ਹਰਿ ਅੰਦਰਲਾ ਪਾਪੁ ਪੰਚਾ ਨੋ ਉਘਾ ਕਰਿ ਵੇਖਾਲਿਆ ॥
हरि अंदरला पापु पंचा नो उघा करि वेखालिआ ॥
भगवान ने तपस्वी का भीतरी पाप को पंचों को प्रकट करके दिखा दिया है।
ਧਰਮ ਰਾਇ ਜਮਕੰਕਰਾ ਨੋ ਆਖਿ ਛਡਿਆ ਏਸੁ ਤਪੇ ਨੋ ਤਿਥੈ ਖੜਿ ਪਾਇਹੁ ਜਿਥੈ ਮਹਾ ਮਹਾਂ ਹਤਿਆਰਿਆ ॥
धरम राइ जमकंकरा नो आखि छडिआ एसु तपे नो तिथै खड़ि पाइहु जिथै महा महां हतिआरिआ ॥
धर्मराज ने अपने यमदूतों को कह दिया है कि इस तपस्वी को ले जाकर उस स्थान पर डाल दो, जहाँ बड़े से बड़े महाहत्यारे डाले जाते हैं।
ਫਿਰਿ ਏਸੁ ਤਪੇ ਦੈ ਮੁਹਿ ਕੋਈ ਲਗਹੁ ਨਾਹੀ ਏਹੁ ਸਤਿਗੁਰਿ ਹੈ ਫਿਟਕਾਰਿਆ ॥
फिरि एसु तपे दै मुहि कोई लगहु नाही एहु सतिगुरि है फिटकारिआ ॥
यहाँ भी इसके मुँह कोई न लगे, क्योंकि यह तपस्वी सतिगुरु की ओर से तिरस्कृत है।
ਹਰਿ ਕੈ ਦਰਿ ਵਰਤਿਆ ਸੁ ਨਾਨਕਿ ਆਖਿ ਸੁਣਾਇਆ ॥
हरि कै दरि वरतिआ सु नानकि आखि सुणाइआ ॥
हे नानक ! जो कुछ यह ईश्वर के दरबार में हुआ है, उसे कहकर सुना दिया है,
ਸੋ ਬੂਝੈ ਜੁ ਦਯਿ ਸਵਾਰਿਆ ॥੧॥
सो बूझै जु दयि सवारिआ ॥१॥
इस तथ्य को वही इन्सान समझता है, जिसे परमात्मा ने संवारा हुआ है॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥
ਹਰਿ ਭਗਤਾਂ ਹਰਿ ਆਰਾਧਿਆ ਹਰਿ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥
हरि भगतां हरि आराधिआ हरि की वडिआई ॥
भगवान के भक्त भगवान की आराधना करते हैं और भगवान की गुणस्तुति करते हैं।
ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਭਗਤ ਨਿਤ ਗਾਂਵਦੇ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸੁਖਦਾਈ ॥
हरि कीरतनु भगत नित गांवदे हरि नामु सुखदाई ॥
भक्त नित्य भगवान का भजन कीर्तन करते हैं। भगवान का नाम बड़ा सुखदायक है।
ਹਰਿ ਭਗਤਾਂ ਨੋ ਨਿਤ ਨਾਵੈ ਦੀ ਵਡਿਆਈ ਬਖਸੀਅਨੁ ਨਿਤ ਚੜੈ ਸਵਾਈ ॥
हरि भगतां नो नित नावै दी वडिआई बखसीअनु नित चड़ै सवाई ॥
अपने भक्तों को भगवान ने हमेशा के लिए नाम का गुण प्रदान किया है, जो दिन-ब-दिन बढ़ता जाता है।
ਹਰਿ ਭਗਤਾਂ ਨੋ ਥਿਰੁ ਘਰੀ ਬਹਾਲਿਅਨੁ ਅਪਣੀ ਪੈਜ ਰਖਾਈ ॥
हरि भगतां नो थिरु घरी बहालिअनु अपणी पैज रखाई ॥
भगवान ने अपने विरद की लाज रखी है और उसने अपने भक्तों को आत्मस्वरूप स्थिर घर में बिठा दिया है।
ਨਿੰਦਕਾਂ ਪਾਸਹੁ ਹਰਿ ਲੇਖਾ ਮੰਗਸੀ ਬਹੁ ਦੇਇ ਸਜਾਈ ॥
निंदकां पासहु हरि लेखा मंगसी बहु देइ सजाई ॥
निन्दकों से भगवान लेखा माँगता है और बहुत कठोर दण्ड देता है।
ਜੇਹਾ ਨਿੰਦਕ ਅਪਣੈ ਜੀਇ ਕਮਾਵਦੇ ਤੇਹੋ ਫਲੁ ਪਾਈ ॥
जेहा निंदक अपणै जीइ कमावदे तेहो फलु पाई ॥
निन्दक जैसा अपने मन में कमाते हैं, वैसा ही फल उन्हें मिलता है। (क्योंकि)
ਅੰਦਰਿ ਕਮਾਣਾ ਸਰਪਰ ਉਘੜੈ ਭਾਵੈ ਕੋਈ ਬਹਿ ਧਰਤੀ ਵਿਚਿ ਕਮਾਈ ॥
अंदरि कमाणा सरपर उघड़ै भावै कोई बहि धरती विचि कमाई ॥
भीतर बैठकर किया हुआ काम निश्चित ही प्रत्यक्ष हो जाता है चाहे कोई इसे धरती के नीचे करे।
ਜਨ ਨਾਨਕੁ ਦੇਖਿ ਵਿਗਸਿਆ ਹਰਿ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥੨॥
जन नानकु देखि विगसिआ हरि की वडिआई ॥२॥
नानक भगवान की महिमा देखकर कृतार्थ हो रहा है॥ २॥
ਪਉੜੀ ਮਃ ੫ ॥
पउड़ी मः ५ ॥
पउड़ी महला ५॥
ਭਗਤ ਜਨਾਂ ਕਾ ਰਾਖਾ ਹਰਿ ਆਪਿ ਹੈ ਕਿਆ ਪਾਪੀ ਕਰੀਐ ॥
भगत जनां का राखा हरि आपि है किआ पापी करीऐ ॥
भगवान अपने भक्तों का स्वयं रखवाला है। पापी क्या कर सकता है?
ਗੁਮਾਨੁ ਕਰਹਿ ਮੂੜ ਗੁਮਾਨੀਆ ਵਿਸੁ ਖਾਧੀ ਮਰੀਐ ॥
गुमानु करहि मूड़ गुमानीआ विसु खाधी मरीऐ ॥
मूर्ख घमण्डी इन्सान बड़ा घमण्ड करता है और (अहंकार-रूपी) विष खाकर मर जाता है।
ਆਇ ਲਗੇ ਨੀ ਦਿਹ ਥੋੜੜੇ ਜਿਉ ਪਕਾ ਖੇਤੁ ਲੁਣੀਐ ॥
आइ लगे नी दिह थोड़ड़े जिउ पका खेतु लुणीऐ ॥
जीवन के थोड़े दिन जो उसने व्यतीत करने थे, समाप्त हो गए हैं और पकी हुई फसल की भाँति काट लिया जाएगा।
ਜੇਹੇ ਕਰਮ ਕਮਾਵਦੇ ਤੇਵੇਹੋ ਭਣੀਐ ॥
जेहे करम कमावदे तेवेहो भणीऐ ॥
मनुष्य जैसे जैसे करता है, (प्रभु के दरबार में भी) वैसे ही कहलवाते हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਾ ਖਸਮੁ ਵਡਾ ਹੈ ਸਭਨਾ ਦਾ ਧਣੀਐ ॥੩੦॥
जन नानक का खसमु वडा है सभना दा धणीऐ ॥३०॥
नानक का मालिक प्रभु महान है, जो सारी दुनिया का ही मालिक है॥ ३०॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥
सलोक मः ४ ॥
श्लोक महला ४॥
ਮਨਮੁਖ ਮੂਲਹੁ ਭੁਲਿਆ ਵਿਚਿ ਲਬੁ ਲੋਭੁ ਅਹੰਕਾਰੁ ॥
मनमुख मूलहु भुलिआ विचि लबु लोभु अहंकारु ॥
झूठ, लालच एवं अहंकार के कारण स्वेच्छाचारी इन्सान अपने मूल (भगवान) को ही भुला देते हैं।
ਝਗੜਾ ਕਰਦਿਆ ਅਨਦਿਨੁ ਗੁਦਰੈ ਸਬਦਿ ਨ ਕਰਹਿ ਵੀਚਾਰੁ ॥
झगड़ा करदिआ अनदिनु गुदरै सबदि न करहि वीचारु ॥
उनके रात-दिन झगड़ा करते हुए ही बीत जाते हैं और वे शब्द का चिन्तन नहीं करते।
ਸੁਧਿ ਮਤਿ ਕਰਤੈ ਸਭ ਹਿਰਿ ਲਈ ਬੋਲਨਿ ਸਭੁ ਵਿਕਾਰੁ ॥
सुधि मति करतै सभ हिरि लई बोलनि सभु विकारु ॥
परमात्मा ने उनकी सारी मति-बुद्धि छीन ली है और वह सब विकार ही बोलते हैं।
ਦਿਤੈ ਕਿਤੈ ਨ ਸੰਤੋਖੀਅਹਿ ਅੰਤਰਿ ਤਿਸਨਾ ਬਹੁ ਅਗਿਆਨੁ ਅੰਧੵਾਰੁ ॥
दितै कितै न संतोखीअहि अंतरि तिसना बहु अगिआनु अंध्यारु ॥
वे किसी की देन से संतुष्ट नहीं होते, क्योंकि उनके हृदय में तृष्णा एवं अज्ञानता का अँधेरा बना होता है।
ਨਾਨਕ ਮਨਮੁਖਾ ਨਾਲੋ ਤੁਟੀ ਭਲੀ ਜਿਨ ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਪਿਆਰੁ ॥੧॥
नानक मनमुखा नालो तुटी भली जिन माइआ मोह पिआरु ॥१॥
हे नानक ! ऐसे स्वेच्छाचारी लोगों से तो संबंधविच्छेद ही बेहतर है, जिनका मोह-माया से ही प्रेम होता है॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥
ਜਿਨਾ ਅੰਦਰਿ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਹੈ ਤਿਨੑਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥
जिना अंदरि दूजा भाउ है तिन्हा गुरमुखि प्रीति न होइ ॥
जिन लोगों के अन्तर्मन में द्वैत भावना से प्रेम होता है, वह गुरमुखों से प्रेम नहीं करते।
ਓਹੁ ਆਵੈ ਜਾਇ ਭਵਾਈਐ ਸੁਪਨੈ ਸੁਖੁ ਨ ਕੋਇ ॥
ओहु आवै जाइ भवाईऐ सुपनै सुखु न कोइ ॥
ऐसे व्यक्ति जन्मते-मरते और आवागमन में भटकते हैं, और उन्हें स्वप्न में भी सुख नहीं मिलता।
ਕੂੜੁ ਕਮਾਵੈ ਕੂੜੁ ਉਚਰੈ ਕੂੜਿ ਲਗਿਆ ਕੂੜੁ ਹੋਇ ॥
कूड़ु कमावै कूड़ु उचरै कूड़ि लगिआ कूड़ु होइ ॥
वह झूठ का ही कार्य करते हैं, झूठ ही बोलते हैं और झूठ से जुड़कर वह झूठे हो जाते हैं।
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਹੈ ਦੁਖਿ ਬਿਨਸੈ ਦੁਖੁ ਰੋਇ ॥
माइआ मोहु सभु दुखु है दुखि बिनसै दुखु रोइ ॥
माया का मोह दुःख ही है। दुख द्वारा मनुष्य मरता है और दुख द्वारा ही वह विलाप करता है।
ਨਾਨਕ ਧਾਤੁ ਲਿਵੈ ਜੋੜੁ ਨ ਆਵਈ ਜੇ ਲੋਚੈ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥
नानक धातु लिवै जोड़ु न आवई जे लोचै सभु कोइ ॥
हे नानक ! माया एवं ईश्वर का प्रेम शोभायमान नहीं हो सकता, चाहे हरेक मनुष्य इच्छाकरे।
ਜਿਨ ਕਉ ਪੋਤੈ ਪੁੰਨੁ ਪਇਆ ਤਿਨਾ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥੨॥
जिन कउ पोतै पुंनु पइआ तिना गुर सबदी सुखु होइ ॥२॥
जिनके खजाने में पुण्य हैं, वे गुरु के शब्द द्वारा सुख प्राप्त करते हैं।॥ २॥
ਪਉੜੀ ਮਃ ੫ ॥
पउड़ी मः ५ ॥
पउड़ी महला ५ ॥
ਨਾਨਕ ਵੀਚਾਰਹਿ ਸੰਤ ਮੁਨਿ ਜਨਾਂ ਚਾਰਿ ਵੇਦ ਕਹੰਦੇ ॥
नानक वीचारहि संत मुनि जनां चारि वेद कहंदे ॥
हे नानक ! संत एवं मुनिजन विचार करते हैं और चारों वेद भी कहते हैं कि
ਭਗਤ ਮੁਖੈ ਤੇ ਬੋਲਦੇ ਸੇ ਵਚਨ ਹੋਵੰਦੇ ॥
भगत मुखै ते बोलदे से वचन होवंदे ॥
भक्तजन जो वचन मुख से बोलते हैं, वे (सत्य) पूरे हो जाते हैं।
ਪਰਗਟ ਪਾਹਾਰੈ ਜਾਪਦੇ ਸਭਿ ਲੋਕ ਸੁਣੰਦੇ ॥
परगट पाहारै जापदे सभि लोक सुणंदे ॥
भक्त सारी दुनिया में लोकप्रिय होते हैं और उनकी शोभा सभी लोग सुनते हैं।
ਸੁਖੁ ਨ ਪਾਇਨਿ ਮੁਗਧ ਨਰ ਸੰਤ ਨਾਲਿ ਖਹੰਦੇ ॥
सुखु न पाइनि मुगध नर संत नालि खहंदे ॥
जो मूर्ख मनुष्य संतों से वैर करते हैं, वे सुख नहीं पाते
ਓਇ ਲੋਚਨਿ ਓਨਾ ਗੁਣਾ ਨੋ ਓਇ ਅਹੰਕਾਰਿ ਸੜੰਦੇ ॥
ओइ लोचनि ओना गुणा नो ओइ अहंकारि सड़ंदे ॥
वे दोषी जलते तो अहंकार में हैं परन्तु भक्तजनों के गुणों के लिए तरसते हैं।
ਓਇ ਵੇਚਾਰੇ ਕਿਆ ਕਰਹਿ ਜਾਂ ਭਾਗ ਧੁਰਿ ਮੰਦੇ ॥
ओइ वेचारे किआ करहि जां भाग धुरि मंदे ॥
इन दोषी मनुष्यों के वश में भी क्या है? क्योंकि आदि से (नीच कर्मों के कारण) नीच संस्कार ही उनका भाग्य है।