ਪਰ ਧਨ ਪਰ ਨਾਰੀ ਰਤੁ ਨਿੰਦਾ ਬਿਖੁ ਖਾਈ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
पर धन पर नारी रतु निंदा बिखु खाई दुखु पाइआ ॥
वह पराए धन, पराई नारी में लीन रहकर निंदा का जहर खाते हुए दुख ही पाता है।
ਸਬਦੁ ਚੀਨਿ ਭੈ ਕਪਟ ਨ ਛੂਟੇ ਮਨਿ ਮੁਖਿ ਮਾਇਆ ਮਾਇਆ ॥
सबदु चीनि भै कपट न छूटे मनि मुखि माइआ माइआ ॥
शब्द को जानकर उसका भय एवं कपट नहीं छूटता और मन एवं मुँह से घन-दौलत की ही लालसा करता है।
ਅਜਗਰਿ ਭਾਰਿ ਲਦੇ ਅਤਿ ਭਾਰੀ ਮਰਿ ਜਨਮੇ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥੧॥
अजगरि भारि लदे अति भारी मरि जनमे जनमु गवाइआ ॥१॥
ऐसा स्वेच्छाचारी पापों का भारी बोझ लादकर कष्ट भोगता है और जन्म-मरण में जीवन व्यर्थ गंवा देता है॥१॥
ਮਨਿ ਭਾਵੈ ਸਬਦੁ ਸੁਹਾਇਆ ॥
मनि भावै सबदु सुहाइआ ॥
जिसके मन को शब्द गुरु अच्छा लगता है, वही सुन्दर है।
ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿ ਜੋਨਿ ਭੇਖ ਬਹੁ ਕੀਨੑੇ ਗੁਰਿ ਰਾਖੇ ਸਚੁ ਪਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भ्रमि भ्रमि जोनि भेख बहु कीन्हे गुरि राखे सचु पाइआ ॥१॥ रहाउ ॥
कोई भटक-भटक कर योनि-चक्र में बहुत वेष धारण करता है, पर जिसे गुरु बचा लेता है, वही सत्य को पाता है॥१॥रहाउ॥
ਤੀਰਥਿ ਤੇਜੁ ਨਿਵਾਰਿ ਨ ਨੑਾਤੇ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਨ ਭਾਇਆ ॥
तीरथि तेजु निवारि न न्हाते हरि का नामु न भाइआ ॥
मनमति जीव तीर्थ पर भी क्रोध का निवारण कर स्नान नहीं करता और न ही उसे प्रभु का नाम अच्छा लगता है।
ਰਤਨ ਪਦਾਰਥੁ ਪਰਹਰਿ ਤਿਆਗਿਆ ਜਤ ਕੋ ਤਤ ਹੀ ਆਇਆ ॥
रतन पदारथु परहरि तिआगिआ जत को तत ही आइआ ॥
वह नाम रूपी रत्न को त्यागकर जैसे खाली हाथ आया था, वैसे ही चला जाता है।
ਬਿਸਟਾ ਕੀਟ ਭਏ ਉਤ ਹੀ ਤੇ ਉਤ ਹੀ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇਆ ॥
बिसटा कीट भए उत ही ते उत ही माहि समाइआ ॥
इसी वजह से विष्ठा का कीड़ा विष्ठा में ही लीन रहता है।
ਅਧਿਕ ਸੁਆਦ ਰੋਗ ਅਧਿਕਾਈ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸਹਜੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥੨॥
अधिक सुआद रोग अधिकाई बिनु गुर सहजु न पाइआ ॥२॥
जीवन के अधिक स्वादों को पाने के कारण अधिक रोग लग जाते हैं और गुरु के बिना शान्ति प्राप्त नहीं होती॥२॥
ਸੇਵਾ ਸੁਰਤਿ ਰਹਸਿ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਿਆਨੁ ਬੀਚਾਰਾ ॥
सेवा सुरति रहसि गुण गावा गुरमुखि गिआनु बीचारा ॥
कोई सेवा में लीन होकर प्रेम से प्रभु के गुण गाता है और गुरु से ज्ञान पा कर सत्य का चिन्तन करता है।
ਖੋਜੀ ਉਪਜੈ ਬਾਦੀ ਬਿਨਸੈ ਹਉ ਬਲਿ ਬਲਿ ਗੁਰ ਕਰਤਾਰਾ ॥
खोजी उपजै बादी बिनसै हउ बलि बलि गुर करतारा ॥
सत्य की खोज करने वाला संसार में यश पाता है और वैर-विरोध करने वाला दुखों में नष्ट हो जाता है। मैं अपने गुरु-परमेश्वर पर कुर्बान जाता हूँ।
ਹਮ ਨੀਚ ਹੋੁਤੇ ਹੀਣਮਤਿ ਝੂਠੇ ਤੂ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰਣਹਾਰਾ ॥
हम नीच होते हीणमति झूठे तू सबदि सवारणहारा ॥
हे प्रभु ! हम नीच, तुच्छ, मंदबुद्धि एवं झूठे हैं और तू उपदेश देकर जीवन संवारने वाला है।
ਆਤਮ ਚੀਨਿ ਤਹਾ ਤੂ ਤਾਰਣ ਸਚੁ ਤਾਰੇ ਤਾਰਣਹਾਰਾ ॥੩॥
आतम चीनि तहा तू तारण सचु तारे तारणहारा ॥३॥
जिधर आत्मज्ञान है, वहां तू है, तू उद्धार करने वाला, मुक्तिदाता है।॥३॥
ਬੈਸਿ ਸੁਥਾਨਿ ਕਹਾਂ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ਕਿਆ ਕਿਆ ਕਥਉ ਅਪਾਰਾ ॥
बैसि सुथानि कहां गुण तेरे किआ किआ कथउ अपारा ॥
मैं संत पुरुषों के पावन स्थान पर बैठकर ही गुणगान करूँ, परन्तु तेरे कौन-कौन से गुण गाऊँ, तू अपरंपार है।
ਅਲਖੁ ਨ ਲਖੀਐ ਅਗਮੁ ਅਜੋਨੀ ਤੂੰ ਨਾਥਾਂ ਨਾਥਣਹਾਰਾ ॥
अलखु न लखीऐ अगमु अजोनी तूं नाथां नाथणहारा ॥
हे प्रभु ! तू अदृष्ट है, तेरे दर्शन नहीं किए जा सकते, तू अगम्य है, जन्म-मरण से रहित है, तू सबका मालिक है, सब जीव तेरे वश में हैं।
ਕਿਸੁ ਪਹਿ ਦੇਖਿ ਕਹਉ ਤੂ ਕੈਸਾ ਸਭਿ ਜਾਚਕ ਤੂ ਦਾਤਾਰਾ ॥
किसु पहि देखि कहउ तू कैसा सभि जाचक तू दातारा ॥
मैं दर्शन करके किसे बताऊँ तू कैसा है, हम सब मांगने वाले हैं, तू देने वाला है।
ਭਗਤਿਹੀਣੁ ਨਾਨਕੁ ਦਰਿ ਦੇਖਹੁ ਇਕੁ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਉਰਿ ਧਾਰਾ ॥੪॥੩॥
भगतिहीणु नानकु दरि देखहु इकु नामु मिलै उरि धारा ॥४॥३॥
नानक का कथन है कि मैं भक्तिविहीन तेरा द्वार देख रहा हूँ, तेरा नाम मिल जाए तो मैं हृदय में धारण कर लूं॥४॥३॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मलार महला १ ॥
मलार महला १ ॥
ਜਿਨਿ ਧਨ ਪਿਰ ਕਾ ਸਾਦੁ ਨ ਜਾਨਿਆ ਸਾ ਬਿਲਖ ਬਦਨ ਕੁਮਲਾਨੀ ॥
जिनि धन पिर का सादु न जानिआ सा बिलख बदन कुमलानी ॥
जिस स्त्री ने अपने पति-प्रभु के प्रेम का स्वाद नहीं लिया, दुख में रोते हुए उसका बदन मुरझा गया है।
ਭਈ ਨਿਰਾਸੀ ਕਰਮ ਕੀ ਫਾਸੀ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਨੀ ॥੧॥
भई निरासी करम की फासी बिनु गुर भरमि भुलानी ॥१॥
कर्मो के बन्धन में फंसी हुई वह निराश हो गई है और गुरु के बिना भ्रम में भटकती है॥१॥
ਬਰਸੁ ਘਨਾ ਮੇਰਾ ਪਿਰੁ ਘਰਿ ਆਇਆ ॥
बरसु घना मेरा पिरु घरि आइआ ॥
हे बादल ! तू बरस, मेरा पति प्रभु घर में आ गया है।
ਬਲਿ ਜਾਵਾਂ ਗੁਰ ਅਪਨੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਆਣਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बलि जावां गुर अपने प्रीतम जिनि हरि प्रभु आणि मिलाइआ ॥१॥ रहाउ ॥
मैं अपने प्रियतम गुरु पर बलिहारी जाती हूँ, जिसने मुझे प्रभु से मिला दिया है॥१॥रहाउ॥
ਨਉਤਨ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਦਾ ਠਾਕੁਰ ਸਿਉ ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤਿ ਸੁਹਾਵੀ ॥
नउतन प्रीति सदा ठाकुर सिउ अनदिनु भगति सुहावी ॥
जिसकी नित्यनवीन प्रीति सदा ठाकुर जी से है, उसकी भक्ति अच्छी लगती है।
ਮੁਕਤਿ ਭਏ ਗੁਰਿ ਦਰਸੁ ਦਿਖਾਇਆ ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਭਗਤਿ ਸੁਭਾਵੀ ॥੨॥
मुकति भए गुरि दरसु दिखाइआ जुगि जुगि भगति सुभावी ॥२॥
गुरु ने भगवान के दर्शन करवाए तो उसकी बन्धनों से मुक्ति हो गई, अतः युग-युग ईश्वर की भक्ति ही शोभायमान है॥२॥
ਹਮ ਥਾਰੇ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਜਗੁ ਤੁਮਰਾ ਤੂ ਮੇਰਾ ਹਉ ਤੇਰਾ ॥
हम थारे त्रिभवण जगु तुमरा तू मेरा हउ तेरा ॥
हे प्रभु ! हम तेरे हैं, तीनों लोक एवं समूचा जगत तुम्हारा है, तू मेरा (मालिक) है और मैं तेरा (सेवक) हूँ।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਨਿਰੰਜਨੁ ਪਾਇਆ ਬਹੁਰਿ ਨ ਭਵਜਲਿ ਫੇਰਾ ॥੩॥
सतिगुरि मिलिऐ निरंजनु पाइआ बहुरि न भवजलि फेरा ॥३॥
सतगुरु से मिलकर परमात्मा प्राप्त हुआ है और अब पुनः संसार-सागर का चक्र नहीं लगेगा॥३॥
ਅਪੁਨੇ ਪਿਰ ਹਰਿ ਦੇਖਿ ਵਿਗਾਸੀ ਤਉ ਧਨ ਸਾਚੁ ਸੀਗਾਰੋ ॥
अपुने पिर हरि देखि विगासी तउ धन साचु सीगारो ॥
अपने पति-प्रभु को देखकर जीव-स्त्री खिल गई है तो ही उसका सच्चा श्रृंगार हुआ है।
ਅਕੁਲ ਨਿਰੰਜਨ ਸਿਉ ਸਚਿ ਸਾਚੀ ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੋ ॥੪॥
अकुल निरंजन सिउ सचि साची गुरमति नामु अधारो ॥४॥
प्रभु के साथ मिलकर वह सत्यशील हो गई है और गुरु की शिक्षा से हरि-नाम ही उसका आसरा बना है ॥४॥
ਮੁਕਤਿ ਭਈ ਬੰਧਨ ਗੁਰਿ ਖੋਲ੍ਹ੍ਹੇ ਸਬਦਿ ਸੁਰਤਿ ਪਤਿ ਪਾਈ ॥
मुकति भई बंधन गुरि खोल्हे सबदि सुरति पति पाई ॥
गुरु ने बन्धन खोल दिए तो मुक्ति प्राप्त हो गई और शब्द-गुरु से प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है।
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਈ ॥੫॥੪॥
नानक राम नामु रिद अंतरि गुरमुखि मेलि मिलाई ॥५॥४॥
हे नानक ! राम नाम हृदय में धारण किया तो गुरु ने उसे ईश्वर से मिला दिया॥५॥४॥
ਮਹਲਾ ੧ ਮਲਾਰ ॥
महला १ मलार ॥
महला १ मलार ॥
ਪਰ ਦਾਰਾ ਪਰ ਧਨੁ ਪਰ ਲੋਭਾ ਹਉਮੈ ਬਿਖੈ ਬਿਕਾਰ ॥
पर दारा पर धनु पर लोभा हउमै बिखै बिकार ॥
हे मनुष्य ! पराई नारी, पराया धन, लोभ, अहंकार इत्यादि विषय-विकारों को छोड़ दो।
ਦੁਸਟ ਭਾਉ ਤਜਿ ਨਿੰਦ ਪਰਾਈ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਚੰਡਾਰ ॥੧॥
दुसट भाउ तजि निंद पराई कामु क्रोधु चंडार ॥१॥
दुष्ट स्वभाव, पराई निंदा, काम, क्रोध जैसे चाण्डाल को त्याग दो॥१॥
ਮਹਲ ਮਹਿ ਬੈਠੇ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ॥
महल महि बैठे अगम अपार ॥
शरीर रूपी महल में ही ईश्वर व्याप्त है,
ਭੀਤਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸੋਈ ਜਨੁ ਪਾਵੈ ਜਿਸੁ ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਰਤਨੁ ਆਚਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भीतरि अम्रितु सोई जनु पावै जिसु गुर का सबदु रतनु आचार ॥१॥ रहाउ ॥
पर इस में से अमृत वही व्यक्ति पाता है, जो गुरु के उपदेश रूपी रत्न के जीवन-आचरण अपनाता है॥१॥रहाउ॥