਰਨੁ ਇਕੋ ਵਿਸਰਿ ਨ ਜਾਉ ॥
सभे गला विसरनु इको विसरि न जाउ ॥   
मैं प्रत्येक बात भूल जाऊँ, परन्तु एक ईश्वर को कदापि न विस्मृत करूँ।   

ਧੰਧਾ ਸਭੁ ਜਲਾਇ ਕੈ ਗੁਰਿ ਨਾਮੁ ਦੀਆ ਸਚੁ ਸੁਆਉ ॥  
धंधा सभु जलाइ कै गुरि नामु दीआ सचु सुआउ ॥
गुरु ने समस्त धंधों को नष्ट करके सत्य आनंद को प्राप्त करने वाला परमेश्वर का नाम प्रदान किया है।   

ਆਸਾ ਸਭੇ ਲਾਹਿ ਕੈ ਇਕਾ ਆਸ ਕਮਾਉ ॥
आसा सभे लाहि कै इका आस कमाउ ॥
मन की सभी आशाएँ त्याग कर केवल एक ही आशा प्रभु-मिलन की आशा मैं अर्जित करूँ।   

ਜਿਨੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿਆ ਤਿਨ ਅਗੈ ਮਿਲਿਆ ਥਾਉ ॥੧॥
जिनी सतिगुरु सेविआ तिन अगै मिलिआ थाउ ॥१॥ 
जो प्राणी सतिगुरु की भरपूर सेवा करता है, उसे परलोक में प्रभु के दरबार में बैठने का सम्मान प्राप्त होता है॥ १॥   

ਮਨ ਮੇਰੇ ਕਰਤੇ ਨੋ ਸਾਲਾਹਿ ॥  
मन मेरे करते नो सालाहि ॥
हे मेरे मन ! सृष्टिकर्ता का गुणगान कर।   

ਸਭੇ ਛਡਿ ਸਿਆਣਪਾ ਗੁਰ ਕੀ ਪੈਰੀ ਪਾਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सभे छडि सिआणपा गुर की पैरी पाहि ॥१॥ रहाउ ॥   
अपनी समस्त चतुराइयाँ त्याग कर गुरु के चरणों की शरण ग्रहण करो॥ |१॥ रहाउ॥   

ਦੁਖ ਭੁਖ ਨਹ ਵਿਆਪਈ ਜੇ ਸੁਖਦਾਤਾ ਮਨਿ ਹੋਇ ॥
दुख भुख नह विआपई जे सुखदाता मनि होइ ॥   
यदि सर्वगुण सम्पन्न सुखदाता परमेश्वर हृदय में बसा हुआ हो तो दुखों एवं तृष्णाओं की लालसा से मुक्ति मिल जाती है।   

ਕਿਤ ਹੀ ਕੰਮਿ ਨ ਛਿਜੀਐ ਜਾ ਹਿਰਦੈ ਸਚਾ ਸੋਇ ॥  
कित ही कमि न छिजीऐ जा हिरदै सचा सोइ ॥
यदि वह सच्चा स्वामी मनुष्य के हृदय में वास कर जाए तो उसे किसी भी कार्य में असफलता नहीं मिलती।   

ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਰਖਹਿ ਹਥ ਦੇ ਤਿਸੁ ਮਾਰਿ ਨ ਸਕੈ ਕੋਇ ॥
जिसु तूं रखहि हथ दे तिसु मारि न सकै कोइ ॥  
परम-परमेश्वर जिसे भी अपना हाथ देकर रक्षा करता है, उसे कोई भी नहीं मार सकता।   

ਸੁਖਦਾਤਾ ਗੁਰੁ ਸੇਵੀਐ ਸਭਿ ਅਵਗਣ ਕਢੈ ਧੋਇ ॥੨॥
सुखदाता गुरु सेवीऐ सभि अवगण कढै धोइ ॥२॥  
सुखों के दाता गुरु की आज्ञानुसार आचरण करना ही सर्वोत्तम है, क्योंकि वह प्राणी के समस्त अवगुणों को धोकर निर्मल कर देते हैं।॥ २॥   

ਸੇਵਾ ਮੰਗੈ ਸੇਵਕੋ ਲਾਈਆਂ ਅਪੁਨੀ ਸੇਵ ॥
सेवा मंगै सेवको लाईआं अपुनी सेव ॥   
भक्तजन भगवान के समक्ष विनती करें कि हे प्रभु ! यह सेवक उनकी सेवा करना चाहता है, जिन्हें तूने अपनी सेवा में लगाया हुआ है।   

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