ਰਾਮ ਜਨ ਗੁਰਮਤਿ ਰਾਮੁ ਬੋਲਾਇ ॥
राम जन गुरमति रामु बोलाइ ॥
राम के भक्त गुरु मतानुसार राम नाम ही जपते हैं।
ਜੋ ਜੋ ਸੁਣੈ ਕਹੈ ਸੋ ਮੁਕਤਾ ਰਾਮ ਜਪਤ ਸੋਹਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो जो सुणै कहै सो मुकता राम जपत सोहाइ ॥१॥ रहाउ ॥
जो भी राम का नाम सुनता एवं जपता है, वह संसार के बन्धनों से मुक्त हो जाता है और वह राम का नाम जपता ही सुन्दर लगता है॥ १॥ रहाउ॥
ਜੇ ਵਡ ਭਾਗ ਹੋਵਹਿ ਮੁਖਿ ਮਸਤਕਿ ਹਰਿ ਰਾਮ ਜਨਾ ਭੇਟਾਇ ॥
जे वड भाग होवहि मुखि मसतकि हरि राम जना भेटाइ ॥
यदि माथे पर बड़े भाग्य उज्ज्वल हों तो प्रभु भक्तजनों से भेंट करवा देता है।
ਦਰਸਨੁ ਸੰਤ ਦੇਹੁ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸਭੁ ਦਾਲਦੁ ਦੁਖੁ ਲਹਿ ਜਾਇ ॥੨॥
दरसनु संत देहु करि किरपा सभु दालदु दुखु लहि जाइ ॥२॥
यदि कृपा करके संत अपने दर्शन दें तो सब दुख-दारिद्र दूर हो जाते हैं।॥ २॥
ਹਰਿ ਕੇ ਲੋਗ ਰਾਮ ਜਨ ਨੀਕੇ ਭਾਗਹੀਣ ਨ ਸੁਖਾਇ ॥
हरि के लोग राम जन नीके भागहीण न सुखाइ ॥
भगवान् के भक्तजन बड़े नेक व उपकारी हैं किन्तु भाग्यहीन निंदकों को वे नहीं लगते।
ਜਿਉ ਜਿਉ ਰਾਮ ਕਹਹਿ ਜਨ ਊਚੇ ਨਰ ਨਿੰਦਕ ਡੰਸੁ ਲਗਾਇ ॥੩॥
जिउ जिउ राम कहहि जन ऊचे नर निंदक डंसु लगाइ ॥३॥
भक्तजन जैसे-जैसे उच्च स्वर से राम नाम उच्चारित करते हैं, उतना ही सर्प डंक की तरह नाम निंदकों को पीड़ित करता है।॥ ३॥
ਧ੍ਰਿਗੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਨਰ ਨਿੰਦਕ ਜਿਨ ਜਨ ਨਹੀ ਭਾਏ ਹਰਿ ਕੇ ਸਖਾ ਸਖਾਇ ॥
ध्रिगु ध्रिगु नर निंदक जिन जन नही भाए हरि के सखा सखाइ ॥
निंदक व्यक्ति धिक्कार योग्य हैं, जिन्हें संतजन भले नहीं लगते जो हरि के मित्र एवं साथी हैं।
ਸੇ ਹਰਿ ਕੇ ਚੋਰ ਵੇਮੁਖ ਮੁਖ ਕਾਲੇ ਜਿਨ ਗੁਰ ਕੀ ਪੈਜ ਨ ਭਾਇ ॥੪॥
से हरि के चोर वेमुख मुख काले जिन गुर की पैज न भाइ ॥४॥
जिन्हें गुरु का मान-सम्मान नहीं भाता, वे विमुख, तिरस्कृत एवं हरि के चोर हैं।॥४॥
ਦਇਆ ਦਇਆ ਕਰਿ ਰਾਖਹੁ ਹਰਿ ਜੀਉ ਹਮ ਦੀਨ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਇ ॥
दइआ दइआ करि राखहु हरि जीउ हम दीन तेरी सरणाइ ॥
हे श्री हरि ! हम दीन तेरी शरण में आए हैं, दया करके हमारी रक्षा करो।
ਹਮ ਬਾਰਿਕ ਤੁਮ ਪਿਤਾ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਜਨ ਨਾਨਕ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਇ ॥੫॥੨॥
हम बारिक तुम पिता प्रभ मेरे जन नानक बखसि मिलाइ ॥५॥२॥
नानक का कथन है कि हे प्रभु ! तुम हमारे पिता हो और हम तेरी संतान हैं, क्षमा करके अपने साथ मिला लो ॥ ५ ॥ २ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
रामकली महला ४ ॥
रामकली महला ४ ॥
ਹਰਿ ਕੇ ਸਖਾ ਸਾਧ ਜਨ ਨੀਕੇ ਤਿਨ ਊਪਰਿ ਹਾਥੁ ਵਤਾਵੈ ॥
हरि के सखा साध जन नीके तिन ऊपरि हाथु वतावै ॥
हरि के सखा साधुजन बड़े नेक हैं और उन पर प्रभु अपनी कृपा का हाथ रखता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਧ ਸੇਈ ਪ੍ਰਭ ਭਾਏ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਆਪਿ ਮਿਲਾਵੈ ॥੧॥
गुरमुखि साध सेई प्रभ भाए करि किरपा आपि मिलावै ॥१॥
गुरुमुख साधुजन ही प्रभु को भाते हैं और वह उन्हें कृपा करके अपने साथ मिला लेता है॥ १॥
ਰਾਮ ਮੋ ਕਉ ਹਰਿ ਜਨ ਮੇਲਿ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ॥
राम मो कउ हरि जन मेलि मनि भावै ॥
हे राम ! मुझे भक्तों से मिला दो, क्योंकि वही मेरे मन को भाते हैं।
ਅਮਿਉ ਅਮਿਉ ਹਰਿ ਰਸੁ ਹੈ ਮੀਠਾ ਮਿਲਿ ਸੰਤ ਜਨਾ ਮੁਖਿ ਪਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अमिउ अमिउ हरि रसु है मीठा मिलि संत जना मुखि पावै ॥१॥ रहाउ ॥
हरि रस अमृत के समान बड़ा मीठा है और संतजनों से मिलकर ही मुख में डाला जा सकता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਹਰਿ ਕੇ ਲੋਗ ਰਾਮ ਜਨ ਊਤਮ ਮਿਲਿ ਊਤਮ ਪਦਵੀ ਪਾਵੈ ॥
हरि के लोग राम जन ऊतम मिलि ऊतम पदवी पावै ॥
भगवान के भक्तजन बड़े उत्तम हैं, जिन्हें मिलकर उत्तम पदवी प्राप्त होती है।
ਹਮ ਹੋਵਤ ਚੇਰੀ ਦਾਸ ਦਾਸਨ ਕੀ ਮੇਰਾ ਠਾਕੁਰੁ ਖੁਸੀ ਕਰਾਵੈ ॥੨॥
हम होवत चेरी दास दासन की मेरा ठाकुरु खुसी करावै ॥२॥
यदि मेरा ठाकुर मुझ पर प्रसन्न हो जाए तो मैं उसके दासों के दास की सेविका बन जाऊँ॥ २॥
ਸੇਵਕ ਜਨ ਸੇਵਹਿ ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ਰਿਦ ਮਨਿ ਤਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗਾਵੈ ॥
सेवक जन सेवहि से वडभागी रिद मनि तनि प्रीति लगावै ॥
ये भक्तजन बड़े भाग्यशाली हैं, जो प्रभु की उपासना करते हैं और उनके मन-तन-हृदय में प्रभु से प्रीति लगी रहती है।
ਬਿਨੁ ਪ੍ਰੀਤੀ ਕਰਹਿ ਬਹੁ ਬਾਤਾ ਕੂੜੁ ਬੋਲਿ ਕੂੜੋ ਫਲੁ ਪਾਵੈ ॥੩॥
बिनु प्रीती करहि बहु बाता कूड़ु बोलि कूड़ो फलु पावै ॥३॥
जो व्यक्ति प्रीति के बिना ही बहुत बातें करता है, वह झूठ बोलकर झूठा फल ही हासिल करता है॥ ३॥
ਮੋ ਕਉ ਧਾਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਜਗਜੀਵਨ ਦਾਤੇ ਹਰਿ ਸੰਤ ਪਗੀ ਲੇ ਪਾਵੈ ॥
मो कउ धारि क्रिपा जगजीवन दाते हरि संत पगी ले पावै ॥
हे जग के जीवनदाता ! मुझ पर कृपा करो, ताकि संतों के चरणों में आश्रय प्राप्त हो जाए।
ਹਉ ਕਾਟਉ ਕਾਟਿ ਬਾਢਿ ਸਿਰੁ ਰਾਖਉ ਜਿਤੁ ਨਾਨਕ ਸੰਤੁ ਚੜਿ ਆਵੈ ॥੪॥੩॥
हउ काटउ काटि बाढि सिरु राखउ जितु नानक संतु चड़ि आवै ॥४॥३॥
हे नानक ! मैं अपना सिर काट-काट कर मार्ग में रख दूंगा ताकि संत उस पर चढ़कर मेरे पास आएँ॥ ४॥ ३॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
रामकली महला ४ ॥
रामकली महला ४ ॥
ਜੇ ਵਡ ਭਾਗ ਹੋਵਹਿ ਵਡ ਮੇਰੇ ਜਨ ਮਿਲਦਿਆ ਢਿਲ ਨ ਲਾਈਐ ॥
जे वड भाग होवहि वड मेरे जन मिलदिआ ढिल न लाईऐ ॥
यदि मेरे बड़े भाग्य हों तो भक्तजनों को मिलने में कोई विलम्ब नहीं करना चाहिए।
ਹਰਿ ਜਨ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਕੁੰਟ ਸਰ ਨੀਕੇ ਵਡਭਾਗੀ ਤਿਤੁ ਨਾਵਾਈਐ ॥੧॥
हरि जन अम्रित कुंट सर नीके वडभागी तितु नावाईऐ ॥१॥
भक्तजन अमृत का कुण्ड एवं पावन सरोवर हैं और उन में उत्तम भाग्य से ही स्नान किया जाता है॥ १॥
ਰਾਮ ਮੋ ਕਉ ਹਰਿ ਜਨ ਕਾਰੈ ਲਾਈਐ ॥
राम मो कउ हरि जन कारै लाईऐ ॥
हे राम ! मुझे भक्तजनों की सेवा में लगाओ ताकि
ਹਉ ਪਾਣੀ ਪਖਾ ਪੀਸਉ ਸੰਤ ਆਗੈ ਪਗ ਮਲਿ ਮਲਿ ਧੂਰਿ ਮੁਖਿ ਲਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ पाणी पखा पीसउ संत आगै पग मलि मलि धूरि मुखि लाईऐ ॥१॥ रहाउ ॥
उन संतों की पानी, पंखा, आटा पीसने की सेवा करूँ और उनके पैर मल-मल कर धोकर उनकी चरण-धूलि मुंह में लगाऊँ ॥१॥ रहाउ ॥
ਹਰਿ ਜਨ ਵਡੇ ਵਡੇ ਵਡ ਊਚੇ ਜੋ ਸਤਗੁਰ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਈਐ ॥
हरि जन वडे वडे वड ऊचे जो सतगुर मेलि मिलाईऐ ॥
भक्तजन बड़े परोपकारी एवं महान होते हैं, जो सतगुरु से संपर्क करवा देते हैं।
ਸਤਗੁਰ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਮਿਲਿ ਸਤਗੁਰ ਪੁਰਖ ਧਿਆਈਐ ॥੨॥
सतगुर जेवडु अवरु न कोई मिलि सतगुर पुरख धिआईऐ ॥२॥
सतगुरु जैसा महान् अन्य कोई नहीं है और सतगुरु से मिलकर ही परमात्मा का ध्यान हो सकता है॥ २॥
ਸਤਗੁਰ ਸਰਣਿ ਪਰੇ ਤਿਨ ਪਾਇਆ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਲਾਜ ਰਖਾਈਐ ॥
सतगुर सरणि परे तिन पाइआ मेरे ठाकुर लाज रखाईऐ ॥
जो व्यक्ति सतगुरु की शरण में पड़े हैं, उन्होंने परम सत्य को पा लिया है और मेरे ठाकुर ने उनकी लाज रख ली है।
ਇਕਿ ਅਪਣੈ ਸੁਆਇ ਆਇ ਬਹਹਿ ਗੁਰ ਆਗੈ ਜਿਉ ਬਗੁਲ ਸਮਾਧਿ ਲਗਾਈਐ ॥੩॥
इकि अपणै सुआइ आइ बहहि गुर आगै जिउ बगुल समाधि लगाईऐ ॥३॥
कुछ व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए गुरु के आगे बैठ जाते हैं और बगुले की तरह समाधि लगा लेते हैं।॥ ३॥
ਬਗੁਲਾ ਕਾਗ ਨੀਚ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਜਾਇ ਕਰੰਗ ਬਿਖੂ ਮੁਖਿ ਲਾਈਐ ॥
बगुला काग नीच की संगति जाइ करंग बिखू मुखि लाईऐ ॥
बगुले एवं कौए जैसे नीचों की संगति में जाकर गंदगी में ही मुँह लगाना पड़ता है।
ਨਾਨਕ ਮੇਲਿ ਮੇਲਿ ਪ੍ਰਭ ਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਹੰਸੁ ਕਰਾਈਐ ॥੪॥੪॥
नानक मेलि मेलि प्रभ संगति मिलि संगति हंसु कराईऐ ॥४॥४॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! मुझे गुरु की संगति में मिला दो ताकि गुरु मुझे बगुले से हंस बना दे ॥ ४॥ ४॥