ਜਿਨਿ ਐਸਾ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਤਿਸ ਕੈ ਕੁਲਿ ਲਾਗੀ ਗਾਰੀ ॥
जिनि ऐसा नामु विसारिआ मेरा हरि हरि तिस कै कुलि लागी गारी ॥
जिसने मेरे प्रभु का नाम भुला दिया है, उसके वंश को कलंक ही लगा है।
ਹਰਿ ਤਿਸ ਕੈ ਕੁਲਿ ਪਰਸੂਤਿ ਨ ਕਰੀਅਹੁ ਤਿਸੁ ਬਿਧਵਾ ਕਰਿ ਮਹਤਾਰੀ ॥੨॥
हरि तिस कै कुलि परसूति न करीअहु तिसु बिधवा करि महतारी ॥२॥
हे हरि ! उस कुल में बच्चे का जन्म नहीं होना चाहिए, वहाँ जन्म देने वाली माँ विधवा ही अच्छी है ताकि बच्चे को जन्म न दे सके॥२॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਆਨਿ ਮਿਲਾਵਹੁ ਗੁਰੁ ਸਾਧੂ ਜਿਸੁ ਅਹਿਨਿਸਿ ਹਰਿ ਉਰਿ ਧਾਰੀ ॥
हरि हरि आनि मिलावहु गुरु साधू जिसु अहिनिसि हरि उरि धारी ॥
हे परमेश्वर ! मुझे उस सच्चे गुरु से मिला दो, जिसने हृदय में तेरे नाम का ध्यान किया है।
ਗੁਰਿ ਡੀਠੈ ਗੁਰ ਕਾ ਸਿਖੁ ਬਿਗਸੈ ਜਿਉ ਬਾਰਿਕੁ ਦੇਖਿ ਮਹਤਾਰੀ ॥੩॥
गुरि डीठै गुर का सिखु बिगसै जिउ बारिकु देखि महतारी ॥३॥
गुरु का दर्शन करके गुरु का शिष्य यूं खुश होता है, जैसे माता को देखकर बच्चा खुशी से खिल उठता है॥३॥
ਧਨ ਪਿਰ ਕਾ ਇਕ ਹੀ ਸੰਗਿ ਵਾਸਾ ਵਿਚਿ ਹਉਮੈ ਭੀਤਿ ਕਰਾਰੀ ॥
धन पिर का इक ही संगि वासा विचि हउमै भीति करारी ॥
जीव-स्त्री एवं पति-प्रभु का एक साथ ही निवास है, परन्तु बीच में अहंकार की कड़ी दीवार है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਉਮੈ ਭੀਤਿ ਤੋਰੀ ਜਨ ਨਾਨਕ ਮਿਲੇ ਬਨਵਾਰੀ ॥੪॥੧॥
गुरि पूरै हउमै भीति तोरी जन नानक मिले बनवारी ॥४॥१॥
हे नानक ! जब पूर्ण गुरु अहंकार की दीवार को तोड़ देता है तो प्रभु से मिलाप हो जाता है।॥४॥१॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੪ ॥
मलार महला ४ ॥
मलार महला ४ ॥
ਗੰਗਾ ਜਮੁਨਾ ਗੋਦਾਵਰੀ ਸਰਸੁਤੀ ਤੇ ਕਰਹਿ ਉਦਮੁ ਧੂਰਿ ਸਾਧੂ ਕੀ ਤਾਈ ॥
गंगा जमुना गोदावरी सरसुती ते करहि उदमु धूरि साधू की ताई ॥
गंगा, यमुना, गोदावरी एवं सरस्वती सरीखी पावन नदियाँ भी साधुओं की चरण-धूलि को पाने का प्रयास करती हैं।
ਕਿਲਵਿਖ ਮੈਲੁ ਭਰੇ ਪਰੇ ਹਮਰੈ ਵਿਚਿ ਹਮਰੀ ਮੈਲੁ ਸਾਧੂ ਕੀ ਧੂਰਿ ਗਵਾਈ ॥੧॥
किलविख मैलु भरे परे हमरै विचि हमरी मैलु साधू की धूरि गवाई ॥१॥
दरअसल इनका कथन है कि हमारे भीतर पापों की मैल से भरे हुए लोग स्नान करते हैं और हमारी मैल साधु पुरुषों की चरण-धूलि ही समाप्त करती है॥१॥
ਤੀਰਥਿ ਅਠਸਠਿ ਮਜਨੁ ਨਾਈ ॥
तीरथि अठसठि मजनु नाई ॥
हरिनाम अड़सठ तीर्थों के स्नान का फल है।
ਸਤਸੰਗਤਿ ਕੀ ਧੂਰਿ ਪਰੀ ਉਡਿ ਨੇਤ੍ਰੀ ਸਭ ਦੁਰਮਤਿ ਮੈਲੁ ਗਵਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतसंगति की धूरि परी उडि नेत्री सभ दुरमति मैलु गवाई ॥१॥ रहाउ ॥
जब सत्संगति की धूल उड़कर आँखों में पड़ती है तो दुर्मति की सब मैल दूर हो जाती है।॥१॥रहाउ॥
ਜਾਹਰਨਵੀ ਤਪੈ ਭਾਗੀਰਥਿ ਆਣੀ ਕੇਦਾਰੁ ਥਾਪਿਓ ਮਹਸਾਈ ॥
जाहरनवी तपै भागीरथि आणी केदारु थापिओ महसाई ॥
राजा भागीरथ कठोर तपस्या करके गंगा को पृथ्वी पर लेकर आए, शिवशंकर ने केदारनाथ की स्थापना की।
ਕਾਂਸੀ ਕ੍ਰਿਸਨੁ ਚਰਾਵਤ ਗਾਊ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਜਨ ਸੋਭਾ ਪਾਈ ॥੨॥
कांसी क्रिसनु चरावत गाऊ मिलि हरि जन सोभा पाई ॥२॥
काशी एवं वृंदावन जहाँ श्रीकृष्ण गाएँ चराते रहे, इन सब तीथों ने हरि-भक्तों से ही शोभा प्राप्त की है॥२॥
ਜਿਤਨੇ ਤੀਰਥ ਦੇਵੀ ਥਾਪੇ ਸਭਿ ਤਿਤਨੇ ਲੋਚਹਿ ਧੂਰਿ ਸਾਧੂ ਕੀ ਤਾਈ ॥
जितने तीरथ देवी थापे सभि तितने लोचहि धूरि साधू की ताई ॥
जितने भी तीर्थ देवी-देवताओं ने स्थापित किए हैं, सभी साधु-पुरुषों की चरण-धूल की आकांक्षा करते हैं।
ਹਰਿ ਕਾ ਸੰਤੁ ਮਿਲੈ ਗੁਰ ਸਾਧੂ ਲੈ ਤਿਸ ਕੀ ਧੂਰਿ ਮੁਖਿ ਲਾਈ ॥੩॥
हरि का संतु मिलै गुर साधू लै तिस की धूरि मुखि लाई ॥३॥
इन तीर्थों का कथन है कि अगर ईश्वर का भक्त, साधु एवं गुरु मिले तो हम उनकी चरण-धूल मुख पर लगा लें॥३॥
ਜਿਤਨੀ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਤੁਮਰੀ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ਸਭ ਤਿਤਨੀ ਲੋਚੈ ਧੂਰਿ ਸਾਧੂ ਕੀ ਤਾਈ ॥
जितनी स्रिसटि तुमरी मेरे सुआमी सभ तितनी लोचै धूरि साधू की ताई ॥
हे मेरे स्वामी ! जितंनी भी तुम्हारी सृष्टि है, सृष्टि के सब लोग साधुओं की चरण-धूल ही चाहते हैं।
ਨਾਨਕ ਲਿਲਾਟਿ ਹੋਵੈ ਜਿਸੁ ਲਿਖਿਆ ਤਿਸੁ ਸਾਧੂ ਧੂਰਿ ਦੇ ਹਰਿ ਪਾਰਿ ਲੰਘਾਈ ॥੪॥੨॥
नानक लिलाटि होवै जिसु लिखिआ तिसु साधू धूरि दे हरि पारि लंघाई ॥४॥२॥
नानक का कथन है कि जिसके मस्तक पर भाग्य लिखा होता है, ईश्वर उसे साधू की चरण-धूल देकर संसार-सागर से मुक्त कर देता है॥४॥२॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੪ ॥
मलार महला ४ ॥
मलार महला ४ ॥
ਤਿਸੁ ਜਨ ਕਉ ਹਰਿ ਮੀਠ ਲਗਾਨਾ ਜਿਸੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੈ ॥
तिसु जन कउ हरि मीठ लगाना जिसु हरि हरि क्रिपा करै ॥
जिस पर परमात्मा अपनी कृपा करता है, उसी व्यक्ति को वह अच्छा लगता है।
ਤਿਸ ਕੀ ਭੂਖ ਦੂਖ ਸਭਿ ਉਤਰੈ ਜੋ ਹਰਿ ਗੁਣ ਹਰਿ ਉਚਰੈ ॥੧॥
तिस की भूख दूख सभि उतरै जो हरि गुण हरि उचरै ॥१॥
जो परमात्मा का स्तुतिगान एवं नामोच्चारण करता है, उसकी हर भूख एवं दुख दूर हो जाता है।॥१॥
ਜਪਿ ਮਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਿਸਤਰੈ ॥
जपि मन हरि हरि हरि निसतरै ॥
हे मन ! ईश्वर का नाम जपने से ही मुक्ति होती है।
ਗੁਰ ਕੇ ਬਚਨ ਕਰਨ ਸੁਨਿ ਧਿਆਵੈ ਭਵ ਸਾਗਰੁ ਪਾਰਿ ਪਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर के बचन करन सुनि धिआवै भव सागरु पारि परै ॥१॥ रहाउ ॥
जो गुरु के वचनों को सुनकर मनन करता है, वह संसार-सागर से पार हो जाता है।॥१॥रहाउ॥
ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੇ ਹਮ ਹਾਟਿ ਬਿਹਾਝੇ ਜਿਸੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੈ ॥
तिसु जन के हम हाटि बिहाझे जिसु हरि हरि क्रिपा करै ॥
जिस पर परमात्मा की कृपा है, उस भक्त के लिए हम बाज़ार में बिकने को तैयार हैं।
ਹਰਿ ਜਨ ਕਉ ਮਿਲਿਆਂ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਸਭ ਦੁਰਮਤਿ ਮੈਲੁ ਹਰੈ ॥੨॥
हरि जन कउ मिलिआं सुखु पाईऐ सभ दुरमति मैलु हरै ॥२॥
हरि-भक्त को मिलकर परम-सुख प्राप्त होता है और वह दुर्मति की सब मैल दूर कर देता है॥२॥
ਹਰਿ ਜਨ ਕਉ ਹਰਿ ਭੂਖ ਲਗਾਨੀ ਜਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤੈ ਜਾ ਹਰਿ ਗੁਨ ਬਿਚਰੈ ॥
हरि जन कउ हरि भूख लगानी जनु त्रिपतै जा हरि गुन बिचरै ॥
हरि-भक्त को हरि-भक्ति की लालसा लगी रहती है। जब वह हरेि का कीर्तिगान करता है तो तृप्त हो जाता है।
ਹਰਿ ਕਾ ਜਨੁ ਹਰਿ ਜਲ ਕਾ ਮੀਨਾ ਹਰਿ ਬਿਸਰਤ ਫੂਟਿ ਮਰੈ ॥੩॥
हरि का जनु हरि जल का मीना हरि बिसरत फूटि मरै ॥३॥
हरि का भक्त हरिनाम रूपी जल की मछली की तरह है और हरि को भूलने पर जल बिन मछली की तरह मर जाता है॥३॥
ਜਿਨਿ ਏਹ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਾਈ ਸੋ ਜਾਨੈ ਕੈ ਜਾਨੈ ਜਿਸੁ ਮਨਿ ਧਰੈ ॥
जिनि एह प्रीति लाई सो जानै कै जानै जिसु मनि धरै ॥
जिस ईश्वर ने यह प्रेम लगाया है, वही जानता है या जिस व्यक्ति के मन में धारण करता है, उसे ही जानकारी होती है।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਹਰਿ ਦੇਖਿ ਸੁਖੁ ਪਾਵੈ ਸਭ ਤਨ ਕੀ ਭੂਖ ਟਰੈ ॥੪॥੩॥
जनु नानकु हरि देखि सुखु पावै सभ तन की भूख टरै ॥४॥३॥
हे नानक ! ऐसा व्यक्ति ईश्वर के दर्शनों से सुख की अनुभूति करता है और उसके तन की तमाम भूख समाप्त हो जाती है॥४॥३॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੪ ॥
मलार महला ४ ॥
मलार महला ४ ॥
ਜਿਤਨੇ ਜੀਅ ਜੰਤ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਨੇ ਤਿਤਨੇ ਸਿਰਿ ਕਾਰ ਲਿਖਾਵੈ ॥
जितने जीअ जंत प्रभि कीने तितने सिरि कार लिखावै ॥
जितने भी जीव-जन्तु प्रभु ने पैदा किए हैं, सब अपना कर्म लिखवा कर संसार में आते हैं।
ਹਰਿ ਜਨ ਕਉ ਹਰਿ ਦੀਨੑ ਵਡਾਈ ਹਰਿ ਜਨੁ ਹਰਿ ਕਾਰੈ ਲਾਵੈ ॥੧॥
हरि जन कउ हरि दीन्ह वडाई हरि जनु हरि कारै लावै ॥१॥
परमात्मा ने अपने भक्तों को कीर्ति प्रदान की है, भक्तजन भक्ति में लीन रहते हैं और सब लोगों को भक्ति में लगाते हैं।॥१॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਵੈ ॥
सतिगुरु हरि हरि नामु द्रिड़ावै ॥
सच्चा गुरु हरि का नाम-सुमिरन (स्मरण) दृढ़ कराता है।