Hindi Page 238

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਤਿਸ ਕਉ ਭਉ ਨਾਹਿ ॥
जो इसु मारे तिस कउ भउ नाहि ॥
जो इस दुविधा का नाश कर देता है, उसको कोई भय नहीं रहता।

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਸੁ ਨਾਮਿ ਸਮਾਹਿ ॥
जो इसु मारे सु नामि समाहि ॥
जो इस दुविधा का संहार कर देता है, वह नाम में लीन हो जाता है।

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਤਿਸ ਕੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬੁਝੈ ॥
जो इसु मारे तिस की त्रिसना बुझै ॥
जो व्यक्ति इस अहंत्व को समाप्त कर देता है, उसकी तृष्णा मिट जाती है।

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਸੁ ਦਰਗਹ ਸਿਝੈ ॥੨॥
जो इसु मारे सु दरगह सिझै ॥२॥
जो व्यक्ति इस अहंत्व का विनाश करता है, वह प्रभु के दरबार में स्वीकार हो जाता है॥ २॥

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਸੋ ਧਨਵੰਤਾ ॥
जो इसु मारे सो धनवंता ॥
जो व्यक्ति दुविधा को मार देता है, वह धनवान हो जाता है।

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਸੋ ਪਤਿਵੰਤਾ ॥
जो इसु मारे सो पतिवंता ॥
जो इस दुविधा का संहार कर देता है, वह आदरणीय हो जाता है।

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਸੋਈ ਜਤੀ ॥
जो इसु मारे सोई जती ॥
जो इस अहंत्व का नाश कर देता है, वह ब्रह्मचारी हो जाता है।

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਤਿਸੁ ਹੋਵੈ ਗਤੀ ॥੩॥
जो इसु मारे तिसु होवै गती ॥३॥
जो इस दुविधा का विनाश कर देता है, वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है॥ ३॥

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਤਿਸ ਕਾ ਆਇਆ ਗਨੀ ॥
जो इसु मारे तिस का आइआ गनी ॥
जो इस अहंत्व का संहार कर देता है, उसका (संसार में) आगमन सफल हो जाता है।

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਸੁ ਨਿਹਚਲੁ ਧਨੀ ॥
जो इसु मारे सु निहचलु धनी ॥
जो इस दुविधा का विनाश कर देता है, वही स्थिर एवं धनी है।

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਸੋ ਵਡਭਾਗਾ ॥
जो इसु मारे सो वडभागा ॥
जो इस अहंत्व का नाश कर देता है, वह बड़ा सौभाग्यशाली है।

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਸੁ ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗਾ ॥੪॥
जो इसु मारे सु अनदिनु जागा ॥४॥
जो इस दुविधा का विनाश कर देता है, वह रात-दिन सतर्क रहता है॥ ४॥

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਸੁ ਜੀਵਨ ਮੁਕਤਾ ॥
जो इसु मारे सु जीवन मुकता ॥
जो इस (तेरे-मेरे) का नाश कर देता है, वह जीवित ही मुक्त हो जाता है।

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਤਿਸ ਕੀ ਨਿਰਮਲ ਜੁਗਤਾ ॥
जो इसु मारे तिस की निरमल जुगता ॥
जो प्राणी इस अहंत्व का संहार करता है, उसका जीवन-आचरण पवित्र बन जाता है।

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਸੋਈ ਸੁਗਿਆਨੀ ॥
जो इसु मारे सोई सुगिआनी ॥
जो इस दुविधा को तबाह कर देता है, वह ब्रह्मज्ञानी है।

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਸੁ ਸਹਜ ਧਿਆਨੀ ॥੫॥
जो इसु मारे सु सहज धिआनी ॥५॥
जो इस अहंत्व का विनाश करता है, वह प्रभु का विचारवान है॥ ५॥

ਇਸੁ ਮਾਰੀ ਬਿਨੁ ਥਾਇ ਨ ਪਰੈ ॥  
इसु मारी बिनु थाइ न परै ॥
इस अहंत्व के मोह का नाश किए बिना मनुष्य सफल नहीं होता,

ਕੋਟਿ ਕਰਮ ਜਾਪ ਤਪ ਕਰੈ ॥
कोटि करम जाप तप करै ॥
चाहे वह करोड़ों ही कर्म-धर्म, पूजा एवं तपस्या करता रहे।

ਇਸੁ ਮਾਰੀ ਬਿਨੁ ਜਨਮੁ ਨ ਮਿਟੈ ॥
इसु मारी बिनु जनमु न मिटै ॥
इस दुविधा का विनाश किए बिना प्राणी का जीवन-मृत्यु का चक्र समाप्त नहीं होता।

ਇਸੁ ਮਾਰੀ ਬਿਨੁ ਜਮ ਤੇ ਨਹੀ ਛੁਟੈ ॥੬॥
इसु मारी बिनु जम ते नही छुटै ॥६॥
इस (अहंत्व) का विनाश किए बिना मनुष्य मृत्यु से नहीं बच सकता ॥ ६॥

ਇਸੁ ਮਾਰੀ ਬਿਨੁ ਗਿਆਨੁ ਨ ਹੋਈ ॥
इसु मारी बिनु गिआनु न होई ॥
इस अहंत्व का नाश किए बिना मनुष्य को (प्रभु बारे) ज्ञान प्राप्त नहीं होता।

ਇਸੁ ਮਾਰੀ ਬਿਨੁ ਜੂਠਿ ਨ ਧੋਈ ॥
इसु मारी बिनु जूठि न धोई ॥
इस दुविधा का नाश किए बिना मनुष्य की अशुद्धता दूर नहीं होती।

ਇਸੁ ਮਾਰੀ ਬਿਨੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਮੈਲਾ ॥
इसु मारी बिनु सभु किछु मैला ॥
इस दुविधा का विनाश किए बिना सब कुछ मलिन रहता है।

ਇਸੁ ਮਾਰੀ ਬਿਨੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਜਉਲਾ ॥੭॥
इसु मारी बिनु सभु किछु जउला ॥७॥
इस अहंत्व का नाश किए बिना संसार के प्रत्येक पदार्थ बंधन रूप हैं॥ ७॥

ਜਾ ਕਉ ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ॥                                                                                                                                                जा कउ भए क्रिपाल क्रिपा निधि ॥
जिस मनुष्य पर कृपा का भण्डार प्रभु कृपालु हो जाता है,

ਤਿਸੁ ਭਈ ਖਲਾਸੀ ਹੋਈ ਸਗਲ ਸਿਧਿ ॥
तिसु भई खलासी होई सगल सिधि ॥
उसकी मुक्ति हो जाती है और वह पूर्णता सफल हो जाता है।

ਗੁਰਿ ਦੁਬਿਧਾ ਜਾ ਕੀ ਹੈ ਮਾਰੀ ॥
गुरि दुबिधा जा की है मारी ॥
जिसकी दुविधा गुरु ने नाश कर दी है

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੋ ਬ੍ਰਹਮ ਬੀਚਾਰੀ ॥੮॥੫॥
कहु नानक सो ब्रहम बीचारी ॥८॥५॥
हे नानक ! वह प्रभु का चिन्तन करने वाला है ॥८॥५॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਹਰਿ ਸਿਉ ਜੁਰੈ ਤ ਸਭੁ ਕੋ ਮੀਤੁ ॥
हरि सिउ जुरै त सभु को मीतु ॥
यदि इन्सान अपने मन को भगवान के साथ अनुरक्त कर ले तो हरेक व्यक्ति उसका मित्र बन जाता है।

ਹਰਿ ਸਿਉ ਜੁਰੈ ਤ ਨਿਹਚਲੁ ਚੀਤੁ ॥
हरि सिउ जुरै त निहचलु चीतु ॥
यदि इन्सान अपने मन को परमेश्वर के साथ जोड़ ले तो उसका मन स्थिर हो जाता है।

ਹਰਿ ਸਿਉ ਜੁਰੈ ਨ ਵਿਆਪੈ ਕਾੜ੍ਹ੍ਹਾ ॥
हरि सिउ जुरै न विआपै काड़्हा ॥
फिर वह चिन्ता एवं फिक्र से मुक्त हो जाता है।

ਹਰਿ ਸਿਉ ਜੁਰੈ ਤ ਹੋਇ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥੧॥
हरि सिउ जुरै त होइ निसतारा ॥१॥
यदि इन्सान ईश्वर के साथ अनुरक्त हो जाए तो उसका भवसागर से उद्धार हो जाता है।॥ १॥

ਰੇ ਮਨ ਮੇਰੇ ਤੂੰ ਹਰਿ ਸਿਉ ਜੋਰੁ ॥
रे मन मेरे तूं हरि सिउ जोरु ॥
हे मेरे मन ! तू अपने आपको ईश्वर के साथ अनुरक्त कर ले।

ਕਾਜਿ ਤੁਹਾਰੈ ਨਾਹੀ ਹੋਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
काजि तुहारै नाही होरु ॥१॥ रहाउ ॥
क्योंकि इसके अलावा कोई दूसरा यत्न तेरे लाभ में नहीं आना ॥ १॥ रहाउ ॥

ਵਡੇ ਵਡੇ ਜੋ ਦੁਨੀਆਦਾਰ ॥
वडे वडे जो दुनीआदार ॥
बड़े-बड़े एवं ऊँचे दुनिया के लोग

ਕਾਹੂ ਕਾਜਿ ਨਾਹੀ ਗਾਵਾਰ ॥
काहू काजि नाही गावार ॥
किसी काम के नहीं; हे अज्ञानी मनुष्य !

ਹਰਿ ਕਾ ਦਾਸੁ ਨੀਚ ਕੁਲੁ ਸੁਣਹਿ ॥
हरि का दासु नीच कुलु सुणहि ॥
चाहे प्रभु का सेवक निम्न कुल में सुना जाता हो।

ਤਿਸ ਕੈ ਸੰਗਿ ਖਿਨ ਮਹਿ ਉਧਰਹਿ ॥੨॥
तिस कै संगि खिन महि उधरहि ॥२॥
परन्तु उसकी संगति में तेरा एक क्षण में ही कल्याण हो जाएगा ॥२॥

ਕੋਟਿ ਮਜਨ ਜਾ ਕੈ ਸੁਣਿ ਨਾਮ ॥
कोटि मजन जा कै सुणि नाम ॥
जिस (प्रभु) का नाम सुनने से करोड़ों ही स्नानों का फल मिल जाता है।

ਕੋਟਿ ਪੂਜਾ ਜਾ ਕੈ ਹੈ ਧਿਆਨ ॥
कोटि पूजा जा कै है धिआन ॥
जिस (प्रभु) की आराधना करोड़ों ही पूजा के समान है।

ਕੋਟਿ ਪੁੰਨ ਸੁਣਿ ਹਰਿ ਕੀ ਬਾਣੀ ॥
कोटि पुंन सुणि हरि की बाणी ॥
परमेश्वर की वाणी को सुनना ही करोड़ों दान पुण्यों के तुल्य है।

ਕੋਟਿ ਫਲਾ ਗੁਰ ਤੇ ਬਿਧਿ ਜਾਣੀ ॥੩॥
कोटि फला गुर ते बिधि जाणी ॥३॥
गुरु जी से प्रभु के मार्ग का बोध करोड़ों ही फलों के समान है॥ ३॥

ਮਨ ਅਪੁਨੇ ਮਹਿ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਚੇਤ ॥
मन अपुने महि फिरि फिरि चेत ॥
अपने हृदय में बार-बार ईश्वर को स्मरण कर।

ਬਿਨਸਿ ਜਾਹਿ ਮਾਇਆ ਕੇ ਹੇਤ ॥
बिनसि जाहि माइआ के हेत ॥
तेरा माया का मोह नाश हो जाएगा।

ਹਰਿ ਅਬਿਨਾਸੀ ਤੁਮਰੈ ਸੰਗਿ ॥
हरि अबिनासी तुमरै संगि ॥
अनश्वर ईश्वर तेरे साथ है।

ਮਨ ਮੇਰੇ ਰਚੁ ਰਾਮ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥੪॥
मन मेरे रचु राम कै रंगि ॥४॥
हे मेरे मन ! तू राम के प्रेम में लीन हो जा॥ ४॥

ਜਾ ਕੈ ਕਾਮਿ ਉਤਰੈ ਸਭ ਭੂਖ ॥
जा कै कामि उतरै सभ भूख ॥
जिसकी सेवा करने से सारी भूख दूर हो जाती है।

ਜਾ ਕੈ ਕਾਮਿ ਨ ਜੋਹਹਿ ਦੂਤ ॥
जा कै कामि न जोहहि दूत ॥
जिसकी सेवा-भक्ति में यमदूत नहीं देखते।

ਜਾ ਕੈ ਕਾਮਿ ਤੇਰਾ ਵਡ ਗਮਰੁ ॥
जा कै कामि तेरा वड गमरु ॥
जिसकी सेवा करने से तुम महान उच्चपद प्राप्त कर लोगे ।

ਜਾ ਕੈ ਕਾਮਿ ਹੋਵਹਿ ਤੂੰ ਅਮਰੁ ॥੫॥
जा कै कामि होवहि तूं अमरु ॥५॥
जिसकी सेवा से तुम अमर हो जाओगे ॥ ५॥

ਜਾ ਕੇ ਚਾਕਰ ਕਉ ਨਹੀ ਡਾਨ ॥
जा के चाकर कउ नही डान ॥
जिसके सेवक को दण्ड नहीं मिलता,

ਜਾ ਕੇ ਚਾਕਰ ਕਉ ਨਹੀ ਬਾਨ ॥
जा के चाकर कउ नही बान ॥
जिसका सेवक किसी बन्धन में नहीं पड़ता।

ਜਾ ਕੈ ਦਫਤਰਿ ਪੁਛੈ ਨ ਲੇਖਾ ॥
जा कै दफतरि पुछै न लेखा ॥
जिसके दरबार में उससे लेखा-जोखा नहीं माँगा जाता।

ਤਾ ਕੀ ਚਾਕਰੀ ਕਰਹੁ ਬਿਸੇਖਾ ॥੬॥
ता की चाकरी करहु बिसेखा ॥६॥
हे मनुष्य ! उसकी सेवा-भक्ति तू भली भांति कर॥ ६॥

ਜਾ ਕੈ ਊਨ ਨਾਹੀ ਕਾਹੂ ਬਾਤ ॥ 
जा कै ऊन नाही काहू बात ॥
जिसके घर में किसी वस्तु की कमी नहीं।

ਏਕਹਿ ਆਪਿ ਅਨੇਕਹਿ ਭਾਤਿ ॥
एकहि आपि अनेकहि भाति ॥
अनेकों स्वरूपों में दिखने के बावजूद ईश्वर स्वयं केवल एक ही है।

ਜਾ ਕੀ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਹੋਇ ਸਦਾ ਨਿਹਾਲ ॥
जा की द्रिसटि होइ सदा निहाल ॥
जिसकी कृपा-दृष्टि से तुम सदा प्रसन्न रहोगे।

ਮਨ ਮੇਰੇ ਕਰਿ ਤਾ ਕੀ ਘਾਲ ॥੭॥
मन मेरे करि ता की घाल ॥७॥
हे मेरे मन ! तू उसकी सेवा-भक्ति करता रह॥ ७॥

ਨਾ ਕੋ ਚਤੁਰੁ ਨਾਹੀ ਕੋ ਮੂੜਾ ॥
ना को चतुरु नाही को मूड़ा ॥
अपने आप न कोई बुद्धिमान है और न ही कोई मूर्ख है।

ਨਾ ਕੋ ਹੀਣੁ ਨਾਹੀ ਕੋ ਸੂਰਾ ॥
ना को हीणु नाही को सूरा ॥
अपने आप न कोई कायर है और न ही शूरवीर।

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