ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੇ ਸਭਿ ਕਾਜ ਸਵਾਰਿ ॥
तिसु जन के सभि काज सवारि ॥
उसके सब कार्य सम्पन्न हो जाते हैं।
ਤਿਸ ਕਾ ਰਾਖਾ ਏਕੋ ਸੋਇ ॥
तिस का राखा एको सोइ ॥
हे नानक ! उसकी रक्षा करने वाली केवल वही परम शक्ति है,
ਜਨ ਨਾਨਕ ਅਪੜਿ ਨ ਸਾਕੈ ਕੋਇ ॥੪॥੪॥੧੭॥
जन नानक अपड़ि न साकै कोइ ॥४॥४॥१७॥
जिस तक कोई पहुँच नहीं सकता॥४॥४॥१७॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਤਉ ਕੜੀਐ ਜੇ ਹੋਵੈ ਬਾਹਰਿ ॥
तउ कड़ीऐ जे होवै बाहरि ॥
दर्द तो हमें तब हो, अगर ईश्वर हमसे कहीं बाहर है अथवा
ਤਉ ਕੜੀਐ ਜੇ ਵਿਸਰੈ ਨਰਹਰਿ ॥
तउ कड़ीऐ जे विसरै नरहरि ॥
तो ही हम दुखी होते हैं, जब भगवान भूल जाता है।
ਤਉ ਕੜੀਐ ਜੇ ਦੂਜਾ ਭਾਏ ॥
तउ कड़ीऐ जे दूजा भाए ॥
अगर द्वैतभाव में आसक्त हो जाएँ तो पीड़ा होती है।
ਕਿਆ ਕੜੀਐ ਜਾਂ ਰਹਿਆ ਸਮਾਏ ॥੧॥
किआ कड़ीऐ जां रहिआ समाए ॥१॥
जब प्रभु सबमें व्याप्त है तो दर्द किस तरह होगा ?॥१॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਕੜੇ ਕੜਿ ਪਚਿਆ ॥
माइआ मोहि कड़े कड़ि पचिआ ॥
माया-मोह में फँसकर जीव दुःख ही पाता है और
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿ ਖਪਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बिनु नावै भ्रमि भ्रमि भ्रमि खपिआ ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु-नाम के बिना भ्रम में खपता है॥१॥रहाउ॥
ਤਉ ਕੜੀਐ ਜੇ ਦੂਜਾ ਕਰਤਾ ॥
तउ कड़ीऐ जे दूजा करता ॥
दुःखी तब होते हैं अगर कोई अन्य कर्ता है।
ਤਉ ਕੜੀਐ ਜੇ ਅਨਿਆਇ ਕੋ ਮਰਤਾ ॥
तउ कड़ीऐ जे अनिआइ को मरता ॥
अगर कोई बुरी मौत मरता है तो बड़ा दु:ख होता है।
ਤਉ ਕੜੀਐ ਜੇ ਕਿਛੁ ਜਾਣੈ ਨਾਹੀ ॥
तउ कड़ीऐ जे किछु जाणै नाही ॥
जब कुछ जानता ही नहीं तो दुख की अनुभूति होती है।
ਕਿਆ ਕੜੀਐ ਜਾਂ ਭਰਪੂਰਿ ਸਮਾਹੀ ॥੨॥
किआ कड़ीऐ जां भरपूरि समाही ॥२॥
ईश्वर सबमें भरपूर रूप से व्याप्त है, फिर भला कैसे तकलीफ हो सकती है।॥२॥
ਤਉ ਕੜੀਐ ਜੇ ਕਿਛੁ ਹੋਇ ਧਿਙਾਣੈ ॥
तउ कड़ीऐ जे किछु होइ धिङाणै ॥
अगर कुछ जुल्म अथवा जबरदस्ती हो जाए तो हम दु:ख के शिकार होते हैं,
ਤਉ ਕੜੀਐ ਜੇ ਭੂਲਿ ਰੰਞਾਣੈ ॥
तउ कड़ीऐ जे भूलि रंञाणै ॥
अगर कोई गलती से किसी को सताता है तो भी हमें दर्द होता है।
ਗੁਰਿ ਕਹਿਆ ਜੋ ਹੋਇ ਸਭੁ ਪ੍ਰਭ ਤੇ ॥
गुरि कहिआ जो होइ सभु प्रभ ते ॥
गुरु ने यही सत्य बताया है कि जो होता सब प्रभु की इच्छा से ही होता है।
ਤਬ ਕਾੜਾ ਛੋਡਿ ਅਚਿੰਤ ਹਮ ਸੋਤੇ ॥੩॥
तब काड़ा छोडि अचिंत हम सोते ॥३॥
तब सब दुख-परेशानियों को छोड़कर हम निश्चिंत होकर सोते हैं।॥३॥
ਪ੍ਰਭ ਤੂਹੈ ਠਾਕੁਰੁ ਸਭੁ ਕੋ ਤੇਰਾ ॥
प्रभ तूहै ठाकुरु सभु को तेरा ॥
हे प्रभु ! तू सबका मालिक है और सब तेरा ही बनाया हुआ है।
ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਕਰਹਿ ਨਿਬੇਰਾ ॥
जिउ भावै तिउ करहि निबेरा ॥
जैसा तुझे उचित लगता है, वैसा ही निपटारा करता है।
ਦੁਤੀਆ ਨਾਸਤਿ ਇਕੁ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥
दुतीआ नासति इकु रहिआ समाइ ॥
दूसरा कोई नहीं, केवल यही सर्वव्यापक है।
ਰਾਖਹੁ ਪੈਜ ਨਾਨਕ ਸਰਣਾਇ ॥੪॥੫॥੧੮॥
राखहु पैज नानक सरणाइ ॥४॥५॥१८॥
हे ईश्वर ! नानक की प्रार्थना है कि शरण में आने वाले की लाज रखो॥४॥५॥ १८॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਬਿਨੁ ਬਾਜੇ ਕੈਸੋ ਨਿਰਤਿਕਾਰੀ ॥
बिनु बाजे कैसो निरतिकारी ॥
संगीत के बिना कैसे नृत्य किया जा सकता है और
ਬਿਨੁ ਕੰਠੈ ਕੈਸੇ ਗਾਵਨਹਾਰੀ ॥
बिनु कंठै कैसे गावनहारी ॥
कण्ठ के बिना कैसे गाया जा सकता है।
ਜੀਲ ਬਿਨਾ ਕੈਸੇ ਬਜੈ ਰਬਾਬ ॥
जील बिना कैसे बजै रबाब ॥
जील बिना रबाब भी बजाया नहीं जा सकता,
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਬਿਰਥੇ ਸਭਿ ਕਾਜ ॥੧॥
नाम बिना बिरथे सभि काज ॥१॥
वैसे प्रभु नाम स्मरण के बिना सब कार्य विफल हो जाते हैं।॥१॥
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕਹਹੁ ਕੋ ਤਰਿਆ ॥
नाम बिना कहहु को तरिआ ॥
बताओ, नाम बिना किसकी मुक्ति हुई है,
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈਸੇ ਪਾਰਿ ਪਰਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बिनु सतिगुर कैसे पारि परिआ ॥१॥ रहाउ ॥
सच्चे गुरु के बिना कोई संसार-सागर से पार नहीं हो सका॥ १॥रहाउ॥
ਬਿਨੁ ਜਿਹਵਾ ਕਹਾ ਕੋ ਬਕਤਾ ॥
बिनु जिहवा कहा को बकता ॥
जिस प्रकार जीभ के बिना कोई बोल नहीं सकता,
ਬਿਨੁ ਸ੍ਰਵਨਾ ਕਹਾ ਕੋ ਸੁਨਤਾ ॥
बिनु स्रवना कहा को सुनता ॥
कानों के बिना कोई सुन नहीं सकता।
ਬਿਨੁ ਨੇਤ੍ਰਾ ਕਹਾ ਕੋ ਪੇਖੈ ॥
बिनु नेत्रा कहा को पेखै ॥
आँखों के बिना कोई देख नहीं सकता,
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਨਰੁ ਕਹੀ ਨ ਲੇਖੈ ॥੨॥
नाम बिना नरु कही न लेखै ॥२॥
वैसे ही प्रभु-नाम के बिना मनुष्य का कोई वजूद नहीं॥२॥
ਬਿਨੁ ਬਿਦਿਆ ਕਹਾ ਕੋਈ ਪੰਡਿਤ ॥
बिनु बिदिआ कहा कोई पंडित ॥
विद्या के बिना कोई पण्डित अथवा विद्वान नहीं बनता।
ਬਿਨੁ ਅਮਰੈ ਕੈਸੇ ਰਾਜ ਮੰਡਿਤ ॥
बिनु अमरै कैसे राज मंडित ॥
ताकत अथवा अधिकार के बिना कैसे कोई शासन कर सकता है।
ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਕਹਾ ਮਨੁ ਠਹਰਾਨਾ ॥
बिनु बूझे कहा मनु ठहराना ॥
ज्ञान के बिना मन स्थिर नहीं होता,
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਸਭੁ ਜਗੁ ਬਉਰਾਨਾ ॥੩॥
नाम बिना सभु जगु बउराना ॥३॥
प्रभु नाम स्मरण बिना समूचा जगत बावला है॥३॥
ਬਿਨੁ ਬੈਰਾਗ ਕਹਾ ਬੈਰਾਗੀ ॥
बिनु बैराग कहा बैरागी ॥
वैराग्य के बिना कोई वैरागी नहीं कहलाता और
ਬਿਨੁ ਹਉ ਤਿਆਗਿ ਕਹਾ ਕੋਊ ਤਿਆਗੀ ॥
बिनु हउ तिआगि कहा कोऊ तिआगी ॥
अहम का त्याग किए बिना कैसे कोई त्यागी हो सकता है।
ਬਿਨੁ ਬਸਿ ਪੰਚ ਕਹਾ ਮਨ ਚੂਰੇ ॥
बिनु बसि पंच कहा मन चूरे ॥
ज्यों कामादिक पाँच इन्द्रियों को वशीभूत किए बिना मन स्थिर नहीं होता,
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਸਦ ਸਦ ਹੀ ਝੂਰੇ ॥੪॥
नाम बिना सद सद ही झूरे ॥४॥
इसी तरह प्रभु नाम के चिंतन बिना मनुष्य सदैव कष्ट पाता है॥४॥
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਦੀਖਿਆ ਕੈਸੇ ਗਿਆਨੁ ॥
बिनु गुर दीखिआ कैसे गिआनु ॥
गुरु दीक्षा के बिना ज्ञान कैसे संभव है?
ਬਿਨੁ ਪੇਖੇ ਕਹੁ ਕੈਸੋ ਧਿਆਨੁ ॥
बिनु पेखे कहु कैसो धिआनु ॥
बिना देखे ध्यान भी नहीं लग सकता।
ਬਿਨੁ ਭੈ ਕਥਨੀ ਸਰਬ ਬਿਕਾਰ ॥
बिनु भै कथनी सरब बिकार ॥
बिना भय के कथनी में सब विकार ही हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਦਰ ਕਾ ਬੀਚਾਰ ॥੫॥੬॥੧੯॥
कहु नानक दर का बीचार ॥५॥६॥१९॥
हे नानक ! अतः सच्चे द्वार (प्रभु) का चिंतन करो॥ ५॥ ६॥१६॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਹਉਮੈ ਰੋਗੁ ਮਾਨੁਖ ਕਉ ਦੀਨਾ ॥
हउमै रोगु मानुख कउ दीना ॥
अहम् रोग मनुष्य को दिया है,
ਕਾਮ ਰੋਗਿ ਮੈਗਲੁ ਬਸਿ ਲੀਨਾ ॥
काम रोगि मैगलु बसि लीना ॥
कामवासना के रोग के कारण हाथी कैद में फंस जाता है।
ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਰੋਗਿ ਪਚਿ ਮੁਏ ਪਤੰਗਾ ॥
द्रिसटि रोगि पचि मुए पतंगा ॥
दृष्टि रोग के परिणामस्वरूप पतंगा जलकर नष्ट हो जाता है और
ਨਾਦ ਰੋਗਿ ਖਪਿ ਗਏ ਕੁਰੰਗਾ ॥੧॥
नाद रोगि खपि गए कुरंगा ॥१॥
हिरण संगीत के स्वर रोग के कारण दुखी होता है।॥१॥
ਜੋ ਜੋ ਦੀਸੈ ਸੋ ਸੋ ਰੋਗੀ ॥
जो जो दीसै सो सो रोगी ॥
संसार में जो जो दिखाई दे रहा है, वही रोगी है।
ਰੋਗ ਰਹਿਤ ਮੇਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਜੋਗੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
रोग रहित मेरा सतिगुरु जोगी ॥१॥ रहाउ ॥
मगर मेरा योगी सतगुरु सब रोगों से रहित है॥१॥ रहाउ॥
ਜਿਹਵਾ ਰੋਗਿ ਮੀਨੁ ਗ੍ਰਸਿਆਨੋ ॥
जिहवा रोगि मीनु ग्रसिआनो ॥
जीभ के रोग के कारण मछली जाल में फँस जाती है,
ਬਾਸਨ ਰੋਗਿ ਭਵਰੁ ਬਿਨਸਾਨੋ ॥
बासन रोगि भवरु बिनसानो ॥
भेंवरा सुगन्धि रोग के कारण नष्ट हो जाता है।
ਹੇਤ ਰੋਗ ਕਾ ਸਗਲ ਸੰਸਾਰਾ ॥
हेत रोग का सगल संसारा ॥
समूचे संसार को मोह-प्रेम का रोग लगा हुआ है और
ਤ੍ਰਿਬਿਧਿ ਰੋਗ ਮਹਿ ਬਧੇ ਬਿਕਾਰਾ ॥੨॥
त्रिबिधि रोग महि बधे बिकारा ॥२॥
तीन गुणों के रोग में पड़कर विकारों में और भी वृद्धि होती है।॥२॥
ਰੋਗੇ ਮਰਤਾ ਰੋਗੇ ਜਨਮੈ ॥
रोगे मरता रोगे जनमै ॥
जीव रोग में ही मरता है और रोग में ही जन्म’लेता है।
ਰੋਗੇ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜੋਨੀ ਭਰਮੈ ॥
रोगे फिरि फिरि जोनी भरमै ॥
रोगों के कारण ही पुनः पुनः योनि चक्र में घूमता है।