ਜਪਿ ਮਨ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਰਸਨਾ ॥
जपि मन राम नामु रसना ॥
हे मन ! अपनी जीभ से राम-नाम जप।
ਮਸਤਕਿ ਲਿਖਤ ਲਿਖੇ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਬਸਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मसतकि लिखत लिखे गुरु पाइआ हरि हिरदै हरि बसना ॥१॥ रहाउ ॥
मस्तक पर लिखे भाग्य लेखानुसार मैंने गुरु को पा लिया है और हृदय में भगवान् का निवास हो गया है॥१॥ रहाउ॥
ਮਾਇਆ ਗਿਰਸਤਿ ਭ੍ਰਮਤੁ ਹੈ ਪ੍ਰਾਨੀ ਰਖਿ ਲੇਵਹੁ ਜਨੁ ਅਪਨਾ ॥
माइआ गिरसति भ्रमतु है प्रानी रखि लेवहु जनु अपना ॥
हे श्री हरि ! माया में ग्रस्त हुआ प्राणी भटकता रहता है, अपने दास को इससे बचा लो।
ਜਿਉ ਪ੍ਰਹਿਲਾਦੁ ਹਰਣਾਖਸਿ ਗ੍ਰਸਿਓ ਹਰਿ ਰਾਖਿਓ ਹਰਿ ਸਰਨਾ ॥੨॥
जिउ प्रहिलादु हरणाखसि ग्रसिओ हरि राखिओ हरि सरना ॥२॥
जैसे दैत्य हिरण्यकशिपु ने भक्त प्रहलाद को खंभे से बांध लिया था, शरण में आने पर तूने उसे बचा लिया था, वैसे ही हमें बचा लो॥ २॥
ਕਵਨ ਕਵਨ ਕੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਕਹੀਐ ਹਰਿ ਕੀਏ ਪਤਿਤ ਪਵੰਨਾ ॥
कवन कवन की गति मिति कहीऐ हरि कीए पतित पवंना ॥
श्री हरि ने बड़े-बड़े पापियों को भी पावन कर दिया हैं, में किस-किस की दास्तान बयान करूं।
ਓਹੁ ਢੋਵੈ ਢੋਰ ਹਾਥਿ ਚਮੁ ਚਮਰੇ ਹਰਿ ਉਧਰਿਓ ਪਰਿਓ ਸਰਨਾ ॥੩॥
ओहु ढोवै ढोर हाथि चमु चमरे हरि उधरिओ परिओ सरना ॥३॥
जिस चमार के हाथ में चमड़ा पकड़ा होता था और वह मृत पशु ढोता रहता था, लेकिन जब वह शरण में आया तो भगवान् ने उसका भी उद्धार कर दिया।॥३॥
ਪ੍ਰਭ ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਭਗਤ ਭਵ ਤਾਰਨ ਹਮ ਪਾਪੀ ਰਾਖੁ ਪਪਨਾ ॥
प्रभ दीन दइआल भगत भव तारन हम पापी राखु पपना ॥
हे प्रभु ! तू दीनदयाल है, अपने भक्तजनों को संसार के जन्म-मरण से पार करवाने वाला है।अतः मुझ जैसे पापी को पापों से बचा लो।
ਹਰਿ ਦਾਸਨ ਦਾਸ ਦਾਸ ਹਮ ਕਰੀਅਹੁ ਜਨ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਦਾਸੰਨਾ ॥੪॥੧॥
हरि दासन दास दास हम करीअहु जन नानक दास दासंना ॥४॥१॥
दास नानक प्रार्थना करता है कि हे श्री हरि ! मैं तेरे दासों का दास हूँ मुझे अपने दासों के दासों का दास बना लो ॥ ४॥ १॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੪ ॥
बिलावलु महला ४ ॥
बिलावलु महला ४ ॥
ਹਮ ਮੂਰਖ ਮੁਗਧ ਅਗਿਆਨ ਮਤੀ ਸਰਣਾਗਤਿ ਪੁਰਖ ਅਜਨਮਾ ॥
हम मूरख मुगध अगिआन मती सरणागति पुरख अजनमा ॥
हे अजन्मा प्रभो ! हम मूर्ख,बेवकूफ, अज्ञान बुद्धि वाले तेरी शरण में आए हैं।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਰਖਿ ਲੇਵਹੁ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਹਮ ਪਾਥਰ ਹੀਨ ਅਕਰਮਾ ॥੧॥
करि किरपा रखि लेवहु मेरे ठाकुर हम पाथर हीन अकरमा ॥१॥
हे मेरे ठाकुर ! हम बड़े पत्थर दिल, गुणहीन एवं कर्महीन हैं, कृपा करके हमें बचा लो॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਭਜੁ ਰਾਮ ਨਾਮੈ ਰਾਮਾ ॥
मेरे मन भजु राम नामै रामा ॥
हे मेरे मन ! राम-नाम का भजन कर ;
ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਈਐ ਹੋਰਿ ਤਿਆਗਹੁ ਨਿਹਫਲ ਕਾਮਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमति हरि रसु पाईऐ होरि तिआगहु निहफल कामा ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु के उपदेश से ही हरि-रस प्राप्त होता है, इसलिए अन्य सभी निष्फल कार्यों को त्याग दो॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਜਨ ਸੇਵਕ ਸੇ ਹਰਿ ਤਾਰੇ ਹਮ ਨਿਰਗੁਨ ਰਾਖੁ ਉਪਮਾ ॥
हरि जन सेवक से हरि तारे हम निरगुन राखु उपमा ॥
हे प्रभु ! तूने अपने भक्तजनों को भवसागर से पार किया है, इसलिए मुझ गुणविहीन को भी बचा लो, इसमें तेरी ही उपमा है।
ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਹਰਿ ਜਪੀਐ ਵਡੇ ਕਰੰਮਾ ॥੨॥
तुझ बिनु अवरु न कोई मेरे ठाकुर हरि जपीऐ वडे करमा ॥२॥
हे मेरे ठाकुर ! तेरे अतिरिक्त मेरा अन्य कोई सहारा नहीं है। बड़ी तकदीर से ही तेरा जाप करने को मिलता है। २॥
ਨਾਮਹੀਨ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵਤੇ ਤਿਨ ਵਡ ਦੂਖ ਸਹੰਮਾ ॥
नामहीन ध्रिगु जीवते तिन वड दूख सहमा ॥
नामविहीन लोगों का जीना धिक्कार योग्य है, क्योंकि उन्हें दुखों की भारी चिंता लगी रहती है।
ਓਇ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜੋਨਿ ਭਵਾਈਅਹਿ ਮੰਦਭਾਗੀ ਮੂੜ ਅਕਰਮਾ ॥੩॥
ओइ फिरि फिरि जोनि भवाईअहि मंदभागी मूड़ अकरमा ॥३॥
उन्हें बार-बार योनियों के चक्र में घुमाया जाता है, ऐसे व्यक्ति बड़े बदनसीब, मूर्ख तथा कर्महीन होते हैं।॥३॥
ਹਰਿ ਜਨ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ਹੈ ਧੁਰਿ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖੇ ਵਡ ਕਰਮਾ ॥
हरि जन नामु अधारु है धुरि पूरबि लिखे वड करमा ॥
प्रभु का नाम ही भक्तजनों के जीवन का आधार है, विधाता ने पूर्वजन्म से उनके शुभ कर्म लिखे होते हैं।
ਗੁਰਿ ਸਤਿਗੁਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਫਲੁ ਜਨੰਮਾ ॥੪॥੨॥
गुरि सतिगुरि नामु द्रिड़ाइआ जन नानक सफलु जनमा ॥४॥२॥
हे नानक ! उन लोगों का जन्म सफल है, जिन्हें गुरु ने नाम दृढ़ कर दिया है।॥४॥२॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੪ ॥
बिलावलु महला ४ ॥
बिलावलु महला ४ ॥
ਹਮਰਾ ਚਿਤੁ ਲੁਭਤ ਮੋਹਿ ਬਿਖਿਆ ਬਹੁ ਦੁਰਮਤਿ ਮੈਲੁ ਭਰਾ ॥
हमरा चितु लुभत मोहि बिखिआ बहु दुरमति मैलु भरा ॥
मेरा चित्त विष रूपी माया के मोह में फँसा हुआ है और इसमें खोटी बुद्धि की बहुत मैल भर गई है।
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਸੇਵਾ ਕਰਿ ਨ ਸਕਹ ਪ੍ਰਭ ਹਮ ਕਿਉ ਕਰਿ ਮੁਗਧ ਤਰਾ ॥੧॥
तुम्हरी सेवा करि न सकह प्रभ हम किउ करि मुगध तरा ॥१॥
हे प्रभु ! मैं तेरी सेवा नहीं कर सकता, फिर मैं मूर्ख भवसागर से कैसे पार होऊँगा ?॥१॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਜਪਿ ਨਰਹਰ ਨਾਮੁ ਨਰਹਰਾ ॥
मेरे मन जपि नरहर नामु नरहरा ॥
हे मेरे मन ! ईश्वर का नाम जप।
ਜਨ ਊਪਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਧਾਰੀ ਮਿਲਿ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਰਿ ਪਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जन ऊपरि किरपा प्रभि धारी मिलि सतिगुर पारि परा ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु ने अपने भक्त पर कृपा की है और वह गुरु से मिलकर भवसागर से पार हो गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਹਮਰੇ ਪਿਤਾ ਠਾਕੁਰ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ਹਰਿ ਦੇਹੁ ਮਤੀ ਜਸੁ ਕਰਾ ॥
हमरे पिता ठाकुर प्रभ सुआमी हरि देहु मती जसु करा ॥
हे मेरे स्वामी प्रभु ! तू मेरा पिता है और तू ही मेरा ठाकुर है। मुझे ऐसी बुद्धि दीजिए ताकि मैं तेरा यश करता रहूँ!
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੈ ਸੰਗਿ ਲਗੇ ਸੇ ਉਧਰੇ ਜਿਉ ਸੰਗਿ ਕਾਸਟ ਲੋਹ ਤਰਾ ॥੨॥
तुम्हरै संगि लगे से उधरे जिउ संगि कासट लोह तरा ॥२॥
जैसे लकड़ी के साथ लगकर लोहा नदी से पार हो जाता है, वैसे ही जो तुम्हारी भक्ति के साथ लगे हैं, उनका भी उद्धार हो गया है॥ २॥
ਸਾਕਤ ਨਰ ਹੋਛੀ ਮਤਿ ਮਧਿਮ ਜਿਨੑ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸੇਵ ਨ ਕਰਾ ॥
साकत नर होछी मति मधिम जिन्ह हरि हरि सेव न करा ॥
जिन्होंने परमात्मा की उपासना नहीं की, उन मायावी पुरुषों की मति बड़ी होछी एवं मलिन है।
ਤੇ ਨਰ ਭਾਗਹੀਨ ਦੁਹਚਾਰੀ ਓਇ ਜਨਮਿ ਮੁਏ ਫਿਰਿ ਮਰਾ ॥੩॥
ते नर भागहीन दुहचारी ओइ जनमि मुए फिरि मरा ॥३॥
ऐसे व्यक्ति भाग्यहीन एवं दुराचारी हैं और वे बारंबार जन्मते मरते एवं पुनःपुनः मौत को प्राप्त होते रहते हैं।॥ ३॥
ਜਿਨ ਕਉ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਹਰਿ ਮੇਲਹੁ ਸੁਆਮੀ ਤੇ ਨੑਾਏ ਸੰਤੋਖ ਗੁਰ ਸਰਾ ॥
जिन कउ तुम्ह हरि मेलहु सुआमी ते न्हाए संतोख गुर सरा ॥
हे मेरे स्वामी हरि ! जिन्हें तुम अपने साथ मिला लेते हो, वह गुरु रूपी संतोष के सरोवर में स्नान करते रहते हैं।
ਦੁਰਮਤਿ ਮੈਲੁ ਗਈ ਹਰਿ ਭਜਿਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਪਾਰਿ ਪਰਾ ॥੪॥੩॥
दुरमति मैलु गई हरि भजिआ जन नानक पारि परा ॥४॥३॥
हे नानक ! भगवान् का भजन करने से जिसकी खोटी बुद्धि की मैल दूर हो गई है, वह भवसागर से पार हो गया है॥ ४ ॥ ३॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੪ ॥
बिलावलु महला ४ ॥
बिलावलु महला ४ ॥
ਆਵਹੁ ਸੰਤ ਮਿਲਹੁ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਕਰਹੁ ॥
आवहु संत मिलहु मेरे भाई मिलि हरि हरि कथा करहु ॥
हे मेरे संतजन भाइयों ! आओ, सभी मिलकर बैठो और मिलकर हरि की कथा करो।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਬੋਹਿਥੁ ਹੈ ਕਲਜੁਗਿ ਖੇਵਟੁ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਤਰਹੁ ॥੧॥
हरि हरि नामु बोहिथु है कलजुगि खेवटु गुर सबदि तरहु ॥१॥
हरि का नाम कलियुग में जहाज है, गुरु मल्लाह है तथा उसके शब्द द्वारा भवसागर से पार हो जाओ ॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਗੁਣ ਹਰਿ ਉਚਰਹੁ ॥
मेरे मन हरि गुण हरि उचरहु ॥
हे मेरे मन ! हरि के गुण उच्चरित करो।
ਮਸਤਕਿ ਲਿਖਤ ਲਿਖੇ ਗੁਨ ਗਾਏ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਪਾਰਿ ਪਰਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मसतकि लिखत लिखे गुन गाए मिलि संगति पारि परहु ॥१॥ रहाउ ॥
जिनके माथे पर भाग्य हैं, उन्होंने ही प्रभु के गुण गाए हैं। साधसंगत में मिलकर पार हो जाओ ॥ १ ॥ रहाउ ॥