Hindi Page 1272

ਮਨਿ ਫੇਰਤੇ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਸੰਗੀਆ ॥
मनि फेरते हरि संगि संगीआ ॥
जो ईश्वर के संगी-साथियों के साथ हरिनाम की माला फेरते हैं,

ਜਨ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਿਉ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਥੀਆ ॥੨॥੧॥੨੩॥
जन नानक प्रिउ प्रीतमु थीआ ॥२॥१॥२३॥
हे नानक ! उनको प्रियतम प्रभु प्राणों से भी प्रिय होता है॥२॥१॥२३॥

ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥

ਮਨੁ ਘਨੈ ਭ੍ਰਮੈ ਬਨੈ ॥
मनु घनै भ्रमै बनै ॥
यह मन घने वन में भटकता फिरता है,

ਉਮਕਿ ਤਰਸਿ ਚਾਲੈ ॥
उमकि तरसि चालै ॥
उमंगपूर्ण चाल चलता है

ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਬੇ ਕੀ ਚਾਹ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
प्रभ मिलबे की चाह ॥१॥ रहाउ ॥
उसे प्रभु मिलन की चाह है ॥१॥रहाउ॥

ਤ੍ਰੈ ਗੁਨ ਮਾਈ ਮੋਹਿ ਆਈ ਕਹੰਉ ਬੇਦਨ ਕਾਹਿ ॥੧॥
त्रै गुन माई मोहि आई कहंउ बेदन काहि ॥१॥
तीन गुणों वाली माया मोहित कर रही है, मैं अपनी पीड़ा किंसको बताऊँ॥१॥

ਆਨ ਉਪਾਵ ਸਗਰ ਕੀਏ ਨਹਿ ਦੂਖ ਸਾਕਹਿ ਲਾਹਿ ॥
आन उपाव सगर कीए नहि दूख साकहि लाहि ॥
अन्य सभी उपाय इस्तेमाल कर लिए हैं, पर दुख दूर नहीं हो सके।

ਭਜੁ ਸਰਨਿ ਸਾਧੂ ਨਾਨਕਾ ਮਿਲੁ ਗੁਨ ਗੋਬਿੰਦਹਿ ਗਾਹਿ ॥੨॥੨॥੨੪॥
भजु सरनि साधू नानका मिलु गुन गोबिंदहि गाहि ॥२॥२॥२४॥
हे नानक ! साधु महापुरुषों की शरण में मिलकर परमात्मा का भजन गान करो॥२॥२॥२४॥

ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥

ਪ੍ਰਿਅ ਕੀ ਸੋਭ ਸੁਹਾਵਨੀ ਨੀਕੀ ॥
प्रिअ की सोभ सुहावनी नीकी ॥
प्रियतम प्रभु की शोभा सुन्दर एवं भली है।

ਹਾਹਾ ਹੂਹੂ ਗੰਧ੍ਰਬ ਅਪਸਰਾ ਅਨੰਦ ਮੰਗਲ ਰਸ ਗਾਵਨੀ ਨੀਕੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हाहा हूहू गंध्रब अपसरा अनंद मंगल रस गावनी नीकी ॥१॥ रहाउ ॥
गंधर्व एवं स्वर्ग की अप्सराएँ प्रभु के मीठे गुण गा रही हैं।॥१॥रहाउ॥

ਧੁਨਿਤ ਲਲਿਤ ਗੁਨਗੵ ਅਨਿਕ ਭਾਂਤਿ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਰੂਪ ਦਿਖਾਵਨੀ ਨੀਕੀ ॥੧॥
धुनित ललित गुनग्य अनिक भांति बहु बिधि रूप दिखावनी नीकी ॥१॥
उसकी सुन्दर शोभा को अनेक प्रकार से गुणवान् उच्चारण कर रहे हैं और अपना सुन्दर रूप दिखा रहे हैं।॥१॥

ਗਿਰਿ ਤਰ ਥਲ ਜਲ ਭਵਨ ਭਰਪੁਰਿ ਘਟਿ ਘਟਿ ਲਾਲਨ ਛਾਵਨੀ ਨੀਕੀ ॥
गिरि तर थल जल भवन भरपुरि घटि घटि लालन छावनी नीकी ॥
पहाड़, पेड़, धरती, जल, भवन, घट-घट में व्याप्त प्रियतम प्रभु की प्रशंसा गा रहे हैं।

ਸਾਧਸੰਗਿ ਰਾਮਈਆ ਰਸੁ ਪਾਇਓ ਨਾਨਕ ਜਾ ਕੈ ਭਾਵਨੀ ਨੀਕੀ ॥੨॥੩॥੨੫॥
साधसंगि रामईआ रसु पाइओ नानक जा कै भावनी नीकी ॥२॥३॥२५॥
हे नानक ! जिनके अन्तर्मन में पूर्ण श्रद्धा-भावना है, वे साधु-महात्मा जनों के साथ ईश्वर के गुणगान का आनंद पा रहे हैं।॥२॥३॥२५॥

ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥

ਗੁਰ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਿਆਰੇ ਚਰਨ ਕਮਲ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਧਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर प्रीति पिआरे चरन कमल रिद अंतरि धारे ॥१॥ रहाउ ॥
प्यारे गुरु के चरण-कमल को मन में धारण किया है।॥१॥रहाउ॥

ਦਰਸੁ ਸਫਲਿਓ ਦਰਸੁ ਪੇਖਿਓ ਗਏ ਕਿਲਬਿਖ ਗਏ ॥
दरसु सफलिओ दरसु पेखिओ गए किलबिख गए ॥
गुरु का दर्शन फलदायक है, दर्शन करने से सब पाप दूर हो जाते हैं और मन निर्मल एवं उज्ज्वल हो जाता है।॥१॥

ਮਨ ਨਿਰਮਲ ਉਜੀਆਰੇ ॥੧॥
मन निरमल उजीआरे ॥१॥
यह अद्भुत लीला देखकर

ਬਿਸਮ ਬਿਸਮੈ ਬਿਸਮ ਭਈ ॥
बिसम बिसमै बिसम भई ॥
बड़ा आश्चर्य होता है कि

ਅਘ ਕੋਟਿ ਹਰਤੇ ਨਾਮ ਲਈ ॥
अघ कोटि हरते नाम लई ॥
परमात्मा का नाम लेने से करोड़ों पाप नाश हो जाते हैं।

ਗੁਰ ਚਰਨ ਮਸਤਕੁ ਡਾਰਿ ਪਹੀ ॥
गुर चरन मसतकु डारि पही ॥
गुरु के चरणों में शीश रख दिया है,

ਪ੍ਰਭ ਏਕ ਤੂੰਹੀ ਏਕ ਤੁਹੀ ॥
प्रभ एक तूंही एक तुही ॥
हे प्रभु ! एक तू ही हमारा रखवाला है, एक तू ही हमारा आसरा है।

ਭਗਤ ਟੇਕ ਤੁਹਾਰੇ ॥
भगत टेक तुहारे ॥
भक्त तुम्हारी शरण में हैं।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਰਨਿ ਦੁਆਰੇ ॥੨॥੪॥੨੬॥
जन नानक सरनि दुआरे ॥२॥४॥२६॥
नानक का कथन है कि हम तेरे द्वार पर तेरी शरण में आए हैं।॥२॥४॥२६॥

ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥

ਬਰਸੁ ਸਰਸੁ ਆਗਿਆ ॥
बरसु सरसु आगिआ ॥
हे गुरु रूपी बादल ! भगवान की आज्ञा से नाम की वर्षा कर दो,

ਹੋਹਿ ਆਨੰਦ ਸਗਲ ਭਾਗ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
होहि आनंद सगल भाग ॥१॥ रहाउ ॥
सबके भाग्य जाग जाएँ और आनंद ही आनंद हो।॥१॥रहाउ॥

ਸੰਤ ਸੰਗੇ ਮਨੁ ਪਰਫੜੈ ਮਿਲਿ ਮੇਘ ਧਰ ਸੁਹਾਗ ॥੧॥
संत संगे मनु परफड़ै मिलि मेघ धर सुहाग ॥१॥
संत पुरुषों के साथ मन यूं खिल उठता है, जिस प्रकार धरती बादलों को देखकर खुश होती है।॥१॥

ਘਨਘੋਰ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮੋਰ ॥
घनघोर प्रीति मोर ॥
ज्यों बादलों की ध्वनि सुनकर मोर में प्रेम उत्पन्न होता है,

ਚਿਤੁ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਬੂੰਦ ਓਰ ॥
चितु चात्रिक बूंद ओर ॥
पपीहे का मन स्वाति बूंद से आनंदमय होता है,

ਐਸੋ ਹਰਿ ਸੰਗੇ ਮਨ ਮੋਹ ॥
ऐसो हरि संगे मन मोह ॥
वैसे ही परमात्मा के साथ मन मोहित है।

ਤਿਆਗਿ ਮਾਇਆ ਧੋਹ ॥
तिआगि माइआ धोह ॥
हे नानक ! माया एवं ईष्य द्वेष को त्याग दिया है और

ਮਿਲਿ ਸੰਤ ਨਾਨਕ ਜਾਗਿਆ ॥੨॥੫॥੨੭॥
मिलि संत नानक जागिआ ॥२॥५॥२७॥
संतों को मिलकर सावधान हो गया हूँ॥२॥५॥२७॥

ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥

ਗੁਨ ਗੋੁਪਾਲ ਗਾਉ ਨੀਤ ॥
गुन गोपाल गाउ नीत ॥
हे सज्जनो ! नित्य परमात्मा का गुणगान करो;

ਰਾਮ ਨਾਮ ਧਾਰਿ ਚੀਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम नाम धारि चीत ॥१॥ रहाउ ॥
मन में राम नाम को धारण करो।॥१॥रहाउ॥

ਛੋਡਿ ਮਾਨੁ ਤਜਿ ਗੁਮਾਨੁ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂਆ ਕੈ ਸੰਗਿ ॥
छोडि मानु तजि गुमानु मिलि साधूआ कै संगि ॥
मान अभिमान को छोड़कर साधु पुरुषों के साथ मिलकर रहो।

ਹਰਿ ਸਿਮਰਿ ਏਕ ਰੰਗਿ ਮਿਟਿ ਜਾਂਹਿ ਦੋਖ ਮੀਤ ॥੧॥
हरि सिमरि एक रंगि मिटि जांहि दोख मीत ॥१॥
हे मित्र ! एकाग्रचित होकर ईश्वर का स्मरण करो, सब पाप-दोष मिट जाएँगे॥१॥

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਭਏ ਦਇਆਲ ॥
पारब्रहम भए दइआल ॥
जब परब्रह्म दयालु होता है तो

ਬਿਨਸਿ ਗਏ ਬਿਖੈ ਜੰਜਾਲ ॥
बिनसि गए बिखै जंजाल ॥
विषय-विकारों के जंजाल नष्ट हो जाते हैं।

ਸਾਧ ਜਨਾਂ ਕੈ ਚਰਨ ਲਾਗਿ ॥
साध जनां कै चरन लागि ॥
हे नानक ! साधुजनों के चरणों में लगकर

ਨਾਨਕ ਗਾਵੈ ਗੋਬਿੰਦ ਨੀਤ ॥੨॥੬॥੨੮॥
नानक गावै गोबिंद नीत ॥२॥६॥२८॥
सदैव ईश्वर का यशोगान करो॥२॥६॥२८॥

ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥

ਘਨੁ ਗਰਜਤ ਗੋਬਿੰਦ ਰੂਪ ॥
घनु गरजत गोबिंद रूप ॥
गुरु रूपी बादल ईश्वर की कीर्ति गा रहा है।

ਗੁਨ ਗਾਵਤ ਸੁਖ ਚੈਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुन गावत सुख चैन ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु शरण में परमेश्वर के गुण गाते हुए सुख चैन मिलता है॥१॥रहाउ॥

ਹਰਿ ਚਰਨ ਸਰਨ ਤਰਨ ਸਾਗਰ ਧੁਨਿ ਅਨਹਤਾ ਰਸ ਬੈਨ ॥੧॥
हरि चरन सरन तरन सागर धुनि अनहता रस बैन ॥१॥
ईश्वर के चरणों की शरण संसार-सागर से पार उतारने वाली है, मधुर वचनों से अनाहत ध्वनि ही गूंज रही है॥१॥

ਪਥਿਕ ਪਿਆਸ ਚਿਤ ਸਰੋਵਰ ਆਤਮ ਜਲੁ ਲੈਨ ॥
पथिक पिआस चित सरोवर आतम जलु लैन ॥
जब जिज्ञासु को प्रभु मिलन की प्यास लगती है तो वह अपना चित नाम-जल के सरोवर में लगाता है।

ਹਰਿ ਦਰਸ ਪ੍ਰੇਮ ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਦੈਨ ॥੨॥੭॥੨੯॥
हरि दरस प्रेम जन नानक करि किरपा प्रभ दैन ॥२॥७॥२९॥
भक्तों को प्रभु-दर्शनों का ही प्रेम है, नानक कथन करते हैं कि प्रभु कृपा करके ही दर्शन देता है।॥२॥७॥२६॥

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