ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੁ ਵੀਚਾਰੀਐ ਲਗੈ ਸਚਿ ਪਿਆਰੁ ॥
गुरमुखि आपु वीचारीऐ लगै सचि पिआरु ॥
वही सच्चे प्रभु से प्रेम करते हैं, जो गुरु के द्वारा आत्म-चिंतन करते हैं।
ਨਾਨਕ ਕਿਸ ਨੋ ਆਖੀਐ ਆਪੇ ਦੇਵਣਹਾਰੁ ॥੧੦॥
नानक किस नो आखीऐ आपे देवणहारु ॥१०॥
हे नानक ! जब परमात्मा ही सब देने वाला है तो फिर किसी को (दाता) कैसे कहा जा सकता है॥१०॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਬਾਬੀਹਾ ਏਹੁ ਜਗਤੁ ਹੈ ਮਤ ਕੋ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇ ॥
बाबीहा एहु जगतु है मत को भरमि भुलाइ ॥
हे बावीहे ! यह जो जगत है, कोई भ्रम में मत भटकना।
ਇਹੁ ਬਾਬੀਂਹਾ ਪਸੂ ਹੈ ਇਸ ਨੋ ਬੂਝਣੁ ਨਾਹਿ ॥
इहु बाबींहा पसू है इस नो बूझणु नाहि ॥
यह जीव पशु समान है, उसे कोई समझ नहीं।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਹੈ ਜਿਤੁ ਪੀਤੈ ਤਿਖ ਜਾਇ ॥
अम्रितु हरि का नामु है जितु पीतै तिख जाइ ॥
परमात्मा का नाम अमृतमय है, जिसका पान करने से प्यास बुझ जाती है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਿਨੑ ਪੀਆ ਤਿਨੑ ਬਹੁੜਿ ਨ ਲਾਗੀ ਆਇ ॥੧॥
नानक गुरमुखि जिन्ह पीआ तिन्ह बहुड़ि न लागी आइ ॥१॥
नानक का कथन है कि जिसने गुरु के द्वारा अमृतपान किया है, उसे पुनः प्यास नहीं लगती॥३॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਮਲਾਰੁ ਸੀਤਲ ਰਾਗੁ ਹੈ ਹਰਿ ਧਿਆਇਐ ਸਾਂਤਿ ਹੋਇ ॥
मलारु सीतल रागु है हरि धिआइऐ सांति होइ ॥
बेशक मलार शीतल राग है, पर इस राग द्वारा प्रभु का भजन करने से ही शान्ति प्राप्त होती है।
ਹਰਿ ਜੀਉ ਅਪਣੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਤਾਂ ਵਰਤੈ ਸਭ ਲੋਇ ॥
हरि जीउ अपणी क्रिपा करे तां वरतै सभ लोइ ॥
ईश्वर अपनी कृपा करता है तो समूचे संसार को सुख-शान्ति प्राप्त होती है।
ਵੁਠੈ ਜੀਆ ਜੁਗਤਿ ਹੋਇ ਧਰਣੀ ਨੋ ਸੀਗਾਰੁ ਹੋਇ ॥
वुठै जीआ जुगति होइ धरणी नो सीगारु होइ ॥
उसके बरसने से जीने की युक्ति प्राप्त होती है और पूरी धरती का शृंगार हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਜਗਤੁ ਸਭੁ ਜਲੁ ਹੈ ਜਲ ਹੀ ਤੇ ਸਭ ਕੋਇ ॥
नानक इहु जगतु सभु जलु है जल ही ते सभ कोइ ॥
हे नानक ! यह जगत सब जल ही जल है और जल से ही सब कुछ होता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਬੂਝੈ ਸੋ ਜਨੁ ਮੁਕਤੁ ਸਦਾ ਹੋਇ ॥੨॥
गुर परसादी को विरला बूझै सो जनु मुकतु सदा होइ ॥२॥
गुरु की कृपा से कोई विरला ही तथ्य को समझता है और वह सदा के लिए मुक्ति पा लेता है॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਸਚਾ ਵੇਪਰਵਾਹੁ ਇਕੋ ਤੂ ਧਣੀ ॥
सचा वेपरवाहु इको तू धणी ॥
हे परमेश्वर ! एकमात्र तू ही सबका मालिक है, सर्वाधिकार सम्पन्न है।
ਤੂ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਦੂਜੇ ਕਿਸੁ ਗਣੀ ॥
तू सभु किछु आपे आपि दूजे किसु गणी ॥
तू सर्वशक्तिमान है, कोई दूसरा बड़ा नहीं माना जा सकता।
ਮਾਣਸ ਕੂੜਾ ਗਰਬੁ ਸਚੀ ਤੁਧੁ ਮਣੀ ॥
माणस कूड़ा गरबु सची तुधु मणी ॥
मनुष्य का अहंकार झूठा है, तेरी महिमा ही सच्ची है।
ਆਵਾ ਗਉਣੁ ਰਚਾਇ ਉਪਾਈ ਮੇਦਨੀ ॥
आवा गउणु रचाइ उपाई मेदनी ॥
दुनिया को पैदा करके जन्म-मरण बना दिया।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਆਪਣਾ ਆਇਆ ਤਿਸੁ ਗਣੀ ॥
सतिगुरु सेवे आपणा आइआ तिसु गणी ॥
जो सतिगुरु की सेवा करता है, उसी का जन्म सफल माना जाता है।
ਜੇ ਹਉਮੈ ਵਿਚਹੁ ਜਾਇ ਤ ਕੇਹੀ ਗਣਤ ਗਣੀ ॥
जे हउमै विचहु जाइ त केही गणत गणी ॥
जब मन से अहम् दूर हो जाता है तो छोटा-बड़ा मानने की बात समाप्त हो जाती है।
ਮਨਮੁਖ ਮੋਹਿ ਗੁਬਾਰਿ ਜਿਉ ਭੁਲਾ ਮੰਝਿ ਵਣੀ ॥
मनमुख मोहि गुबारि जिउ भुला मंझि वणी ॥
स्वेच्छाघारी मोह एवं घमण्ड में लीन रहता है, उसकी दशा इस प्रकार है जैसे कोई जंगल में भटकता है।
ਕਟੇ ਪਾਪ ਅਸੰਖ ਨਾਵੈ ਇਕ ਕਣੀ ॥੧੧॥
कटे पाप असंख नावै इक कणी ॥११॥
यदि थोड़ा-सा प्रभु का नाम-स्मरण किया जाए तो इससे असंख्य ही पाप कट जाते हैं॥११॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਬਾਬੀਹਾ ਖਸਮੈ ਕਾ ਮਹਲੁ ਨ ਜਾਣਹੀ ਮਹਲੁ ਦੇਖਿ ਅਰਦਾਸਿ ਪਾਇ ॥
बाबीहा खसमै का महलु न जाणही महलु देखि अरदासि पाइ ॥
जीव रूपी पपीहा अपने मालिक का ठिकाना नहीं जानता, यदि प्रार्थना करे तो ठिकाना देख सकता है।
ਆਪਣੈ ਭਾਣੈ ਬਹੁਤਾ ਬੋਲਹਿ ਬੋਲਿਆ ਥਾਇ ਨ ਪਾਇ ॥
आपणै भाणै बहुता बोलहि बोलिआ थाइ न पाइ ॥
अपनी मर्जी से वह बहुत बोलता है, परन्तु ऐसा बोलना स्वीकार नहीं होता।
ਖਸਮੁ ਵਡਾ ਦਾਤਾਰੁ ਹੈ ਜੋ ਇਛੇ ਸੋ ਫਲ ਪਾਇ ॥
खसमु वडा दातारु है जो इछे सो फल पाइ ॥
केवल मालिक ही बड़ा दाता है, जो कामना होगी, वही फल प्राप्त होगा।
ਬਾਬੀਹਾ ਕਿਆ ਬਪੁੜਾ ਜਗਤੈ ਕੀ ਤਿਖ ਜਾਇ ॥੧॥
बाबीहा किआ बपुड़ा जगतै की तिख जाइ ॥१॥
बेचारा जीव रूपी पपीहा भला क्या, पूरे जगत की प्यास बुझ जाती है।॥१॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਬਾਬੀਹਾ ਭਿੰਨੀ ਰੈਣਿ ਬੋਲਿਆ ਸਹਜੇ ਸਚਿ ਸੁਭਾਇ ॥
बाबीहा भिंनी रैणि बोलिआ सहजे सचि सुभाइ ॥
जीव रूपी पपीहा सुहावनी रात को सहज स्वाभाविक ही बोला कि
ਇਹੁ ਜਲੁ ਮੇਰਾ ਜੀਉ ਹੈ ਜਲ ਬਿਨੁ ਰਹਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥
इहु जलु मेरा जीउ है जल बिनु रहणु न जाइ ॥
परमेश्वर रूपी जल ही मेरा जीवन है, इसके बिना मैं जीवित नहीं रह सकता।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਜਲੁ ਪਾਈਐ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ॥
गुर सबदी जलु पाईऐ विचहु आपु गवाइ ॥
यदि मन में से अहम्-भाव दूर किया जाए, गुरु के उपदेश द्वारा परमेश्वर रूपी जल प्राप्त हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਬਿਨੁ ਚਸਾ ਨ ਜੀਵਦੀ ਸੋ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਮਿਲਾਇ ॥੨॥
नानक जिसु बिनु चसा न जीवदी सो सतिगुरि दीआ मिलाइ ॥२॥
हे नानक ! जिसके बिना एक पल भी जीना मुश्किल है, सच्चा गुरु ही उससे मिलाने वाला है॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਖੰਡ ਪਤਾਲ ਅਸੰਖ ਮੈ ਗਣਤ ਨ ਹੋਈ ॥
खंड पताल असंख मै गणत न होई ॥
संसार में असंख्य खण्ड पाताल हैं, मुझ से इनकी गणना नहीं की जा सकती।
ਤੂ ਕਰਤਾ ਗੋਵਿੰਦੁ ਤੁਧੁ ਸਿਰਜੀ ਤੁਧੈ ਗੋਈ ॥
तू करता गोविंदु तुधु सिरजी तुधै गोई ॥
हे ईश्वर ! तू कर्ता पुरुष है, दरअसल तूने ही संसार बनाया है और तूने ही इसे नष्ट किया है।
ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਮੇਦਨੀ ਤੁਝ ਹੀ ਤੇ ਹੋਈ ॥
लख चउरासीह मेदनी तुझ ही ते होई ॥
चौरासी लाख योनियों वाली पृथ्वी तुझ से ही उत्पन्न हुई है।
ਇਕਿ ਰਾਜੇ ਖਾਨ ਮਲੂਕ ਕਹਹਿ ਕਹਾਵਹਿ ਕੋਈ ॥
इकि राजे खान मलूक कहहि कहावहि कोई ॥
कोई स्वयं को राजा, खान एवं बादशाह कहलाता है।
ਇਕਿ ਸਾਹ ਸਦਾਵਹਿ ਸੰਚਿ ਧਨੁ ਦੂਜੈ ਪਤਿ ਖੋਈ ॥
इकि साह सदावहि संचि धनु दूजै पति खोई ॥
कोई धन दौलत जमा करके शाह बुलवा रहा है और द्वैतभाव में अपनी इज्जत खो रहा है।
ਇਕਿ ਦਾਤੇ ਇਕ ਮੰਗਤੇ ਸਭਨਾ ਸਿਰਿ ਸੋਈ ॥
इकि दाते इक मंगते सभना सिरि सोई ॥
कुछ लोग दाता बने हुए हैं, कुछ दर-दर भीख मांग रहे हैं परन्तु सबका मालिक एक ही है।
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਬਾਜਾਰੀਆ ਭੀਹਾਵਲਿ ਹੋਈ ॥
विणु नावै बाजारीआ भीहावलि होई ॥
प्रभु-नाम के बिना सब सौदा करने में लीन हैं और मौत का डर बना हुआ है।
ਕੂੜ ਨਿਖੁਟੇ ਨਾਨਕਾ ਸਚੁ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਈ ॥੧੨॥
कूड़ निखुटे नानका सचु करे सु होई ॥१२॥
गुरु नानक फुरमाते हैं कि झूठ का सदैव अंत होता है और वही होता है, जो ईश्वर करता है।॥१२॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਬਾਬੀਹਾ ਗੁਣਵੰਤੀ ਮਹਲੁ ਪਾਇਆ ਅਉਗਣਵੰਤੀ ਦੂਰਿ ॥
बाबीहा गुणवंती महलु पाइआ अउगणवंती दूरि ॥
हे पपीहे ! गुणवान ही ईश्वर का ठिकाना प्राप्त करता है, पर अवगुणी ईश्वर से दूर रहता है।
ਅੰਤਰਿ ਤੇਰੈ ਹਰਿ ਵਸੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਦਾ ਹਜੂਰਿ ॥
अंतरि तेरै हरि वसै गुरमुखि सदा हजूरि ॥
ईश्वर तेरे मन में ही अवस्थित है और गुरु के द्वारा वह सदा समीप दिखाई देता है।
ਕੂਕ ਪੁਕਾਰ ਨ ਹੋਵਈ ਨਦਰੀ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲ ॥
कूक पुकार न होवई नदरी नदरि निहाल ॥
अधिक शोर एवं पुकार करने से कुछ नहीं होता, अपितु कृपा-दृष्टि से ही सुख प्रदान करता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸਹਜੇ ਮਿਲੇ ਸਬਦਿ ਗੁਰੂ ਕੈ ਘਾਲ ॥੧॥
नानक नामि रते सहजे मिले सबदि गुरू कै घाल ॥१॥
हे नानक ! शब्द गुरु की साधना द्वारा नाम में लीन रहने वाले स्वाभाविक ही मिल जाते हैं॥१॥