ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਿ ਮਿਲਿਆ ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਜੋਗੋ ॥੩੪॥
कहै नानकु प्रभु आपि मिलिआ करण कारण जोगो ॥३४॥
नानक कहते हैं कि सब करने-करवाने में समर्थ प्रभु स्वयं ही आ मिला है॥ ३४॥
ਏ ਸਰੀਰਾ ਮੇਰਿਆ ਇਸੁ ਜਗ ਮਹਿ ਆਇ ਕੈ ਕਿਆ ਤੁਧੁ ਕਰਮ ਕਮਾਇਆ ॥
ए सरीरा मेरिआ इसु जग महि आइ कै किआ तुधु करम कमाइआ ॥
हे मेरे शरीर ! इस जगत् में आकर तूने कौन-सा शुभ कर्म किया है ?
ਕਿ ਕਰਮ ਕਮਾਇਆ ਤੁਧੁ ਸਰੀਰਾ ਜਾ ਤੂ ਜਗ ਮਹਿ ਆਇਆ ॥
कि करम कमाइआ तुधु सरीरा जा तू जग महि आइआ ॥
हे शरीर ! इस जगत् में आकर तूने क्या कर्म किया है ?
ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਤੇਰਾ ਰਚਨੁ ਰਚਿਆ ਸੋ ਹਰਿ ਮਨਿ ਨ ਵਸਾਇਆ ॥
जिनि हरि तेरा रचनु रचिआ सो हरि मनि न वसाइआ ॥
जिस परमात्मा ने तेरी रचना की है, उसे तो मन में ही नहीं बसाया।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਮੰਨਿ ਵਸਿਆ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਪਾਇਆ ॥
गुर परसादी हरि मंनि वसिआ पूरबि लिखिआ पाइआ ॥
गुरु की कृपा से ईश्वर उसके मन में ही बसा है, पूर्व कर्मों के कारण जिसे यह फल प्राप्त हुआ है।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਏਹੁ ਸਰੀਰੁ ਪਰਵਾਣੁ ਹੋਆ ਜਿਨਿ ਸਤਿਗੁਰ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ॥੩੫॥
कहै नानकु एहु सरीरु परवाणु होआ जिनि सतिगुर सिउ चितु लाइआ ॥३५॥
नानक कहते हैं कि जिसने सतगुरु में चित्त लगाया है, उसका यह शरीर सफल हो गया है ॥ ३५ ॥
ਏ ਨੇਤ੍ਰਹੁ ਮੇਰਿਹੋ ਹਰਿ ਤੁਮ ਮਹਿ ਜੋਤਿ ਧਰੀ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਦੇਖਹੁ ਕੋਈ ॥
ए नेत्रहु मेरिहो हरि तुम महि जोति धरी हरि बिनु अवरु न देखहु कोई ॥
हे मेरे नेत्रो ! परमात्मा ने तुझ में ज्योति स्थापित की है, इसलिए उसके अतिरिक्त किसी अन्य को मत देखो।
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਦੇਖਹੁ ਕੋਈ ਨਦਰੀ ਹਰਿ ਨਿਹਾਲਿਆ ॥
हरि बिनु अवरु न देखहु कोई नदरी हरि निहालिआ ॥
प्रभु के अलावा किसी अन्य को मत देखो, क्योंकि उसकी कृपा से ही तुझे दृष्टि मिली है।
ਏਹੁ ਵਿਸੁ ਸੰਸਾਰੁ ਤੁਮ ਦੇਖਦੇ ਏਹੁ ਹਰਿ ਕਾ ਰੂਪੁ ਹੈ ਹਰਿ ਰੂਪੁ ਨਦਰੀ ਆਇਆ ॥
एहु विसु संसारु तुम देखदे एहु हरि का रूपु है हरि रूपु नदरी आइआ ॥
यह जो विश्व-संसार तुम देख रहे हो, यह परमात्मा का रूप है और परमात्मा का ही रूप नजर आ रहा है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਬੁਝਿਆ ਜਾ ਵੇਖਾ ਹਰਿ ਇਕੁ ਹੈ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
गुर परसादी बुझिआ जा वेखा हरि इकु है हरि बिनु अवरु न कोई ॥
गुरु की कृपा से यह रहस्य समझ में आ गया है, जिधर भी देखता हूँ, एक ईश्वर ही दिखाई देता है और उसके अलावा अन्य कोई नहीं है।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਏਹਿ ਨੇਤ੍ਰ ਅੰਧ ਸੇ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਦਿਬ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਹੋਈ ॥੩੬॥
कहै नानकु एहि नेत्र अंध से सतिगुरि मिलिऐ दिब द्रिसटि होई ॥३६॥
नानक कहते हैं कि यह नेत्र पहले अन्धे थे परन्तु सतगुरु को मिलकर दिव्य-दृष्टि प्राप्त हो गई है॥ ३६॥
ਏ ਸ੍ਰਵਣਹੁ ਮੇਰਿਹੋ ਸਾਚੈ ਸੁਨਣੈ ਨੋ ਪਠਾਏ ॥
ए स्रवणहु मेरिहो साचै सुनणै नो पठाए ॥
हे मेरे कानो ! परमात्मा ने तुम्हें जगत् में सत्य सुनने के लिए भेजा है।
ਸਾਚੈ ਸੁਨਣੈ ਨੋ ਪਠਾਏ ਸਰੀਰਿ ਲਾਏ ਸੁਣਹੁ ਸਤਿ ਬਾਣੀ ॥
साचै सुनणै नो पठाए सरीरि लाए सुणहु सति बाणी ॥
सत्य सुनने के लिए प्रभु ने शरीर के साथ लगाकर दुनिया में भेजा है इसलिए सत्य की वाणी सुनो,
ਜਿਤੁ ਸੁਣੀ ਮਨੁ ਤਨੁ ਹਰਿਆ ਹੋਆ ਰਸਨਾ ਰਸਿ ਸਮਾਣੀ ॥
जितु सुणी मनु तनु हरिआ होआ रसना रसि समाणी ॥
जिसे सुनने से मन-तन प्रफुल्लित हो जाता है और रसना हरि-रस में विलीन हो जाती है।
ਸਚੁ ਅਲਖ ਵਿਡਾਣੀ ਤਾ ਕੀ ਗਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਏ ॥
सचु अलख विडाणी ता की गति कही न जाए ॥
उस परम सत्य, अलक्ष्य एवं अद्भुत प्रभु की विचित्र गति अकथनीय है।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਸੁਣਹੁ ਪਵਿਤ੍ਰ ਹੋਵਹੁ ਸਾਚੈ ਸੁਨਣੈ ਨੋ ਪਠਾਏ ॥੩੭॥
कहै नानकु अम्रित नामु सुणहु पवित्र होवहु साचै सुनणै नो पठाए ॥३७॥
नानक कहते हैं कि नामामृत को सुनो एवं पवित्र हो जाओ, परमेश्वर ने तुम्हें सत्य सुनने के लिए जगत् में भेजा है॥ ३७॥
ਹਰਿ ਜੀਉ ਗੁਫਾ ਅੰਦਰਿ ਰਖਿ ਕੈ ਵਾਜਾ ਪਵਣੁ ਵਜਾਇਆ ॥
हरि जीउ गुफा अंदरि रखि कै वाजा पवणु वजाइआ ॥
परमेश्वर ने आत्मा को शरीर रूपी गुफा में रखकर प्राणों का बाजा बजाया है।
ਵਜਾਇਆ ਵਾਜਾ ਪਉਣ ਨਉ ਦੁਆਰੇ ਪਰਗਟੁ ਕੀਏ ਦਸਵਾ ਗੁਪਤੁ ਰਖਾਇਆ ॥
वजाइआ वाजा पउण नउ दुआरे परगटु कीए दसवा गुपतु रखाइआ ॥
उसने प्राणों का बाजा बजाया अर्थात् जीवन साँसों का संचार किया, शरीर रूपी गुफा के नौ द्वार-आँखें, कान, मुंह, नाक इत्यादि प्रगट किए और दसम द्वार को गुप्त रखा हुआ है।
ਗੁਰਦੁਆਰੈ ਲਾਇ ਭਾਵਨੀ ਇਕਨਾ ਦਸਵਾ ਦੁਆਰੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥
गुरदुआरै लाइ भावनी इकना दसवा दुआरु दिखाइआ ॥
उसने गुरु में श्रद्धा लगाकर दसम द्वार दिखा दिया है।
ਤਹ ਅਨੇਕ ਰੂਪ ਨਾਉ ਨਵ ਨਿਧਿ ਤਿਸ ਦਾ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਈ ਪਾਇਆ ॥
तह अनेक रूप नाउ नव निधि तिस दा अंतु न जाई पाइआ ॥
वहाँ दसम द्वार में अनेक रूप एवं नौ निधियों वाले नाम का निवास है, जिसका रहस्य नहीं पाया जा सकता।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਹਰਿ ਪਿਆਰੈ ਜੀਉ ਗੁਫਾ ਅੰਦਰਿ ਰਖਿ ਕੈ ਵਾਜਾ ਪਵਣੁ ਵਜਾਇਆ ॥੩੮॥
कहै नानकु हरि पिआरै जीउ गुफा अंदरि रखि कै वाजा पवणु वजाइआ ॥३८॥
नानक कहते हैं कि प्यारे प्रभु ने आत्मा को शरीर रूपी गुफा में स्थित कर प्राणों का संचार किया है॥ ३८ ॥
ਏਹੁ ਸਾਚਾ ਸੋਹਿਲਾ ਸਾਚੈ ਘਰਿ ਗਾਵਹੁ ॥
एहु साचा सोहिला साचै घरि गावहु ॥
परमात्मा का यह सच्चा कीर्तन सच्चे घर (सत्संगति) में बैठकर गान करो।
ਗਾਵਹੁ ਤ ਸੋਹਿਲਾ ਘਰਿ ਸਾਚੈ ਜਿਥੈ ਸਦਾ ਸਚੁ ਧਿਆਵਹੇ ॥
गावहु त सोहिला घरि साचै जिथै सदा सचु धिआवहे ॥
उस सच्चे घर (सत्संगति) में बैठकर सच्चा कीर्तिगान करो, जहाँ सदैव सत्य का ध्यान किया जाता है।
ਸਚੋ ਧਿਆਵਹਿ ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵਹਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਿਨਾ ਬੁਝਾਵਹੇ ॥
सचो धिआवहि जा तुधु भावहि गुरमुखि जिना बुझावहे ॥
हे ईश्वर ! जो तुझे भाते हैं और जिन गुरुमुखों को ज्ञान हो जाता है, वही परम-सत्य का ध्यान करते हैं।
ਇਹੁ ਸਚੁ ਸਭਨਾ ਕਾ ਖਸਮੁ ਹੈ ਜਿਸੁ ਬਖਸੇ ਸੋ ਜਨੁ ਪਾਵਹੇ ॥
इहु सचु सभना का खसमु है जिसु बखसे सो जनु पावहे ॥
यह परम सत्य सबका मालिक है, सत्य उसे ही प्राप्त होता है, जिसे वह स्वयं प्रदान करता है।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸਚੁ ਸੋਹਿਲਾ ਸਚੈ ਘਰਿ ਗਾਵਹੇ ॥੩੯॥
कहै नानकु सचु सोहिला सचै घरि गावहे ॥३९॥
नानक कहते हैं कि सच्चे घर (सत्संगति) में बैठकर परम-सत्य का कीर्तिगान करते रहो ॥ ३६ ॥
ਅਨਦੁ ਸੁਣਹੁ ਵਡਭਾਗੀਹੋ ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰੇ ॥
अनदु सुणहु वडभागीहो सगल मनोरथ पूरे ॥
हे भाग्यशालियो ! आप श्रद्धा से आनंद वाणी को सुनो, इसे सुनने से सब मनोरथ पूरे हो जाते हैं।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਉਤਰੇ ਸਗਲ ਵਿਸੂਰੇ ॥
पारब्रहमु प्रभु पाइआ उतरे सगल विसूरे ॥
जिसने परब्रह्म प्रभु को पा लिया है, उसके सभी दुख-दर्द दूर हो गए हैं।
ਦੂਖ ਰੋਗ ਸੰਤਾਪ ਉਤਰੇ ਸੁਣੀ ਸਚੀ ਬਾਣੀ ॥
दूख रोग संताप उतरे सुणी सची बाणी ॥
जिसने सच्ची वाणी सुनी है, उसके सब दुख रोग एवं संताप उतर गए हैं।
ਸੰਤ ਸਾਜਨ ਭਏ ਸਰਸੇ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਜਾਣੀ ॥
संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी ॥
जिन्होंने पूर्ण गुरु से इस वाणी को जान लिया है, वे सभी सज्जन संत प्रसन्न हो गए हैं।
ਸੁਣਤੇ ਪੁਨੀਤ ਕਹਤੇ ਪਵਿਤੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ॥
सुणते पुनीत कहते पवितु सतिगुरु रहिआ भरपूरे ॥
इस वाणी को सुनने वाले पावन हो जाते हैं और इसे जपने वाले भी पवित्र हो जाते हैं। सतगुरु अपनी वाणी में व्यापक है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕੁ ਗੁਰ ਚਰਣ ਲਾਗੇ ਵਾਜੇ ਅਨਹਦ ਤੂਰੇ ॥੪੦॥੧॥
बिनवंति नानकु गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥४०॥१॥
नानक विनती करते हैं कि गुरु के चरणों में लगने से मन में अनहद ध्वनियों वाले बाजे बज रहे हैं।॥ ४०॥ १॥