Hindi Page 695

ਧਨਾਸਰੀ ਬਾਣੀ ਭਗਤਾਂ ਕੀ ਤ੍ਰਿਲੋਚਨ
धनासरी बाणी भगतां की त्रिलोचन
धनासरी बाणी भगतां की त्रिलोचन

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਨਾਰਾਇਣ ਨਿੰਦਸਿ ਕਾਇ ਭੂਲੀ ਗਵਾਰੀ ॥
नाराइण निंदसि काइ भूली गवारी ॥
हे भूली हुई मूर्ख स्त्री ! तू नारायण की क्यों निन्दा कर रही है ?

ਦੁਕ੍ਰਿਤੁ ਸੁਕ੍ਰਿਤੁ ਥਾਰੋ ਕਰਮੁ ਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दुक्रितु सुक्रितु थारो करमु री ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्व जन्म में किए हुए शुभाशुभ कर्म ही तेरा भाग्य है जो तू दुःख-सु:ख के रूप में भोग रही है ॥१॥ रहाउ ॥

ਸੰਕਰਾ ਮਸਤਕਿ ਬਸਤਾ ਸੁਰਸਰੀ ਇਸਨਾਨ ਰੇ ॥
संकरा मसतकि बसता सुरसरी इसनान रे ॥
चन्द्रमा शिव-शंकर के माथे पर बसता है और हमेशा ही गंगा में स्नान करता है।

ਕੁਲ ਜਨ ਮਧੇ ਮਿਲੵਿੋ ਸਾਰਗ ਪਾਨ ਰੇ ॥
कुल जन मधे मिल्यिो सारग पान रे ॥
चाहे विष्णु का अवतार कृष्ण भी चंद्र वंश के लोगों में आ मिला था तो भी

ਕਰਮ ਕਰਿ ਕਲੰਕੁ ਮਫੀਟਸਿ ਰੀ ॥੧॥
करम करि कलंकु मफीटसि री ॥१॥
चन्द्रमा के कर्मों के कारण लगा कलंक नहीं मिट सका।॥१॥

ਬਿਸ੍ਵ ਕਾ ਦੀਪਕੁ ਸ੍ਵਾਮੀ ਤਾ ਚੇ ਰੇ ਸੁਆਰਥੀ ਪੰਖੀ ਰਾਇ ਗਰੁੜ ਤਾ ਚੇ ਬਾਧਵਾ ॥
बिस्व का दीपकु स्वामी ता चे रे सुआरथी पंखी राइ गरुड़ ता चे बाधवा ॥
विश्व का दीपक सूर्य अपने सारथी अरुण का स्वामी है और पक्षीराज गरुड़ अरुण का भाई है किन्तु

ਕਰਮ ਕਰਿ ਅਰੁਣ ਪਿੰਗੁਲਾ ਰੀ ॥੨॥
करम करि अरुण पिंगुला री ॥२॥
अपने कर्मों के कारण अरुण लंगड़ा है॥ २॥

ਅਨਿਕ ਪਾਤਿਕ ਹਰਤਾ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਨਾਥੁ ਰੀ ਤੀਰਥਿ ਤੀਰਥਿ ਭ੍ਰਮਤਾ ਲਹੈ ਨ ਪਾਰੁ ਰੀ ॥
अनिक पातिक हरता त्रिभवण नाथु री तीरथि तीरथि भ्रमता लहै न पारु री ॥
तीनों लोकों का स्वामी शिव-शंकर जीवों के अनेक पाप हरण करने वाला है। वह भी अनेक तीर्थों पर भटकता रहा किन्तु फिर भी अन्त नहीं पा सका।

ਕਰਮ ਕਰਿ ਕਪਾਲੁ ਮਫੀਟਸਿ ਰੀ ॥੩॥
करम करि कपालु मफीटसि री ॥३॥
शिव, ब्रह्मा के सिर काटने के बुरे कर्म को मिटा नहीं सके॥ ३॥

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਸੀਅ ਧੇਨ ਲਛਿਮੀ ਕਲਪਤਰ ਸਿਖਰਿ ਸੁਨਾਗਰ ਨਦੀ ਚੇ ਨਾਥੰ ॥
अम्रित ससीअ धेन लछिमी कलपतर सिखरि सुनागर नदी चे नाथं ॥
नदियों के स्वामी समुद्र में से अमृत, चन्द्रमा, कामधेनु, विष्णु की पत्नी लक्ष्मी, कल्पवृक्ष, उच्चैश्रवा घोड़ा, धन्वंतरि वैद्य इत्यादि रत्न निकले हैं परन्तु

ਕਰਮ ਕਰਿ ਖਾਰੁ ਮਫੀਟਸਿ ਰੀ ॥੪॥
करम करि खारु मफीटसि री ॥४॥
समुद्र अपने दुष्कर्मों के कारण ही अपना खारापन नहीं मिटा सका ॥ ४॥

ਦਾਧੀਲੇ ਲੰਕਾ ਗੜੁ ਉਪਾੜੀਲੇ ਰਾਵਣ ਬਣੁ ਸਲਿ ਬਿਸਲਿ ਆਣਿ ਤੋਖੀਲੇ ਹਰੀ ॥
दाधीले लंका गड़ु उपाड़ीले रावण बणु सलि बिसलि आणि तोखीले हरी ॥
चाहे हनुमान जी ने लंका का दुर्ग जला दिया, रावण का उपवन बर्बाद कर दिया और लक्ष्मण जी के मूर्छित होने पर घाव ठीक करने के लिए संजीवनी बूटी लाकर श्री रामचंद्र जी को प्रसन्न किया परन्तु

ਕਰਮ ਕਰਿ ਕਛਉਟੀ ਮਫੀਟਸਿ ਰੀ ॥੫॥
करम करि कछउटी मफीटसि री ॥५॥
उसके कर्मों के कारण उसे एक छोटी-सी लंगोटी ही मिली और उसके कर्मो का फल न मिट सका।॥५॥

ਪੂਰਬਲੋ ਕ੍ਰਿਤ ਕਰਮੁ ਨ ਮਿਟੈ ਰੀ ਘਰ ਗੇਹਣਿ ਤਾ ਚੇ ਮੋਹਿ ਜਾਪੀਅਲੇ ਰਾਮ ਚੇ ਨਾਮੰ ॥
पूरबलो क्रित करमु न मिटै री घर गेहणि ता चे मोहि जापीअले राम चे नामं ॥
हे मेरे घर की गृहिणी ! पूर्व जन्म में किए पाप-पुण्य के कर्मों का फल नहीं मिटता और उसका दुःख-सुःख भोगना ही पड़ता है।

ਬਦਤਿ ਤ੍ਰਿਲੋਚਨ ਰਾਮ ਜੀ ॥੬॥੧॥
बदति त्रिलोचन राम जी ॥६॥१॥
त्रिलोचन जी का कथन है कि इसलिए मैं राम का नाम ही जपता रहता हूँ और तू भी राम जी के नाम को जप॥ ६॥ १॥

ਸ੍ਰੀ ਸੈਣੁ ॥
स्री सैणु ॥
श्री सैणु ॥

ਧੂਪ ਦੀਪ ਘ੍ਰਿਤ ਸਾਜਿ ਆਰਤੀ ॥ ਵਾਰਨੇ ਜਾਉ ਕਮਲਾ ਪਤੀ ॥੧॥
धूप दीप घ्रित साजि आरती ॥ वारने जाउ कमला पती ॥१॥
मेरी धूप, दीप, घी इत्यादि सजाकर की हुई आरती के समान हे लक्ष्मीपति प्रभु ! मेरा तुझ पर तन-मन से न्यौछावर जाना ही है ॥ १॥

ਮੰਗਲਾ ਹਰਿ ਮੰਗਲਾ ॥ ਨਿਤ ਮੰਗਲੁ ਰਾਜਾ ਰਾਮ ਰਾਇ ਕੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मंगला हरि मंगला ॥ नित मंगलु राजा राम राइ को ॥१॥ रहाउ ॥
समूचे विश्व में हरि का मंगल-गान हो रहा है और मैं भी नित्य ही धरती के स्वामी प्रभु राम का मंगल-गान कर रहा हूँ॥ १॥ रहाउ ॥

ਊਤਮੁ ਦੀਅਰਾ ਨਿਰਮਲ ਬਾਤੀ ॥ ਤੁਹੀਂ ਨਿਰੰਜਨੁ ਕਮਲਾ ਪਾਤੀ ॥੨॥
ऊतमु दीअरा निरमल बाती ॥ तुहीं निरंजनु कमला पाती ॥२॥
मेरे लिए तू ही उत्तम दीपक एवं निर्मल बाती है हे लक्ष्मीपति ! तू ही निरंजन है। ॥२॥

ਰਾਮਾ ਭਗਤਿ ਰਾਮਾਨੰਦੁ ਜਾਨੈ ॥ ਪੂਰਨ ਪਰਮਾਨੰਦੁ ਬਖਾਨੈ ॥੩॥
रामा भगति रामानंदु जानै ॥ पूरन परमानंदु बखानै ॥३॥
राम की भक्ति करनी मेरा गुरु रामानंद ही जानता है। मेरा गुरुदेव बताता है कि राम सर्वव्यापी है और परमानंद है॥३॥

ਮਦਨ ਮੂਰਤਿ ਭੈ ਤਾਰਿ ਗੋਬਿੰਦੇ ॥ ਸੈਨੁ ਭਣੈ ਭਜੁ ਪਰਮਾਨੰਦੇ ॥੪॥੨॥
मदन मूरति भै तारि गोबिंदे ॥ सैनु भणै भजु परमानंदे ॥४॥२॥
हे गोविन्द ! तेरा स्वरूप बड़ा मनमोहक है, मुझे भवसागर से पार कर दो। भक्त सैन जी का कथन है कि उस परमानंद प्रभु का ही भजन करो ॥४ ॥२॥

ਪੀਪਾ ॥
पीपा ॥
पीपा ॥

ਕਾਯਉ ਦੇਵਾ ਕਾਇਅਉ ਦੇਵਲ ਕਾਇਅਉ ਜੰਗਮ ਜਾਤੀ ॥
कायउ देवा काइअउ देवल काइअउ जंगम जाती ॥
मैं अपने शरीर में ही भगवान की खोज करता हूँ, चूंकि मेरा शरीर ही ईश्वर का मन्दिर है। मेरे शरीर में विद्यमान आत्मा ही तीर्थ-यात्रा करने वाला जंगम साधु है।

ਕਾਇਅਉ ਧੂਪ ਦੀਪ ਨਈਬੇਦਾ ਕਾਇਅਉ ਪੂਜਉ ਪਾਤੀ ॥੧॥
काइअउ धूप दीप नईबेदा काइअउ पूजउ पाती ॥१॥
मेरा शरीर ही आरती की सामग्री-धूप, दीप एवं नैवैद्य है। मेरा शरीर ही पूजा की फूलों की पतियाँ हैं।॥ १ ॥

ਕਾਇਆ ਬਹੁ ਖੰਡ ਖੋਜਤੇ ਨਵ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥
काइआ बहु खंड खोजते नव निधि पाई ॥
मैंने अपने शरीर में ही बहुत खोज-तलाश करके नवनिधियों प्राप्त कर ली हैं।

ਨਾ ਕਛੁ ਆਇਬੋ ਨਾ ਕਛੁ ਜਾਇਬੋ ਰਾਮ ਕੀ ਦੁਹਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ना कछु आइबो ना कछु जाइबो राम की दुहाई ॥१॥ रहाउ ॥
मैं राम की दुहाई देकर कहता हूँ कि न कुछ यहाँ से आता है और न ही कुछ यहाँ से जाता है अर्थात् भगवान ही सर्वस्व है ॥१॥ रहाउ ॥

ਜੋ ਬ੍ਰਹਮੰਡੇ ਸੋਈ ਪਿੰਡੇ ਜੋ ਖੋਜੈ ਸੋ ਪਾਵੈ ॥
जो ब्रहमंडे सोई पिंडे जो खोजै सो पावै ॥
जो प्रभु ब्रह्माण्ड में निवास करता है, वही प्रत्येक मनुष्य के शरीर में भी निवास करता है। जो उसकी खोज करता है, वह उसे शरीर में से ही प्राप्त कर लेता है।

ਪੀਪਾ ਪ੍ਰਣਵੈ ਪਰਮ ਤਤੁ ਹੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਹੋਇ ਲਖਾਵੈ ॥੨॥੩॥
पीपा प्रणवै परम ततु है सतिगुरु होइ लखावै ॥२॥३॥
भक्त पीपा प्रार्थना करता है कि ईश्वर ही परम-तत्व है और वह सतगुरु बनकर खुद ही दर्शन करवा देता है ॥२॥३॥

ਧੰਨਾ ॥
धंना ॥
धंना ॥

ਗੋਪਾਲ ਤੇਰਾ ਆਰਤਾ ॥
गोपाल तेरा आरता ॥
हे परमात्मा ! मैं भिक्षुक तुझ से प्रार्थना कर रहा हूँ।

ਜੋ ਜਨ ਤੁਮਰੀ ਭਗਤਿ ਕਰੰਤੇ ਤਿਨ ਕੇ ਕਾਜ ਸਵਾਰਤਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो जन तुमरी भगति करंते तिन के काज सवारता ॥१॥ रहाउ ॥
जो व्यक्ति भी तुम्हारी भक्ति करते हैं, तुम उनके सभी कार्य संवार देते हो ॥१॥ रहाउ ॥

ਦਾਲਿ ਸੀਧਾ ਮਾਗਉ ਘੀਉ ॥
दालि सीधा मागउ घीउ ॥
मैं तुझ से दाल, घी एवं आटा माँगता हूँ,

ਹਮਰਾ ਖੁਸੀ ਕਰੈ ਨਿਤ ਜੀਉ ॥
हमरा खुसी करै नित जीउ ॥
जिससे मेरा मन सदैव प्रसन्न रहेगा।

ਪਨੑੀਆ ਛਾਦਨੁ ਨੀਕਾ ॥
पन्हीआ छादनु नीका ॥
मैं पैरों के लिए जूती एवं शरीर पर पहनने के लिए सुन्दर वस्त्र भी माँगता हूँ।

ਅਨਾਜੁ ਮਗਉ ਸਤ ਸੀ ਕਾ ॥੧॥
अनाजु मगउ सत सी का ॥१॥
मैं सात प्रकार का अनाज भी माँगता हूँ॥१॥

ਗਊ ਭੈਸ ਮਗਉ ਲਾਵੇਰੀ ॥
गऊ भैस मगउ लावेरी ॥
हे ईश्वर ! मैं दूध पीने के लिए एक गाय और एक दूध देती भैंस भी माँगता हूँ।

ਇਕ ਤਾਜਨਿ ਤੁਰੀ ਚੰਗੇਰੀ ॥
इक ताजनि तुरी चंगेरी ॥
मेरी इच्छा है कि सवारी के लिए एक कुशल अरबी घोड़ी भी मिल जाए।

ਘਰ ਕੀ ਗੀਹਨਿ ਚੰਗੀ ॥ ਜਨੁ ਧੰਨਾ ਲੇਵੈ ਮੰਗੀ ॥੨॥੪॥
घर की गीहनि चंगी ॥ जनु धंना लेवै मंगी ॥२॥४॥
मैं अपने घर की देखभाल हेतु एक सुशील पत्नी भी चाहता हूँ। तेरा भक्त धन्ना केवल यही वस्तुएँ तुझसे माँगकर लेता है ॥२॥४॥

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