Hindi Page 175

ਵਡਭਾਗੀ ਮਿਲੁ ਸੰਗਤੀ ਮੇਰੇ ਗੋਵਿੰਦਾ ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਸਿਧਿ ਕਾਜੈ ਜੀਉ ॥੪॥੪॥੩੦॥੬੮॥
वडभागी मिलु संगती मेरे गोविंदा जन नानक नाम सिधि काजै जीउ ॥४॥४॥३०॥६८॥
हे मेरे गोविन्द! कोई सौभाग्यशाली मनुष्य ही सत्संग में जुड़ता है। हे नानक ! प्रभु के नाम से उसके जीवन मनोरथ सफल हो जाते हैं।॥४ ॥ ४ ॥ ३० ॥ ६८॥

ਗਉੜੀ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गउड़ी माझ महला ४ ॥
गउड़ी माझ महला ४ ॥

ਮੈ ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਹਰਿ ਬਿਰਹੁ ਲਗਾਈ ਜੀਉ ॥
मै हरि नामै हरि बिरहु लगाई जीउ ॥
हे भद्रपुरुषो ! हरि ने मुझे हरि-नाम की प्रेम-प्यास लगा दी है।

ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਮਿਤੁ ਮਿਲੈ ਸੁਖੁ ਪਾਈ ਜੀਉ ॥
मेरा हरि प्रभु मितु मिलै सुखु पाई जीउ ॥
यदि मेरा मित्र हरि-प्रभु मुझे मिल जाए तो मुझे बड़ा सुख उपलब्ध होगा।

ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਦੇਖਿ ਜੀਵਾ ਮੇਰੀ ਮਾਈ ਜੀਉ ॥
हरि प्रभु देखि जीवा मेरी माई जीउ ॥
हे मेरी माँ! मैं हरि को देख कर ही जीवित रहती हूँ।

ਮੇਰਾ ਨਾਮੁ ਸਖਾ ਹਰਿ ਭਾਈ ਜੀਉ ॥੧॥
मेरा नामु सखा हरि भाई जीउ ॥१॥
हरि का नाम मेरा सखा एवं भाई है॥ १॥

ਗੁਣ ਗਾਵਹੁ ਸੰਤ ਜੀਉ ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਕੇਰੇ ਜੀਉ ॥
गुण गावहु संत जीउ मेरे हरि प्रभ केरे जीउ ॥
हे पूज्य संतो ! मेरे हरि-प्रभु का यश-गायन करो।

ਜਪਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਜੀਉ ਭਾਗ ਵਡੇਰੇ ਜੀਉ ॥
जपि गुरमुखि नामु जीउ भाग वडेरे जीउ ॥
गुरु के माध्यम से प्रभु के नाम का जाप करने से भाग्य उदय हो जाते हैं।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜੀਉ ਪ੍ਰਾਨ ਹਰਿ ਮੇਰੇ ਜੀਉ ॥
हरि हरि नामु जीउ प्रान हरि मेरे जीउ ॥
हरि-परमेश्वर का नाम और हरि मेरे प्राण एवं आत्मा हैं।

ਫਿਰਿ ਬਹੁੜਿ ਨ ਭਵਜਲ ਫੇਰੇ ਜੀਉ ॥੨॥
फिरि बहुड़ि न भवजल फेरे जीउ ॥२॥
नाम का जाप करने से मुझे दोबारा भवसागर पार नहीं करना पड़ेगा। ॥२॥

ਕਿਉ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਵੇਖਾ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਚਾਉ ਜੀਉ ॥
किउ हरि प्रभ वेखा मेरै मनि तनि चाउ जीउ ॥
मेरे मन एवं तन में बड़ा चाव बना हुआ है कि मैं कैसे हरि-प्रभु के दर्शन करें?

ਹਰਿ ਮੇਲਹੁ ਸੰਤ ਜੀਉ ਮਨਿ ਲਗਾ ਭਾਉ ਜੀਉ ॥
हरि मेलहु संत जीउ मनि लगा भाउ जीउ ॥
हे संतजनो ! मुझे हरि से मिला दीजिए। मेरे मन में हरि के लिए प्रेम उत्पन्न हो गया है।

ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਰਾਉ ਜੀਉ ॥
गुर सबदी पाईऐ हरि प्रीतम राउ जीउ ॥
गुरु के शब्द से प्रियतम प्रभु प्राप्त होता है।

ਵਡਭਾਗੀ ਜਪਿ ਨਾਉ ਜੀਉ ॥੩॥
वडभागी जपि नाउ जीउ ॥३॥
हे सौभाग्यशाली प्राणी! तू प्रभु के नाम का जाप कर॥ ३ ॥

ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਵਡੜੀ ਗੋਵਿੰਦ ਪ੍ਰਭ ਆਸਾ ਜੀਉ ॥
मेरै मनि तनि वडड़ी गोविंद प्रभ आसा जीउ ॥
मेरे मन एवं तन में गोविन्द प्रभु के मिलन की बड़ी लालसा बनी हुई है।

ਹਰਿ ਮੇਲਹੁ ਸੰਤ ਜੀਉ ਗੋਵਿਦ ਪ੍ਰਭ ਪਾਸਾ ਜੀਉ ॥
हरि मेलहु संत जीउ गोविद प्रभ पासा जीउ ॥
हे संतजनो ! मुझे गोविन्द प्रभु से मिला दीजिए, जो मेरे पास ही रहता है।

ਸਤਿਗੁਰ ਮਤਿ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਪਰਗਾਸਾ ਜੀਉ ॥
सतिगुर मति नामु सदा परगासा जीउ ॥
सतिगुरु की शिक्षा द्वारा हमेशा जीव के हृदय में नाम का प्रकाश होता है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਪੂਰਿਅੜੀ ਮਨਿ ਆਸਾ ਜੀਉ ॥੪॥੫॥੩੧॥੬੯॥
जन नानक पूरिअड़ी मनि आसा जीउ ॥४॥५॥३१॥६९॥
हे नानक ! मेरे मन की अभिलाषा पूरी हो गई है॥ ४॥ ५ ॥ ३१॥ ६९॥

ਗਉੜੀ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गउड़ी माझ महला ४ ॥
गउड़ी माझ महला ४ ॥

ਮੇਰਾ ਬਿਰਹੀ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਤਾ ਜੀਵਾ ਜੀਉ ॥
मेरा बिरही नामु मिलै ता जीवा जीउ ॥
यदि मुझसे जुदा हुआ प्रिय नाम मुझे मिल जाए तो ही में जीवित रह सकता हूँ।

ਮਨ ਅੰਦਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਲੀਵਾ ਜੀਉ ॥
मन अंदरि अम्रितु गुरमति हरि लीवा जीउ ॥
मेरे मन में नाम रूपी अमृत है। गुरु के उपदेश से मैं हरि से यह नाम लेता हूँ।

ਮਨੁ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਤੜਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਸਦਾ ਪੀਵਾ ਜੀਉ ॥
मनु हरि रंगि रतड़ा हरि रसु सदा पीवा जीउ ॥
मेरा मन हरि के प्रेम में अनुरक्त है। मैं सदैव हरि-रस का पान करता रहता हूँ।

ਹਰਿ ਪਾਇਅੜਾ ਮਨਿ ਜੀਵਾ ਜੀਉ ॥੧॥
हरि पाइअड़ा मनि जीवा जीउ ॥१॥
मैंने प्रभु को हृदय में पा लिया है, इसलिए मैं जीवित हूँ। १॥

ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਪ੍ਰੇਮੁ ਲਗਾ ਹਰਿ ਬਾਣੁ ਜੀਉ ॥
मेरै मनि तनि प्रेमु लगा हरि बाणु जीउ ॥
हरि का प्रेम रूपी तीर मेरे मन एवं तन में लग गया है।

ਮੇਰਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਮਿਤ੍ਰੁ ਹਰਿ ਪੁਰਖੁ ਸੁਜਾਣੁ ਜੀਉ ॥
मेरा प्रीतमु मित्रु हरि पुरखु सुजाणु जीउ ॥
मेरा प्रिय मित्र हरि पुरुष बहुत चतुर है।

ਗੁਰੁ ਮੇਲੇ ਸੰਤ ਹਰਿ ਸੁਘੜੁ ਸੁਜਾਣੁ ਜੀਉ ॥
गुरु मेले संत हरि सुघड़ु सुजाणु जीउ ॥
कोई संत गुरु ही जीव को चतुर एवं दक्ष हरि से मिला सकता है।

ਹਉ ਨਾਮ ਵਿਟਹੁ ਕੁਰਬਾਣੁ ਜੀਉ ॥੨॥
हउ नाम विटहु कुरबाणु जीउ ॥२॥
मैं हरि के नाम पर बलिहारी जाता हूँ॥ 

ਹਉ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਜਣੁ ਹਰਿ ਮੀਤੁ ਦਸਾਈ ਜੀਉ ॥
हउ हरि हरि सजणु हरि मीतु दसाई जीउ ॥
मैं अपने सज्जन एवं मित्र हरि-परमेश्वर का पता पूछता हूँ।

ਹਰਿ ਦਸਹੁ ਸੰਤਹੁ ਜੀ ਹਰਿ ਖੋਜੁ ਪਵਾਈ ਜੀਉ ॥
हरि दसहु संतहु जी हरि खोजु पवाई जीउ ॥
हे संतजनों! हरि के बारे में बताओ, मैं हरि की खोज करता रहता हूँ।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਤੁਠੜਾ ਦਸੇ ਹਰਿ ਪਾਈ ਜੀਉ ॥
सतिगुरु तुठड़ा दसे हरि पाई जीउ ॥
यदि सतिगुरु प्रसन्न होकर मुझे बता दें तो मैं हरि को पा सकता हूँ

ਹਰਿ ਨਾਮੇ ਨਾਮਿ ਸਮਾਈ ਜੀਉ ॥੩॥
हरि नामे नामि समाई जीउ ॥३॥
और हरि के नाम द्वारा हरि-नाम में ही समा सकता हूँ।॥३॥

ਮੈ ਵੇਦਨ ਪ੍ਰੇਮੁ ਹਰਿ ਬਿਰਹੁ ਲਗਾਈ ਜੀਉ ॥
मै वेदन प्रेमु हरि बिरहु लगाई जीउ ॥
हरि ने मेरे अन्तर्मन में प्रेम वेदना लगा दी है।

ਗੁਰ ਸਰਧਾ ਪੂਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਮੁਖਿ ਪਾਈ ਜੀਉ ॥
गुर सरधा पूरि अम्रितु मुखि पाई जीउ ॥
गुरु ने मेरी श्रद्धा पूरी कर दी है और मेरे मुँह में नाम रूपी अमृत डाल दिया है।

ਹਰਿ ਹੋਹੁ ਦਇਆਲੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ਜੀਉ ॥
हरि होहु दइआलु हरि नामु धिआई जीउ ॥
हे हरि ! मुझ पर दयालु हो जाओ। चूंकि मैं हरि-नाम का ध्यान करता रहूँ।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਈ ਜੀਉ ॥੪॥੬॥੨੦॥੧੮॥੩੨॥੭੦॥
जन नानक हरि रसु पाई जीउ ॥४॥६॥२०॥१८॥३२॥७०॥
नानक ने तो हरि रस पा लिया है ॥४॥६॥२०॥१८॥३२॥७०॥

ਮਹਲਾ ੫ ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਚਉਪਦੇ 
महला ५ रागु गउड़ी गुआरेरी चउपदे
महला ५ रागु गउड़ी गुआरेरी चउपदे

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਕਿਨ ਬਿਧਿ ਕੁਸਲੁ ਹੋਤ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥
किन बिधि कुसलु होत मेरे भाई ॥
हे मेरे भाई! किस विधि से आत्मिक सुख उपलब्ध हो सकता है।

ਕਿਉ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਰਾਮ ਸਹਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
किउ पाईऐ हरि राम सहाई ॥१॥ रहाउ ॥
उस सहायक हरि को कैसे पाया जा सकता है। १॥ रहाउ॥

ਕੁਸਲੁ ਨ ਗ੍ਰਿਹਿ ਮੇਰੀ ਸਭ ਮਾਇਆ ॥
कुसलु न ग्रिहि मेरी सभ माइआ ॥
यदि मनुष्य के घर में दुनिया की तमाम दौलत आ जाए और वह यह माने यह सारी दौलत मेरी ही है तो भी उसे सुख उपलब्ध नहीं होता।

ਊਚੇ ਮੰਦਰ ਸੁੰਦਰ ਛਾਇਆ ॥
ऊचे मंदर सुंदर छाइआ ॥
यदि मनुष्य के पास ऊँचे महल और छाया वाले सुन्दर बाग हो तो

ਝੂਠੇ ਲਾਲਚਿ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥੧॥
झूठे लालचि जनमु गवाइआ ॥१॥
वह इनके झूठे लालच में फँसकर अपना जन्म व्यर्थ ही गंवा देता है। ॥१॥

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