ਰਾਖੁ ਸਰਣਿ ਜਗਦੀਸੁਰ ਪਿਆਰੇ ਮੋਹਿ ਸਰਧਾ ਪੂਰਿ ਹਰਿ ਗੁਸਾਈ ॥
राखु सरणि जगदीसुर पिआरे मोहि सरधा पूरि हरि गुसाई ॥
हे प्यारे जगदीश्वर ! मुझे अपनी शरण में रखें। हे हरि गोसाई ! मेरी श्रद्धा पूर्ण करो।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੈ ਮਨਿ ਅਨਦੁ ਹੋਤ ਹੈ ਹਰਿ ਦਰਸਨੁ ਨਿਮਖ ਦਿਖਾਈ ॥੨॥੩੯॥੧੩॥੧੫॥੬੭॥
जन नानक कै मनि अनदु होत है हरि दरसनु निमख दिखाई ॥२॥३९॥१३॥१५॥६७॥
नानक का हृदय आनंद से भरपूर हो जाता है, जब एक क्षण भर के लिए भी हरि अपना दर्शन करवा देता है॥२॥३९॥१३॥१५॥६७॥
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਘਰੁ ੨ ਮਹਲਾ ੫
रागु आसा घरु २ महला ५
रागु आसा घरु २ महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਜਿਨਿ ਲਾਈ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸੋਈ ਫਿਰਿ ਖਾਇਆ ॥
जिनि लाई प्रीति सोई फिरि खाइआ ॥
जिसने भी माया के साथ प्रेम लगाया है, यह उसे ही अंततः खा गई है।
ਜਿਨਿ ਸੁਖਿ ਬੈਠਾਲੀ ਤਿਸੁ ਭਉ ਬਹੁਤੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥
जिनि सुखि बैठाली तिसु भउ बहुतु दिखाइआ ॥
जिसने इसे सुखपूर्वक बैठाया है, उसे ही इसने अत्यंत भयभीत किया है।
ਭਾਈ ਮੀਤ ਕੁਟੰਬ ਦੇਖਿ ਬਿਬਾਦੇ ॥
भाई मीत कुट्मब देखि बिबादे ॥
भाई, मित्र एवं कुटुंब के सदस्य इसे देखकर परस्पर विवाद एवं झगड़ा उत्पन्न करते हैं
ਹਮ ਆਈ ਵਸਗਤਿ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੇ ॥੧॥
हम आई वसगति गुर परसादे ॥१॥
परन्तु गुरु की कृपा से यह मेरे वश में आ गई है॥ १॥
ਐਸਾ ਦੇਖਿ ਬਿਮੋਹਿਤ ਹੋਏ ॥
ऐसा देखि बिमोहित होए ॥
इसे ऐसा मीठा देखकर सभी मुग्ध हो जाते हैं।
ਸਾਧਿਕ ਸਿਧ ਸੁਰਦੇਵ ਮਨੁਖਾ ਬਿਨੁ ਸਾਧੂ ਸਭਿ ਧ੍ਰੋਹਨਿ ਧ੍ਰੋਹੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साधिक सिध सुरदेव मनुखा बिनु साधू सभि ध्रोहनि ध्रोहे ॥१॥ रहाउ ॥
इस ठगिनी माया ने गुरु के सिवाय साधक,सिद्ध, देवते एवं मनुष्य इत्यादि सबको ठग लिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਇਕਿ ਫਿਰਹਿ ਉਦਾਸੀ ਤਿਨੑ ਕਾਮਿ ਵਿਆਪੈ ॥
इकि फिरहि उदासी तिन्ह कामि विआपै ॥
कई उदासी बन कर भटकते फिरते हैं परन्तु कामवासना उन्हें दुखी करती है।
ਇਕਿ ਸੰਚਹਿ ਗਿਰਹੀ ਤਿਨੑ ਹੋਇ ਨ ਆਪੈ ॥
इकि संचहि गिरही तिन्ह होइ न आपै ॥
कई गृहस्थी बनकर माया-धन को संचित करते हैं परन्तु यह उनकी अपनी नहीं बनती।
ਇਕਿ ਸਤੀ ਕਹਾਵਹਿ ਤਿਨੑ ਬਹੁਤੁ ਕਲਪਾਵੈ ॥
इकि सती कहावहि तिन्ह बहुतु कलपावै ॥
जो अपने आपको दानी कहलवाते हैं यह उनको भी बहुत सताती है।
ਹਮ ਹਰਿ ਰਾਖੇ ਲਗਿ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਵੈ ॥੨॥
हम हरि राखे लगि सतिगुर पावै ॥२॥
लेकिन ईश्वर ने मुझे सतिगुरु के चरणों से लगाकर इससे बचा लिया है॥ २॥
ਤਪੁ ਕਰਤੇ ਤਪਸੀ ਭੂਲਾਏ ॥
तपु करते तपसी भूलाए ॥
तपस्यारत तपस्वी भी इसके कारण कुमार्गगामी हो जाते हैं।
ਪੰਡਿਤ ਮੋਹੇ ਲੋਭਿ ਸਬਾਏ ॥
पंडित मोहे लोभि सबाए ॥
समस्त पण्डित भी लोभ में फँसकर मोहित गए।
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਮੋਹੇ ਮੋਹਿਆ ਆਕਾਸੁ ॥
त्रै गुण मोहे मोहिआ आकासु ॥
इस माया ने समस्त त्रैगुणी जीवों को भी आकर्षित किया हुआ है और आकाश निवासी ठगे गए हैं।
ਹਮ ਸਤਿਗੁਰ ਰਾਖੇ ਦੇ ਕਰਿ ਹਾਥੁ ॥੩॥
हम सतिगुर राखे दे करि हाथु ॥३॥
(लेकिन) सतिगुरु ने अपना हाथ देकर हमारी रक्षा की है॥ ३॥
ਗਿਆਨੀ ਕੀ ਹੋਇ ਵਰਤੀ ਦਾਸਿ ॥
गिआनी की होइ वरती दासि ॥
यह माया ब्रह्मज्ञानी समक्ष दासी जैसा व्यवहार करती है।
ਕਰ ਜੋੜੇ ਸੇਵਾ ਕਰੇ ਅਰਦਾਸਿ ॥
कर जोड़े सेवा करे अरदासि ॥
वह हाथ जोड़कर उनकी सेवा करती है और प्रार्थना करती कि
ਜੋ ਤੂੰ ਕਹਹਿ ਸੁ ਕਾਰ ਕਮਾਵਾ ॥
जो तूं कहहि सु कार कमावा ॥
जो आप आज्ञा करेंगे मैं वही कार्य करूँगी।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵਾ ॥੪॥੧॥
जन नानक गुरमुख नेड़ि न आवा ॥४॥१॥
हे नानक ! माया कहती है कि मैं गुरुमुख के निकट नहीं आउंगी ॥ ४ ॥ १॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਸਸੂ ਤੇ ਪਿਰਿ ਕੀਨੀ ਵਾਖਿ ॥
ससू ते पिरि कीनी वाखि ॥
पति-परमेश्वर ने माया रूपी सास से मुझे अलग कर दिया है।
ਦੇਰ ਜਿਠਾਣੀ ਮੁਈ ਦੂਖਿ ਸੰਤਾਪਿ ॥
देर जिठाणी मुई दूखि संतापि ॥
मेरी देवरानी (आशा) एवं जेठानी (तृष्णा) दुख एवं संताप से मर गई हैं।
ਘਰ ਕੇ ਜਿਠੇਰੇ ਕੀ ਚੂਕੀ ਕਾਣਿ ॥
घर के जिठेरे की चूकी काणि ॥
घर के जेठ (धर्मराज) की भी मैंने मोहताजी छोड़ दी है।
ਪਿਰਿ ਰਖਿਆ ਕੀਨੀ ਸੁਘੜ ਸੁਜਾਣਿ ॥੧॥
पिरि रखिआ कीनी सुघड़ सुजाणि ॥१॥
मेरे चतुर एवं सर्वज्ञ पति-प्रभु ने मुझे बचा लिया है॥ १॥
ਸੁਨਹੁ ਲੋਕਾ ਮੈ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ॥
सुनहु लोका मै प्रेम रसु पाइआ ॥
हे लोगो ! सुनो, मुझे प्रेम रस प्राप्त हो गया है।
ਦੁਰਜਨ ਮਾਰੇ ਵੈਰੀ ਸੰਘਾਰੇ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮੋ ਕਉ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦਿਵਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दुरजन मारे वैरी संघारे सतिगुरि मो कउ हरि नामु दिवाइआ ॥१॥ रहाउ ॥
जिससे सतिगुरु ने मुझे हरि का नाम दिलवाया है। मैंने दुर्जनों को मार दिया है और कामादिक शत्रुओं का भी संहार कर दिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਥਮੇ ਤਿਆਗੀ ਹਉਮੈ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
प्रथमे तिआगी हउमै प्रीति ॥
सर्वप्रथम मैंने अहंकार का प्रेम त्याग दिया है।
ਦੁਤੀਆ ਤਿਆਗੀ ਲੋਗਾ ਰੀਤਿ ॥
दुतीआ तिआगी लोगा रीति ॥
द्वितीय मैंने सांसारिक प्रपंचों की रस्मों को छोड़ दिया है।
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਤਿਆਗਿ ਦੁਰਜਨ ਮੀਤ ਸਮਾਨੇ ॥
त्रै गुण तिआगि दुरजन मीत समाने ॥
त्रिगुणों का त्याग करने से अब दुष्ट एवं मित्र एक समान लगने लगे हैं।
ਤੁਰੀਆ ਗੁਣੁ ਮਿਲਿ ਸਾਧ ਪਛਾਨੇ ॥੨॥
तुरीआ गुणु मिलि साध पछाने ॥२॥
संत रूपी गुरु को मिलकर मैंने तुरीय अवस्था के गुणों को पहचान लिया है॥ २ ॥
ਸਹਜ ਗੁਫਾ ਮਹਿ ਆਸਣੁ ਬਾਧਿਆ ॥
सहज गुफा महि आसणु बाधिआ ॥
मैंने परमानंद की गुफा में आसन लगा लिया है।
ਜੋਤਿ ਸਰੂਪ ਅਨਾਹਦੁ ਵਾਜਿਆ ॥
जोति सरूप अनाहदु वाजिआ ॥
ज्योतिस्वरूप परमात्मा ने अनहद नाद बजाया है।
ਮਹਾ ਅਨੰਦੁ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ॥
महा अनंदु गुर सबदु वीचारि ॥
गुरु-शब्द का चिंतन करने से मुझे महा आनंद प्राप्त हुआ है।
ਪ੍ਰਿਅ ਸਿਉ ਰਾਤੀ ਧਨ ਸੋਹਾਗਣਿ ਨਾਰਿ ॥੩॥
प्रिअ सिउ राती धन सोहागणि नारि ॥३॥
जो जीव स्त्री अपने प्रियतम के प्रेम रंग में लीन हो गई है वह सुहागिन नारी धन्य है॥ ३॥
ਜਨ ਨਾਨਕੁ ਬੋਲੇ ਬ੍ਰਹਮ ਬੀਚਾਰੁ ॥
जन नानकु बोले ब्रहम बीचारु ॥
नानक ब्रह्म विचार की बात कर रहा है,”
ਜੋ ਸੁਣੇ ਕਮਾਵੈ ਸੁ ਉਤਰੈ ਪਾਰਿ ॥
जो सुणे कमावै सु उतरै पारि ॥
जो इसे श्रवण करेगा और इसकी साधना करेगा, वह संसार-सागर से पार हो जाएगा।
ਜਨਮਿ ਨ ਮਰੈ ਨ ਆਵੈ ਨ ਜਾਇ ॥
जनमि न मरै न आवै न जाइ ॥
न ही वह जन्मता है और न ही मरता है, वह (सृष्टि में बार-बार) न आता है और न ही जाता है।
ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਓਹੁ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥੪॥੨॥
हरि सेती ओहु रहै समाइ ॥४॥२॥
वह सदैव हरि की स्मृति में लीन हुआ रहता है॥ ४॥ २॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਨਿਜ ਭਗਤੀ ਸੀਲਵੰਤੀ ਨਾਰਿ ॥
निज भगती सीलवंती नारि ॥
भगवान् की भक्ति वह शीलवान नारी है,”
ਰੂਪਿ ਅਨੂਪ ਪੂਰੀ ਆਚਾਰਿ ॥
रूपि अनूप पूरी आचारि ॥
जो अनुपम रूपवती एवं पूर्ण आचरणयुक्त है।
ਜਿਤੁ ਗ੍ਰਿਹਿ ਵਸੈ ਸੋ ਗ੍ਰਿਹੁ ਸੋਭਾਵੰਤਾ ॥
जितु ग्रिहि वसै सो ग्रिहु सोभावंता ॥
जिस घर में वह रहती है, वह घर शोभावान हो जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈ ਕਿਨੈ ਵਿਰਲੈ ਜੰਤਾ ॥੧॥
गुरमुखि पाई किनै विरलै जंता ॥१॥
किसी विरले गुरुमुख को ही ऐसी नारी प्राप्त हुई है॥ १॥
ਸੁਕਰਣੀ ਕਾਮਣਿ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਹਮ ਪਾਈ ॥
सुकरणी कामणि गुर मिलि हम पाई ॥
गुरु से मिलकर मुझे शुभ कर्मों वाली (भक्ति रूपी) नारी प्राप्त हुई