ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਲਾਲ ਲਾਲ ਮੋਹਨ ਗੋਪਾਲ ਤੂ ॥
लाल लाल मोहन गोपाल तू ॥
हे प्यारे प्रभु ! तू सबका पालक है,
ਕੀਟ ਹਸਤਿ ਪਾਖਾਣ ਜੰਤ ਸਰਬ ਮੈ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ਤੂ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कीट हसति पाखाण जंत सरब मै प्रतिपाल तू ॥१॥ रहाउ ॥
कीट, हाथी, पत्थर एवं जीवों इत्यादि तू सबका पालन पोषण करता है॥१॥रहाउ॥।
ਨਹ ਦੂਰਿ ਪੂਰਿ ਹਜੂਰਿ ਸੰਗੇ ॥
नह दूरि पूरि हजूरि संगे ॥
तू कहीं दूर नहीं, हमारे आसपास ही है।
ਸੁੰਦਰ ਰਸਾਲ ਤੂ ॥੧॥
सुंदर रसाल तू ॥१॥
तू सुन्दर एवं रसीला है॥१॥
ਨਹ ਬਰਨ ਬਰਨ ਨਹ ਕੁਲਹ ਕੁਲ ॥
नह बरन बरन नह कुलह कुल ॥
नानक का कथन है कि हे प्रभु ! वर्ण-जाति एवं कुल-वंश से तू रहित है,
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾਲ ਤੂ ॥੨॥੯॥੧੩੮॥
नानक प्रभ किरपाल तू ॥२॥९॥१३८॥
तू बड़ा रहमदिल है।॥२॥९॥१३८॥
ਸਾਰਗ ਮਃ ੫ ॥
सारग मः ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਕਰਤ ਕੇਲ ਬਿਖੈ ਮੇਲ ਚੰਦ੍ਰ ਸੂਰ ਮੋਹੇ ॥
करत केल बिखै मेल चंद्र सूर मोहे ॥
विषयों से जोड़ने वाली माया खेल करती है, इसने सूर्य एवं चन्द्रमा को भी मोहित किया हुआ है।
ਉਪਜਤਾ ਬਿਕਾਰ ਦੁੰਦਰ ਨਉਪਰੀ ਝੁਨੰਤਕਾਰ ਸੁੰਦਰ ਅਨਿਗ ਭਾਉ ਕਰਤ ਫਿਰਤ ਬਿਨੁ ਗੋਪਾਲ ਧੋਹੇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
उपजता बिकार दुंदर नउपरी झुनंतकार सुंदर अनिग भाउ करत फिरत बिनु गोपाल धोहे ॥ रहाउ ॥
इसकी पायल की सुन्दर झंकार से विकार पैदा होते हैं, यह अनेक प्रकार के हावभाव दिखाती है और ईश्वर के अतिरिक्त सबको धोखा देती है ॥रहाउ॥
ਤੀਨਿ ਭਉਨੇ ਲਪਟਾਇ ਰਹੀ ਕਾਚ ਕਰਮਿ ਨ ਜਾਤ ਸਹੀ ਉਨਮਤ ਅੰਧ ਧੰਧ ਰਚਿਤ ਜੈਸੇ ਮਹਾ ਸਾਗਰ ਹੋਹੇ ॥੧॥
तीनि भउने लपटाइ रही काच करमि न जात सही उनमत अंध धंध रचित जैसे महा सागर होहे ॥१॥
तीनों लोक माया में लिपटे हुए हैं और कर्मकाण्ड से इससे बचा नहीं जा सकता। दुनिया के लोग अन्धे धंधों में लीन हैं और महासागर की लहरों की तरह गोते खाते हैं।॥१॥
ਉਧਰੇ ਹਰਿ ਸੰਤ ਦਾਸ ਕਾਟਿ ਦੀਨੀ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸ ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਨਾਮੁ ਜਾ ਕੋ ਸਿਮਰਿ ਨਾਨਕ ਓਹੇ ॥੨॥੧੦॥੧੩੯॥੩॥੧੩॥੧੫੫॥
उधरे हरि संत दास काटि दीनी जम की फास पतित पावन नामु जा को सिमरि नानक ओहे ॥२॥१०॥१३९॥३॥१३॥१५५॥
ईश्वर के भक्तों की मुक्ति हो गई है और उनकी यम की फॉसी कट गई है। हे नानक ! जिसका नाम पतितों को पावन करने वाला है, उसी का भजन करो ॥ २ ॥ १० ॥ १३६ ॥ ३ ॥ १३॥ १५५ ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਰਾਗੁ ਸਾਰੰਗ ਮਹਲਾ ੯ ॥
रागु सारंग महला ९ ॥
रागु सारंग महला ९ ॥
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਤੇਰੋ ਕੋ ਨ ਸਹਾਈ ॥
हरि बिनु तेरो को न सहाई ॥
हे मनुष्य ! भगवान के अलावा तेरा कोई सहायक नहीं।
ਕਾਂ ਕੀ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਬਨਿਤਾ ਕੋ ਕਾਹੂ ਕੋ ਭਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कां की मात पिता सुत बनिता को काहू को भाई ॥१॥ रहाउ ॥
माता-पिता, पुत्र, पत्नी, भाई कौन किसका (सदा) हुआ है ? ॥१॥ रहाउ॥।
ਧਨੁ ਧਰਨੀ ਅਰੁ ਸੰਪਤਿ ਸਗਰੀ ਜੋ ਮਾਨਿਓ ਅਪਨਾਈ ॥
धनु धरनी अरु स्मपति सगरी जो मानिओ अपनाई ॥
धन-दौलत, जमीन-जायदाद और सम्पति जिसे तू अपना मान बैठा है।
ਤਨ ਛੂਟੈ ਕਛੁ ਸੰਗਿ ਨ ਚਾਲੈ ਕਹਾ ਤਾਹਿ ਲਪਟਾਈ ॥੧॥
तन छूटै कछु संगि न चालै कहा ताहि लपटाई ॥१॥
शरीर के छूटते ही इन में से कुछ साथ नहीं चलता, फिर क्यों इनसे लिपट रहा है॥१॥
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਸਦਾ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਤਾ ਸਿਉ ਰੁਚਿ ਨ ਬਢਾਈ ॥
दीन दइआल सदा दुख भंजन ता सिउ रुचि न बढाई ॥
ईश्वर दीनदयाल है, सदैव दुखों को दूर करने वाला है, लेकिन उसके साथ कोई दिलचस्पी नहीं बढ़ाई।
ਨਾਨਕ ਕਹਤ ਜਗਤ ਸਭ ਮਿਥਿਆ ਜਿਉ ਸੁਪਨਾ ਰੈਨਾਈ ॥੨॥੧॥
नानक कहत जगत सभ मिथिआ जिउ सुपना रैनाई ॥२॥१॥
नानक कहते हैं कि जैसे रात्रि का सपना है, वैसे ही समूचा जगत मिथ्या है॥२॥१॥
ਸਾਰੰਗ ਮਹਲਾ ੯ ॥
सारंग महला ९ ॥
रागु सारंग महला ९ ॥
ਕਹਾ ਮਨ ਬਿਖਿਆ ਸਿਉ ਲਪਟਾਹੀ ॥
कहा मन बिखिआ सिउ लपटाही ॥
हे मन ! क्यों विषय-विकारों से लिपट रहा है।
ਯਾ ਜਗ ਮਹਿ ਕੋਊ ਰਹਨੁ ਨ ਪਾਵੈ ਇਕਿ ਆਵਹਿ ਇਕਿ ਜਾਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
या जग महि कोऊ रहनु न पावै इकि आवहि इकि जाही ॥१॥ रहाउ ॥
इस दुनिया में कोई सदा नहीं रहता, (मृत्यु अटल है, अतः) कोई आता है तो कोई जाता है॥१॥रहाउ॥।
ਕਾਂ ਕੋ ਤਨੁ ਧਨੁ ਸੰਪਤਿ ਕਾਂ ਕੀ ਕਾ ਸਿਉ ਨੇਹੁ ਲਗਾਹੀ ॥
कां को तनु धनु स्मपति कां की का सिउ नेहु लगाही ॥
यह तन, धन, संपति किसकी हुई है? फिर क्यों इससे प्रेम लगा रहा है।
ਜੋ ਦੀਸੈ ਸੋ ਸਗਲ ਬਿਨਾਸੈ ਜਿਉ ਬਾਦਰ ਕੀ ਛਾਹੀ ॥੧॥
जो दीसै सो सगल बिनासै जिउ बादर की छाही ॥१॥
जो कुछ दिखाई देता है, वह सब बादलों की छाया की तरह नाशवान है॥१॥
ਤਜਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ਸਰਣਿ ਸੰਤਨ ਗਹੁ ਮੁਕਤਿ ਹੋਹਿ ਛਿਨ ਮਾਹੀ ॥
तजि अभिमानु सरणि संतन गहु मुकति होहि छिन माही ॥
अभिमान छोड़कर संतों की शरण लो, पल में मुक्ति प्राप्त होगी।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਭਗਵੰਤ ਭਜਨ ਬਿਨੁ ਸੁਖੁ ਸੁਪਨੈ ਭੀ ਨਾਹੀ ॥੨॥੨॥
जन नानक भगवंत भजन बिनु सुखु सुपनै भी नाही ॥२॥२॥
नानक कथन करते हैं कि भगवान के भजन बिना सपने में भी सुख नसीब नहीं होता।॥२॥ २॥
ਸਾਰੰਗ ਮਹਲਾ ੯ ॥
सारंग महला ९ ॥
रागु सारंग महला ९ ॥
ਕਹਾ ਨਰ ਅਪਨੋ ਜਨਮੁ ਗਵਾਵੈ ॥
कहा नर अपनो जनमु गवावै ॥
हे नर ! क्यों अपना जन्म गंवा रहा है।
ਮਾਇਆ ਮਦਿ ਬਿਖਿਆ ਰਸਿ ਰਚਿਓ ਰਾਮ ਸਰਨਿ ਨਹੀ ਆਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
माइआ मदि बिखिआ रसि रचिओ राम सरनि नही आवै ॥१॥ रहाउ ॥
तुम माया के नशे एवं विषयों के रस में लीन हो, परमात्मा की शरण में क्यों नहीं आते ॥१॥रहाउ॥।
ਇਹੁ ਸੰਸਾਰੁ ਸਗਲ ਹੈ ਸੁਪਨੋ ਦੇਖਿ ਕਹਾ ਲੋਭਾਵੈ ॥
इहु संसारु सगल है सुपनो देखि कहा लोभावै ॥
यह समूचा संसार सपने की तरह है, फिर इसे देखकर क्यों फिदा होते हो।
ਜੋ ਉਪਜੈ ਸੋ ਸਗਲ ਬਿਨਾਸੈ ਰਹਨੁ ਨ ਕੋਊ ਪਾਵੈ ॥੧॥
जो उपजै सो सगल बिनासै रहनु न कोऊ पावै ॥१॥
जो भी उत्पन्न होता है, वह सब नष्ट हो जाता है, कोई भी यहाँ सदा नहीं रहता ॥१॥
ਮਿਥਿਆ ਤਨੁ ਸਾਚੋ ਕਰਿ ਮਾਨਿਓ ਇਹ ਬਿਧਿ ਆਪੁ ਬੰਧਾਵੈ ॥
मिथिआ तनु साचो करि मानिओ इह बिधि आपु बंधावै ॥
इस मिथ्या तन को तूने सच्चा मान लिया, इस तरीके से स्वयं ही झूठ में फॅस गए हो।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਸੋਊ ਜਨੁ ਮੁਕਤਾ ਰਾਮ ਭਜਨ ਚਿਤੁ ਲਾਵੈ ॥੨॥੩॥
जन नानक सोऊ जनु मुकता राम भजन चितु लावै ॥२॥३॥
नानक का कथन है कि वही व्यक्ति संसार के बन्धनों से मुक्त होता है, जो परमात्मा के भजन में मन लगाता है॥ २ ॥३॥
ਸਾਰੰਗ ਮਹਲਾ ੯ ॥
सारंग महला ९ ॥
रागु सारंग महला ९ ॥
ਮਨ ਕਰਿ ਕਬਹੂ ਨ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਇਓ ॥
मन करि कबहू न हरि गुन गाइओ ॥
हे मनुष्य ! तूने मन लगाकर कभी ईश्वर का गुणगान नहीं किया।