Hindi Page 1421

ਨਦਰਿ ਕਰਹਿ ਜੇ ਆਪਣੀ ਤਾਂ ਆਪੇ ਲੈਹਿ ਸਵਾਰਿ ॥
नदरि करहि जे आपणी तां आपे लैहि सवारि ॥
जब मालिक अपनी कृपा-दृष्टि कर देता है तो स्वतः ही सफल कर देता है।

ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਿਨੑੀ ਧਿਆਇਆ ਆਏ ਸੇ ਪਰਵਾਣੁ ॥੬੩॥
नानक गुरमुखि जिन्ही धिआइआ आए से परवाणु ॥६३॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं जिन्होंने गुरु-चरणों में लगकर परमात्मा का भजन किया है, उनका जन्म सफल हो गया है ॥६३॥

ਜੋਗੁ ਨ ਭਗਵੀ ਕਪੜੀ ਜੋਗੁ ਨ ਮੈਲੇ ਵੇਸਿ ॥
जोगु न भगवी कपड़ी जोगु न मैले वेसि ॥
भगवा वस्त्र धारण करने या मलिन वेष से योग प्राप्त नहीं होता।

ਨਾਨਕ ਘਰਿ ਬੈਠਿਆ ਜੋਗੁ ਪਾਈਐ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਉਪਦੇਸਿ ॥੬੪॥
नानक घरि बैठिआ जोगु पाईऐ सतिगुर कै उपदेसि ॥६४॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं- दरअसल योग की प्राप्ति सतिगुरु के उपदेश से घर बैठे ही हो जाती है ॥६४ ॥

ਚਾਰੇ ਕੁੰਡਾ ਜੇ ਭਵਹਿ ਬੇਦ ਪੜਹਿ ਜੁਗ ਚਾਰਿ ॥
चारे कुंडा जे भवहि बेद पड़हि जुग चारि ॥
बेशक चारों दिशाओं में भ्रमण किया जाए, कोई फायदा नहीं या चारों युग वेदों का पाठ-पठन कर लो।

ਨਾਨਕ ਸਾਚਾ ਭੇਟੈ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ਪਾਵਹਿ ਮੋਖ ਦੁਆਰ ॥੬੫॥
नानक साचा भेटै हरि मनि वसै पावहि मोख दुआर ॥६५॥
गुरु नानक कथन करते हैं कि जब सच्चे गुरु से भेंट होती है तो ईश्वर मन में बसता है एवं सुगम ही मोक्ष मिल जाता है ॥६५॥

ਨਾਨਕ ਹੁਕਮੁ ਵਰਤੈ ਖਸਮ ਕਾ ਮਤਿ ਭਵੀ ਫਿਰਹਿ ਚਲ ਚਿਤ ॥
नानक हुकमु वरतै खसम का मति भवी फिरहि चल चित ॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं कि सब ओर मालिक का हुक्म चल रहा है, हे मित्र ! तेरी बुद्धि खराब हो गई है, चंचल मन दोलायमान हो गया है।

ਮਨਮੁਖ ਸਉ ਕਰਿ ਦੋਸਤੀ ਸੁਖ ਕਿ ਪੁਛਹਿ ਮਿਤ ॥
मनमुख सउ करि दोसती सुख कि पुछहि मित ॥
मनमुखों से दोस्ती करके सुख की क्यों उम्मीद कर रहे हो।

ਗੁਰਮੁਖ ਸਉ ਕਰਿ ਦੋਸਤੀ ਸਤਿਗੁਰ ਸਉ ਲਾਇ ਚਿਤੁ ॥
गुरमुख सउ करि दोसती सतिगुर सउ लाइ चितु ॥
उचित तो यही है कि गुरमुखों से दोस्ती कर और सच्चे गुरु के साथ मन लगा।

ਜੰਮਣ ਮਰਣ ਕਾ ਮੂਲੁ ਕਟੀਐ ਤਾਂ ਸੁਖੁ ਹੋਵੀ ਮਿਤ ॥੬੬॥
जमण मरण का मूलु कटीऐ तां सुखु होवी मित ॥६६॥
हे मित्र ! जन्म-मरण का बन्धन कट जाएगा और सुख पाओगे ॥६६ ॥

ਭੁਲਿਆਂ ਆਪਿ ਸਮਝਾਇਸੀ ਜਾ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ॥
भुलिआं आपि समझाइसी जा कउ नदरि करे ॥
जिस पर अपनी कृपा-दृष्टि कर देता है, भूले-भटके को सही की समझ मिल जाती है।

ਨਾਨਕ ਨਦਰੀ ਬਾਹਰੀ ਕਰਣ ਪਲਾਹ ਕਰੇ ॥੬੭॥
नानक नदरी बाहरी करण पलाह करे ॥६७॥
नानक का कथन है कि ईश्वर की कृपा से वंचित रहने वाला दुखों में ही रोता है ॥६७ ॥

ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੪
सलोक महला ४
सलोक महला ४

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
वह परब्रह्म केवल एक (ओंकार-स्वरूप) है, सतगुरु की कृपा से प्राप्ति होती है।

ਵਡਭਾਗੀਆ ਸੋਹਾਗਣੀ ਜਿਨੑਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲਿਆ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥
वडभागीआ सोहागणी जिन्हा गुरमुखि मिलिआ हरि राइ ॥
वे जीव स्त्रियाँ खुशनसीब हैं, सुहागिन कहलाने की हकदार हैं, जिनको गुरु द्वारा पति-प्रभु मिला है।

ਅੰਤਰਿ ਜੋਤਿ ਪਰਗਾਸੀਆ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇ ॥੧॥
अंतरि जोति परगासीआ नानक नामि समाइ ॥१॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं कि इनके मन में प्रकाश हो जाता है और वे प्रभु-नाम में समाहित हो जाती हैं ॥१॥

ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਹੈ ਜਿਨਿ ਸਚੁ ਜਾਤਾ ਸੋਇ ॥
वाहु वाहु सतिगुरु पुरखु है जिनि सचु जाता सोइ ॥
जिसने परमसत्य परमेश्वर को जान लिया है, वाह वाह !! वह सतिगुरु महान् है।

ਜਿਤੁ ਮਿਲਿਐ ਤਿਖ ਉਤਰੈ ਤਨੁ ਮਨੁ ਸੀਤਲੁ ਹੋਇ ॥
जितु मिलिऐ तिख उतरै तनु मनु सीतलु होइ ॥
उसे मिलकर प्यास दूर हो जाती है और तन मन को शान्ति प्राप्त हो जाती है।

ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਤਿ ਪੁਰਖੁ ਹੈ ਜਿਸ ਨੋ ਸਮਤੁ ਸਭ ਕੋਇ ॥
वाहु वाहु सतिगुरु सति पुरखु है जिस नो समतु सभ कोइ ॥
सत्य की मूर्ति सतिगुरु स्तुति योग्य है (क्योंकि उसके लिए छोटा अथवा बड़ा हर कोई एक जैसा है।

ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਨਿਰਵੈਰੁ ਹੈ ਜਿਸੁ ਨਿੰਦਾ ਉਸਤਤਿ ਤੁਲਿ ਹੋਇ ॥
वाहु वाहु सतिगुरु निरवैरु है जिसु निंदा उसतति तुलि होइ ॥
प्रेम की मूर्ति सतिगुरु वाह-वाह का हकदार है, जिसके लिए निन्दा अथवा प्रशंसा समान ही होती है।

ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੁਜਾਣੁ ਹੈ ਜਿਸੁ ਅੰਤਰਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਵੀਚਾਰੁ ॥
वाहु वाहु सतिगुरु सुजाणु है जिसु अंतरि ब्रहमु वीचारु ॥
जिसके मन में ब्रह्म का चिंतन हैं, वह बुद्धिमान सतिगुरु तारीफ के काबिल हैं।

ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਹੈ ਜਿਸੁ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ॥
वाहु वाहु सतिगुरु निरंकारु है जिसु अंतु न पारावारु ॥
वह निरंकार सतिगुरु स्तुत्य है, उसका कोई अन्त अथवा आर-पार नहीं।

ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਸਤਿਗੁਰੂ ਹੈ ਜਿ ਸਚੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ਸੋਇ ॥
वाहु वाहु सतिगुरू है जि सचु द्रिड़ाए सोइ ॥
जो जीवों के दिल में हरिनाम बसाता है, वह सतिगुरु सराहनीय है।

ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰ ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਜਿਸ ਤੇ ਨਾਮੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੨॥
नानक सतिगुर वाहु वाहु जिस ते नामु परापति होइ ॥२॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं- वह सतिगुरु वाह-वाह का हकदार है, जिससे ईश्वर का नाम प्राप्त होता है ॥२॥

ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਸਚਾ ਸੋਹਿਲਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਗੋਵਿੰਦੁ ॥
हरि प्रभ सचा सोहिला गुरमुखि नामु गोविंदु ॥
प्रभु का कीर्तिगान करो, गुरुमुख बनकर हर रोज़ हरिनाम जपना चाहिए।

ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹਣਾ ਹਰਿ ਜਪਿਆ ਮਨਿ ਆਨੰਦੁ ॥
अनदिनु नामु सलाहणा हरि जपिआ मनि आनंदु ॥
नित्य ईश्वर की सराहना करनी चाहिए, हरि का नाम जपने से मन आनंदमय हो जाता है।

ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਪੂਰਨ ਪਰਮਾਨੰਦੁ ॥
वडभागी हरि पाइआ पूरन परमानंदु ॥
भाग्यशाली ही प्रभु को पाकर पूर्ण परमानंद पाता है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹਿਆ ਬਹੁੜਿ ਨ ਮਨਿ ਤਨਿ ਭੰਗੁ ॥੩॥
जन नानक नामु सलाहिआ बहुड़ि न मनि तनि भंगु ॥३॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं कि जिन जिज्ञासुओं ने हरिनाम का संकीर्तन किया है, उनका मन तन दोबारा दुखी नहीं हुआ ॥३॥

ਮੂੰ ਪਿਰੀਆ ਸਉ ਨੇਹੁ ਕਿਉ ਸਜਣ ਮਿਲਹਿ ਪਿਆਰਿਆ ॥
मूं पिरीआ सउ नेहु किउ सजण मिलहि पिआरिआ ॥
मेरा तो प्रभु से ही प्रेम लगा हुआ है, उस प्यारे सज्जन से क्योंकर मिला जा सकता है ?”

ਹਉ ਢੂਢੇਦੀ ਤਿਨ ਸਜਣ ਸਚਿ ਸਵਾਰਿਆ ॥
हउ ढूढेदी तिन सजण सचि सवारिआ ॥
सत्य से शोभायमान सज्जन को ढूंढ रहीं हैं।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੈਡਾ ਮਿਤੁ ਹੈ ਜੇ ਮਿਲੈ ਤ ਇਹੁ ਮਨੁ ਵਾਰਿਆ ॥
सतिगुरु मैडा मितु है जे मिलै त इहु मनु वारिआ ॥
सच्चा गुरु मेरा मित्र है, अगर मिल जाए तो यह मन उसे न्यौछावर कर दें।

ਦੇਂਦਾ ਮੂੰ ਪਿਰੁ ਦਸਿ ਹਰਿ ਸਜਣੁ ਸਿਰਜਣਹਾਰਿਆ ॥
देंदा मूं पिरु दसि हरि सजणु सिरजणहारिआ ॥
मेरे प्रियतम (गुरु) सृजनहार प्रभु के बारे में मुझे बताता है।

ਨਾਨਕ ਹਉ ਪਿਰੁ ਭਾਲੀ ਆਪਣਾ ਸਤਿਗੁਰ ਨਾਲਿ ਦਿਖਾਲਿਆ ॥੪॥
नानक हउ पिरु भाली आपणा सतिगुर नालि दिखालिआ ॥४॥
हे नानक ! मैं अपने प्रभु को ढूँढ रहीं थी, सतिगुरु ने मन में ही दर्शन करा दिए हैं ॥४॥

ਹਉ ਖੜੀ ਨਿਹਾਲੀ ਪੰਧੁ ਮਤੁ ਮੂੰ ਸਜਣੁ ਆਵਏ ॥
हउ खड़ी निहाली पंधु मतु मूं सजणु आवए ॥
मैं खड़ी रास्ता निहार रही हूँ, शायद मेरा सज्जन आ जाए।

ਕੋ ਆਣਿ ਮਿਲਾਵੈ ਅਜੁ ਮੈ ਪਿਰੁ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਵਏ ॥
को आणि मिलावै अजु मै पिरु मेलि मिलावए ॥
काश ! कोई आकर आज मुझे मेरे प्रियतम प्रभु से मिला दें।

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