ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੪ ਪੜਤਾਲ ॥
सारग महला ४ पड़ताल ॥
सारग महला ४ पड़ताल ॥
ਜਪਿ ਮਨ ਗੋਵਿੰਦੁ ਹਰਿ ਗੋਵਿੰਦੁ ਗੁਣੀ ਨਿਧਾਨੁ ਸਭ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਕਾ ਪ੍ਰਭੋ ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਬੋਲਿ ਹਰਿ ਪੁਰਖੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जपि मन गोविंदु हरि गोविंदु गुणी निधानु सभ स्रिसटि का प्रभो मेरे मन हरि बोलि हरि पुरखु अबिनासी ॥१॥ रहाउ ॥
हे मन ! गोविंद का भजन कर, वह गुणों का भण्डार है, सम्पूर्ण सृष्टि का मालिक है, वह परमपुरुष अनश्वरं है, अतः उसका नामोच्चारण कर ॥१॥रहाउ॥।
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰੇ ਸੋ ਪੀਐ ਜਿਸੁ ਰਾਮੁ ਪਿਆਸੀ ॥
हरि का नामु अम्रितु हरि हरि हरे सो पीऐ जिसु रामु पिआसी ॥
परमात्मा का नाम अमृतमय है, वही इसका पान करता है, जिसे ईश्वर स्वयं पिलाता है।
ਹਰਿ ਆਪਿ ਦਇਆਲੁ ਦਇਆ ਕਰਿ ਮੇਲੈ ਜਿਸੁ ਸਤਿਗੁਰੂ ਸੋ ਜਨੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਚਖਾਸੀ ॥੧॥
हरि आपि दइआलु दइआ करि मेलै जिसु सतिगुरू सो जनु हरि हरि अम्रित नामु चखासी ॥१॥
दयालु परमेश्वर दया करके जिसका सतगुरु से साक्षात्कार करवा देता है, वही जिज्ञासु हरिनामामृत चखता है॥१॥
ਜੋ ਜਨ ਸੇਵਹਿ ਸਦ ਸਦਾ ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਹਰੇ ਤਿਨ ਕਾ ਸਭੁ ਦੂਖੁ ਭਰਮੁ ਭਉ ਜਾਸੀ ॥
जो जन सेवहि सद सदा मेरा हरि हरे तिन का सभु दूखु भरमु भउ जासी ॥
जो भक्त सदा मेरे हरि की उपासना करते हैं, उनका दुख, भ्रम एवं भय सब दूर हो जाता है।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਨਾਮੁ ਲਏ ਤਾਂ ਜੀਵੈ ਜਿਉ ਚਾਤ੍ਰਿਕੁ ਜਲਿ ਪੀਐ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸੀ ॥੨॥੫॥੧੨॥
जनु नानकु नामु लए तां जीवै जिउ चात्रिकु जलि पीऐ त्रिपतासी ॥२॥५॥१२॥
नानक प्रभु का नाम जपकर जीवन पाता है, ज्यों चातक स्वाति बूंद पाकर तृप्त होता है॥२॥५॥१२॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੪ ॥
सारग महला ४ ॥
सारग महला ४ ॥
ਜਪਿ ਮਨ ਸਿਰੀ ਰਾਮੁ ॥ ਰਾਮ ਰਮਤ ਰਾਮੁ ॥ ਸਤਿ ਸਤਿ ਰਾਮੁ ॥
जपि मन सिरी रामु ॥ राम रमत रामु ॥ सति सति रामु ॥
हे मन ! श्री राम का जाप कर लो,” सम्पूर्ण सृष्टि में ‘राम राम’ बसा हुआ है। राम सदा सत्य है, शाश्वत स्वरूप है।
ਬੋਲਹੁ ਭਈਆ ਸਦ ਰਾਮ ਰਾਮੁ ਰਾਮੁ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਰਬਗੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बोलहु भईआ सद राम रामु रामु रवि रहिआ सरबगे ॥१॥ रहाउ ॥
हे भाई ! सदैव राम राम बोलो, वह सर्वव्यापक है॥१॥रहाउ॥।
ਰਾਮੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਆਪੇ ਸਭੁ ਕਰਤਾ ਰਾਮੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਆਪਿ ਸਭਤੁ ਜਗੇ ॥
रामु आपे आपि आपे सभु करता रामु आपे आपि आपि सभतु जगे ॥
केवल राम ही सम्पूर्ण विश्व का नियंता है, सर्वशक्तिमान है, सृष्टि का कर्ता है, विश्व के कण-कण में केवल राम ही व्याप्त है।
ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਮੇਰਾ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਇ ਸੋ ਜਨੁ ਰਾਮ ਨਾਮ ਲਿਵ ਲਾਗੇ ॥੧॥
जिसु आपि क्रिपा करे मेरा राम राम राम राइ सो जनु राम नाम लिव लागे ॥१॥
जिस पर मेरा राम कृपा करता है, वही भक्त राम नाम की भक्ति में लगन लगाता है॥१॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਕੀ ਉਪਮਾ ਦੇਖਹੁ ਹਰਿ ਸੰਤਹੁ ਜੋ ਭਗਤ ਜਨਾਂ ਕੀ ਪਤਿ ਰਾਖੈ ਵਿਚਿ ਕਲਿਜੁਗ ਅਗੇ ॥
राम नाम की उपमा देखहु हरि संतहु जो भगत जनां की पति राखै विचि कलिजुग अगे ॥
हे सज्जनो ! राम नाम की कीर्ति देखो ! जो घोर कलियुग में भी भक्तजनों की प्रतिष्ठा बचाता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਾ ਅੰਗੁ ਕੀਆ ਮੇਰੈ ਰਾਮ ਰਾਇ ਦੁਸਮਨ ਦੂਖ ਗਏ ਸਭਿ ਭਗੇ ॥੨॥੬॥੧੩॥
जन नानक का अंगु कीआ मेरै राम राइ दुसमन दूख गए सभि भगे ॥२॥६॥१३॥
नानक का कथन है कि मेरे राम ने दास (नानक) का साथ दिया है, जिससे सभी दुश्मन एवं दुख भाग गए हैं।॥२॥६॥ १३ ॥
ਸਾਰੰਗ ਮਹਲਾ ੫ ਚਉਪਦੇ ਘਰੁ ੧
सारंग महला ५ चउपदे घरु १
सारंग महला ५ चउपदे घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਮੂਰਤਿ ਕਉ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥
सतिगुर मूरति कउ बलि जाउ ॥
मैं प्रेम की मूर्ति सतगुरु पर बलिहारी जाता हूँ।
ਅੰਤਰਿ ਪਿਆਸ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਜਿਉ ਜਲ ਕੀ ਸਫਲ ਦਰਸਨੁ ਕਦਿ ਪਾਂਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अंतरि पिआस चात्रिक जिउ जल की सफल दरसनु कदि पांउ ॥१॥ रहाउ ॥
ज्यों चातक को स्वाति जल की प्यास होती है, वैसे ही मेरे अन्तर्मन में गुरु दर्शन की तीव्र लालसा है, कब दर्शन पाऊँगा ॥१॥रहाउ॥।
ਅਨਾਥਾ ਕੋ ਨਾਥੁ ਸਰਬ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਕੁ ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥
अनाथा को नाथु सरब प्रतिपालकु भगति वछलु हरि नाउ ॥
परमात्मा भक्तवत्सल है, बेसहारों का सहारा है, सबका पोषक है।
ਜਾ ਕਉ ਕੋਇ ਨ ਰਾਖੈ ਪ੍ਰਾਣੀ ਤਿਸੁ ਤੂ ਦੇਹਿ ਅਸਰਾਉ ॥੧॥
जा कउ कोइ न राखै प्राणी तिसु तू देहि असराउ ॥१॥
जिस प्राणी को कोई शरण नहीं देता है, उसे तू ही आसरा देता है॥१॥
ਨਿਧਰਿਆ ਧਰ ਨਿਗਤਿਆ ਗਤਿ ਨਿਥਾਵਿਆ ਤੂ ਥਾਉ ॥
निधरिआ धर निगतिआ गति निथाविआ तू थाउ ॥
हे परमेश्वर ! तू ही बेसहारा लोगों का सहारा है, निर्बल गरीब व्यक्तियों का तू ही बल है और बेघर लोगों का तू ही घर है।
ਦਹ ਦਿਸ ਜਾਂਉ ਤਹਾਂ ਤੂ ਸੰਗੇ ਤੇਰੀ ਕੀਰਤਿ ਕਰਮ ਕਮਾਉ ॥੨॥
दह दिस जांउ तहां तू संगे तेरी कीरति करम कमाउ ॥२॥
दसों दिशाओं में जिधर भी जाता हूँ, वहां तू ही साथ देता है और सदा तेरा कीर्तिगान करता हूँ॥२॥
ਏਕਸੁ ਤੇ ਲਾਖ ਲਾਖ ਤੇ ਏਕਾ ਤੇਰੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਕਹਿ ਨ ਸਕਾਉ ॥
एकसु ते लाख लाख ते एका तेरी गति मिति कहि न सकाउ ॥
एक से ही तू लाखों हो जाता है और लाखों से ही एक हो जाता है, तेरी शक्ति एवं महत्ता का मैं वर्णन नहीं कर सकता।
ਤੂ ਬੇਅੰਤੁ ਤੇਰੀ ਮਿਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈਐ ਸਭੁ ਤੇਰੋ ਖੇਲੁ ਦਿਖਾਉ ॥੩॥
तू बेअंतु तेरी मिति नही पाईऐ सभु तेरो खेलु दिखाउ ॥३॥
तू बे-अन्त है, तेरा रहस्य नहीं पाया जा सकता और दृष्टिमान समूचा विश्व-प्रसार तेरी लीला है॥३॥
ਸਾਧਨ ਕਾ ਸੰਗੁ ਸਾਧ ਸਿਉ ਗੋਸਟਿ ਹਰਿ ਸਾਧਨ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਉ ॥
साधन का संगु साध सिउ गोसटि हरि साधन सिउ लिव लाउ ॥
साधु सज्जनों की संगत, साधुओं से गोष्ठी एवं साधु पुरुषों के संग प्रभु से प्रेम बना हुआ है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਪਾਇਆ ਹੈ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਦੇਹੁ ਦਰਸੁ ਮਨਿ ਚਾਉ ॥੪॥੧॥
जन नानक पाइआ है गुरमति हरि देहु दरसु मनि चाउ ॥४॥१॥
नानक की विनती है कि गुरु से उपदेश पाया है, हे प्रभु! दर्शन दो, मन में यही चाव है॥४॥१॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਹਰਿ ਜੀਉ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਜਾਨ ॥
हरि जीउ अंतरजामी जान ॥
ईश्वर अन्तर्यामी है, मन की हर भावना को जानने वाला है।
ਕਰਤ ਬੁਰਾਈ ਮਾਨੁਖ ਤੇ ਛਪਾਈ ਸਾਖੀ ਭੂਤ ਪਵਾਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करत बुराई मानुख ते छपाई साखी भूत पवान ॥१॥ रहाउ ॥
बुराई करते हुए मनुष्य लोगों से छिपा सकता है, लेकिन वायु की मानिंद ईश्वर हर जगह पर साक्षी है।॥१॥रहाउ॥।
ਬੈਸਨੌ ਨਾਮੁ ਕਰਤ ਖਟ ਕਰਮਾ ਅੰਤਰਿ ਲੋਭ ਜੂਠਾਨ ॥
बैसनौ नामु करत खट करमा अंतरि लोभ जूठान ॥
कोई मनुष्य अपना नाम वैष्णव बताता है, वह (यज्ञ, अध्यापन, अध्ययन दान इत्यादि) छ: कर्म करता है, फिर भी उसके अन्तर्मन में लोभ की जूठन विद्यमान रहती है।
ਸੰਤ ਸਭਾ ਕੀ ਨਿੰਦਾ ਕਰਤੇ ਡੂਬੇ ਸਭ ਅਗਿਆਨ ॥੧॥
संत सभा की निंदा करते डूबे सभ अगिआन ॥१॥
जो संत सभा की निंदा करते हैं, ऐसे सभी लोग अज्ञान में डूबे रहते हैं।॥१॥