ਸਾਝ ਕਰੀਜੈ ਗੁਣਹ ਕੇਰੀ ਛੋਡਿ ਅਵਗਣ ਚਲੀਐ ॥
साझ करीजै गुणह केरी छोडि अवगण चलीऐ ॥
यदि सज्जनों के साथ मिलकर गुणों की भागीदारी की जाए तो ही अपने अवगुणों को छोड़कर सन्मार्ग पर चला जाता है।
ਪਹਿਰੇ ਪਟੰਬਰ ਕਰਿ ਅਡੰਬਰ ਆਪਣਾ ਪਿੜੁ ਮਲੀਐ ॥
पहिरे पट्मबर करि अड्मबर आपणा पिड़ु मलीऐ ॥
जो व्यक्ति शुभ गुणों को अपना श्रृंगार बनाकर मन के कोमलता रूपी वस्त्र पहनता है, वह कामादिक विकारों को पछाड़ कर जीवन रूपी संग्राम जीत लेता है।
ਜਿਥੈ ਜਾਇ ਬਹੀਐ ਭਲਾ ਕਹੀਐ ਝੋਲਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਜੈ ॥
जिथै जाइ बहीऐ भला कहीऐ झोलि अम्रितु पीजै ॥
ऐसा व्यक्ति जहाँ भी जाकर बैठता है, वह शुभ वचन बोलता है और अवगुणों को छांटकर नाम रूपी अमृत पीता रहता है।
ਗੁਣਾ ਕਾ ਹੋਵੈ ਵਾਸੁਲਾ ਕਢਿ ਵਾਸੁ ਲਈਜੈ ॥੩॥
गुणा का होवै वासुला कढि वासु लईजै ॥३॥
यदि जीव के पास गुण रूपी सुगन्धियों का डिब्बा हो तो उसे गुण रूपी सुगन्धि लेते रहना चाहिए॥ ३॥
ਆਪਿ ਕਰੇ ਕਿਸੁ ਆਖੀਐ ਹੋਰੁ ਕਰੇ ਨ ਕੋਈ ॥
आपि करे किसु आखीऐ होरु करे न कोई ॥
ईश्वर स्वयं ही सबकुछ करता है, फिर उसके सिवा किसे कहा जाए, क्योंकि उसके अलावा अन्य कोई कुछ कर ही नहीं सकता।
ਆਖਣ ਤਾ ਕਉ ਜਾਈਐ ਜੇ ਭੂਲੜਾ ਹੋਈ ॥
आखण ता कउ जाईऐ जे भूलड़ा होई ॥
उसे शिकायत करने तो ही जाएँ, यदि उसने भूल की हो।
ਜੇ ਹੋਇ ਭੂਲਾ ਜਾਇ ਕਹੀਐ ਆਪਿ ਕਰਤਾ ਕਿਉ ਭੁਲੈ ॥
जे होइ भूला जाइ कहीऐ आपि करता किउ भुलै ॥
यदि वह भूला हुआ हो तो ही जाकर शिकायत करने जाएँ। जगत् का रचयिता कोई भूल नहीं करता।
ਸੁਣੇ ਦੇਖੇ ਬਾਝੁ ਕਹਿਐ ਦਾਨੁ ਅਣਮੰਗਿਆ ਦਿਵੈ ॥
सुणे देखे बाझु कहिऐ दानु अणमंगिआ दिवै ॥
वह जीवों की प्रार्थना सुनता एवं उनके किए कार्यों को देखता है।
ਦਾਨੁ ਦੇਇ ਦਾਤਾ ਜਗਿ ਬਿਧਾਤਾ ਨਾਨਕਾ ਸਚੁ ਸੋਈ ॥
दानु देइ दाता जगि बिधाता नानका सचु सोई ॥
वह बिना कहे और बिना मांगे ही जीवों को दान देता रहता है और एक वही सत्य है।
ਆਪਿ ਕਰੇ ਕਿਸੁ ਆਖੀਐ ਹੋਰੁ ਕਰੇ ਨ ਕੋਈ ॥੪॥੧॥੪॥
आपि करे किसु आखीऐ होरु करे न कोई ॥४॥१॥४॥
जब वह स्वयं ही सबकुछ करता है, फिर उसके अलावा किसे कहा जाए, क्योंकि उसके अतिरिक्त अन्य कोई कुछ भी नहीं कर सकता ॥ ४॥ १॥ ४॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सूही महला १ ॥
सूही महला १ ॥
ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ਗੁਣ ਰਵੈ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ਸੋਈ ॥
मेरा मनु राता गुण रवै मनि भावै सोई ॥
प्रभु की भक्ति में लीन मेरा मन उसके ही गुण गाता है और वही मेरे मन को भाता है।
ਗੁਰ ਕੀ ਪਉੜੀ ਸਾਚ ਕੀ ਸਾਚਾ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥
गुर की पउड़ी साच की साचा सुखु होई ॥
गुरु ने मुझे सत्य (नाम) की सीढी दी है, जिससे मुझे सच्चा सुख हासिल होता है।
ਸੁਖਿ ਸਹਜਿ ਆਵੈ ਸਾਚ ਭਾਵੈ ਸਾਚ ਕੀ ਮਤਿ ਕਿਉ ਟਲੈ ॥
सुखि सहजि आवै साच भावै साच की मति किउ टलै ॥
इससे मन को सहज सुख मिलता है, सत्य ही भाता है और सत्य की प्राप्ति वाली बुद्धि कैसे टल सकती है ?
ਇਸਨਾਨੁ ਦਾਨੁ ਸੁਗਿਆਨੁ ਮਜਨੁ ਆਪਿ ਅਛਲਿਓ ਕਿਉ ਛਲੈ ॥
इसनानु दानु सुगिआनु मजनु आपि अछलिओ किउ छलै ॥
स्नान, दान-पुण्य, सुज्ञान एवं तीर्थ-स्नान से उस परमात्मा को कैसे खुश किया जा सकता है, जो स्वयं ही अछल है।
ਪਰਪੰਚ ਮੋਹ ਬਿਕਾਰ ਥਾਕੇ ਕੂੜੁ ਕਪਟੁ ਨ ਦੋਈ ॥
परपंच मोह बिकार थाके कूड़ु कपटु न दोई ॥
मेरे मन में से धोखा, मोह एवं विषय-विकार सब नाश हो गए हैं। अब मेरे मन में झूठ, कपट एवं दुविधा भी नहीं रही।
ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ਗੁਣ ਰਵੈ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ਸੋਈ ॥੧॥
मेरा मनु राता गुण रवै मनि भावै सोई ॥१॥
प्रभु की भक्ति में लीन मेरा मन उसका ही गुणगान करता रहता है और वही मेरे मन को भाता है॥ १॥
ਸਾਹਿਬੁ ਸੋ ਸਾਲਾਹੀਐ ਜਿਨਿ ਕਾਰਣੁ ਕੀਆ ॥
साहिबु सो सालाहीऐ जिनि कारणु कीआ ॥
जिसने इस विश्व की रचना की है, उस परमात्मा की स्तुति करते रहना चाहिए।
ਮੈਲੁ ਲਾਗੀ ਮਨਿ ਮੈਲਿਐ ਕਿਨੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਆ ॥
मैलु लागी मनि मैलिऐ किनै अम्रितु पीआ ॥
आदमी के मन में अहंत्व रूपी मैल लगी हुई है और उसका मन मैला हो जाता है। किसी विरले पुरुष ने ही नाम रूपी अमृत पान किया है।
ਮਥਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਆ ਇਹੁ ਮਨੁ ਦੀਆ ਗੁਰ ਪਹਿ ਮੋਲੁ ਕਰਾਇਆ ॥
मथि अम्रितु पीआ इहु मनु दीआ गुर पहि मोलु कराइआ ॥
मैंने नाम रूपी अमृत मंथन करके पान किया है और अपना यह मन गुरु को सौंप दिया है। नाम का यह मूल्य मैंने गुरु से करवाया है।
ਆਪਨੜਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਹਜਿ ਪਛਾਤਾ ਜਾ ਮਨੁ ਸਾਚੈ ਲਾਇਆ ॥
आपनड़ा प्रभु सहजि पछाता जा मनु साचै लाइआ ॥
जब मैंने अपना मन सत्य के साथ लगाया तो सहज ही अपने प्रभु को पहचान लिया।
ਤਿਸੁ ਨਾਲਿ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਜੇ ਤਿਸੁ ਭਾਵਾ ਕਿਉ ਮਿਲੈ ਹੋਇ ਪਰਾਇਆ ॥
तिसु नालि गुण गावा जे तिसु भावा किउ मिलै होइ पराइआ ॥
मैं उसके चरणों में लगकर उसके गुण तो ही गाऊँ यदि मैं उसे अच्छा लगने लगूं। मैं पराया बनकर उसे कैसे मिल सकता हूँ।
ਸਾਹਿਬੁ ਸੋ ਸਾਲਾਹੀਐ ਜਿਨਿ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥੨॥
साहिबु सो सालाहीऐ जिनि जगतु उपाइआ ॥२॥
जिसने यह जगत् उत्पन्न किया है, उस परमात्मा की स्तुति करनी चाहिए॥ २॥
ਆਇ ਗਇਆ ਕੀ ਨ ਆਇਓ ਕਿਉ ਆਵੈ ਜਾਤਾ ॥
आइ गइआ की न आइओ किउ आवै जाता ॥
हे भाई ! जब परमात्मा स्वयं ही मेरे हृदय में आकर बस गया तो सबकुछ मिल गया है। अब मेरा जन्म-मरण भी छूट गया है।
ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਿਉ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਰਾਤਾ ॥
प्रीतम सिउ मनु मानिआ हरि सेती राता ॥
अब मेरा मन मेरे प्रियतम से संतुष्ट हो गया है और हरि के प्रेम में रंग गया है।
ਸਾਹਿਬ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਸਚ ਕੀ ਬਾਤਾ ਜਿਨਿ ਬਿੰਬ ਕਾ ਕੋਟੁ ਉਸਾਰਿਆ ॥
साहिब रंगि राता सच की बाता जिनि बि्मब का कोटु उसारिआ ॥
मालिक के रंग में रंगा हुआ मेरा मन उस सत्य की ही बातें करता रहता है। जिसने वीर्य रूपी जल से शरीर रूपी दुर्ग बना दिया है।
ਪੰਚ ਭੂ ਨਾਇਕੋ ਆਪਿ ਸਿਰੰਦਾ ਜਿਨਿ ਸਚ ਕਾ ਪਿੰਡੁ ਸਵਾਰਿਆ ॥
पंच भू नाइको आपि सिरंदा जिनि सच का पिंडु सवारिआ ॥
परमात्मा गगन, वायु , अग्नि, जल एवं पृथ्वी-इन पाँच तत्वों का नायक है जो स्वयं ही स्रष्टा है और जिसने आत्मा के निवास हेतु मानव-शरीर की रचना की है।
ਹਮ ਅਵਗਣਿਆਰੇ ਤੂ ਸੁਣਿ ਪਿਆਰੇ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਸਚੁ ਸੋਈ ॥
हम अवगणिआरे तू सुणि पिआरे तुधु भावै सचु सोई ॥
हे प्यारे प्रभु ! तू मेरी विनती सुन, मैं अवगुणों से हुआ पापी जीव हूँ। जो जीव तुझे अच्छा लगता है, वह सच्चा बन जाता है।
ਆਵਣ ਜਾਣਾ ਨਾ ਥੀਐ ਸਾਚੀ ਮਤਿ ਹੋਈ ॥੩॥
आवण जाणा ना थीऐ साची मति होई ॥३॥
जिसकी बुद्धि सत्य स्वरूप हो जाती है, उसका जन्म-मरण नहीं होता ॥ ३ ॥
ਅੰਜਨੁ ਤੈਸਾ ਅੰਜੀਐ ਜੈਸਾ ਪਿਰ ਭਾਵੈ ॥
अंजनु तैसा अंजीऐ जैसा पिर भावै ॥
मुझे अपनी आंखों में वैसा ही सुरमा डालना होगा, जैसा मेरे प्रभु को अच्छा लगे।
ਸਮਝੈ ਸੂਝੈ ਜਾਣੀਐ ਜੇ ਆਪਿ ਜਾਣਾਵੈ ॥
समझै सूझै जाणीऐ जे आपि जाणावै ॥
यदि वह स्वयं मुझे ज्ञान देता है, तो ही मैं समझती, सूझती एवं जानती हूँ।
ਆਪਿ ਜਾਣਾਵੈ ਮਾਰਗਿ ਪਾਵੈ ਆਪੇ ਮਨੂਆ ਲੇਵਏ ॥
आपि जाणावै मारगि पावै आपे मनूआ लेवए ॥
वह स्वयं ही मुझे ज्ञान करवाता है और मुझे सन्मार्ग लगाता है और मेरे मन को अपनी ओर प्रेरित करता है।
ਕਰਮ ਸੁਕਰਮ ਕਰਾਏ ਆਪੇ ਕੀਮਤਿ ਕਉਣ ਅਭੇਵਏ ॥
करम सुकरम कराए आपे कीमति कउण अभेवए ॥
वह स्वयं ही मुझसे कर्म-सुकर्म करवाता है, उसका मूल्यांकन कौन कर सकता है ?
ਤੰਤੁ ਮੰਤੁ ਪਾਖੰਡੁ ਨ ਜਾਣਾ ਰਾਮੁ ਰਿਦੈ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥
तंतु मंतु पाखंडु न जाणा रामु रिदै मनु मानिआ ॥
में किसी तंत्र, मंत्र एवं पाखण्ड को नहीं जानती और राम को अपने हृदय में बसाकर मेरा मन प्रसन्न हो गया है।
ਅੰਜਨੁ ਨਾਮੁ ਤਿਸੈ ਤੇ ਸੂਝੈ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਸਚੁ ਜਾਨਿਆ ॥੪॥
अंजनु नामु तिसै ते सूझै गुर सबदी सचु जानिआ ॥४॥
जो गुरु के शब्द द्वारा सत्य को जान लेता है, नाम रूपी सुरमे का उसे ही ज्ञान होता है॥ ४॥
ਸਾਜਨ ਹੋਵਨਿ ਆਪਣੇ ਕਿਉ ਪਰ ਘਰ ਜਾਹੀ ॥
साजन होवनि आपणे किउ पर घर जाही ॥
यदि साजन संत मेरे अपने बन जाएँ तो मैं पराए घर क्यों जाऊँ ?
ਸਾਜਨ ਰਾਤੇ ਸਚ ਕੇ ਸੰਗੇ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥
साजन राते सच के संगे मन माही ॥
मेरे साजन संत सत्य में ही मग्न रहते हैं और सत्य उनके साथ उनके मन में ही बसता है।
ਮਨ ਮਾਹਿ ਸਾਜਨ ਕਰਹਿ ਰਲੀਆ ਕਰਮ ਧਰਮ ਸਬਾਇਆ ॥
मन माहि साजन करहि रलीआ करम धरम सबाइआ ॥
मेरे साजन मन में ही रमण करते हैं और यही उनका कर्म-धर्म है।
ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਪੁੰਨ ਪੂਜਾ ਨਾਮੁ ਸਾਚਾ ਭਾਇਆ ॥
अठसठि तीरथ पुंन पूजा नामु साचा भाइआ ॥
उन्हें परमात्मा का सच्चा-नाम ही भाया है और यही उनका अड़सठ तीर्थों का स्नान, दान-पुण्य एवं पूजा है।