ਪੰਕਜ ਮੋਹ ਨਿਘਰਤੁ ਹੈ ਪ੍ਰਾਨੀ ਗੁਰੁ ਨਿਘਰਤ ਕਾਢਿ ਕਢਾਵੈਗੋ ॥
पंकज मोह निघरतु है प्रानी गुरु निघरत काढि कढावैगो ॥
जब प्राणी मोह के कीचड़ में गिरता है तो गुरु उसे निकाल लेता है।
ਤ੍ਰਾਹਿ ਤ੍ਰਾਹਿ ਸਰਨਿ ਜਨ ਆਏ ਗੁਰੁ ਹਾਥੀ ਦੇ ਨਿਕਲਾਵੈਗੋ ॥੪॥
त्राहि त्राहि सरनि जन आए गुरु हाथी दे निकलावैगो ॥४॥
‘बचाओ-बचाओ’ की प्रार्थना करते हुए जीव शरण में आते हैं और गुरु हाथ देकर इनको बचाता है॥ ४॥
ਸੁਪਨੰਤਰੁ ਸੰਸਾਰੁ ਸਭੁ ਬਾਜੀ ਸਭੁ ਬਾਜੀ ਖੇਲੁ ਖਿਲਾਵੈਗੋ ॥
सुपनंतरु संसारु सभु बाजी सभु बाजी खेलु खिलावैगो ॥
समूचा संसार सपने की बाजी है और प्रभु ही जीवनबाजी का खेल खेलाता है।
ਲਾਹਾ ਨਾਮੁ ਗੁਰਮਤਿ ਲੈ ਚਾਲਹੁ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਪੈਧਾ ਜਾਵੈਗੋ ॥੫॥
लाहा नामु गुरमति लै चालहु हरि दरगह पैधा जावैगो ॥५॥
गुरु के उपदेशानुसार हरिनाम संकीर्तन का लाभ प्राप्त करो और प्रभु के दरबार में सम्मान सहित जाओ॥ ५॥
ਹਉਮੈ ਕਰੈ ਕਰਾਵੈ ਹਉਮੈ ਪਾਪ ਕੋਇਲੇ ਆਨਿ ਜਮਾਵੈਗੋ ॥
हउमै करै करावै हउमै पाप कोइले आनि जमावैगो ॥
मनुष्य सब अभिमान में करता और करवाता है और पापों का कोयला जमा करता है।
ਆਇਆ ਕਾਲੁ ਦੁਖਦਾਈ ਹੋਏ ਜੋ ਬੀਜੇ ਸੋ ਖਵਲਾਵੈਗੋ ॥੬॥
आइआ कालु दुखदाई होए जो बीजे सो खवलावैगो ॥६॥
जब दुखदायक काल आता है तो जो बोया होता है, वही फल खाना पड़ता है॥ ६॥
ਸੰਤਹੁ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਸੰਚਹੁ ਲੈ ਖਰਚੁ ਚਲੇ ਪਤਿ ਪਾਵੈਗੋ ॥
संतहु राम नामु धनु संचहु लै खरचु चले पति पावैगो ॥
हे सज्जनो ! राम नाम रूपी धन इकठ्ठा करो, इसका उपयोग करने से प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
ਖਾਇ ਖਰਚਿ ਦੇਵਹਿ ਬਹੁਤੇਰਾ ਹਰਿ ਦੇਦੇ ਤੋਟਿ ਨ ਆਵੈਗੋ ॥੭॥
खाइ खरचि देवहि बहुतेरा हरि देदे तोटि न आवैगो ॥७॥
नाम धन का जितना उपयोग एवं खर्च करोगे, ईश्वर देता ही रहेगा और किसी चीज की कमी नहीं आती॥ ७॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਧਨੁ ਹੈ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਧਨੁ ਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ਪਾਵੈਗੋ ॥
राम नाम धनु है रिद अंतरि धनु गुर सरणाई पावैगो ॥
राम नाम रूपी धन हृदय में ही है और यह धन गुरु की शरण में ही प्राप्त होता है।
ਨਾਨਕ ਦਇਆ ਦਇਆ ਕਰਿ ਦੀਨੀ ਦੁਖੁ ਦਾਲਦੁ ਭੰਜਿ ਸਮਾਵੈਗੋ ॥੮॥੫॥
नानक दइआ दइआ करि दीनी दुखु दालदु भंजि समावैगो ॥८॥५॥
नानक का कथन है कि ईश्वर ने दया की है, जिससे सब दुख एवं दारिद्रय दूर हो गए हैं।॥ ८॥ ५॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
ਮਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਨਿ ਧਿਆਵੈਗੋ ॥
मनु सतिगुर सरनि धिआवैगो ॥
हे मन ! सतिगुरु की शरण का ध्यान करो,
ਲੋਹਾ ਹਿਰਨੁ ਹੋਵੈ ਸੰਗਿ ਪਾਰਸ ਗੁਨੁ ਪਾਰਸ ਕੋ ਹੋਇ ਆਵੈਗੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
लोहा हिरनु होवै संगि पारस गुनु पारस को होइ आवैगो ॥१॥ रहाउ ॥
ज्यों पारस के स्पर्श से लोहा स्वर्ण हो जाता है, वैसे ही गुरु रूपी पारस से, वैसे ही गुण प्राप्त हो जाते हैं।॥ १॥रहाउ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਹਾ ਪੁਰਖੁ ਹੈ ਪਾਰਸੁ ਜੋ ਲਾਗੈ ਸੋ ਫਲੁ ਪਾਵੈਗੋ ॥
सतिगुरु महा पुरखु है पारसु जो लागै सो फलु पावैगो ॥
महापुरुष सतिगुरु ऐसा पारस है, जिसके चरणों में लगने से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं।
ਜਿਉ ਗੁਰ ਉਪਦੇਸਿ ਤਰੇ ਪ੍ਰਹਿਲਾਦਾ ਗੁਰੁ ਸੇਵਕ ਪੈਜ ਰਖਾਵੈਗੋ ॥੧॥
जिउ गुर उपदेसि तरे प्रहिलादा गुरु सेवक पैज रखावैगो ॥१॥
ज्यों गुरु के उपदेश से भक्त प्रहलाद संसार-सागर से पार हो गया, वैसे ही गुरु अपने शिष्यों की लाज रखता है॥ १॥
ਸਤਿਗੁਰ ਬਚਨੁ ਬਚਨੁ ਹੈ ਨੀਕੋ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪਾਵੈਗੋ ॥
सतिगुर बचनु बचनु है नीको गुर बचनी अम्रितु पावैगो ॥
सतिगुरु का वचन उत्तम है और गुरु के वचन से अमृत प्राप्त होता है।
ਜਿਉ ਅੰਬਰੀਕਿ ਅਮਰਾ ਪਦ ਪਾਏ ਸਤਿਗੁਰ ਮੁਖ ਬਚਨ ਧਿਆਵੈਗੋ ॥੨॥
जिउ अ्मबरीकि अमरा पद पाए सतिगुर मुख बचन धिआवैगो ॥२॥
ज्यों सतिगुरु के वचन से ध्यान करके अम्बरीष अमरपद पा गए, हम भी गुरु के वचन से ध्यान कर अमर पद प्राप्त करेंगे॥ २॥
ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਨਿ ਸਰਨਿ ਮਨਿ ਭਾਈ ਸੁਧਾ ਸੁਧਾ ਕਰਿ ਧਿਆਵੈਗੋ ॥
सतिगुर सरनि सरनि मनि भाई सुधा सुधा करि धिआवैगो ॥
जिसके मन को सतिगुरु की शरण में रहना अच्छा लगता है, वह हरिनाम अमृत का ही ध्यान करता है।
ਦਇਆਲ ਦੀਨ ਭਏ ਹੈ ਸਤਿਗੁਰ ਹਰਿ ਮਾਰਗੁ ਪੰਥੁ ਦਿਖਾਵੈਗੋ ॥੩॥
दइआल दीन भए है सतिगुर हरि मारगु पंथु दिखावैगो ॥३॥
सतिगुरु दीनों पर दयालु होता है और प्रभु-मिलन का मार्गदर्शन करता है॥ ३॥
ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਨਿ ਪਏ ਸੇ ਥਾਪੇ ਤਿਨ ਰਾਖਨ ਕਉ ਪ੍ਰਭੁ ਆਵੈਗੋ ॥
सतिगुर सरनि पए से थापे तिन राखन कउ प्रभु आवैगो ॥
जो सतिगुरु की शरण में पड़ते हैं, वही स्थित होते हैं और प्रभु उनकी ही रक्षा करने के लिए आता है।
ਜੇ ਕੋ ਸਰੁ ਸੰਧੈ ਜਨ ਊਪਰਿ ਫਿਰਿ ਉਲਟੋ ਤਿਸੈ ਲਗਾਵੈਗੋ ॥੪॥
जे को सरु संधै जन ऊपरि फिरि उलटो तिसै लगावैगो ॥४॥
यदि कोई भक्तों पर निंदा का बाण छोड़ता है तो वह उलटा उसे ही आ लगता है॥ ४॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਰੁ ਸੇਵਹਿ ਤਿਨ ਦਰਗਹ ਮਾਨੁ ਦਿਵਾਵੈਗੋ ॥
हरि हरि हरि हरि हरि सरु सेवहि तिन दरगह मानु दिवावैगो ॥
जो परमात्मा की उपासना करते हैं, उनको ही सच्चे दरबार में सम्मान प्राप्त होता है।
ਗੁਰਮਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਧਿਆਵਹਿ ਹਰਿ ਗਲਿ ਮਿਲਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਵੈਗੋ ॥੫॥
गुरमति गुरमति गुरमति धिआवहि हरि गलि मिलि मेलि मिलावैगो ॥५॥
जो गुरु की शिक्षानुसार परमात्मा का मनन करता है, वह उसे गले लगाकर मिला लेता है॥ ५॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਦੁ ਬੇਦੁ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਗੁਰ ਪਰਚੈ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵੈਗੋ ॥
गुरमुखि नादु बेदु है गुरमुखि गुर परचै नामु धिआवैगो ॥
गुरु के मुख से निकला शब्द ही वेद है और गुरु की प्रसन्नता में नाम-ध्यान होता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਰੂਪੁ ਹਰਿ ਰੂਪੋ ਹੋਵੈ ਹਰਿ ਜਨ ਕਉ ਪੂਜ ਕਰਾਵੈਗੋ ॥੬॥
हरि हरि रूपु हरि रूपो होवै हरि जन कउ पूज करावैगो ॥६॥
हरि की पूजा-अर्चना करते हुए भक्तजन हरि का रूप हो जाते हैं।॥ ६॥
ਸਾਕਤ ਨਰ ਸਤਿਗੁਰੁ ਨਹੀ ਕੀਆ ਤੇ ਬੇਮੁਖ ਹਰਿ ਭਰਮਾਵੈਗੋ ॥
साकत नर सतिगुरु नही कीआ ते बेमुख हरि भरमावैगो ॥
निरीश्वरवाद व्यक्ति गुरु धारण नहीं करता, ऐसे विमुख को परमात्मा भूलभुलैया में डाले रखता है।
ਲੋਭ ਲਹਰਿ ਸੁਆਨ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਬਿਖੁ ਮਾਇਆ ਕਰੰਗਿ ਲਗਾਵੈਗੋ ॥੭॥
लोभ लहरि सुआन की संगति बिखु माइआ करंगि लगावैगो ॥७॥
लोभ रूपी कुत्ते की संगत में माया मनुष्य को मुर्दा पशु की तरह ककाल बनाकर रख देती है॥ ७॥
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਸਭ ਜਗ ਕਾ ਤਾਰਕੁ ਲਗਿ ਸੰਗਤਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵੈਗੋ ॥
राम नामु सभ जग का तारकु लगि संगति नामु धिआवैगो ॥
परमात्मा का नाम समूचे जगत का उद्धार करने वाला है, अतः अच्छी संगत में प्रभु-नाम का भजन करो।
ਨਾਨਕ ਰਾਖੁ ਰਾਖੁ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਸਤਸੰਗਤਿ ਰਾਖਿ ਸਮਾਵੈਗੋ ॥੮॥੬॥ ਛਕਾ ੧ ॥
नानक राखु राखु प्रभ मेरे सतसंगति राखि समावैगो ॥८॥६॥ छका १ ॥
नानक विनती करते हैं कि हे मेरे प्रभु ! मुझे संतों की संगत में ही रखो॥ ८॥ ६॥ छः शब्दों का जोड़१॥