ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਭ ਦਾਤੇ ਨਿਰਮਲ ਜਸੁ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਕਹੇ ॥੨॥੧੭॥੧੦੩॥
करि किरपा पूरन प्रभ दाते निरमल जसु नानक दास कहे ॥२॥१७॥१०३॥
दास नानक प्रार्थना करता है कि हे पूर्ण प्रभु दाता ! ऐसी कृपा करो कि मैं तेरा पावन यश करता रहूँ ॥ २॥ १७॥ १०३॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਸੁਲਹੀ ਤੇ ਨਾਰਾਇਣ ਰਾਖੁ ॥
सुलही ते नाराइण राखु ॥
ईश्वर ने सुलही खाँ से हमें बचा लिया है।
ਸੁਲਹੀ ਕਾ ਹਾਥੁ ਕਹੀ ਨ ਪਹੁਚੈ ਸੁਲਹੀ ਹੋਇ ਮੂਆ ਨਾਪਾਕੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुलही का हाथु कही न पहुचै सुलही होइ मूआ नापाकु ॥१॥ रहाउ ॥
सुलही खाँ अपने मकसद में सफल नहीं हो सका अर्थात् वह हमें नुक्सान पहुँचाने में असफल रहा और बड़ी नापाक मौत का शिकार हुआ। ॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਾਢਿ ਕੁਠਾਰੁ ਖਸਮਿ ਸਿਰੁ ਕਾਟਿਆ ਖਿਨ ਮਹਿ ਹੋਇ ਗਇਆ ਹੈ ਖਾਕੁ ॥
काढि कुठारु खसमि सिरु काटिआ खिन महि होइ गइआ है खाकु ॥
ईश्वर ने कुठार निकाल कर उसका सिर काट दिया है और क्षण में ही वह खाक हो गया। वह हमारा बुरा सोचता-सोचता स्वयं ही जलकर मर गया है।
ਮੰਦਾ ਚਿਤਵਤ ਚਿਤਵਤ ਪਚਿਆ ਜਿਨਿ ਰਚਿਆ ਤਿਨਿ ਦੀਨਾ ਧਾਕੁ ॥੧॥
मंदा चितवत चितवत पचिआ जिनि रचिआ तिनि दीना धाकु ॥१॥
जिस परमेश्वर ने उसे बनाया था, उसने ही उसे मौत के हवाले कर दिया है॥ १॥
ਪੁਤ੍ਰ ਮੀਤ ਧਨੁ ਕਿਛੂ ਨ ਰਹਿਓ ਸੁ ਛੋਡਿ ਗਇਆ ਸਭ ਭਾਈ ਸਾਕੁ ॥
पुत्र मीत धनु किछू न रहिओ सु छोडि गइआ सभ भाई साकु ॥
उसका कोई पुत्र, मित्र एवं धन कुछ भी नहीं रहा और वह अपने भाई-रिश्तेदार पीछे छोड़ गया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਪ੍ਰਭ ਬਲਿਹਾਰੀ ਜਿਨਿ ਜਨ ਕਾ ਕੀਨੋ ਪੂਰਨ ਵਾਕੁ ॥੨॥੧੮॥੧੦੪॥
कहु नानक तिसु प्रभ बलिहारी जिनि जन का कीनो पूरन वाकु ॥२॥१८॥१०४॥
हे नानक ! मैं उस प्रभु पर शत्-शत् बलिहारी हूँ, जिसने अपने सेवक का वाक्य पूरा किया है॥ २॥ १८ ॥ १०४॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੀ ਪੂਰੀ ਸੇਵ ॥
पूरे गुर की पूरी सेव ॥
पूर्ण गुरु की सेवा पूर्ण फलदायक है।
ਆਪੇ ਆਪਿ ਵਰਤੈ ਸੁਆਮੀ ਕਾਰਜੁ ਰਾਸਿ ਕੀਆ ਗੁਰਦੇਵ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आपे आपि वरतै सुआमी कारजु रासि कीआ गुरदेव ॥१॥ रहाउ ॥
जगत् का स्वामी स्वयं हर जगह मौजूद है और गुरुदेव ने हमारा हर कार्य सम्पूर्ण कर दिया है॥ १॥ रहाउ ॥
ਆਦਿ ਮਧਿ ਪ੍ਰਭੁ ਅੰਤਿ ਸੁਆਮੀ ਅਪਨਾ ਥਾਟੁ ਬਨਾਇਓ ਆਪਿ ॥
आदि मधि प्रभु अंति सुआमी अपना थाटु बनाइओ आपि ॥
स्वामी प्रभु ही आदि, मध्य एवं अन्त तक मौजूद है, उसने अपनी रचना स्वयं ही बनाई है।
ਅਪਨੇ ਸੇਵਕ ਕੀ ਆਪੇ ਰਾਖੈ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਕੋ ਵਡ ਪਰਤਾਪੁ ॥੧॥
अपने सेवक की आपे राखै प्रभ मेरे को वड परतापु ॥१॥
मेरे प्रभु का बड़ा प्रताप है कि वह अपने सेवक की हमेशा ही लाज रखता है॥ १॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਰਮੇਸੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਵਸਿ ਕੀਨੑੇ ਜਿਨਿ ਸਗਲੇ ਜੰਤ ॥
पारब्रहम परमेसुर सतिगुर वसि कीन्हे जिनि सगले जंत ॥
परब्रह्म-परमेश्वर ही सतगुरु है, जिसने सब जीवों को अपने वश में किया हुआ है।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਨਾਨਕ ਸਰਣਾਈ ਰਾਮ ਨਾਮ ਜਪਿ ਨਿਰਮਲ ਮੰਤ ॥੨॥੧੯॥੧੦੫॥
चरन कमल नानक सरणाई राम नाम जपि निरमल मंत ॥२॥१९॥१०५॥
हे नानक ! मैंने उसके चरणों की शरण ली है और निर्मल राम नाम रूपी मंत्र जपता रहता हूँ॥ २ ॥ १६॥ १०५ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਤਾਪ ਪਾਪ ਤੇ ਰਾਖੇ ਆਪ ॥
ताप पाप ते राखे आप ॥
परमात्मा स्वयं मुझे दुखों एवं पापों से बचाता है।
ਸੀਤਲ ਭਏ ਗੁਰ ਚਰਨੀ ਲਾਗੇ ਰਾਮ ਨਾਮ ਹਿਰਦੇ ਮਹਿ ਜਾਪ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सीतल भए गुर चरनी लागे राम नाम हिरदे महि जाप ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु के चरणों में लगकर मन शांत हो गया है और अपने हृदय में राम नाम का ही जाप करता रहता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਹਸਤ ਪ੍ਰਭਿ ਦੀਨੇ ਜਗਤ ਉਧਾਰ ਨਵ ਖੰਡ ਪ੍ਰਤਾਪ ॥
करि किरपा हसत प्रभि दीने जगत उधार नव खंड प्रताप ॥
प्रभु ने कृपा कर मेरे सिर पर अपना हाथ रखा है, वह जगत् का उद्धार करने वाला है और धरती के नौ खण्डों में उसका ही प्रताप फैला हुआ है।
ਦੁਖ ਬਿਨਸੇ ਸੁਖ ਅਨਦ ਪ੍ਰਵੇਸਾ ਤ੍ਰਿਸਨ ਬੁਝੀ ਮਨ ਤਨ ਸਚੁ ਧ੍ਰਾਪ ॥੧॥
दुख बिनसे सुख अनद प्रवेसा त्रिसन बुझी मन तन सचु ध्राप ॥१॥
मेरे सब दुख नाश हो गए हैं तथा सुख एवं आनंद मन में प्रवेश कर गए हैं। नाम जपकर तृष्णा बुझ गई है और मन-तन संतुष्ट हो गए हैं। १॥
ਅਨਾਥ ਕੋ ਨਾਥੁ ਸਰਣਿ ਸਮਰਥਾ ਸਗਲ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਕੋ ਮਾਈ ਬਾਪੁ ॥
अनाथ को नाथु सरणि समरथा सगल स्रिसटि को माई बापु ॥
अनाथों का नाथ ईश्वर ही जीवों को शरण देने में समर्थ है और वही समूची सृष्टि का माता-पिता है।
ਭਗਤਿ ਵਛਲ ਭੈ ਭੰਜਨ ਸੁਆਮੀ ਗੁਣ ਗਾਵਤ ਨਾਨਕ ਆਲਾਪ ॥੨॥੨੦॥੧੦੬॥
भगति वछल भै भंजन सुआमी गुण गावत नानक आलाप ॥२॥२०॥१०६॥
हे नानक ! मैं तो भक्तवत्सल, भयनाशक स्वामी का ही गुणगान करता हूँ और उसका ही नाम अलापता हूँ ॥२॥२०॥१०६॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਜਿਸ ਤੇ ਉਪਜਿਆ ਤਿਸਹਿ ਪਛਾਨੁ ॥
जिस ते उपजिआ तिसहि पछानु ॥
हे मानव ! जिससे तू पैदा हुआ है, उसे पहचान !
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਧਿਆਇਆ ਕੁਸਲ ਖੇਮ ਹੋਏ ਕਲਿਆਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पारब्रहमु परमेसरु धिआइआ कुसल खेम होए कलिआन ॥१॥ रहाउ ॥
परब्रह्म-परमेश्वर का ध्यान-मनन करने से ही कुशलक्षेम एवं कल्याण होता है॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਭੇਟਿਓ ਬਡ ਭਾਗੀ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਸੁਘੜੁ ਸੁਜਾਨੁ ॥
गुरु पूरा भेटिओ बड भागी अंतरजामी सुघड़ु सुजानु ॥
अहोभाग्य से ही पूर्ण गुरु मिलता है, वही अन्तर्यामी, बुद्धिमान एवं सर्वगुणसम्पन्न है।
ਹਾਥ ਦੇਇ ਰਾਖੇ ਕਰਿ ਅਪਨੇ ਬਡ ਸਮਰਥੁ ਨਿਮਾਣਿਆ ਕੋ ਮਾਨੁ ॥੧॥
हाथ देइ राखे करि अपने बड समरथु निमाणिआ को मानु ॥१॥
वह अपना बनाकर हाथ देकर रक्षा करता है। वह बड़ा समर्थ है और सम्मानहीनों को सम्मान दिलवाता है॥ १ ॥
ਭ੍ਰਮ ਭੈ ਬਿਨਸਿ ਗਏ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਅੰਧਕਾਰ ਪ੍ਰਗਟੇ ਚਾਨਾਣੁ ॥
भ्रम भै बिनसि गए खिन भीतरि अंधकार प्रगटे चानाणु ॥
मेरे सारे भ्रम भय क्षण में ही नाश हो गए हैं और अज्ञान का अंधेरा मिटकर ज्ञान का प्रकाश हो गया है।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਆਰਾਧੈ ਨਾਨਕੁ ਸਦਾ ਸਦਾ ਜਾਈਐ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥੨॥੨੧॥੧੦੭॥
सासि सासि आराधै नानकु सदा सदा जाईऐ कुरबाणु ॥२॥२१॥१०७॥
हे नानक ! मैं तो जीवन की हर एक साँस से उसकी ही आराधना करता हूँ और सदैव उस पर कुर्बान जाता हूँ॥ २॥ २१॥ १०७॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਦੋਵੈ ਥਾਵ ਰਖੇ ਗੁਰ ਸੂਰੇ ॥
दोवै थाव रखे गुर सूरे ॥
शूरवीर गुरु ने इहलोक एवं परलोक दोनों स्थानों में हमारी रक्षा की है।
ਹਲਤ ਪਲਤ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਸਵਾਰੇ ਕਾਰਜ ਹੋਏ ਸਗਲੇ ਪੂਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हलत पलत पारब्रहमि सवारे कारज होए सगले पूरे ॥१॥ रहाउ ॥
परब्रह्म-परमेश्वर ने हमारा लोक-परलोक संवार दिया है और सभी कार्य पूरे हो गए हैं।॥ १॥रहाउ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਸੁਖ ਸਹਜੇ ਮਜਨੁ ਹੋਵਤ ਸਾਧੂ ਧੂਰੇ ॥
हरि हरि नामु जपत सुख सहजे मजनु होवत साधू धूरे ॥
हरि का नाम जपने से सुख प्राप्त हो गया है और साधुओं की चरण-धूलि में स्नान होता रहता है।
ਆਵਣ ਜਾਣ ਰਹੇ ਥਿਤਿ ਪਾਈ ਜਨਮ ਮਰਣ ਕੇ ਮਿਟੇ ਬਿਸੂਰੇ ॥੧॥
आवण जाण रहे थिति पाई जनम मरण के मिटे बिसूरे ॥१॥
अब आवागमन समाप्त हो गया है तथा जन्म-मरण के चक्र भी मिट गए हैं। १ ॥
ਭ੍ਰਮ ਭੈ ਤਰੇ ਛੁਟੇ ਭੈ ਜਮ ਕੇ ਘਟਿ ਘਟਿ ਏਕੁ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ॥
भ्रम भै तरे छुटे भै जम के घटि घटि एकु रहिआ भरपूरे ॥
में भ्रम-भय के सागर से पार हो गया हूँ और मृत्यु के भय से भी छूट गया हूँ। एक परमात्मा ही घट-घट में भरपूर हो रहा है।