Hindi Page 826

ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਪਰਿਓ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਪੇਖਿ ਹਜੂਰੇ ॥੨॥੨੨॥੧੦੮॥
नानक सरणि परिओ दुख भंजन अंतरि बाहरि पेखि हजूरे ॥२॥२२॥१०८॥
हे नानक ! मैं तो दुखनाशक परमात्मा की शरण में ही आया हूँ और अन्तर्मन एवं बाहर उसे ही देखता हूँ ॥२॥२२॥१०८॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਤ ਦੋਖ ਨਸੇ ॥
दरसनु देखत दोख नसे ॥
हे ईश्वर ! तेरे दर्शन करने से ही सारे दोष नाश हो जाते हैं।

ਕਬਹੁ ਨ ਹੋਵਹੁ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਅਗੋਚਰ ਜੀਅ ਕੈ ਸੰਗਿ ਬਸੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कबहु न होवहु द्रिसटि अगोचर जीअ कै संगि बसे ॥१॥ रहाउ ॥
इसलिए तू कभी भी हमारी नजर से दूर मत होना और सदैव प्राणों के साथ बसे रहना ॥ १॥ रहाउ॥

ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰ ਸੁਆਮੀ ॥
प्रीतम प्रान अधार सुआमी ॥
हे मेरे प्रियतम ! तू मेरे प्राणों का आधार है और तू ही मेरा स्वामी है।

ਪੂਰਿ ਰਹੇ ਪ੍ਰਭ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥੧॥
पूरि रहे प्रभ अंतरजामी ॥१॥
वह अन्तर्यामी प्रभु हर जगह बसा हुआ है।१॥

ਕਿਆ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ਸਾਰਿ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ॥
किआ गुण तेरे सारि सम्हारी ॥
मैं तेरे कौन-कौन से गुण स्मरण करके तेरा ध्यान करूँ।

ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਪ੍ਰਭ ਤੁਝਹਿ ਚਿਤਾਰੀ ॥੨॥
सासि सासि प्रभ तुझहि चितारी ॥२॥
हे प्रभु! जीवन की हर एक साँस से तुझे ही याद करता रहता हूँ॥ २॥

ਕਿਰਪਾ ਨਿਧਿ ਪ੍ਰਭ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥
किरपा निधि प्रभ दीन दइआला ॥
हे प्रभु ! तू कृपानिधि एवं दीनदयाल है,

ਜੀਅ ਜੰਤ ਕੀ ਕਰਹੁ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ॥੩॥
जीअ जंत की करहु प्रतिपाला ॥३॥
अपने जीवों का पालन-पोषण करो॥ ३॥

ਆਠ ਪਹਰ ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ਜਨੁ ਜਾਪੇ ॥
आठ पहर तेरा नामु जनु जापे ॥
यह सेवक आठ प्रहर तेरा ही नाम जपता रहता है।

ਨਾਨਕ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਾਈ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪੇ ॥੪॥੨੩॥੧੦੯॥
नानक प्रीति लाई प्रभि आपे ॥४॥२३॥१०९॥
हे नानक ! प्रभु ने स्वयं ही अपनी प्रीति मेरे मन में लगाई है॥ ४ ॥ २३ ॥ १०६ ॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਤਨੁ ਧਨੁ ਜੋਬਨੁ ਚਲਤ ਗਇਆ ॥
तनु धनु जोबनु चलत गइआ ॥
हे जीव ! तेरा तन, धन एवं यौवन चला गया है।

ਰਾਮ ਨਾਮ ਕਾ ਭਜਨੁ ਨ ਕੀਨੋ ਕਰਤ ਬਿਕਾਰ ਨਿਸਿ ਭੋਰੁ ਭਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम नाम का भजनु न कीनो करत बिकार निसि भोरु भइआ ॥१॥ रहाउ ॥
मगर तूने राम-नाम का भजन नहीं किया और दिन-रात विकार करते ही बीत गए हैं।॥ १॥ रहाउ ॥

ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਭੋਜਨ ਨਿਤ ਖਾਤੇ ਮੁਖ ਦੰਤਾ ਘਸਿ ਖੀਨ ਖਇਆ ॥
अनिक प्रकार भोजन नित खाते मुख दंता घसि खीन खइआ ॥
नित्य अनेक प्रकार का भोजन खाते मुँह के दाँत भी घिस कर क्षीण हो गए हैं।

ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਕਰਿ ਕਰਿ ਮੂਠਉ ਪਾਪ ਕਰਤ ਨਹ ਪਰੀ ਦਇਆ ॥੧॥
मेरी मेरी करि करि मूठउ पाप करत नह परी दइआ ॥१॥
मेरी-मेरी कर करके तू लुट गया है और पाप करते हुए तेरे मन में कभी दया नहीं आई॥ १॥

ਮਹਾ ਬਿਕਾਰ ਘੋਰ ਦੁਖ ਸਾਗਰ ਤਿਸੁ ਮਹਿ ਪ੍ਰਾਣੀ ਗਲਤੁ ਪਇਆ ॥
महा बिकार घोर दुख सागर तिसु महि प्राणी गलतु पइआ ॥
हे प्राणी ! यह जगत् महाविकारों एवं दुखों का घोर सागर है, जिसमें तू डूबा हुआ है।

ਸਰਨਿ ਪਰੇ ਨਾਨਕ ਸੁਆਮੀ ਕੀ ਬਾਹ ਪਕਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਕਾਢਿ ਲਇਆ ॥੨॥੨੪॥੧੧੦॥
सरनि परे नानक सुआमी की बाह पकरि प्रभि काढि लइआ ॥२॥२४॥११०॥
हे नानक ! जो जीव स्वामी की शरण में पड़ गए हैं, प्रभु ने उन्हें बाँह से पकड़ कर दुखों के सागर से निकाल लिया है॥ २॥ २४॥ ११०॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਆਪਨਾ ਪ੍ਰਭੁ ਆਇਆ ਚੀਤਿ ॥
आपना प्रभु आइआ चीति ॥
हे मेरे सज्जनों ! जब अपना प्रभु याद आया तो

ਦੁਸਮਨ ਦੁਸਟ ਰਹੇ ਝਖ ਮਾਰਤ ਕੁਸਲੁ ਭਇਆ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ਮੀਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दुसमन दुसट रहे झख मारत कुसलु भइआ मेरे भाई मीत ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा कल्याण हो गया तथा मेरे दुष्ट दुश्मन व्यर्थ ही समय बर्बाद करते रहे॥ १॥ रहाउ॥

ਗਈ ਬਿਆਧਿ ਉਪਾਧਿ ਸਭ ਨਾਸੀ ਅੰਗੀਕਾਰੁ ਕੀਓ ਕਰਤਾਰਿ ॥
गई बिआधि उपाधि सभ नासी अंगीकारु कीओ करतारि ॥
जब करतार ने मेरा पक्ष लिया तो सब व्याधियाँ एवं मुसीबतें नाश हो गई

ਸਾਂਤਿ ਸੂਖ ਅਰੁ ਅਨਦ ਘਨੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਉਰ ਹਾਰਿ ॥੧॥
सांति सूख अरु अनद घनेरे प्रीतम नामु रिदै उर हारि ॥१॥
जब मैंने प्रियतम के नाम को अपने हृदय का हार बना लिया तो मन में सुख, शांति और बड़ा आनंद पैदा हो गया।॥ १॥

ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਧਨੁ ਰਾਸਿ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੀ ਤੂੰ ਸਮਰਥੁ ਸੁਆਮੀ ਮੇਰਾ ॥
जीउ पिंडु धनु रासि प्रभ तेरी तूं समरथु सुआमी मेरा ॥
हे प्रभु! मेरी जिंदगी, तन एवं धन सब तेरी ही दी हुई पूंजी है और तू ही मेरा समर्थ स्वामी है।

ਦਾਸ ਅਪੁਨੇ ਕਉ ਰਾਖਨਹਾਰਾ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਦਾ ਹੈ ਚੇਰਾ ॥੨॥੨੫॥੧੧੧॥
दास अपुने कउ राखनहारा नानक दास सदा है चेरा ॥२॥२५॥१११॥
तू ही अपने दास का रखवाला है और दास नानक सदैव तेरा चेला है॥ २॥ २५ ॥ १११ ॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਗੋਬਿਦੁ ਸਿਮਰਿ ਹੋਆ ਕਲਿਆਣੁ ॥
गोबिदु सिमरि होआ कलिआणु ॥
गोविन्द का सिमरन करने से कल्याण हो गया है।

ਮਿਟੀ ਉਪਾਧਿ ਭਇਆ ਸੁਖੁ ਸਾਚਾ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਸਿਮਰਿਆ ਜਾਣੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मिटी उपाधि भइआ सुखु साचा अंतरजामी सिमरिआ जाणु ॥१॥ रहाउ ॥
उस अन्तर्यामी का भजन करने से सब मुसीबतें मिट गई हैं और सच्चा सुख प्राप्त हो गया है॥ १॥ रहाउ॥

ਜਿਸ ਕੇ ਜੀਅ ਤਿਨਿ ਕੀਏ ਸੁਖਾਲੇ ਭਗਤ ਜਨਾ ਕਉ ਸਾਚਾ ਤਾਣੁ ॥
जिस के जीअ तिनि कीए सुखाले भगत जना कउ साचा ताणु ॥
जिसके ये जीव पैदा किए हुए हैं, उसने ही उन्हें सुखी किया है तथा भक्तजनों को उसका ही सच्चा सहारा है।

ਦਾਸ ਅਪੁਨੇ ਕੀ ਆਪੇ ਰਾਖੀ ਭੈ ਭੰਜਨ ਊਪਰਿ ਕਰਤੇ ਮਾਣੁ ॥੧॥
दास अपुने की आपे राखी भै भंजन ऊपरि करते माणु ॥१॥
प्रभु ने स्वयं अपने भक्तों की लाज रखी है और वे तो भयनाशक परमात्मा पर ही गर्व करते हैं।॥ १॥

ਭਈ ਮਿਤ੍ਰਾਈ ਮਿਟੀ ਬੁਰਾਈ ਦ੍ਰੁਸਟ ਦੂਤ ਹਰਿ ਕਾਢੇ ਛਾਣਿ ॥
भई मित्राई मिटी बुराई द्रुसट दूत हरि काढे छाणि ॥
भगवान ने चुन-चुनकर कामादिक दुष्ट दूतों को मन से निकाल दिया है और अब सबसे मित्रता हो गई है तथा सारी बुराई मिट गई है।

ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਘਨੇਰੇ ਨਾਨਕ ਜੀਵੈ ਹਰਿ ਗੁਣਹ ਵਖਾਣਿ ॥੨॥੨੬॥੧੧੨॥
सूख सहज आनंद घनेरे नानक जीवै हरि गुणह वखाणि ॥२॥२६॥११२॥
हे नानक ! मैं तो भगवान के गुणों का बखान करके ही जी रहा हूँ और मन में सहज सुख एवं आनंद पैदा हो गया है॥ २॥ २६॥ ११२॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪ੍ਰਭ ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ॥
पारब्रहम प्रभ भए क्रिपाल ॥
परब्रह्म प्रभु कृपालु हो गया है।

ਕਾਰਜ ਸਗਲ ਸਵਾਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਜਪਿ ਜਪਿ ਸਾਧੂ ਭਏ ਨਿਹਾਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कारज सगल सवारे सतिगुर जपि जपि साधू भए निहाल ॥१॥ रहाउ ॥
सतगुरु ने सब कार्य संवार दिए हैं तथा नाम जप-जपकर साधुजन निहाल हो गए हैं।॥ १॥ रहाउ॥

ਅੰਗੀਕਾਰੁ ਕੀਆ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪਨੈ ਦੋਖੀ ਸਗਲੇ ਭਏ ਰਵਾਲ ॥
अंगीकारु कीआ प्रभि अपनै दोखी सगले भए रवाल ॥
प्रभु ने अपने सेवक का पक्ष लिया है, जिससे उसके सारे दोषी मिट्टी में मिल गए हैं।

ਕੰਠਿ ਲਾਇ ਰਾਖੇ ਜਨ ਅਪਨੇ ਉਧਰਿ ਲੀਏ ਲਾਇ ਅਪਨੈ ਪਾਲ ॥੧॥
कंठि लाइ राखे जन अपने उधरि लीए लाइ अपनै पाल ॥१॥
उसने सेवक को गले से लगाकर रखा हुआ है और अपनी शरण में रखकर उसका उद्धार कर दिया है। १॥

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