ਜਹ ਸੇਵਕ ਗੋਪਾਲ ਗੁਸਾਈ ॥
जह सेवक गोपाल गुसाई ॥
जहाँ भक्तजन ईश्वर की भक्ति करते हैं, ।
ਪ੍ਰਭ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ਭਏ ਗੋਪਾਲ ॥
प्रभ सुप्रसंन भए गोपाल ॥
प्रभु के सुप्रसन्न होने से
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਮਿਟੇ ਬਿਤਾਲ ॥੫॥
जनम जनम के मिटे बिताल ॥५॥
जन्म-जन्म के दुख मिट जाते हैं।॥ ५॥
ਹੋਮ ਜਗ ਉਰਧ ਤਪ ਪੂਜਾ ॥
होम जग उरध तप पूजा ॥
लोग होम, यज्ञ, उलटा लटक कर तपस्या,
ਕੋਟਿ ਤੀਰਥ ਇਸਨਾਨੁ ਕਰੀਜਾ ॥
कोटि तीरथ इसनानु करीजा ॥
पूजा-अर्चना, करोड़ों तीर्थों में स्नान करते हैं,
ਚਰਨ ਕਮਲ ਨਿਮਖ ਰਿਦੈ ਧਾਰੇ ॥
चरन कमल निमख रिदै धारे ॥
परन्तु जो एक पल ईश्वर के चरण-कमल को हृदय में धारण करता है,
ਗੋਬਿੰਦ ਜਪਤ ਸਭਿ ਕਾਰਜ ਸਾਰੇ ॥੬॥
गोबिंद जपत सभि कारज सारे ॥६॥
परमात्मा का नाम जपता है, उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं।॥ ६॥
ਊਚੇ ਤੇ ਊਚਾ ਪ੍ਰਭ ਥਾਨੁ ॥
ऊचे ते ऊचा प्रभ थानु ॥
प्रभु का स्थान सबसे ऊँचा है,
ਹਰਿ ਜਨ ਲਾਵਹਿ ਸਹਜਿ ਧਿਆਨੁ ॥
हरि जन लावहि सहजि धिआनु ॥
हरिभक्त स्वाभाविक ही उसमें ध्यान लगाते हैं।
ਦਾਸ ਦਾਸਨ ਕੀ ਬਾਂਛਉ ਧੂਰਿ ॥
दास दासन की बांछउ धूरि ॥
हम तो भक्तजनों की चरण-धूल के आकांक्षी हैं,
ਸਰਬ ਕਲਾ ਪ੍ਰੀਤਮ ਭਰਪੂਰਿ ॥੭॥
सरब कला प्रीतम भरपूरि ॥७॥
वह सर्वशक्तिमान प्रियतम प्रभु सब में व्याप्त है॥ ७॥
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਨੇਰਾ ॥
मात पिता हरि प्रीतमु नेरा ॥
हे प्रियतम प्रभु ! तू माता-पिता की तरह हमारे निकट है।
ਮੀਤ ਸਾਜਨ ਭਰਵਾਸਾ ਤੇਰਾ ॥
मीत साजन भरवासा तेरा ॥
हे मेरे मीत साजन ! मुझे केवल तेरा ही भरोसा है।
ਕਰੁ ਗਹਿ ਲੀਨੇ ਅਪੁਨੇ ਦਾਸ ॥
करु गहि लीने अपुने दास ॥
उसने हाथ थामकर भक्तों को अपना बना लिया है।
ਜਪਿ ਜੀਵੈ ਨਾਨਕੁ ਗੁਣਤਾਸ ॥੮॥੩॥੨॥੭॥੧੨॥
जपि जीवै नानकु गुणतास ॥८॥३॥२॥७॥१२॥
गुरु नानक का कथन है कि हम तो गुणों के भण्डार परमेश्वर का जाप करके ही जीवन पा रहे है॥ ८॥ ३॥ २॥७॥ १२॥
ਬਿਭਾਸ ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਬਾਣੀ ਭਗਤ ਕਬੀਰ ਜੀ ਕੀ
बिभास प्रभाती बाणी भगत कबीर जी की
बिभास प्रभाती बाणी भगत कबीर जी की
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਮਰਨ ਜੀਵਨ ਕੀ ਸੰਕਾ ਨਾਸੀ ॥
मरन जीवन की संका नासी ॥
मेरी जीवन-मृत्यु की शंका दूर हो गई
ਆਪਨ ਰੰਗਿ ਸਹਜ ਪਰਗਾਸੀ ॥੧॥
आपन रंगि सहज परगासी ॥१॥
जब परमात्मा अपने रंग में सहज स्वाभाविक प्रकाशमान हुआ॥ १॥
ਪ੍ਰਗਟੀ ਜੋਤਿ ਮਿਟਿਆ ਅੰਧਿਆਰਾ ॥
प्रगटी जोति मिटिआ अंधिआरा ॥
अन्तर्मन में ज्ञान ज्योति प्रगट हुई और अज्ञान का अंधेरा मिट गया।
ਰਾਮ ਰਤਨੁ ਪਾਇਆ ਕਰਤ ਬੀਚਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम रतनु पाइआ करत बीचारा ॥१॥ रहाउ ॥
चिंतन करते हुए परमात्मा रूपी,रत्न पा लिया॥ १॥रहाउ॥
ਜਹ ਅਨੰਦੁ ਦੁਖੁ ਦੂਰਿ ਪਇਆਨਾ ॥
जह अनंदु दुखु दूरि पइआना ॥
जहाँ आनंद उत्पन्न होता है, वहाँ से दुख दूर हो जाते हैं।
ਮਨੁ ਮਾਨਕੁ ਲਿਵ ਤਤੁ ਲੁਕਾਨਾ ॥੨॥
मनु मानकु लिव ततु लुकाना ॥२॥
मन रूपी माणिक्य प्रभु-प्रीति में लीन हो गया है॥ २॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਹੋਆ ਸੁ ਤੇਰਾ ਭਾਣਾ ॥
जो किछु होआ सु तेरा भाणा ॥
जो कुछ होता है, सब तेरी रज़ा है।
ਜੋ ਇਵ ਬੂਝੈ ਸੁ ਸਹਜਿ ਸਮਾਣਾ ॥੩॥
जो इव बूझै सु सहजि समाणा ॥३॥
जो इस तथ्य को समझता है, वह सहज स्वभाविक लीन हो जाता है॥ ३॥
ਕਹਤੁ ਕਬੀਰੁ ਕਿਲਬਿਖ ਗਏ ਖੀਣਾ ॥
कहतु कबीरु किलबिख गए खीणा ॥
कबीर जी कहते हैं कि सब पाप-दोष नष्ट हो गए हैं,
ਮਨੁ ਭਇਆ ਜਗਜੀਵਨ ਲੀਣਾ ॥੪॥੧॥
मनु भइआ जगजीवन लीणा ॥४॥१॥
चूंकि मन परमात्मा में लीन हो गया है॥ ४॥ १॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ॥
प्रभाती ॥
प्रभाती ॥
ਅਲਹੁ ਏਕੁ ਮਸੀਤਿ ਬਸਤੁ ਹੈ ਅਵਰੁ ਮੁਲਖੁ ਕਿਸੁ ਕੇਰਾ ॥
अलहु एकु मसीति बसतु है अवरु मुलखु किसु केरा ॥
यदि अल्लाह केवल मस्जिद में ही रहता है तो (बताइए) बाकी मुल्क किसका है।
ਹਿੰਦੂ ਮੂਰਤਿ ਨਾਮ ਨਿਵਾਸੀ ਦੁਹ ਮਹਿ ਤਤੁ ਨ ਹੇਰਾ ॥੧॥
हिंदू मूरति नाम निवासी दुह महि ततु न हेरा ॥१॥
हिन्दुओं का मानना है कि परमात्मा का निवास मूर्ति में है परन्तु दोनों ने ही सच्चाई को नहीं जाना (कि परमात्मा तो सर्वव्यापक है, हर दिल में बसा हुआ है)॥ १॥
ਅਲਹ ਰਾਮ ਜੀਵਉ ਤੇਰੇ ਨਾਈ ॥
अलह राम जीवउ तेरे नाई ॥
हे अल्लाह ! (तू महान् है) हे राम ! मैं तो तेरे नाम के आसरे पर ही जिंदगी गुजार रहा हूँ।
ਤੂ ਕਰਿ ਮਿਹਰਾਮਤਿ ਸਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तू करि मिहरामति साई ॥१॥ रहाउ ॥
हे मालिक ! तू हम पर अपनी मेहर करता रह॥ १॥रहाउ॥
ਦਖਨ ਦੇਸਿ ਹਰੀ ਕਾ ਬਾਸਾ ਪਛਿਮਿ ਅਲਹ ਮੁਕਾਮਾ ॥
दखन देसि हरी का बासा पछिमि अलह मुकामा ॥
हिन्दुओं के विचारानुसार दक्षिण देश जगन्नाथ पुरी में हरि का निवास है और मुसलमान पश्चिम (मक्का) में अल्लाह का घर मानते हैं।
ਦਿਲ ਮਹਿ ਖੋਜਿ ਦਿਲੈ ਦਿਲਿ ਖੋਜਹੁ ਏਹੀ ਠਉਰ ਮੁਕਾਮਾ ॥੨॥
दिल महि खोजि दिलै दिलि खोजहु एही ठउर मुकामा ॥२॥
हे मेरे भाई ! दिल में खोज करो, दिल में ही ढूंढो, इस दिल में ही मोला-परमेश्वर का ठिकाना है॥ २ll
ਬ੍ਰਹਮਨ ਗਿਆਸ ਕਰਹਿ ਚਉਬੀਸਾ ਕਾਜੀ ਮਹ ਰਮਜਾਨਾ ॥
ब्रहमन गिआस करहि चउबीसा काजी मह रमजाना ॥
ब्राह्मण चौबीस एकादशियों के व्रत-उपवास रखते हैं और काजी रमजान के महीने रोजे रखते हैं।
ਗਿਆਰਹ ਮਾਸ ਪਾਸ ਕੈ ਰਾਖੇ ਏਕੈ ਮਾਹਿ ਨਿਧਾਨਾ ॥੩॥
गिआरह मास पास कै राखे एकै माहि निधाना ॥३॥
लेकिन वे लोग अन्य ग्यारह महीनों को दरकिनार कर देते हैं और केवल रमजान के महीने में सुखों के घर अल्लाह को पाने का समय मानते हैं।॥ ३॥
ਕਹਾ ਉਡੀਸੇ ਮਜਨੁ ਕੀਆ ਕਿਆ ਮਸੀਤਿ ਸਿਰੁ ਨਾਂਏਂ ॥
कहा उडीसे मजनु कीआ किआ मसीति सिरु नांएं ॥
उड़ीसा में जगन्नाथ पर स्नान करने और मस्जिद में सिर झुकाने से क्या लाभ है।
ਦਿਲ ਮਹਿ ਕਪਟੁ ਨਿਵਾਜ ਗੁਜਾਰੈ ਕਿਆ ਹਜ ਕਾਬੈ ਜਾਂਏਂ ॥੪॥
दिल महि कपटु निवाज गुजारै किआ हज काबै जांएं ॥४॥
यदि दिल में कपट ही भरा हुआ है तो नमाज अदा करने या हज्ज के लिए काबे में जाने का भी कोई फायदा नहीं॥ ४॥
ਏਤੇ ਅਉਰਤ ਮਰਦਾ ਸਾਜੇ ਏ ਸਭ ਰੂਪ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ॥
एते अउरत मरदा साजे ए सभ रूप तुम्हारे ॥
जितनी भी औरतें एवं मर्द बनाए हैं, हे परमेश्वर ! ये सब तुम्हारा ही रूप हैं।
ਕਬੀਰੁ ਪੂੰਗਰਾ ਰਾਮ ਅਲਹ ਕਾ ਸਭ ਗੁਰ ਪੀਰ ਹਮਾਰੇ ॥੫॥
कबीरु पूंगरा राम अलह का सभ गुर पीर हमारे ॥५॥
कबीर राम एवं अल्लाह का ही पुत्र है तथा उसके मतानुसर सभी हमारे गुरु पीर हैं।॥ ५॥
ਕਹਤੁ ਕਬੀਰੁ ਸੁਨਹੁ ਨਰ ਨਰਵੈ ਪਰਹੁ ਏਕ ਕੀ ਸਰਨਾ ॥
कहतु कबीरु सुनहु नर नरवै परहु एक की सरना ॥
कबीर जी कहते हैं कि हे नर नारियो ! मेरी बात जरा ध्यान से सुनो, (धर्मान्धता छोड़कर) उस एक परमात्मा की शरण में पड़ो।
ਕੇਵਲ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਰੇ ਪ੍ਰਾਨੀ ਤਬ ਹੀ ਨਿਹਚੈ ਤਰਨਾ ॥੬॥੨॥
केवल नामु जपहु रे प्रानी तब ही निहचै तरना ॥६॥२॥
केवल प्रभु के नाम का जाप करो, हे प्राणियो ! तब निश्चय ही तुम संसार-सागर से पार हो जाओगे॥ ६॥ २॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ॥
प्रभाती ॥
प्रभाती ॥
ਅਵਲਿ ਅਲਹ ਨੂਰੁ ਉਪਾਇਆ ਕੁਦਰਤਿ ਕੇ ਸਭ ਬੰਦੇ ॥
अवलि अलह नूरु उपाइआ कुदरति के सभ बंदे ॥
सबसे पहले अल्लाह ने अपने नूर को पैदा किया, तदंतर उसकी कुदरत-शक्ति से सब लोगों की पैदाइश हुई।
ਏਕ ਨੂਰ ਤੇ ਸਭੁ ਜਗੁ ਉਪਜਿਆ ਕਉਨ ਭਲੇ ਕੋ ਮੰਦੇ ॥੧॥
एक नूर ते सभु जगु उपजिआ कउन भले को मंदे ॥१॥
जब एक नूर से समूचा जगत पैदा हुआ है तो फिर कौन भला हो सकता है और किसे बुरा कहा जाए॥ १॥