ਲਾਲ ਜਵੇਹਰ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰ ॥
लाल जवेहर भरे भंडार ॥
हीरे-जवाहरातों से मेरे भण्डार भरे हुए हैं।
ਤੋਟਿ ਨ ਆਵੈ ਜਪਿ ਨਿਰੰਕਾਰ ॥
तोटि न आवै जपि निरंकार ॥
निरंकार प्रभु का जाप करने से वह कम नहीं होते।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਬਦੁ ਪੀਵੈ ਜਨੁ ਕੋਇ ॥
अम्रित सबदु पीवै जनु कोइ ॥
हे नानक ! कोई भक्तजन ही नाम-अमृत का पान करता है
ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੀ ਪਰਮ ਗਤਿ ਹੋਇ ॥੨॥੪੧॥੯੨॥
नानक ता की परम गति होइ ॥२॥४१॥९२॥
उसकी परमगति हो जाती है॥ २॥ ४१ ॥ ६२ ॥
ਆਸਾ ਘਰੁ ੭ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा घरु ७ महला ५ ॥
आसा घरु ७ महला ५ ॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਨਿਤ ਧਿਆਈ ॥
हरि का नामु रिदै नित धिआई ॥
मैं नित्य ही अपने हृदय में हरि का नाम स्मरण करता रहता हूँ।
ਸੰਗੀ ਸਾਥੀ ਸਗਲ ਤਰਾਂਈ ॥੧॥
संगी साथी सगल तरांई ॥१॥
इस तरह मैं अपने समस्त संगी-साथियों को बचा लेता हूँ॥ १॥
ਗੁਰੁ ਮੇਰੈ ਸੰਗਿ ਸਦਾ ਹੈ ਨਾਲੇ ॥
गुरु मेरै संगि सदा है नाले ॥
गुरु सदैव ही मेरे साथ एवं निकट है।
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਤਿਸੁ ਸਦਾ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सिमरि सिमरि तिसु सदा सम्हाले ॥१॥ रहाउ ॥
मैं उस भगवान को सदा याद करके अपने हृदय में बसाकर रखता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਤੇਰਾ ਕੀਆ ਮੀਠਾ ਲਾਗੈ ॥
तेरा कीआ मीठा लागै ॥
हे भगवान् ! तेरा किया हुआ प्रत्येक कार्य मुझे मीठा लगता है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਨਾਨਕੁ ਮਾਂਗੈ ॥੨॥੪੨॥੯੩॥
हरि नामु पदारथु नानकु मांगै ॥२॥४२॥९३॥
नानक तुझसे हरिनाम रूपी पदार्थ ही माँगता है॥ २॥ ४२॥ ६३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਸਾਧੂ ਸੰਗਤਿ ਤਰਿਆ ਸੰਸਾਰੁ ॥ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮਨਹਿ ਆਧਾਰੁ ॥੧॥
साधू संगति तरिआ संसारु ॥ हरि का नामु मनहि आधारु ॥१॥
साधु की संगति करने से सारी दुनिया ही भवसागर से पार हो चुकी है।हरि का नाम मन का सहारा है॥ १॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਗੁਰਦੇਵ ਪਿਆਰੇ ॥ ਪੂਜਹਿ ਸੰਤ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਿਆਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चरन कमल गुरदेव पिआरे ॥ पूजहि संत हरि प्रीति पिआरे ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्यारे गुरुदेव ! तेरे चरण कमल बड़े कोमल हैं। हरि के संतजन बड़े प्रेम से तेरे चरणों की पूजा करते हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਾ ਕੈ ਮਸਤਕਿ ਲਿਖਿਆ ਭਾਗੁ ॥
जा कै मसतकि लिखिआ भागु ॥
हे नानक ! जिसके मस्तक पर सौभाग्य लिखा हुआ है,”
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਾ ਕਾ ਥਿਰੁ ਸੋਹਾਗੁ ॥੨॥੪੩॥੯੪॥
कहु नानक ता का थिरु सोहागु ॥२॥४३॥९४॥
उसका सुहाग अटल है॥ २॥ ४३॥ ६४ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਮੀਠੀ ਆਗਿਆ ਪਿਰ ਕੀ ਲਾਗੀ ॥
मीठी आगिआ पिर की लागी ॥
प्राणनाथ प्रभु की आज्ञा मुझे बहुत मीठी लगती है।
ਸਉਕਨਿ ਘਰ ਕੀ ਕੰਤਿ ਤਿਆਗੀ ॥
सउकनि घर की कंति तिआगी ॥
मेरे पति-परमेश्वर ने मेरी सौतन (माया) को हृदय-घर से बाहर निकाल दिया है।
ਪ੍ਰਿਅ ਸੋਹਾਗਨਿ ਸੀਗਾਰਿ ਕਰੀ ॥
प्रिअ सोहागनि सीगारि करी ॥
मेरे प्रियवर ने मुझे सुहागिन बनाकर सुन्दर बना दिया है।
ਮਨ ਮੇਰੇ ਕੀ ਤਪਤਿ ਹਰੀ ॥੧॥
मन मेरे की तपति हरी ॥१॥
उसने मेरे मन की जलन को शीतल कर दिया है॥ १॥
ਭਲੋ ਭਇਓ ਪ੍ਰਿਅ ਕਹਿਆ ਮਾਨਿਆ ॥
भलो भइओ प्रिअ कहिआ मानिआ ॥
भला हुआ कि मैंने अपने प्रियतम प्रभु का कहना मान लिया।
ਸੂਖੁ ਸਹਜੁ ਇਸੁ ਘਰ ਕਾ ਜਾਨਿਆ ॥ ਰਹਾਉ ॥
सूखु सहजु इसु घर का जानिआ ॥ रहाउ ॥
मैंने इस घर में सहज सुख की अनुभूति कर ली है ॥रहाउ ॥
ਹਉ ਬੰਦੀ ਪ੍ਰਿਅ ਖਿਜਮਤਦਾਰ ॥
हउ बंदी प्रिअ खिजमतदार ॥
मैं अपने प्रिय-प्रभु की दासी एवं सेविका हूँ।
ਓਹੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ॥
ओहु अबिनासी अगम अपार ॥
वह अविनाशी, अगम्य एवं अपार है।
ਲੇ ਪਖਾ ਪ੍ਰਿਅ ਝਲਉ ਪਾਏ ॥
ले पखा प्रिअ झलउ पाए ॥
मैं अपने हाथ में पंखा लेकर एवं उसके चरणों में बैठकर अपने प्रियतम को पंखा करती हूँ।
ਭਾਗਿ ਗਏ ਪੰਚ ਦੂਤ ਲਾਵੇ ॥੨॥
भागि गए पंच दूत लावे ॥२॥
मुझे काटने वाले पाँच शत्रु-काम, क्रोध, लोभ, मोह, अभिमान भाग गए हैं।॥ २॥
ਨਾ ਮੈ ਕੁਲੁ ਨਾ ਸੋਭਾਵੰਤ ॥
ना मै कुलु ना सोभावंत ॥
न ही मैं उच्च वंश से हूँ और न ही शोभावान हूँ।
ਕਿਆ ਜਾਨਾ ਕਿਉ ਭਾਨੀ ਕੰਤ ॥
किआ जाना किउ भानी कंत ॥
मैं क्या जानती हूँ कि मैं क्यों अपने प्राणनाथ को भली लगने लग गई हूँ।
ਮੋਹਿ ਅਨਾਥ ਗਰੀਬ ਨਿਮਾਨੀ ॥ ਕੰਤ ਪਕਰਿ ਹਮ ਕੀਨੀ ਰਾਨੀ ॥੩॥
मोहि अनाथ गरीब निमानी ॥ कंत पकरि हम कीनी रानी ॥३॥
मैं अनाथ, गरीब एवं मानहीन हूँ।लेकिन पकड़ कर मेरे स्वामी ने मुझे अपनी रानी बना लिया है॥ ३॥
ਜਬ ਮੁਖਿ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਸਾਜਨੁ ਲਾਗਾ ॥
जब मुखि प्रीतमु साजनु लागा ॥
जब से मुझे मेरा साजन प्रीतम मिला है,”
ਸੂਖ ਸਹਜ ਮੇਰਾ ਧਨੁ ਸੋਹਾਗਾ ॥
सूख सहज मेरा धनु सोहागा ॥
मुझे सहज सुख प्राप्त हो गया है और मेरा सुहाग धन्य हो गया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੋਰੀ ਪੂਰਨ ਆਸਾ ॥
कहु नानक मोरी पूरन आसा ॥
हे नानक ! मेरी अभिलाषा पूर्ण हो गई है।
ਸਤਿਗੁਰ ਮੇਲੀ ਪ੍ਰਭ ਗੁਣਤਾਸਾ ॥੪॥੧॥੯੫॥
सतिगुर मेली प्रभ गुणतासा ॥४॥१॥९५॥
सतिगुरु ने मुझे गुणों के भण्डार प्रभु से मिला दिया है॥ ४ ॥ १॥ ६५ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਮਾਥੈ ਤ੍ਰਿਕੁਟੀ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਕਰੂਰਿ ॥
माथै त्रिकुटी द्रिसटि करूरि ॥
उसके माथे पर त्रिकुटी और दृष्टि भी बहुत करुर है।
ਬੋਲੈ ਕਉੜਾ ਜਿਹਬਾ ਕੀ ਫੂੜਿ ॥
बोलै कउड़ा जिहबा की फूड़ि ॥
उसकी वाणी भी कड़वी है और जिव्हा भी फूहड़ है।
ਸਦਾ ਭੂਖੀ ਪਿਰੁ ਜਾਨੈ ਦੂਰਿ ॥੧॥
सदा भूखी पिरु जानै दूरि ॥१॥
वह सदैव भूखी रहती है और अपने प्रिय-प्रभु को दूर समझती है॥ १॥
ਐਸੀ ਇਸਤ੍ਰੀ ਇਕ ਰਾਮਿ ਉਪਾਈ ॥
ऐसी इसत्री इक रामि उपाई ॥
हे मेरे भाई !राम ने एक ऐसी माया रूपी स्त्री सृष्टि में उत्पन्न की है।
ਉਨਿ ਸਭੁ ਜਗੁ ਖਾਇਆ ਹਮ ਗੁਰਿ ਰਾਖੇ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
उनि सभु जगु खाइआ हम गुरि राखे मेरे भाई ॥ रहाउ ॥
उसने समूचा जगत निगल लिया लेकिन गुरु ने मेरी रक्षा की है॥ रहाउ॥
ਪਾਇ ਠਗਉਲੀ ਸਭੁ ਜਗੁ ਜੋਹਿਆ ॥
पाइ ठगउली सभु जगु जोहिआ ॥
उस माया-स्त्री ने ठग-बूटी खिलाकर सारी दुनिया को वश में कर लिया है।
ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹਾਦੇਉ ਮੋਹਿਆ ॥
ब्रहमा बिसनु महादेउ मोहिआ ॥
उसने ब्रह्मा, विष्णु एवं महादेव को भी अपने मोह में फँसाकर मोहित कर लिया है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਲਗੇ ਸੇ ਸੋਹਿਆ ॥੨॥
गुरमुखि नामि लगे से सोहिआ ॥२॥
जो गुरुमुख प्रभु-नाम से संलग्न हुए हैं, वह सुन्दर दिखाई देते हैं।॥ २॥
ਵਰਤ ਨੇਮ ਕਰਿ ਥਾਕੇ ਪੁਨਹਚਰਨਾ ॥
वरत नेम करि थाके पुनहचरना ॥
मनुष्य व्रत, नियम एवं प्रायश्चित कर्म करते हुए थक चुके हैं।
ਤਟ ਤੀਰਥ ਭਵੇ ਸਭ ਧਰਨਾ ॥
तट तीरथ भवे सभ धरना ॥
वह समूचे जगत के पवित्र तीर्थों एवं तटों पर भटकते फिरते हैं।
ਸੇ ਉਬਰੇ ਜਿ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸਰਨਾ ॥੩॥
से उबरे जि सतिगुर की सरना ॥३॥
जो सतिगुरु की शरण में आए हैं, वे भवसागर से पार हो गए हैं।॥ ३॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਸਭੋ ਜਗੁ ਬਾਧਾ ॥
माइआ मोहि सभो जगु बाधा ॥
माया के मोह में सारा जगत फँसा हुआ है।
ਹਉਮੈ ਪਚੈ ਮਨਮੁਖ ਮੂਰਾਖਾ ॥
हउमै पचै मनमुख मूराखा ॥
मनमुख मूर्ख मनुष्य अहंकार में दुखी होते हैं।
ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਬਾਹ ਪਕਰਿ ਹਮ ਰਾਖਾ ॥੪॥੨॥੯੬॥
गुर नानक बाह पकरि हम राखा ॥४॥२॥९६॥
हे नानक ! गुरु ने बाँह से पकड़ कर मुझे बचा लिया है॥ ४॥ २॥ ६६ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਸਰਬ ਦੂਖ ਜਬ ਬਿਸਰਹਿ ਸੁਆਮੀ ॥
सरब दूख जब बिसरहि सुआमी ॥
जब मनुष्य को परमात्मा भूल जाता है तो हर प्रकार के दुख घेर लेते हैं।
ਈਹਾ ਊਹਾ ਕਾਮਿ ਨ ਪ੍ਰਾਨੀ ॥੧॥
ईहा ऊहा कामि न प्रानी ॥१॥
ऐसा प्राणी लोक-परलोक में किसी काम का नहीं ॥ १॥
ਸੰਤ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧੵਾਇ ॥
संत त्रिपतासे हरि हरि ध्याइ ॥
हरि-परमेश्वर का ध्यान करते हुए संतजन तृप्त हो गए हैं।