Hindi Page 484

ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥

ਮੇਰੀ ਬਹੁਰੀਆ ਕੋ ਧਨੀਆ ਨਾਉ ॥
मेरी बहुरीआ को धनीआ नाउ ॥
(कबीर की माता कहती है कि) मेरी बहू का नाम धनीआ (धनवन्ती) था

ਲੇ ਰਾਖਿਓ ਰਾਮ ਜਨੀਆ ਨਾਉ ॥੧॥
ले राखिओ राम जनीआ नाउ ॥१॥
परन्तु (साधु-संतों के प्रभाव से) अब उसका नाम राम-जनिया (राम की सेविका) रख दिया गया है॥ १॥

ਇਨੑ ਮੁੰਡੀਅਨ ਮੇਰਾ ਘਰੁ ਧੁੰਧਰਾਵਾ ॥
इन्ह मुंडीअन मेरा घरु धुंधरावा ॥
इन साधु-संतों ने मेरा घर बर्बाद कर दिया है।

ਬਿਟਵਹਿ ਰਾਮ ਰਮਊਆ ਲਾਵਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बिटवहि राम रमऊआ लावा ॥१॥ रहाउ ॥
उन्होंने मेरे बेटे कबीर को राम नाम का भजन करने में लगा दिया है।॥ १॥ रहाउ ॥

ਕਹਤੁ ਕਬੀਰ ਸੁਨਹੁ ਮੇਰੀ ਮਾਈ ॥
कहतु कबीर सुनहु मेरी माई ॥
कबीर जी कहते हैं कि हे मेरी माता ! सुनो, (इनकी आलोचना मत करो)

ਇਨੑ ਮੁੰਡੀਅਨ ਮੇਰੀ ਜਾਤਿ ਗਵਾਈ ॥੨॥੩॥੩੩॥
इन्ह मुंडीअन मेरी जाति गवाई ॥२॥३॥३३॥
इन साधु-संतों ने तो मेरी नीच जाति खत्म कर दी है॥ २॥ ३॥ ३३॥

ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥

ਰਹੁ ਰਹੁ ਰੀ ਬਹੁਰੀਆ ਘੂੰਘਟੁ ਜਿਨਿ ਕਾਢੈ ॥
रहु रहु री बहुरीआ घूंघटु जिनि काढै ॥
हे बहू! अरे ठहर, रुक जा, जो तू घूंघट निकालती है,

ਅੰਤ ਕੀ ਬਾਰ ਲਹੈਗੀ ਨ ਆਢੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अंत की बार लहैगी न आढै ॥१॥ रहाउ ॥
अन्तिम समय इसका कौड़ी भर भी मूल्य नहीं अर्थात् कोई लाभ नहीं होगा ॥ १॥ रहाउ ॥

ਘੂੰਘਟੁ ਕਾਢਿ ਗਈ ਤੇਰੀ ਆਗੈ ॥
घूंघटु काढि गई तेरी आगै ॥
तुझसे पहले वाली (पूर्व पत्नी) भी घूंघट निकाला करती थी (जो प्राण त्याग गई है)

ਉਨ ਕੀ ਗੈਲਿ ਤੋਹਿ ਜਿਨਿ ਲਾਗੈ ॥੧॥
उन की गैलि तोहि जिनि लागै ॥१॥
तू उसके पद्चिन्हों पर अनुसरण मत कर ॥ १॥

ਘੂੰਘਟ ਕਾਢੇ ਕੀ ਇਹੈ ਬਡਾਈ ॥
घूंघट काढे की इहै बडाई ॥
घूंघट निकालने की केवल यही बड़ाई है कि

ਦਿਨ ਦਸ ਪਾਂਚ ਬਹੂ ਭਲੇ ਆਈ ॥੨॥
दिन दस पांच बहू भले आई ॥२॥
पाँच अथवो दस दिन के लिए लोग कहते हैं, ‘‘बड़ी नेक एवं अच्छी बहू आई हैं।॥ २ ॥

ਘੂੰਘਟੁ ਤੇਰੋ ਤਉ ਪਰਿ ਸਾਚੈ ॥
घूंघटु तेरो तउ परि साचै ॥
तेरा घूंघट तभी सच्चा होगा,

ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਇ ਕੂਦਹਿ ਅਰੁ ਨਾਚੈ ॥੩॥
हरि गुन गाइ कूदहि अरु नाचै ॥३॥
यदि तू हरि का गुणगान करती हुई कूदती और नाचती रहोगी॥ ३॥

ਕਹਤ ਕਬੀਰ ਬਹੂ ਤਬ ਜੀਤੈ ॥
कहत कबीर बहू तब जीतै ॥
कबीर जी कहते हैं कि बहू तभी जीवनबाजी जीत सकती है यदि

ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਵਤ ਜਨਮੁ ਬਿਤੀਤੈ ॥੪॥੧॥੩੪॥
हरि गुन गावत जनमु बितीतै ॥४॥१॥३४॥
उसका जीवन हरि का गुणगान करते हुए व्यतीत हो ॥ ४॥ १॥ ३४॥

ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥

ਕਰਵਤੁ ਭਲਾ ਨ ਕਰਵਟ ਤੇਰੀ ॥
करवतु भला न करवट तेरी ॥
हे स्वामी ! तुम्हारा करवट बदलने से तो मुझे बदन पर आरा चलवा लेना अधिक अच्छा लगता है।

ਲਾਗੁ ਗਲੇ ਸੁਨੁ ਬਿਨਤੀ ਮੇਰੀ ॥੧॥
लागु गले सुनु बिनती मेरी ॥१॥
मेरी विनती सुनो एवं मुझे गले से लगा लो॥ १॥

ਹਉ ਵਾਰੀ ਮੁਖੁ ਫੇਰਿ ਪਿਆਰੇ ॥
हउ वारी मुखु फेरि पिआरे ॥
हे प्रिय ! मेरी ओर मुख कीजिए, मैं तुझ पर कुर्बान जाती हूँ।

ਕਰਵਟੁ ਦੇ ਮੋ ਕਉ ਕਾਹੇ ਕਉ ਮਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करवटु दे मो कउ काहे कउ मारे ॥१॥ रहाउ ॥
मुझसे करवट बदल कर तुम मुझे क्यों मार रहे हो॥ १॥ रहाउ ॥

ਜਉ ਤਨੁ ਚੀਰਹਿ ਅੰਗੁ ਨ ਮੋਰਉ ॥
जउ तनु चीरहि अंगु न मोरउ ॥
हे स्वामी ! यदि तुम मेरा तन चीर भी दो तो भी मैं अपना अंग नहीं मोडूंगी।

ਪਿੰਡੁ ਪਰੈ ਤਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਤੋਰਉ ॥੨॥
पिंडु परै तउ प्रीति न तोरउ ॥२॥
चाहे मेरा शरीर नष्ट हो जाए तो भी मैं तुझ से अपनी प्रीति नहीं तोडूंगी॥ २॥

ਹਮ ਤੁਮ ਬੀਚੁ ਭਇਓ ਨਹੀ ਕੋਈ ॥
हम तुम बीचु भइओ नही कोई ॥
हमारे और तुम्हारे बीच दूसरा कोई मध्यस्थ नहीं।

ਤੁਮਹਿ ਸੁ ਕੰਤ ਨਾਰਿ ਹਮ ਸੋਈ ॥੩॥
तुमहि सु कंत नारि हम सोई ॥३॥
हे स्वामी ! तुम मेरे पति हो और मैं तुम्हारी पत्नी हूँ॥ ३॥

ਕਹਤੁ ਕਬੀਰੁ ਸੁਨਹੁ ਰੇ ਲੋਈ ॥
कहतु कबीरु सुनहु रे लोई ॥
कबीर जी कहते हैं कि हे लोगो ! सुनो,

ਅਬ ਤੁਮਰੀ ਪਰਤੀਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥੪॥੨॥੩੫॥
अब तुमरी परतीति न होई ॥४॥२॥३५॥
अब हमें तुम पर भरोसा नहीं होता॥ ४॥ २॥ ३५॥

ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥

ਕੋਰੀ ਕੋ ਕਾਹੂ ਮਰਮੁ ਨ ਜਾਨਾਂ ॥
कोरी को काहू मरमु न जानां ॥
कोई भी मनुष्य उस जुलाहे रूपी ईश्वर के भेद को नहीं जानता।

ਸਭੁ ਜਗੁ ਆਨਿ ਤਨਾਇਓ ਤਾਨਾਂ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सभु जगु आनि तनाइओ तानां ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु ने समूधे जगत में (जीव-जन्तुओं को उत्पन्न करके) ताना-गाना बनाया है॥ १॥ रहाउ॥

ਜਬ ਤੁਮ ਸੁਨਿ ਲੇ ਬੇਦ ਪੁਰਾਨਾਂ ॥
जब तुम सुनि ले बेद पुरानां ॥
जब तक तुम वेद-पुराणों को सुनते हो,

ਤਬ ਹਮ ਇਤਨਕੁ ਪਸਰਿਓ ਤਾਨਾਂ ॥੧॥
तब हम इतनकु पसरिओ तानां ॥१॥
तब हम ताना-घाना तान लेते हैं।॥ १॥

ਧਰਨਿ ਅਕਾਸ ਕੀ ਕਰਗਹ ਬਨਾਈ ॥
धरनि अकास की करगह बनाई ॥
उस प्रभु रूपी जुलाहे ने धरती एवं आकाश को अपनी फरधी बनाया है।

ਚੰਦੁ ਸੂਰਜੁ ਦੁਇ ਸਾਥ ਚਲਾਈ ॥੨॥
चंदु सूरजु दुइ साथ चलाई ॥२॥
उसके भीतर उसने चाँद एवं सूर्य की दो नलकियाँ चलाई हैं।॥ २॥

ਪਾਈ ਜੋਰਿ ਬਾਤ ਇਕ ਕੀਨੀ ਤਹ ਤਾਂਤੀ ਮਨੁ ਮਾਨਾਂ ॥
पाई जोरि बात इक कीनी तह तांती मनु मानां ॥
अपने पैर जोड़कर मैंने एक बात की है, उस जुलाहे रुपी प्रभु से मेरा मन संयुयत हो गया है।

ਜੋਲਾਹੇ ਘਰੁ ਅਪਨਾ ਚੀਨੑਾਂ ਘਟ ਹੀ ਰਾਮੁ ਪਛਾਨਾਂ ॥੩॥
जोलाहे घरु अपना चीन्हां घट ही रामु पछानां ॥३॥
कबीर-जुलाहे ने अपने वास्तविक घर को समझ लिया है और अपने अंतर्मन में राम को पहचान लिया है॥ ३॥

ਕਹਤੁ ਕਬੀਰੁ ਕਾਰਗਹ ਤੋਰੀ ॥
कहतु कबीरु कारगह तोरी ॥
कबीर जी कहते हैं कि जब शरीर रूपी करघा टूटता है तो

ਸੂਤੈ ਸੂਤ ਮਿਲਾਏ ਕੋਰੀ ॥੪॥੩॥੩੬॥
सूतै सूत मिलाए कोरी ॥४॥३॥३६॥
प्रभु रूपी जुलाहा मेरे धागे (ज्योति) को अपने धागे (ज्योति) के साथ मिला लेता है॥ ४॥ ३॥ ३६॥

ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥

ਅੰਤਰਿ ਮੈਲੁ ਜੇ ਤੀਰਥ ਨਾਵੈ ਤਿਸੁ ਬੈਕੁੰਠ ਨ ਜਾਨਾਂ ॥
अंतरि मैलु जे तीरथ नावै तिसु बैकुंठ न जानां ॥
जिस व्यक्ति के हृदय में पापों की मैल भरी हुई हो, यदि वह तीर्थों पर जाकर स्नान कर भी ले तो भी उसे वैकुण्ठ प्राप्त नहीं हो सकता।

ਲੋਕ ਪਤੀਣੇ ਕਛੂ ਨ ਹੋਵੈ ਨਾਹੀ ਰਾਮੁ ਅਯਾਨਾ ॥੧॥
लोक पतीणे कछू न होवै नाही रामु अयाना ॥१॥
दिखावे के तौर पर लोगों को प्रसन्न करने से कुछ नहीं बनता, क्योंकि राम कोई नादान नहीं वह तो सर्वज्ञाता है॥ १॥

ਪੂਜਹੁ ਰਾਮੁ ਏਕੁ ਹੀ ਦੇਵਾ ॥
पूजहु रामु एकु ही देवा ॥
केवल एक राम को ही इष्टदेव मानकर उसकी श्रद्धा से पूजा करो।

ਸਾਚਾ ਨਾਵਣੁ ਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साचा नावणु गुर की सेवा ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की सेवा ही असल में सच्चा तीर्थ स्नान है॥ १॥ रहाउ॥

ਜਲ ਕੈ ਮਜਨਿ ਜੇ ਗਤਿ ਹੋਵੈ ਨਿਤ ਨਿਤ ਮੇਂਡੁਕ ਨਾਵਹਿ ॥
जल कै मजनि जे गति होवै नित नित मेंडुक नावहि ॥
यदि जल में स्नान करने से मोक्ष मिलता है तो मेंढक तो प्रतिदिन ही जल में नहाता है (अर्थात् मेंढक की गति हो गई होती)।

ਜੈਸੇ ਮੇਂਡੁਕ ਤੈਸੇ ਓਇ ਨਰ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜੋਨੀ ਆਵਹਿ ॥੨॥
जैसे मेंडुक तैसे ओइ नर फिरि फिरि जोनी आवहि ॥२॥
जैसे मेंढक है वैसे ही मनुष्य है जो बार-बार योनियों में आता है॥ २ ॥

ਮਨਹੁ ਕਠੋਰੁ ਮਰੈ ਬਾਨਾਰਸਿ ਨਰਕੁ ਨ ਬਾਂਚਿਆ ਜਾਈ ॥
मनहु कठोरु मरै बानारसि नरकु न बांचिआ जाई ॥
यदि कठोर मन का व्यक्ति बनारस में प्राण त्याग देता है तो वह नरक में जाने से नहीं बच सकता।

ਹਰਿ ਕਾ ਸੰਤੁ ਮਰੈ ਹਾੜੰਬੈ ਤ ਸਗਲੀ ਸੈਨ ਤਰਾਈ ॥੩॥
हरि का संतु मरै हाड़्मबै त सगली सैन तराई ॥३॥
लेकिन यदि हरि का संत मगहर में प्राण त्याग देता है तो वह अपने सगे-संबंधियों को भी पार करवा देता है॥ ३॥

ਦਿਨਸੁ ਨ ਰੈਨਿ ਬੇਦੁ ਨਹੀ ਸਾਸਤ੍ਰ ਤਹਾ ਬਸੈ ਨਿਰੰਕਾਰਾ ॥
दिनसु न रैनि बेदु नही सासत्र तहा बसै निरंकारा ॥
जहाँ दिन अथवा रात नहीं, न ही वेद अथवा शास्त्र हैं, वहाँ निरंकार प्रभु निवास करता है।

ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਨਰ ਤਿਸਹਿ ਧਿਆਵਹੁ ਬਾਵਰਿਆ ਸੰਸਾਰਾ ॥੪॥੪॥੩੭॥
कहि कबीर नर तिसहि धिआवहु बावरिआ संसारा ॥४॥४॥३७॥
कबीर जी कहते हैं कि हे प्राणी ! यह सारा संसार तो बावला है, इसका मोह छोड़कर भगवान का ध्यान करो।॥ ४ ॥ ४ ॥ ३७ ॥

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