ਬੇਦੁ ਪੁਕਾਰੈ ਮੁਖ ਤੇ ਪੰਡਤ ਕਾਮਾਮਨ ਕਾ ਮਾਠਾ ॥
बेदु पुकारै मुख ते पंडत कामामन का माठा ॥
पण्डित अपने मुख से वेद पढ़ता है किन्तु नाम-अभ्यास करने में आलसी है।
ਮੋਨੀ ਹੋਇ ਬੈਠਾ ਇਕਾਂਤੀ ਹਿਰਦੈ ਕਲਪਨ ਗਾਠਾ ॥
मोनी होइ बैठा इकांती हिरदै कलपन गाठा ॥
मौनी एकांत में ध्यान लगाए बैठ जाता है परन्तु उसके हृदय में परेशानियों की गाँठ पड़ी रहती है।
ਹੋਇ ਉਦਾਸੀ ਗ੍ਰਿਹੁ ਤਜਿ ਚਲਿਓ ਛੁਟਕੈ ਨਾਹੀ ਨਾਠਾ ॥੧॥
होइ उदासी ग्रिहु तजि चलिओ छुटकै नाही नाठा ॥१॥
इन्सान विरक्त बनकर घर-गृहस्थी को छोड़कर चल देता है मगर घर छोड़ने से उसकी तृष्णा का अन्त नहीं होता।॥१॥
ਜੀਅ ਕੀ ਕੈ ਪਹਿ ਬਾਤ ਕਹਾ ॥
जीअ की कै पहि बात कहा ॥
मैं अपने दिल की बात किससे कहूँ?
ਆਪਿ ਮੁਕਤੁ ਮੋ ਕਉ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਲੇ ਐਸੋ ਕਹਾ ਲਹਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आपि मुकतु मो कउ प्रभु मेले ऐसो कहा लहा ॥१॥ रहाउ ॥
ऐसा संत कहाँ से ढूँढ लें, जो स्वयं बन्धनों से मुक्त है और मुझे भी प्रभु से मिला दे। १॥ रहाउ॥
ਤਪਸੀ ਕਰਿ ਕੈ ਦੇਹੀ ਸਾਧੀ ਮਨੂਆ ਦਹ ਦਿਸ ਧਾਨਾ ॥
तपसी करि कै देही साधी मनूआ दह दिस धाना ॥
तपस्वी ने तपस्या करके शरीर की साधना कर ली, परन्तु मन फिर भी दसों दिशाओं में भटकता रहता है।
ਬ੍ਰਹਮਚਾਰਿ ਬ੍ਰਹਮਚਜੁ ਕੀਨਾ ਹਿਰਦੈ ਭਇਆ ਗੁਮਾਨਾ ॥
ब्रहमचारि ब्रहमचजु कीना हिरदै भइआ गुमाना ॥
ब्रह्मचारी ने ब्रह्मचार्य तो धारण कर लिया लेकिन उसके हृदय में घमण्ड पैदा हो गया।
ਸੰਨਿਆਸੀ ਹੋਇ ਕੈ ਤੀਰਥਿ ਭ੍ਰਮਿਓ ਉਸੁ ਮਹਿ ਕ੍ਰੋਧੁ ਬਿਗਾਨਾ ॥੨॥
संनिआसी होइ कै तीरथि भ्रमिओ उसु महि क्रोधु बिगाना ॥२॥
कोई संन्यासी बनकर तीर्थों पर भटकता रहा, पर मन में क्रोध ही भरा रहा, जिसने उसे मूर्ख बना दिया। २॥
ਘੂੰਘਰ ਬਾਧਿ ਭਏ ਰਾਮਦਾਸਾ ਰੋਟੀਅਨ ਕੇ ਓਪਾਵਾ ॥
घूंघर बाधि भए रामदासा रोटीअन के ओपावा ॥
कुछ लोग पैरों में घुंघरू बाँधकर मन्दिरों में नाचने वाले राम के दास बन जाते हैं परन्तु यह काम भी उनका रोटी कमाने का एक साधन है।
ਬਰਤ ਨੇਮ ਕਰਮ ਖਟ ਕੀਨੇ ਬਾਹਰਿ ਭੇਖ ਦਿਖਾਵਾ ॥
बरत नेम करम खट कीने बाहरि भेख दिखावा ॥
किसी ने व्रत-उपवास रखे, नियम एवं षट कर्म किए, किन्तु यह भी उनका मात्र लोक-दिखावा ही है।
ਗੀਤ ਨਾਦ ਮੁਖਿ ਰਾਗ ਅਲਾਪੇ ਮਨਿ ਨਹੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗਾਵਾ ॥੩॥
गीत नाद मुखि राग अलापे मनि नही हरि हरि गावा ॥३॥
कुछ लोग मुँह से भजन गाते हैं, नाद बजाते एवं राग अलापते हैं परन्तु मन से हरि-नाम नहीं गाते। ३ ।
ਹਰਖ ਸੋਗ ਲੋਭ ਮੋਹ ਰਹਤ ਹਹਿ ਨਿਰਮਲ ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤਾ ॥
हरख सोग लोभ मोह रहत हहि निरमल हरि के संता ॥
निर्मल जीवन वाले हरि के संतजन खुशी-गम एवं लोभ-मोह से सदैव निर्लिप्त होते हैं।
ਤਿਨ ਕੀ ਧੂੜਿ ਪਾਏ ਮਨੁ ਮੇਰਾ ਜਾ ਦਇਆ ਕਰੇ ਭਗਵੰਤਾ ॥
तिन की धूड़ि पाए मनु मेरा जा दइआ करे भगवंता ॥
यदि भगवंत दया करे तो मेरे मन को उनकी चरण-धूलि प्राप्त हो जाए!
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਮਿਲਿਆ ਤਾਂ ਉਤਰੀ ਮਨ ਕੀ ਚਿੰਤਾ ॥੪॥
कहु नानक गुरु पूरा मिलिआ तां उतरी मन की चिंता ॥४॥
हे नानक ! जब पूर्ण गुरु से साक्षात्कार हुआ तो मन की सारी चिंता दूर हो गई। ४॥
ਮੇਰਾ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥
मेरा अंतरजामी हरि राइआ ॥
मेरा परमेश्वर अन्तर्यामी है,
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਜਾਣੈ ਮੇਰੇ ਜੀਅ ਕਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਬਿਸਰਿ ਗਏ ਬਕਬਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੬॥੧੫॥
सभु किछु जाणै मेरे जीअ का प्रीतमु बिसरि गए बकबाइआ ॥१॥ रहाउ दूजा ॥६॥१५॥
वह मेरे दिल की हरेक बात को जानता है, इसलिए बेकार की बातें भूल चुकी हैं॥ १॥ रहाउ दूसरा॥ ६॥ १५॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਕੋਟਿ ਲਾਖ ਸਰਬ ਕੋ ਰਾਜਾ ਜਿਸੁ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਤੁਮਾਰਾ ॥
कोटि लाख सरब को राजा जिसु हिरदै नामु तुमारा ॥
हे परमेश्वर ! जिसके हृदय में तेरा नाम है, वह तो लाखों-करोड़ों सब का राजा है।
ਜਾ ਕਉ ਨਾਮੁ ਨ ਦੀਆ ਮੇਰੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਸੇ ਮਰਿ ਜਨਮਹਿ ਗਾਵਾਰਾ ॥੧॥
जा कउ नामु न दीआ मेरै सतिगुरि से मरि जनमहि गावारा ॥१॥
परन्तु जिसे मेरे सतगुरु ने नाम प्रदान नहीं किया, वह मूर्ख जन्म-मरण में ही फंसा रहता है। १ ।
ਮੇਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਹੀ ਪਤਿ ਰਾਖੁ ॥
मेरे सतिगुर ही पति राखु ॥
हे मेरे सतगुरु ! तू ही मान-सम्मान रखने वाला है।
ਚੀਤਿ ਆਵਹਿ ਤਬ ਹੀ ਪਤਿ ਪੂਰੀ ਬਿਸਰਤ ਰਲੀਐ ਖਾਕੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चीति आवहि तब ही पति पूरी बिसरत रलीऐ खाकु ॥१॥ रहाउ ॥
अगर स्मरण आए तो ही पूर्ण सम्मान मिलता है, परन्तु विस्मृत करने से जीव खाक में मिल जाता है। १॥ रहाउ ।
ਰੂਪ ਰੰਗ ਖੁਸੀਆ ਮਨ ਭੋਗਣ ਤੇ ਤੇ ਛਿਦ੍ਰ ਵਿਕਾਰਾ ॥
रूप रंग खुसीआ मन भोगण ते ते छिद्र विकारा ॥
दुनिया के जितने भी रूप, रंग, खुशियाँ एवं मन के भोगने वाले पदार्थ हैं, यह सभी अवगुण एवं पाप हैं।
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਕਲਿਆਣਾ ਸੂਖ ਸਹਜੁ ਇਹੁ ਸਾਰਾ ॥੨॥
हरि का नामु निधानु कलिआणा सूख सहजु इहु सारा ॥२॥
हरि का नाम ऐसी निधि है, जो कल्याणकारी, सुखदायक एवं श्रेष्ठ पदार्थ है॥ २॥
ਮਾਇਆ ਰੰਗ ਬਿਰੰਗ ਖਿਨੈ ਮਹਿ ਜਿਉ ਬਾਦਰ ਕੀ ਛਾਇਆ ॥
माइआ रंग बिरंग खिनै महि जिउ बादर की छाइआ ॥
बादल की छाया की तरह माया के रंग-विरंगे विलास क्षण में ही नाश हो जाते हैं।
ਸੇ ਲਾਲ ਭਏ ਗੂੜੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਜਿਨ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗਾਇਆ ॥੩॥
से लाल भए गूड़ै रंगि राते जिन गुर मिलि हरि हरि गाइआ ॥३॥
जिन्होंने गुरु से मिलकर भगवान का गुणगान किया है, वे सत्य के गहरे रंग में लीन होकर लाल हो गए हैं। ३॥
ਊਚ ਮੂਚ ਅਪਾਰ ਸੁਆਮੀ ਅਗਮ ਦਰਬਾਰਾ ॥
ऊच मूच अपार सुआमी अगम दरबारा ॥
सर्वोपरि, अपरंपार स्वामी का दरबार अगम्य है।
ਨਾਮੋ ਵਡਿਆਈ ਸੋਭਾ ਨਾਨਕ ਖਸਮੁ ਪਿਆਰਾ ॥੪॥੭॥੧੬॥
नामो वडिआई सोभा नानक खसमु पिआरा ॥४॥७॥१६॥
हे नानक ! प्रभु-नाम की ही बड़ाई एवं शोभा फैली हुई है, वह मालिक अति प्रिय है॥४॥७॥१६॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪
मारू महला ५ घरु ४
मारू महला ५ घरु ४
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਓਅੰਕਾਰਿ ਉਤਪਾਤੀ ॥
ओअंकारि उतपाती ॥
ऑकार से समूची उत्पति हुई,
ਕੀਆ ਦਿਨਸੁ ਸਭ ਰਾਤੀ ॥
कीआ दिनसु सभ राती ॥
उसने दिन-रात किया और ,
ਵਣੁ ਤ੍ਰਿਣੁ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਪਾਣੀ ॥
वणु त्रिणु त्रिभवण पाणी ॥
वन-वनस्पति, पानी एवं तीन लोकों का निर्माण किया।
ਚਾਰਿ ਬੇਦ ਚਾਰੇ ਖਾਣੀ ॥
चारि बेद चारे खाणी ॥
ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद, पैदा करने वाले चार स्रोत-अण्डज, जेरज, स्वेदज, उदभिज,
ਖੰਡ ਦੀਪ ਸਭਿ ਲੋਆ ॥
खंड दीप सभि लोआ ॥
धरती के नवखण्ड, सप्तद्वीप एवं चौदह लोक
ਏਕ ਕਵਾਵੈ ਤੇ ਸਭਿ ਹੋਆ ॥੧॥
एक कवावै ते सभि होआ ॥१॥
सब एक (ओंकार) शब्द से ही उत्पन्न हुए॥ १॥
ਕਰਣੈਹਾਰਾ ਬੂਝਹੁ ਰੇ ॥
करणैहारा बूझहु रे ॥
हे जीव ! रचनहार ईश्वर को समझो;
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਸੂਝੈ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतिगुरु मिलै त सूझै रे ॥१॥ रहाउ ॥
परन्तु यदि सतगुरु मिल जाए तो ही सूझ प्राप्त होती है ॥१॥ रहाउ ॥
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਕੀਆ ਪਸਾਰਾ ॥
त्रै गुण कीआ पसारा ॥
ईश्वर ने रज, तम एवं सत रूपी त्रिगुणों का जग में प्रसार किया और
ਨਰਕ ਸੁਰਗ ਅਵਤਾਰਾ ॥
नरक सुरग अवतारा ॥
नरक, स्वर्ग एवं अवतारों की सूजना कर दी।
ਹਉਮੈ ਆਵੈ ਜਾਈ ॥
हउमै आवै जाई ॥
अहम् के कारण जीव जन्म-मरण के चक्र में पड़ गया और
ਮਨੁ ਟਿਕਣੁ ਨ ਪਾਵੈ ਰਾਈ ॥
मनु टिकणु न पावै राई ॥
उसका मन रत्ती भर समय के लिए भी नहीं टिकता।