Hindi Page 256

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਠਠਾ ਮਨੂਆ ਠਾਹਹਿ ਨਾਹੀ ॥
ठठा मनूआ ठाहहि नाही ॥
ठ – वह किसी के भी मन को दुःख नहीं पहुँचाते

ਜੋ ਸਗਲ ਤਿਆਗਿ ਏਕਹਿ ਲਪਟਾਹੀ ॥
जो सगल तिआगि एकहि लपटाही ॥
जो सब कुछ त्याग कर एक ईश्वर से जुड़े हुए हैं।

ਠਹਕਿ ਠਹਕਿ ਮਾਇਆ ਸੰਗਿ ਮੂਏ ॥
ठहकि ठहकि माइआ संगि मूए ॥
जो लोग सांसारिक माया से उलझे हुए हैं, वह मृत हैं

ਉਆ ਕੈ ਕੁਸਲ ਨ ਕਤਹੂ ਹੂਏ ॥
उआ कै कुसल न कतहू हूए ॥
और उनको कहीं भी प्रसन्नता नहीं मिलती।

ਠਾਂਢਿ ਪਰੀ ਸੰਤਹ ਸੰਗਿ ਬਸਿਆ ॥
ठांढि परी संतह संगि बसिआ ॥
जो व्यक्ति संतों की संगति में वास करता है, उसका मन शीतल हो जाता है

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਤਹਾ ਜੀਅ ਰਸਿਆ ॥
अम्रित नामु तहा जीअ रसिआ ॥
और नाम अमृत उसके हृदय को बड़ा मीठा लगता है।

ਠਾਕੁਰ ਅਪੁਨੇ ਜੋ ਜਨੁ ਭਾਇਆ ॥
ठाकुर अपुने जो जनु भाइआ ॥
हे नानक ! जो व्यक्ति अपने ईश्वर को भला लगता है,

ਨਾਨਕ ਉਆ ਕਾ ਮਨੁ ਸੀਤਲਾਇਆ ॥੨੮॥
नानक उआ का मनु सीतलाइआ ॥२८॥
उसका मन शीतल हो जाता है ॥ २८ ॥

ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥

ਡੰਡਉਤਿ ਬੰਦਨ ਅਨਿਕ ਬਾਰ ਸਰਬ ਕਲਾ ਸਮਰਥ ॥
डंडउति बंदन अनिक बार सरब कला समरथ ॥
हे नानक ! (इस तरह वन्दना कर-) हे सर्वकला सम्पूर्ण प्रभु ! मैं अनेक बार तुझे प्रणाम करता हूँ।

ਡੋਲਨ ਤੇ ਰਾਖਹੁ ਪ੍ਰਭੂ ਨਾਨਕ ਦੇ ਕਰਿ ਹਥ ॥੧॥
डोलन ते राखहु प्रभू नानक दे करि हथ ॥१॥
मुझे अपना हाथ देकर माया के मोह में विचलित होने से बचा ले॥ १॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਡਡਾ ਡੇਰਾ ਇਹੁ ਨਹੀ ਜਹ ਡੇਰਾ ਤਹ ਜਾਨੁ ॥
डडा डेरा इहु नही जह डेरा तह जानु ॥
ड – (हे जीव !) यह जगत् तेरा निवास नहीं, उस स्थान को पहचान, जहाँ तेरा वास्तविक घर है।

ਉਆ ਡੇਰਾ ਕਾ ਸੰਜਮੋ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪਛਾਨੁ ॥
उआ डेरा का संजमो गुर कै सबदि पछानु ॥
गुरु के शब्द द्वारा तू उस निवास में पहुँचने की विधि पहचान ले।

ਇਆ ਡੇਰਾ ਕਉ ਸ੍ਰਮੁ ਕਰਿ ਘਾਲੈ ॥
इआ डेरा कउ स्रमु करि घालै ॥
संसार के इस निवास हेतु मनुष्य कड़ा परिश्रम करके साधना करता है,

ਜਾ ਕਾ ਤਸੂ ਨਹੀ ਸੰਗਿ ਚਾਲੈ ॥
जा का तसू नही संगि चालै ॥
किन्तु मृत्यु आने पर इसका थोड़ा-सा भी इसके साथ नहीं जाता।

ਉਆ ਡੇਰਾ ਕੀ ਸੋ ਮਿਤਿ ਜਾਨੈ ॥
उआ डेरा की सो मिति जानै ॥
उस निवास-स्थान की मर्यादा वही जानता है,

ਜਾ ਕਉ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਪੂਰਨ ਭਗਵਾਨੈ ॥
जा कउ द्रिसटि पूरन भगवानै ॥
जिस पर पूर्ण भगवान अपनी कृपा-दृष्टि करता है।

ਡੇਰਾ ਨਿਹਚਲੁ ਸਚੁ ਸਾਧਸੰਗ ਪਾਇਆ ॥
डेरा निहचलु सचु साधसंग पाइआ ॥
यह निवास स्थान निश्चित एवं सच्चा है और यह सत्संग द्वारा ही प्राप्त होता है।

ਨਾਨਕ ਤੇ ਜਨ ਨਹ ਡੋਲਾਇਆ ॥੨੯॥
नानक ते जन नह डोलाइआ ॥२९॥
हे नानक ! वह सेवक जो इस शाश्वत निवास को संतों की संगति द्वारा प्राप्त कर लेते हैं, उनका हृदय विचलित नहीं होता। ॥२९ ॥

ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥

ਢਾਹਨ ਲਾਗੇ ਧਰਮ ਰਾਇ ਕਿਨਹਿ ਨ ਘਾਲਿਓ ਬੰਧ ॥
ढाहन लागे धरम राइ किनहि न घालिओ बंध ॥
जब यमराज ध्वस्त करने लगता है तो कोई भी उसके मार्ग में रुकावट नहीं डाल सकता।

ਨਾਨਕ ਉਬਰੇ ਜਪਿ ਹਰੀ ਸਾਧਸੰਗਿ ਸਨਬੰਧ ॥੧॥
नानक उबरे जपि हरी साधसंगि सनबंध ॥१॥
हे नानक ! जो व्यक्ति सत्संग में संबंध जोड़ कर ईश्वर की आराधना करते हैं, उनका भवसागर से उद्धार हो जाता है॥ १॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਢਢਾ ਢੂਢਤ ਕਹ ਫਿਰਹੁ ਢੂਢਨੁ ਇਆ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥
ढढा ढूढत कह फिरहु ढूढनु इआ मन माहि ॥
ढ – तुम परमात्मा को ढूंढने के लिए कहाँ फिर रहे हो ? खोज-तलाश तो इस हृदय में ही करनी है।

ਸੰਗਿ ਤੁਹਾਰੈ ਪ੍ਰਭੁ ਬਸੈ ਬਨੁ ਬਨੁ ਕਹਾ ਫਿਰਾਹਿ ॥
संगि तुहारै प्रभु बसै बनु बनु कहा फिराहि ॥
ईश्वर तेरे साथ ही रहता है, तुम वन-वन में क्यों भटकते फिरते हो ?

ਢੇਰੀ ਢਾਹਹੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਅਹੰਬੁਧਿ ਬਿਕਰਾਲ ॥
ढेरी ढाहहु साधसंगि अह्मबुधि बिकराल ॥
सत्संग में अपनी अहंबुद्धि के विकराल ढेर को गिरा दो।

ਸੁਖੁ ਪਾਵਹੁ ਸਹਜੇ ਬਸਹੁ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਨਿਹਾਲ ॥
सुखु पावहु सहजे बसहु दरसनु देखि निहाल ॥
ऐसे तुझे सुख प्राप्त होगा और सुख-शांति में वास करोगे तथा प्रभु के दर्शन करके प्रसन्न होगे।

ਢੇਰੀ ਜਾਮੈ ਜਮਿ ਮਰੈ ਗਰਭ ਜੋਨਿ ਦੁਖ ਪਾਇ ॥
ढेरी जामै जमि मरै गरभ जोनि दुख पाइ ॥
जिसके भीतर अहंकार का यह अम्बार विद्यमान है, वह जन्मता-मरता है और गर्भयोनि का कष्ट सहन करता है।

ਮੋਹ ਮਗਨ ਲਪਟਤ ਰਹੈ ਹਉ ਹਉ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥
मोह मगन लपटत रहै हउ हउ आवै जाइ ॥
जो व्यक्ति दुनिया के मोह में मस्त हुआ है और अहंकार एवं अहंत्व में फँसा है, वह जगत् में जन्मता-मरता रहता है।

ਢਹਤ ਢਹਤ ਅਬ ਢਹਿ ਪਰੇ ਸਾਧ ਜਨਾ ਸਰਨਾਇ ॥
ढहत ढहत अब ढहि परे साध जना सरनाइ ॥
मैं अब शनेः शनेः साधु-संतों की शरण में आ गिरा हूँ।

ਦੁਖ ਕੇ ਫਾਹੇ ਕਾਟਿਆ ਨਾਨਕ ਲੀਏ ਸਮਾਇ ॥੩੦॥
दुख के फाहे काटिआ नानक लीए समाइ ॥३०॥
हे नानक ! ईश्वर ने मेरे दुःख-क्लेश के फंदे काट दिए हैं और मुझे अपने में लीन कर लिया है॥ ३०॥

ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥

ਜਹ ਸਾਧੂ ਗੋਬਿਦ ਭਜਨੁ ਕੀਰਤਨੁ ਨਾਨਕ ਨੀਤ ॥
जह साधू गोबिद भजनु कीरतनु नानक नीत ॥
हे नानक ! जहाँ संत-महांपुरुष प्रतिदिन गोबिन्द के नाम का भजन-कीर्त्तन करते रहते हैं।

ਣਾ ਹਉ ਣਾ ਤੂੰ ਣਹ ਛੁਟਹਿ ਨਿਕਟਿ ਨ ਜਾਈਅਹੁ ਦੂਤ ॥੧॥
णा हउ णा तूं णह छुटहि निकटि न जाईअहु दूत ॥१॥
यमराज संबोधन करता है, “”हे दूतो ! उस निवास के निकट मत जाना, अन्यथा न ही मेरा और न ही तुम्हारा बचाव होगा”” ॥ १॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਣਾਣਾ ਰਣ ਤੇ ਸੀਝੀਐ ਆਤਮ ਜੀਤੈ ਕੋਇ ॥
णाणा रण ते सीझीऐ आतम जीतै कोइ ॥
ण – यदि कोई व्यक्ति अपने मन को वश में कर लेता है, तो वह जीवन के युद्ध को विजय कर लेता है।

ਹਉਮੈ ਅਨ ਸਿਉ ਲਰਿ ਮਰੈ ਸੋ ਸੋਭਾ ਦੂ ਹੋਇ ॥
हउमै अन सिउ लरि मरै सो सोभा दू होइ ॥
जो व्यक्ति अपने अहंत्व एवं द्वैतवाद के साथ लड़ता मर जाता है, वही योद्धा है।

ਮਣੀ ਮਿਟਾਇ ਜੀਵਤ ਮਰੈ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਉਪਦੇਸ ॥
मणी मिटाइ जीवत मरै गुर पूरे उपदेस ॥
जो व्यक्ति अपने अहंत्व को त्याग देता है, वह गुरु के उपदेश द्वारा जीवित ही मोह-माया से मरा रहता है।

ਮਨੂਆ ਜੀਤੈ ਹਰਿ ਮਿਲੈ ਤਿਹ ਸੂਰਤਣ ਵੇਸ ॥
मनूआ जीतै हरि मिलै तिह सूरतण वेस ॥
वह अपने मन को जीत कर ईश्वर से मिल जाता है और उसकी वीरता के लिए उसको सम्मान की वेशभूषा मिलती है।

ਣਾ ਕੋ ਜਾਣੈ ਆਪਣੋ ਏਕਹਿ ਟੇਕ ਅਧਾਰ ॥
णा को जाणै आपणो एकहि टेक अधार ॥
किसी पदार्थ को भी वह अपना नहीं समझता। एक ईश्वर ही उसका सहारा एवं आसरा होता है।

ਰੈਣਿ ਦਿਣਸੁ ਸਿਮਰਤ ਰਹੈ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਪੁਰਖੁ ਅਪਾਰ ॥
रैणि दिणसु सिमरत रहै सो प्रभु पुरखु अपार ॥
वह रात-दिन अनन्त ईश्वर की आराधना करता रहता है।

ਰੇਣ ਸਗਲ ਇਆ ਮਨੁ ਕਰੈ ਏਊ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ॥
रेण सगल इआ मनु करै एऊ करम कमाइ ॥
वह अपने इस मन को सबकी चरण धूलि बना देता है, ऐसे कर्म वह करता है।

ਹੁਕਮੈ ਬੂਝੈ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਨਾਨਕ ਲਿਖਿਆ ਪਾਇ ॥੩੧॥
हुकमै बूझै सदा सुखु नानक लिखिआ पाइ ॥३१॥
हे नानक ! ईश्वर के हुक्म को समझ कर वह सदैव सुख प्राप्त करता है और जो कुछ उसके भाग्य में लिखा होता है, उसको प्राप्त कर लेता है ॥३१॥

ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥

ਤਨੁ ਮਨੁ ਧਨੁ ਅਰਪਉ ਤਿਸੈ ਪ੍ਰਭੂ ਮਿਲਾਵੈ ਮੋਹਿ ॥
तनु मनु धनु अरपउ तिसै प्रभू मिलावै मोहि ॥
मैं अपना तन, मन एवं धन उसको समर्पित करता हूँ, जो मुझे मेरे प्रभु से मिला दे।

ਨਾਨਕ ਭ੍ਰਮ ਭਉ ਕਾਟੀਐ ਚੂਕੈ ਜਮ ਕੀ ਜੋਹ ॥੧॥
नानक भ्रम भउ काटीऐ चूकै जम की जोह ॥१॥
हे नानक ! चूंकि प्रभु-मिलाप से ही दुविधा एवं भय नाश हो जाते हैं और मृत्यु का आतंक भी दूर हो जाता है॥१ ॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥

ਤਤਾ ਤਾ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰਿ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਗੋਬਿਦ ਰਾਇ ॥
तता ता सिउ प्रीति करि गुण निधि गोबिद राइ ॥
त – उस परमात्मा से प्रीति करो जो गुणों का भण्डार एवं सृष्टि का स्वामी है।

ਫਲ ਪਾਵਹਿ ਮਨ ਬਾਛਤੇ ਤਪਤਿ ਤੁਹਾਰੀ ਜਾਇ ॥
फल पावहि मन बाछते तपति तुहारी जाइ ॥
तुझे अपने मनोवांछित फल प्राप्त होंगे और तृष्णा मिट जाएगी।

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