ਚਰਨ ਕਮਲ ਜਾ ਕਾ ਮਨੁ ਰਾਪੈ ॥
चरन कमल जा का मनु रापै ॥
जिसका मन भगवान के चरण-कमलों के प्रेम में लीन हो जाता है,
ਸੋਗ ਅਗਨਿ ਤਿਸੁ ਜਨ ਨ ਬਿਆਪੈ ॥੨॥
सोग अगनि तिसु जन न बिआपै ॥२॥
उस मनुष्य को चिन्ता की अग्नि प्रभावित नहीं करती॥२॥
ਸਾਗਰੁ ਤਰਿਆ ਸਾਧੂ ਸੰਗੇ ॥
सागरु तरिआ साधू संगे ॥
वह संतों की सभा में सम्मिलित होकर संसार-सागर में से पार हो गया है।
ਨਿਰਭਉ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਹਰਿ ਰੰਗੇ ॥੩॥
निरभउ नामु जपहु हरि रंगे ॥३॥
निर्भय प्रभु का नाम जपो; हरि के प्रेम में आसक्त रहो॥ ३॥
ਪਰ ਧਨ ਦੋਖ ਕਿਛੁ ਪਾਪ ਨ ਫੇੜੇ ॥
पर धन दोख किछु पाप न फेड़े ॥
जो व्यक्ति पराया-धन के लोभ दोष एवं अन्य पापों से मुक्त रहता है,
ਜਮ ਜੰਦਾਰੁ ਨ ਆਵੈ ਨੇੜੇ ॥੪॥
जम जंदारु न आवै नेड़े ॥४॥
भयंकर यम उसके निकट नहीं आता ॥ ४॥
ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਅਗਨਿ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਬੁਝਾਈ ॥
त्रिसना अगनि प्रभि आपि बुझाई ॥
उसकी तृष्णाग्नि प्रभु ने खुद ही बुझा दी है।
ਨਾਨਕ ਉਧਰੇ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਈ ॥੫॥੧॥੫੫॥
नानक उधरे प्रभ सरणाई ॥५॥१॥५५॥
हे नानक ! वह प्रभु की शरण में आकर माया के बन्धनों से मुक्त हो गया है॥ ५ ॥ १॥ ५५ ॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
धनासरी महला ५ ॥
ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਭਈ ਸਚੁ ਭੋਜਨੁ ਖਾਇਆ ॥ ਮਨਿ ਤਨਿ ਰਸਨਾ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥੧॥
त्रिपति भई सचु भोजनु खाइआ ॥ मनि तनि रसना नामु धिआइआ ॥१॥
सत्य का भोजन खाने से मैं तृप्त हो गया हूँ। अपने मन, तन एवं जिह्वा से मैंने परमात्मा के नाम का ध्यान किया है।॥१॥
ਜੀਵਨਾ ਹਰਿ ਜੀਵਨਾ ॥ ਜੀਵਨੁ ਹਰਿ ਜਪਿ ਸਾਧਸੰਗਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जीवना हरि जीवना ॥ जीवनु हरि जपि साधसंगि ॥१॥ रहाउ ॥
भगवान के सिमरन में जीना ही वास्तव में सच्चा जीवन है। साधुओं की संगत में मिलकर उसका भजन करना ही वास्तविक जीवन है ॥१॥ रहाउ ॥
ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰੀ ਬਸਤ੍ਰ ਓਢਾਏ ॥ ਅਨਦਿਨੁ ਕੀਰਤਨੁ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਏ ॥੨॥
अनिक प्रकारी बसत्र ओढाए ॥ अनदिनु कीरतनु हरि गुन गाए ॥२॥
जँहा मैंने अनेक प्रकार के वस्त्र पहने हैं वही मैंने प्रतिदिन ही जो भजन-कीर्तन एवं भगवान का गुणगान किया है।॥२॥
ਹਸਤੀ ਰਥ ਅਸੁ ਅਸਵਾਰੀ ॥ ਹਰਿ ਕਾ ਮਾਰਗੁ ਰਿਦੈ ਨਿਹਾਰੀ ॥੩॥
हसती रथ असु असवारी ॥ हरि का मारगु रिदै निहारी ॥३॥
यही मेरे लिए हाथी, रथ एवं घोड़े की सवारी करना है में भगवान से मिलन का मार्ग अपने हृदय में देखता हूँ ॥३॥
ਮਨ ਤਨ ਅੰਤਰਿ ਚਰਨ ਧਿਆਇਆ ॥
मन तन अंतरि चरन धिआइआ ॥
मैंने अपने मन, तन, अन्तर में ईश्वर का ही ध्यान किया है।
ਹਰਿ ਸੁਖ ਨਿਧਾਨ ਨਾਨਕ ਦਾਸਿ ਪਾਇਆ ॥੪॥੨॥੫੬॥
हरि सुख निधान नानक दासि पाइआ ॥४॥२॥५६॥
हे नानक ! दास ने सुखों का भण्डार परमेश्वर पा लिया है॥४॥२॥५६॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
धनासरी महला ५ ॥
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਜੀਅ ਕਾ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥
गुर के चरन जीअ का निसतारा ॥
गुरु के चरण जीव का उद्धार कर देते हैं,”
ਸਮੁੰਦੁ ਸਾਗਰੁ ਜਿਨਿ ਖਿਨ ਮਹਿ ਤਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
समुंदु सागरु जिनि खिन महि तारा ॥१॥ रहाउ ॥
जिसने एक क्षण में ही प्राणी को संसार-सागर में से पार कर दिया है॥१॥ रहाउ॥
ਕੋਈ ਹੋਆ ਕ੍ਰਮ ਰਤੁ ਕੋਈ ਤੀਰਥ ਨਾਇਆ ॥
कोई होआ क्रम रतु कोई तीरथ नाइआ ॥
कोई मनुष्य कर्मकाण्ड करने में ही मग्न हो गया है और कोई तीर्थों पर स्नान कर आया है परन्तु
ਦਾਸੀਂ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥੧॥
दासीं हरि का नामु धिआइआ ॥१॥
दास ने तो हरि-नाम का ध्यान-मनन किया है।॥१॥
ਬੰਧਨ ਕਾਟਨਹਾਰੁ ਸੁਆਮੀ ॥ ਜਨ ਨਾਨਕੁ ਸਿਮਰੈ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥੨॥੩॥੫੭॥
बंधन काटनहारु सुआमी ॥ जन नानकु सिमरै अंतरजामी ॥२॥३॥५७॥
जगत का स्वामी परमेश्वर सब जीवों के बन्धन काटने वाला है। नानक तो उस अन्तर्यामी ईश्वर का सिमरन करता रहता है।॥२ ॥३ ॥५७ ॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
धनासरी महला ५ ॥
ਕਿਤੈ ਪ੍ਰਕਾਰਿ ਨ ਤੂਟਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥ ਦਾਸ ਤੇਰੇ ਕੀ ਨਿਰਮਲ ਰੀਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कितै प्रकारि न तूटउ प्रीति ॥ दास तेरे की निरमल रीति ॥१॥ रहाउ ॥
तुझसे किसी तरह भी प्रीति न टूटे हे परमात्मा ! तेरे दास का यही निर्मल आचरण है॥१॥ रहाउ ॥
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਮਨ ਧਨ ਤੇ ਪਿਆਰਾ ॥ ਹਉਮੈ ਬੰਧੁ ਹਰਿ ਦੇਵਣਹਾਰਾ ॥੧॥
जीअ प्रान मन धन ते पिआरा ॥ हउमै बंधु हरि देवणहारा ॥१॥
तू मुझे मेरी आत्मा, प्राणों, मन एवं धन से भी अत्याधिक प्यारा है। हे परमेश्वर ! एक तू ही अहंकार के मार्ग पर रोक लगाने वाला है ॥१॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਲਾਗਉ ਨੇਹੁ ॥ ਨਾਨਕ ਕੀ ਬੇਨੰਤੀ ਏਹ ॥੨॥੪॥੫੮॥
चरन कमल सिउ लागउ नेहु ॥ नानक की बेनंती एह ॥२॥४॥५८॥
तेरे सुन्दर चरण कमलों से मेरा प्यार लग जाए नानक की तो यही प्रार्थना है ॥२॥४॥५८॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥
धनासरी महला ९ ॥
धनासरी महला ९ ॥
ਕਾਹੇ ਰੇ ਬਨ ਖੋਜਨ ਜਾਈ ॥
काहे रे बन खोजन जाई ॥
हे मानव ! तू भगवान को ढूंढने के लिए क्यों वन में जाता है।
ਸਰਬ ਨਿਵਾਸੀ ਸਦਾ ਅਲੇਪਾ ਤੋਹੀ ਸੰਗਿ ਸਮਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सरब निवासी सदा अलेपा तोही संगि समाई ॥१॥ रहाउ ॥
वह तो सबमें निवास करने वाला है, जो हमेशा माया से निर्लिप्त रहता है, वह तो तेरे साथ ही रहता है।॥१॥ रहाउ ॥
ਪੁਹਪ ਮਧਿ ਜਿਉ ਬਾਸੁ ਬਸਤੁ ਹੈ ਮੁਕਰ ਮਾਹਿ ਜੈਸੇ ਛਾਈ ॥
पुहप मधि जिउ बासु बसतु है मुकर माहि जैसे छाई ॥
हे मानव ! जैसे फूल में सुगन्धि रहती है और जैसे देखने वाले का अपना प्रतिबिम्ब शीशे में रहता है,
ਤੈਸੇ ਹੀ ਹਰਿ ਬਸੇ ਨਿਰੰਤਰਿ ਘਟ ਹੀ ਖੋਜਹੁ ਭਾਈ ॥੧॥
तैसे ही हरि बसे निरंतरि घट ही खोजहु भाई ॥१॥
वैसे ही भगवान तेरे हृदय में निवास करता है; अंतः उसे अपने हृदय में खोजो।॥१॥
ਬਾਹਰਿ ਭੀਤਰਿ ਏਕੋ ਜਾਨਹੁ ਇਹੁ ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਬਤਾਈ ॥
बाहरि भीतरि एको जानहु इहु गुर गिआनु बताई ॥
गुरु का ज्ञान यह भेद बताता है कि शरीर से बाहर जगत में और शरीर के भीतर हृदय में एक परमात्मा का ही निवास समझो।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਆਪਾ ਚੀਨੈ ਮਿਟੈ ਨ ਭ੍ਰਮ ਕੀ ਕਾਈ ॥੨॥੧॥
जन नानक बिनु आपा चीनै मिटै न भ्रम की काई ॥२॥१॥
हे नानक ! अपने आत्म-स्वरूप को पहचाने बिना मन से भ्रम की मैल दूर नहीं होती ॥२ ॥१॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥
धनासरी महला ९ ॥
धनासरी महला ९ ॥
ਸਾਧੋ ਇਹੁ ਜਗੁ ਭਰਮ ਭੁਲਾਨਾ ॥
साधो इहु जगु भरम भुलाना ॥
हे संतजनो ! यह जगत भ्रम में पड़कर भटका हुआ है।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਕਾ ਸਿਮਰਨੁ ਛੋਡਿਆ ਮਾਇਆ ਹਾਥਿ ਬਿਕਾਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम नाम का सिमरनु छोडिआ माइआ हाथि बिकाना ॥१॥ रहाउ ॥
इसने राम-नाम का सिमरन छोड़ दिया है और यह माया के हाथों बिक चुका है॥१॥ रहाउ ॥
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਭਾਈ ਸੁਤ ਬਨਿਤਾ ਤਾ ਕੈ ਰਸਿ ਲਪਟਾਨਾ ॥
मात पिता भाई सुत बनिता ता कै रसि लपटाना ॥
यह जगत तो माता, पिता, भाई, पुत्र एवं पत्नी के मोह में फँस चुका है।