Hindi Page 980

ਨਟ ਮਹਲਾ ੫ ॥
नट महला ५ ॥
नट महला ५॥

ਹਉ ਵਾਰਿ ਵਾਰਿ ਜਾਉ ਗੁਰ ਗੋਪਾਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ वारि वारि जाउ गुर गोपाल ॥१॥ रहाउ ॥
हे परम-परमेश्वर ! मैं तुझ पर बार-बार बलिहारी जाता हूँ॥ १॥ रहाउ॥

ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਨ ਤੁਮ ਪੂਰਨ ਦਾਤੇ ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਦਇਆਲ ॥੧॥
मोहि निरगुन तुम पूरन दाते दीना नाथ दइआल ॥१॥
हे दीनानाथ, हे दया के सागर ! मैं तो गुणविहीन हूँ, पर तू पूर्ण दाता है॥ १॥

ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਸੋਵਤ ਜਾਗਤ ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਧਨ ਮਾਲ ॥੨॥
ऊठत बैठत सोवत जागत जीअ प्रान धन माल ॥२॥
उठते-बैठते, सोते जागते तू ही मेरी आत्मा, प्राण एवं धन-सम्पति है। २॥

ਦਰਸਨ ਪਿਆਸ ਬਹੁਤੁ ਮਨਿ ਮੇਰੈ ਨਾਨਕ ਦਰਸ ਨਿਹਾਲ ॥੩॥੮॥੯॥
दरसन पिआस बहुतु मनि मेरै नानक दरस निहाल ॥३॥८॥९॥
नानक विनती करते हैं कि हे ईश्वर ! मेरे मन में तेरे दर्शन की तीव्र आकांक्षा है, इसलिए दर्शन देकर निहाल कर दो ॥३॥८॥९॥

ਨਟ ਪੜਤਾਲ ਮਹਲਾ ੫
नट पड़ताल महला ५
नट पड़ताल महला ५

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥

ਕੋਊ ਹੈ ਮੇਰੋ ਸਾਜਨੁ ਮੀਤੁ ॥
कोऊ है मेरो साजनु मीतु ॥
क्या कोई मेरा ऐसा सज्जन अथवा शुभचिंतक है,

ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸੁਨਾਵੈ ਨੀਤ ॥
हरि नामु सुनावै नीत ॥
जो मुझे नित्य हरि-नाम सुनाया करे,

ਬਿਨਸੈ ਦੁਖੁ ਬਿਪਰੀਤਿ ॥
बिनसै दुखु बिपरीति ॥
जिससे मेरे विपरीत दुख विनष्ट हो जाएँ और

ਸਭੁ ਅਰਪਉ ਮਨੁ ਤਨੁ ਚੀਤੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सभु अरपउ मनु तनु चीतु ॥१॥ रहाउ ॥
मैं उस शुभचिंतक को अपना तन-मन, चित सबकुछ अर्पण कर दूंगा॥ १॥ रहाउ॥

ਕੋਈ ਵਿਰਲਾ ਆਪਨ ਕੀਤ ॥
कोई विरला आपन कीत ॥
कोई विरला ही प्रभु ने अपना सेवक बनाया है,

ਸੰਗਿ ਚਰਨ ਕਮਲ ਮਨੁ ਸੀਤ ॥
संगि चरन कमल मनु सीत ॥
जिसने उसके चरण-कमल के संग अपना मन जोड़ लिया है।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਹਰਿ ਜਸੁ ਦੀਤ ॥੧॥
करि किरपा हरि जसु दीत ॥१॥
हरि ने कृपा करके उसे यश प्रदान किया है॥ १॥

ਹਰਿ ਭਜਿ ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਜੀਤ ॥
हरि भजि जनमु पदारथु जीत ॥
भगवान का भजन करने से जन्म सफल हो जाता है और

ਕੋਟਿ ਪਤਿਤ ਹੋਹਿ ਪੁਨੀਤ ॥
कोटि पतित होहि पुनीत ॥
करोड़ों पतित भी पावन हो जाते हैं।

ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਬਲਿ ਬਲਿ ਕੀਤ ॥੨॥੧॥੧੦॥੧੯॥
नानक दास बलि बलि कीत ॥२॥१॥१०॥१९॥
दास नानक ने खुद को ईश्वर पर न्योछावर कर दिया है॥ २॥ १॥ १०॥ १९॥

ਨਟ ਅਸਟਪਦੀਆ ਮਹਲਾ ੪
नट असटपदीआ महला ४
नट असटपदीआ महला ४

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥

ਰਾਮ ਮੇਰੇ ਮਨਿ ਤਨਿ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੇ ॥
राम मेरे मनि तनि नामु अधारे ॥
राम नाम ही मेरे मन-तन का आधार है,

ਖਿਨੁ ਪਲੁ ਰਹਿ ਨ ਸਕਉ ਬਿਨੁ ਸੇਵਾ ਮੈ ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
खिनु पलु रहि न सकउ बिनु सेवा मै गुरमति नामु सम्हारे ॥१॥ रहाउ ॥
सेवा किए बिना में क्षण भर के लिए भी नहीं रह सकता, गुरु के उपदेश से मैं नाम-स्मरण में ही लीन रहता हूँ॥ १॥ रहाउ॥

ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਨਿ ਧਿਆਵਹੁ ਮੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰੇ ॥
हरि हरि हरि हरि हरि मनि धिआवहु मै हरि हरि नामु पिआरे ॥
मन में सदैव हरि का ध्यान-मनन करता हूँ और हरि-नाम मुझे प्राणों से भी अति प्रिय है।

ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਭਏ ਪ੍ਰਭ ਠਾਕੁਰ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰੇ ॥੧॥
दीन दइआल भए प्रभ ठाकुर गुर कै सबदि सवारे ॥१॥
प्रभु ने दयालु होकर मुझ दीन को गुरु के शब्द द्वारा संवार दिया है॥ १॥

ਮਧਸੂਦਨ ਜਗਜੀਵਨ ਮਾਧੋ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਅਗਮ ਅਪਾਰੇ ॥
मधसूदन जगजीवन माधो मेरे ठाकुर अगम अपारे ॥
मधुसूदन, जगत् को जीवन देने वाला माधव मेरा मालिक अगम्य-अपार है।

ਇਕ ਬਿਨਉ ਬੇਨਤੀ ਕਰਉ ਗੁਰ ਆਗੈ ਮੈ ਸਾਧੂ ਚਰਨ ਪਖਾਰੇ ॥੨॥
इक बिनउ बेनती करउ गुर आगै मै साधू चरन पखारे ॥२॥
मैं गुरु के समक्ष एक विनती करता हूँ कि मैं साधु-चरणों की सेवा में तल्लीन रहूँ॥ २॥

ਸਹਸ ਨੇਤ੍ਰ ਨੇਤ੍ਰ ਹੈ ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਏਕੋ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਾਰੇ ॥
सहस नेत्र नेत्र है प्रभ कउ प्रभ एको पुरखु निरारे ॥
उस परमात्मा के हजारों नेत्र हैं, पर वह एक ईश्वर सबसे निराला है।

ਸਹਸ ਮੂਰਤਿ ਏਕੋ ਪ੍ਰਭੁ ਠਾਕੁਰੁ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੋ ਗੁਰਮਤਿ ਤਾਰੇ ॥੩॥
सहस मूरति एको प्रभु ठाकुरु प्रभु एको गुरमति तारे ॥३॥
जगत् का मालिक एक प्रभु ही है, जिसके हजारों रूप हैं। वह एक परमेश्वर गुरु के उपदेश द्वारा जीव का उद्धार कर देता है॥ ३॥

ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਦਮੋਦਰੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਉਰਿ ਧਾਰੇ ॥
गुरमति नामु दमोदरु पाइआ हरि हरि नामु उरि धारे ॥
गुरु के उपदेश से दामोदर नाम प्राप्त हो गया है और उसका हरि-हरि नाम अपने ह्रदय में धारण कर लिया है।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਬਨੀ ਅਤਿ ਮੀਠੀ ਜਿਉ ਗੂੰਗਾ ਗਟਕ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ॥੪॥
हरि हरि कथा बनी अति मीठी जिउ गूंगा गटक सम्हारे ॥४॥
मुझे हरि की कथा इतनी मीठी लगी है, जिसका स्वाद व्यक्त नहीं किया जा सकता। जैसे गूंगा पुरुष मधुर पय-पान कर जाता और उसके आनंद को ह्रदय में याद करता है पर बता नहीं सकता॥ ४॥

ਰਸਨਾ ਸਾਦ ਚਖੈ ਭਾਇ ਦੂਜੈ ਅਤਿ ਫੀਕੇ ਲੋਭ ਬਿਕਾਰੇ ॥
रसना साद चखै भाइ दूजै अति फीके लोभ बिकारे ॥
जो रसना द्वैतभाव में अन्य पदार्थों के स्वाद चखती है, वे तो लोभ एवं विकार मात्र बहुत फीके हैं।

ਜੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਦ ਚਖਹਿ ਰਾਮ ਨਾਮਾ ਸਭ ਅਨ ਰਸ ਸਾਦ ਬਿਸਾਰੇ ॥੫॥
जो गुरमुखि साद चखहि राम नामा सभ अन रस साद बिसारे ॥५॥
जो गुरु के माध्यम से राम-नाम का स्वाद चखता है, उसे अन्य सभी रस एवं स्वाद भूल जाते हैं।॥ ५॥

ਗੁਰਮਤਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਪਾਇਆ ਸੁਣਿ ਕਹਤਿਆ ਪਾਪ ਨਿਵਾਰੇ ॥
गुरमति राम नामु धनु पाइआ सुणि कहतिआ पाप निवारे ॥
गुरु के उपदेश द्वारा राम-नाम रूपी धन पा लिया है, जिसे सुनने एवं जपने से पाप मिट जाते हैं।

ਧਰਮ ਰਾਇ ਜਮੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਕੇ ਜਨ ਪਿਆਰੇ ॥੬॥
धरम राइ जमु नेड़ि न आवै मेरे ठाकुर के जन पिआरे ॥६॥
मेरे ठाकुर जी के प्रिय भक्तजनों के निकट धर्मराज के यमदूत भी आने का साहस नहीं करते॥ ६॥

ਸਾਸ ਸਾਸ ਸਾਸ ਹੈ ਜੇਤੇ ਮੈ ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ॥
सास सास सास है जेते मै गुरमति नामु सम्हारे ॥
मेरी जितनी भी जीवन-साँस है, मैं गुरु-मतानुसार उन साँसों से नाम-स्मरण करता रहता हूँ।

ਸਾਸੁ ਸਾਸੁ ਜਾਇ ਨਾਮੈ ਬਿਨੁ ਸੋ ਬਿਰਥਾ ਸਾਸੁ ਬਿਕਾਰੇ ॥੭॥
सासु सासु जाइ नामै बिनु सो बिरथा सासु बिकारे ॥७॥
जो जीवन-साँस नाम-स्मरण के बिना व्यतीत हो जाती है, वह साँस व्यर्थ ही बेकार हो जाती है।॥ ७॥

ਕ੍ਰਿਪਾ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਦੀਨ ਪ੍ਰਭ ਸਰਨੀ ਮੋ ਕਉ ਹਰਿ ਜਨ ਮੇਲਿ ਪਿਆਰੇ ॥
क्रिपा क्रिपा करि दीन प्रभ सरनी मो कउ हरि जन मेलि पिआरे ॥
हे प्रभु ! मैं दीन तेरी शरण में आया हूँ, कृपा करके मुझे अपने प्रिय भक्तजनों से मिला दो।

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