Hindi Page 237

ਸਹਜੇ ਦੁਬਿਧਾ ਤਨ ਕੀ ਨਾਸੀ ॥
सहजे दुबिधा तन की नासी ॥
सहज ही उसके शरीर की दुविधा नाश हो जाती है।

ਜਾ ਕੈ ਸਹਜਿ ਮਨਿ ਭਇਆ ਅਨੰਦੁ ॥
जा कै सहजि मनि भइआ अनंदु ॥
जिसके पास सहज है, प्रसन्नता उसके हृदय में उदय हो जाती है।

ਤਾ ਕਉ ਭੇਟਿਆ ਪਰਮਾਨੰਦੁ ॥੫॥
ता कउ भेटिआ परमानंदु ॥५॥
उसको परमानन्द प्रभु मिल जाता है।॥५॥

ਸਹਜੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਓ ਨਾਮੁ ॥
सहजे अम्रितु पीओ नामु ॥
सहज ही वह नाम-अमृत का पान करता है।

ਸਹਜੇ ਕੀਨੋ ਜੀਅ ਕੋ ਦਾਨੁ ॥
सहजे कीनो जीअ को दानु ॥
सहज ही वह आवश्यकतामंद प्राणियों को दान देता है।

ਸਹਜ ਕਥਾ ਮਹਿ ਆਤਮੁ ਰਸਿਆ ॥
सहज कथा महि आतमु रसिआ ॥
प्रभु की कथा में उसकी आत्मा स्वाद प्राप्त करती है।

ਤਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਅਬਿਨਾਸੀ ਵਸਿਆ ॥੬॥
ता कै संगि अबिनासी वसिआ ॥६॥
उसके साथ अनश्वर परमात्मा वास करता है॥ ६॥

ਸਹਜੇ ਆਸਣੁ ਅਸਥਿਰੁ ਭਾਇਆ ॥
सहजे आसणु असथिरु भाइआ ॥
सहज ही उसको आसन अच्छा लगने लग जाता है।

ਸਹਜੇ ਅਨਹਤ ਸਬਦੁ ਵਜਾਇਆ ॥
सहजे अनहत सबदु वजाइआ ॥
सहज ही उसके हृदय में अनहद शब्द गूंजने लगता है।

ਸਹਜੇ ਰੁਣ ਝੁਣਕਾਰੁ ਸੁਹਾਇਆ ॥
सहजे रुण झुणकारु सुहाइआ ॥
भीतर के आत्मिक आनन्द की मधुर ध्वनि सहज ही उसको शोभायमान कर देती है।

ਤਾ ਕੈ ਘਰਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਸਮਾਇਆ ॥੭॥
ता कै घरि पारब्रहमु समाइआ ॥७॥
उसके हृदय-घर में पारब्रह्म प्रभु निवास करता है॥ ७॥

ਸਹਜੇ ਜਾ ਕਉ ਪਰਿਓ ਕਰਮਾ ॥
सहजे जा कउ परिओ करमा ॥
जिसके भाग्य में प्रभु को मिलने का विधान लिखा हुआ है,

ਸਹਜੇ ਗੁਰੁ ਭੇਟਿਓ ਸਚੁ ਧਰਮਾ ॥
सहजे गुरु भेटिओ सचु धरमा ॥
वह सहज ही सच्चे धर्म वाले गुरु जी से मिल जाता है।

ਜਾ ਕੈ ਸਹਜੁ ਭਇਆ ਸੋ ਜਾਣੈ ॥
जा कै सहजु भइआ सो जाणै ॥
केवल वही ईश्वर की अनुभूति करता है, जिसे सहज की देन प्राप्त हुई है।

ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤਾ ਕੈ ਕੁਰਬਾਣੈ ॥੮॥੩॥
नानक दास ता कै कुरबाणै ॥८॥३॥
दास नानक उस पर कुर्बान जाता है॥ ८ ॥ ३॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਪ੍ਰਥਮੇ ਗਰਭ ਵਾਸ ਤੇ ਟਰਿਆ ॥
प्रथमे गरभ वास ते टरिआ ॥
सर्वप्रथम मनुष्य गर्भ (की पीड़ा) निवास से मुक्ति पाकर बाहर आता है।

ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਕੁਟੰਬ ਸੰਗਿ ਜੁਰਿਆ ॥
पुत्र कलत्र कुट्मब संगि जुरिआ ॥
तदुपरांत वह अपने आपको पुत्र, पत्नी एवं परिवार के मोह में फंसा लेता है।

ਭੋਜਨੁ ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਬਹੁ ਕਪਰੇ ॥
भोजनु अनिक प्रकार बहु कपरे ॥
अनेक प्रकार के भोजन एवं अनेक प्रकार के वस्त्र,”

ਸਰਪਰ ਗਵਨੁ ਕਰਹਿਗੇ ਬਪੁਰੇ ॥੧॥
सरपर गवनु करहिगे बपुरे ॥१॥
निश्चित ही चले जाएँगे रे; हे विनीत मनुष्य ! ॥ १ ॥

ਕਵਨੁ ਅਸਥਾਨੁ ਜੋ ਕਬਹੁ ਨ ਟਰੈ ॥
कवनु असथानु जो कबहु न टरै ॥
कौन-सा निवास है जो कदाचित नाश नहीं होता।

ਕਵਨੁ ਸਬਦੁ ਜਿਤੁ ਦੁਰਮਤਿ ਹਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कवनु सबदु जितु दुरमति हरै ॥१॥ रहाउ ॥
वह कौन-सी वाणी है, जिससे मंदबुद्धि दूर हो जाती है ॥१॥ रहाउ ॥

ਇੰਦ੍ਰ ਪੁਰੀ ਮਹਿ ਸਰਪਰ ਮਰਣਾ ॥
इंद्र पुरी महि सरपर मरणा ॥
इन्द्रलोक में मृत्यु निश्चित एवं अनिवार्य है।

ਬ੍ਰਹਮ ਪੁਰੀ ਨਿਹਚਲੁ ਨਹੀ ਰਹਣਾ ॥
ब्रहम पुरी निहचलु नही रहणा ॥
ब्रह्मा का लोक भी स्थिर नहीं रहना।

ਸਿਵ ਪੁਰੀ ਕਾ ਹੋਇਗਾ ਕਾਲਾ ॥
सिव पुरी का होइगा काला ॥
शिवलोक का भी नाश हो जाएगा।

ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਮਾਇਆ ਬਿਨਸਿ ਬਿਤਾਲਾ ॥੨॥
त्रै गुण माइआ बिनसि बिताला ॥२॥
तीन गुणों वाली माया एवं दानव लुप्त हो जाएँगे ॥२॥

ਗਿਰਿ ਤਰ ਧਰਣਿ ਗਗਨ ਅਰੁ ਤਾਰੇ ॥
गिरि तर धरणि गगन अरु तारे ॥
पहाड़, वृक्ष, धरती, आकाश और सितारे,

ਰਵਿ ਸਸਿ ਪਵਣੁ ਪਾਵਕੁ ਨੀਰਾਰੇ ॥
रवि ससि पवणु पावकु नीरारे ॥
सूर्य, चन्द्रमा, पवन, अग्नि,

ਦਿਨਸੁ ਰੈਣਿ ਬਰਤ ਅਰੁ ਭੇਦਾ ॥
दिनसु रैणि बरत अरु भेदा ॥
दिन, रात, उपवास एवं उनके भेद,

ਸਾਸਤ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਬਿਨਸਹਿਗੇ ਬੇਦਾ ॥੩॥
सासत सिम्रिति बिनसहिगे बेदा ॥३॥
शास्त्र, स्मृतियां एवं वेद समस्त नाश हो जाएँगे।॥ ३॥

ਤੀਰਥ ਦੇਵ ਦੇਹੁਰਾ ਪੋਥੀ ॥
तीरथ देव देहुरा पोथी ॥
तीर्थ स्थान, देवते, मन्दिर एवं ग्रंथ,

ਮਾਲਾ ਤਿਲਕੁ ਸੋਚ ਪਾਕ ਹੋਤੀ ॥
माला तिलकु सोच पाक होती ॥
माला, तिलक, चिन्तनशील, पवित्र, एवं हवन करने वाले,

ਧੋਤੀ ਡੰਡਉਤਿ ਪਰਸਾਦਨ ਭੋਗਾ ॥
धोती डंडउति परसादन भोगा ॥
धोती, दण्डवत-नमस्कार, अन्नदान व भोग-विलास,

ਗਵਨੁ ਕਰੈਗੋ ਸਗਲੋ ਲੋਗਾ ॥੪॥
गवनु करैगो सगलो लोगा ॥४॥
ये तमाम पदार्थ एवं सारा संसार ही कूच कर जाएगा ॥४॥

ਜਾਤਿ ਵਰਨ ਤੁਰਕ ਅਰੁ ਹਿੰਦੂ ॥
जाति वरन तुरक अरु हिंदू ॥
जाति, वर्ण, मुसलमान एवं हिंदू,

ਪਸੁ ਪੰਖੀ ਅਨਿਕ ਜੋਨਿ ਜਿੰਦੂ ॥
पसु पंखी अनिक जोनि जिंदू ॥
पशु, पक्षी, अनेक योनियों के प्राणी,

ਸਗਲ ਪਾਸਾਰੁ ਦੀਸੈ ਪਾਸਾਰਾ ॥
सगल पासारु दीसै पासारा ॥
सारा जगत् एवं रचना जो दृष्टिगोचर होता है,                                                                            

ਬਿਨਸਿ ਜਾਇਗੋ ਸਗਲ ਆਕਾਰਾ ॥੫॥
बिनसि जाइगो सगल आकारा ॥५॥
ये तमाम नष्ट हो जाएँगे ॥५॥                                                                            

ਸਹਜ ਸਿਫਤਿ ਭਗਤਿ ਤਤੁ ਗਿਆਨਾ ॥ 
सहज सिफति भगति ततु गिआना ॥
प्रभु की प्रशंसा, उसकी भक्ति एवं यथार्थ ज्ञान द्वारा

ਸਦਾ ਅਨੰਦੁ ਨਿਹਚਲੁ ਸਚੁ ਥਾਨਾ ॥
सदा अनंदु निहचलु सचु थाना ॥
मनुष्य सदैव सुख एवं अटल सच्चा निवास पा लेता है।

ਤਹਾ ਸੰਗਤਿ ਸਾਧ ਗੁਣ ਰਸੈ ॥
तहा संगति साध गुण रसै ॥
वहाँ सत्संग में वह प्रेमपूर्वक ईश्वर की गुणस्तुति करता है।

ਅਨਭਉ ਨਗਰੁ ਤਹਾ ਸਦ ਵਸੈ ॥੬॥
अनभउ नगरु तहा सद वसै ॥६॥
वहाँ वह सदैव भयरहित नगर में रहता है॥ ६ ॥

ਤਹ ਭਉ ਭਰਮਾ ਸੋਗੁ ਨ ਚਿੰਤਾ ॥
तह भउ भरमा सोगु न चिंता ॥
वहाँ कोई भय, दुविधा, शोक एवं चिन्ता नहीं।

ਆਵਣੁ ਜਾਵਣੁ ਮਿਰਤੁ ਨ ਹੋਤਾ ॥
आवणु जावणु मिरतु न होता ॥
वहाँ जीवन में आना जाना और पुनः मरना नहीं होता

ਤਹ ਸਦਾ ਅਨੰਦ ਅਨਹਤ ਆਖਾਰੇ ॥
तह सदा अनंद अनहत आखारे ॥
वहाँ हमेशा प्रसन्नता एवं सहज कीर्त्तन के मंच हैं।

ਭਗਤ ਵਸਹਿ ਕੀਰਤਨ ਆਧਾਰੇ ॥੭॥
भगत वसहि कीरतन आधारे ॥७॥
प्रभु के भक्त वहाँ रहते हैं और ईश्वर का यश गायन करना उनका आधार है॥ ७ ॥

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰੁ ॥
पारब्रहम का अंतु न पारु ॥
सर्वोपरि परमेश्वर का कोई अन्त एवं सीमा नहीं।

ਕਉਣੁ ਕਰੈ ਤਾ ਕਾ ਬੀਚਾਰੁ ॥
कउणु करै ता का बीचारु ॥
सृष्टि में कोई भी ऐसा प्राणी नहीं जो उसके गुणों का अन्त पाने का विचार कर सके।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਕਿਰਪਾ ਕਰੈ ॥
कहु नानक जिसु किरपा करै ॥
हे नानक ! जिस पर प्रभु कृपा धारण करता है,

ਨਿਹਚਲ ਥਾਨੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਤਰੈ ॥੮॥੪॥
निहचल थानु साधसंगि तरै ॥८॥४॥
वह संतों की संगति द्वारा भवसागर से पार हो जाता है और अटल निवास को प्राप्त कर लेता है॥ ८॥ ४ ॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਸੋਈ ਸੂਰਾ ॥
जो इसु मारे सोई सूरा ॥
वही व्यक्ति शूरवीर है, जो इस अहंत्व का नाश कर देता है।

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਸੋਈ ਪੂਰਾ ॥
जो इसु मारे सोई पूरा ॥
जो व्यक्ति इस अहंत्व को मार देता है, वही पूर्ण है।                                                                       

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਤਿਸਹਿ ਵਡਿਆਈ ॥
जो इसु मारे तिसहि वडिआई ॥
जो व्यक्ति इस अहंत्व को समाप्त कर देता है, वही यश प्राप्त कर लेता है।                                                                

ਜੋ ਇਸੁ ਮਾਰੇ ਤਿਸ ਕਾ ਦੁਖੁ ਜਾਈ ॥੧॥
जो इसु मारे तिस का दुखु जाई ॥१॥
जो इस अहंत्व को मार देता है, वह दुखों से मुक्ति प्राप्त कर लेता है॥ १॥

ਐਸਾ ਕੋਇ ਜਿ ਦੁਬਿਧਾ ਮਾਰਿ ਗਵਾਵੈ ॥
ऐसा कोइ जि दुबिधा मारि गवावै ॥
कोई विरला ही ऐसा पुरुष है, जो अपने द्वैतवाद को मारकर दूर फैंकता है।

ਇਸਹਿ ਮਾਰਿ ਰਾਜ ਜੋਗੁ ਕਮਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इसहि मारि राज जोगु कमावै ॥१॥ रहाउ ॥
इस अहंत्व को खत्म करके वह राजयोग प्राप्त करता है॥ १॥ रहाउ ॥ 

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