ਦਰਸਨ ਕੀ ਮਨਿ ਆਸ ਘਨੇਰੀ ਕੋਈ ਐਸਾ ਸੰਤੁ ਮੋ ਕਉ ਪਿਰਹਿ ਮਿਲਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दरसन की मनि आस घनेरी कोई ऐसा संतु मो कउ पिरहि मिलावै ॥१॥ रहाउ ॥
मेरे मन में उसके दर्शन की तीव्र अभिलाषा है। आशा है कि कोई ऐसा संत (सच्चा गुरु) मिल जाए, जो मेरा प्रियतम से मिलन करवा दे ॥ १॥ रहाउ ॥
ਚਾਰਿ ਪਹਰ ਚਹੁ ਜੁਗਹ ਸਮਾਨੇ ॥
चारि पहर चहु जुगह समाने ॥
दिन के चार प्रहर चार युगों के बराबर हैं।
ਰੈਣਿ ਭਈ ਤਬ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਨੇ ॥੨॥
रैणि भई तब अंतु न जाने ॥२॥
जब रात्रि होती है तो वह समाप्त होने में नहीं आती॥ २॥
ਪੰਚ ਦੂਤ ਮਿਲਿ ਪਿਰਹੁ ਵਿਛੋੜੀ ॥
पंच दूत मिलि पिरहु विछोड़ी ॥
पाँच वैरियों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार) ने मिलकर मुझे मेरे कत-प्रभु से जुदा किया है।
ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿ ਰੋਵੈ ਹਾਥ ਪਛੋੜੀ ॥੩॥
भ्रमि भ्रमि रोवै हाथ पछोड़ी ॥३॥
भटक-भटक कर मैं रोती और अपने हाथ पटकती हूँ॥ ३॥
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਹਰਿ ਦਰਸੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥
जन नानक कउ हरि दरसु दिखाइआ ॥
नानक को हरि ने अपना दर्शन करवा दिया है और
ਆਤਮੁ ਚੀਨੑਿ ਪਰਮ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥੧੫॥
आतमु चीन्हि परम सुखु पाइआ ॥४॥१५॥
अपने आत्मिक जीवन को अनुभव करके उसे परम सुख मिल गया है॥ ४॥ १५ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਹਰਿ ਸੇਵਾ ਮਹਿ ਪਰਮ ਨਿਧਾਨੁ ॥
हरि सेवा महि परम निधानु ॥
हे भाई ! हरि की सेवा में ही परम निधान हैं।
ਹਰਿ ਸੇਵਾ ਮੁਖਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ॥੧॥
हरि सेवा मुखि अम्रित नामु ॥१॥
नामामृत को मुंह में जपना ही हरि की सेवाभक्ति है॥ १॥
ਹਰਿ ਮੇਰਾ ਸਾਥੀ ਸੰਗਿ ਸਖਾਈ ॥
हरि मेरा साथी संगि सखाई ॥
हरि मेरा साथी, संगी एवं सहायक है।
ਦੁਖਿ ਸੁਖਿ ਸਿਮਰੀ ਤਹ ਮਉਜੂਦੁ ਜਮੁ ਬਪੁਰਾ ਮੋ ਕਉ ਕਹਾ ਡਰਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दुखि सुखि सिमरी तह मउजूदु जमु बपुरा मो कउ कहा डराई ॥१॥ रहाउ ॥
जब भी मैं दुःख-सुख में उसको याद करता हूँ तो वह मौजूद होता है। फिर बेचारा यमदूत मुझे क्योंकर भयभीत कर सकता है॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਮੇਰੀ ਓਟ ਮੈ ਹਰਿ ਕਾ ਤਾਣੁ ॥
हरि मेरी ओट मै हरि का ताणु ॥
हरि मेरी ओट है और मुझे हरि का ही बल है।
ਹਰਿ ਮੇਰਾ ਸਖਾ ਮਨ ਮਾਹਿ ਦੀਬਾਣੁ ॥੨॥
हरि मेरा सखा मन माहि दीबाणु ॥२॥
हरि मेरा मित्र है और मेरे मन में बसा हुआ है। २॥
ਹਰਿ ਮੇਰੀ ਪੂੰਜੀ ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਵੇਸਾਹੁ ॥
हरि मेरी पूंजी मेरा हरि वेसाहु ॥
हरि मेरी पूंजी है और हरि ही मेरे लिए प्रेरक स्रोत है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਧਨੁ ਖਟੀ ਹਰਿ ਮੇਰਾ ਸਾਹੁ ॥੩॥
गुरमुखि धनु खटी हरि मेरा साहु ॥३॥
गुरुमुख बनकर मैं नाम-धन कमाता हूँ और हरि ही मेरा शाह है॥ ३॥
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਇਹ ਮਤਿ ਆਵੈ ॥
गुर किरपा ते इह मति आवै ॥
गुरु की कृपा से यह सुमति प्राप्त होती है।
ਜਨ ਨਾਨਕੁ ਹਰਿ ਕੈ ਅੰਕਿ ਸਮਾਵੈ ॥੪॥੧੬॥
जन नानकु हरि कै अंकि समावै ॥४॥१६॥
नानक तो हरि के अंक (गोद) में समा गया है॥ ४॥ १६
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਪ੍ਰਭੁ ਹੋਇ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਤ ਇਹੁ ਮਨੁ ਲਾਈ ॥
प्रभु होइ क्रिपालु त इहु मनु लाई ॥
जब प्रभु कृपालु हुआ तो यह मन उसमें ही लग गया।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਸਭੈ ਫਲ ਪਾਈ ॥੧॥
सतिगुरु सेवि सभै फल पाई ॥१॥
गुरु की सेवा करने से सभी फल मिल गए हैं।॥ १॥
ਮਨ ਕਿਉ ਬੈਰਾਗੁ ਕਰਹਿਗਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ਪੂਰਾ ॥
मन किउ बैरागु करहिगा सतिगुरु मेरा पूरा ॥
हे मन ! तू क्यों वैरागी होता है? मेरा सतिगुरु पूर्ण है।
ਮਨਸਾ ਕਾ ਦਾਤਾ ਸਭ ਸੁਖ ਨਿਧਾਨੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰਿ ਸਦ ਹੀ ਭਰਪੂਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मनसा का दाता सभ सुख निधानु अम्रित सरि सद ही भरपूरा ॥१॥ रहाउ ॥
मन की आकांक्षाओं के अनुरूप देन प्रदान करने वाला वह सर्व सुखों का कोष है और उसका अमृत का सरोवर सदैव ही भरा रहता है॥ १॥ रहाउ॥
ਚਰਣ ਕਮਲ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਧਾਰੇ ॥
चरण कमल रिद अंतरि धारे ॥
जब प्रभु के चरण-कमल को अपने हृदय में बसाया तो
ਪ੍ਰਗਟੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲੇ ਰਾਮ ਪਿਆਰੇ ॥੨॥
प्रगटी जोति मिले राम पिआरे ॥२॥
उसकी दिव्य ज्योति प्रगट हो गई और वह प्रिय राम मुझे मिल गया॥ २॥
ਪੰਚ ਸਖੀ ਮਿਲਿ ਮੰਗਲੁ ਗਾਇਆ ॥
पंच सखी मिलि मंगलु गाइआ ॥
पाँच सहेलियों (ज्ञानेन्द्रियों) अब मिलकर मंगल गीत गाने लगी हैं और
ਅਨਹਦ ਬਾਣੀ ਨਾਦੁ ਵਜਾਇਆ ॥੩॥
अनहद बाणी नादु वजाइआ ॥३॥
अन्तर्मन में अनहद वाणी का नाद गूंज रहा है॥ ३॥
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕੁ ਤੁਠਾ ਮਿਲਿਆ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥
गुरु नानकु तुठा मिलिआ हरि राइ ॥
गुरु नानक के प्रसन्न होने पर जगत का बादशाह प्रभु मिल गया है,”
ਸੁਖਿ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਣੀ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥੪॥੧੭॥
सुखि रैणि विहाणी सहजि सुभाइ ॥४॥१७॥
इसलिए अब जीवन रूपी रात्रि सहज स्वभाव ही सुखपूर्वक व्यतीत होती है॥ ४॥ १७॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਹਰਿ ਪਰਗਟੀ ਆਇਆ ॥
करि किरपा हरि परगटी आइआ ॥
भगवान अपनी कृपा करके स्वयं ही मेरे मन में प्रकट हो गया है।
ਮਿਲਿ ਸਤਿਗੁਰ ਧਨੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ॥੧॥
मिलि सतिगुर धनु पूरा पाइआ ॥१॥
सतिगुरु से मिलकर मुझे पूर्ण नाम-धन प्राप्त हुआ है॥ १॥
ਐਸਾ ਹਰਿ ਧਨੁ ਸੰਚੀਐ ਭਾਈ ॥
ऐसा हरि धनु संचीऐ भाई ॥
हे भाई ! ऐसा हरि नाम रूपी धन संचित करना चाहिए,”
ਭਾਹਿ ਨ ਜਾਲੈ ਜਲਿ ਨਹੀ ਡੂਬੈ ਸੰਗੁ ਛੋਡਿ ਕਰਿ ਕਤਹੁ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भाहि न जालै जलि नही डूबै संगु छोडि करि कतहु न जाई ॥१॥ रहाउ ॥
क्योंकि इस नाम-धन को न ही अग्नि जलाती है, न ही जल डुबाता है और यह मनुष्य का साथ छोड़कर कहीं नहीं जाता ॥ १॥ रहाउ ॥
ਤੋਟਿ ਨ ਆਵੈ ਨਿਖੁਟਿ ਨ ਜਾਇ ॥
तोटि न आवै निखुटि न जाइ ॥
हरि का नाम धन ऐसा है केि इसमें कभी कमी नहीं आती और न ही यह कभी समाप्त होता है।
ਖਾਇ ਖਰਚਿ ਮਨੁ ਰਹਿਆ ਅਘਾਇ ॥੨॥
खाइ खरचि मनु रहिआ अघाइ ॥२॥
इसे खर्च करते और खाते हुए मनुष्य का मन तृप्त रहता है॥ २॥
ਸੋ ਸਚੁ ਸਾਹੁ ਜਿਸੁ ਘਰਿ ਹਰਿ ਧਨੁ ਸੰਚਾਣਾ ॥
सो सचु साहु जिसु घरि हरि धनु संचाणा ॥
वही सच्चा साहूकार है जो हरि के नाम-धन को अपने हृदय घर में संचित करता है।
ਇਸੁ ਧਨ ਤੇ ਸਭੁ ਜਗੁ ਵਰਸਾਣਾ ॥੩॥
इसु धन ते सभु जगु वरसाणा ॥३॥
इस नाम-धन से समूचा जगत लाभ प्राप्त करता है॥ ३॥
ਤਿਨਿ ਹਰਿ ਧਨੁ ਪਾਇਆ ਜਿਸੁ ਪੁਰਬ ਲਿਖੇ ਕਾ ਲਹਣਾ ॥
तिनि हरि धनु पाइआ जिसु पुरब लिखे का लहणा ॥
केवल वही मनुष्य हरि नाम रूपी धन को प्राप्त करताहै जिसके भाग्य में इसकी प्राप्ति आदि से लिखी हुई है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਅੰਤਿ ਵਾਰ ਨਾਮੁ ਗਹਣਾ ॥੪॥੧੮॥
जन नानक अंति वार नामु गहणा ॥४॥१८॥
हे नानक ! हरि का नाम-धन ही अन्तिम समय का आभूषण है॥ ४॥ १८॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਜੈਸੇ ਕਿਰਸਾਣੁ ਬੋਵੈ ਕਿਰਸਾਨੀ ॥
जैसे किरसाणु बोवै किरसानी ॥
हे प्राणी ! जैसे कोई किसान अपनी फसल बोता है और
ਕਾਚੀ ਪਾਕੀ ਬਾਢਿ ਪਰਾਨੀ ॥੧॥
काची पाकी बाढि परानी ॥१॥
जब चाहे कच्ची अथवा पक्की हो उसे काट लेता है॥ १॥
ਜੋ ਜਨਮੈ ਸੋ ਜਾਨਹੁ ਮੂਆ ॥
जो जनमै सो जानहु मूआ ॥
वैसे ही समझ लो कि जिसने जन्म लिया है, एक न एक दिन उसने अवश्य मरना भी है।
ਗੋਵਿੰਦ ਭਗਤੁ ਅਸਥਿਰੁ ਹੈ ਥੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गोविंद भगतु असथिरु है थीआ ॥१॥ रहाउ ॥
इस दुनिया में गोविंद का भक्त ही सदा स्थिरचित रहता है॥ १I रहाउ ॥
ਦਿਨ ਤੇ ਸਰਪਰ ਪਉਸੀ ਰਾਤਿ ॥
दिन ते सरपर पउसी राति ॥
दिन के पश्चात् रात्रि अवश्य ही होगी।
ਰੈਣਿ ਗਈ ਫਿਰਿ ਹੋਇ ਪਰਭਾਤਿ ॥੨॥
रैणि गई फिरि होइ परभाति ॥२॥
जब रात्रि बीत जाती है तो फिर प्रभात अर्थात् सवेरा हो जाता है॥ २॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਸੋਇ ਰਹੇ ਅਭਾਗੇ ॥
माइआ मोहि सोइ रहे अभागे ॥
माया के स्रोह में भाग्यहीन मनुष्य सोये रहते हैं।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਜਾਗੇ ॥੩॥
गुर प्रसादि को विरला जागे ॥३॥
गुरु की कृपा से कोई विरला मनुष्य ही मायावी निद्रा से जागता है॥ ३॥