ਸੋ ਬੂਝੈ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ॥
सो बूझै जिसु आपि बुझाए ॥
जिसे ईश्वर सूझ प्रदान करता है, केवल वही मनुष्य इस भेद को समझता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸੇਵ ਕਰਾਏ ॥੧॥
गुर परसादी सेव कराए ॥१॥
गुरु की कृपा से ही मनुष्य प्रभु की सेवा-भक्ति करता है॥ १॥
ਗਿਆਨ ਰਤਨਿ ਸਭ ਸੋਝੀ ਹੋਇ ॥
गिआन रतनि सभ सोझी होइ ॥
गुरु के प्रदान किए हुए ज्ञान-रत्न से ही मनुष्य को पूर्ण सूझ प्राप्त होती है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਅਗਿਆਨੁ ਬਿਨਾਸੈ ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗੈ ਵੇਖੈ ਸਚੁ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर परसादि अगिआनु बिनासै अनदिनु जागै वेखै सचु सोइ ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु के प्रसाद से अज्ञानता का नाश हो जाता है। मनुष्य रात-दिन सतर्क रहता है और सत्य प्रभु को देख लेता है॥ १॥ रहाउ॥
ਮੋਹੁ ਗੁਮਾਨੁ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਜਲਾਏ ॥
मोहु गुमानु गुर सबदि जलाए ॥
गुरु के शब्द से मोह एवं अभिमान जल जाते हैं और
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਸੋਝੀ ਪਾਏ ॥
पूरे गुर ते सोझी पाए ॥
पूर्ण गुरु से मनुष्य को सूझ प्राप्त होती है।
ਅੰਤਰਿ ਮਹਲੁ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਪਛਾਣੈ ॥
अंतरि महलु गुर सबदि पछाणै ॥
गुरु के शब्द से मनुष्य अपने अन्तर्मन में आत्मस्वरूप को पहचान लेता है,”
ਆਵਣ ਜਾਣੁ ਰਹੈ ਥਿਰੁ ਨਾਮਿ ਸਮਾਣੇ ॥੨॥
आवण जाणु रहै थिरु नामि समाणे ॥२॥
उसका जन्म-मरण का चक्र मिट जाता है, वह स्थिरचित होकर प्रभु नाम में समा जाता है॥ २॥
ਜੰਮਣੁ ਮਰਣਾ ਹੈ ਸੰਸਾਰੁ ॥
जमणु मरणा है संसारु ॥
यह संसार जन्म-मरण ही है परन्तु
ਮਨਮੁਖੁ ਅਚੇਤੁ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਗੁਬਾਰੁ ॥
मनमुखु अचेतु माइआ मोहु गुबारु ॥
स्वेच्छाछरी मूर्ख मनुष्य माया-मोह के अन्धकार में फँसा हुआ है।
ਪਰ ਨਿੰਦਾ ਬਹੁ ਕੂੜੁ ਕਮਾਵੈ ॥
पर निंदा बहु कूड़ु कमावै ॥
ऐसा स्वेच्छाचारी मनुष्य दूसरों की निन्दा करता हुआ हर प्रकार से झूठ का आचरण करता है।
ਵਿਸਟਾ ਕਾ ਕੀੜਾ ਵਿਸਟਾ ਮਾਹਿ ਸਮਾਵੈ ॥੩॥
विसटा का कीड़ा विसटा माहि समावै ॥३॥
वह विष्टा का कीड़ा बनकर विष्टा में ही समा जाता है॥ ३॥
ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਸਭ ਸੋਝੀ ਪਾਏ ॥
सतसंगति मिलि सभ सोझी पाए ॥
सत्संगति में सम्मिलित होकर मनुष्य को पूर्ण सूझ प्राप्त हो जाती है।
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥
गुर का सबदु हरि भगति द्रिड़ाए ॥
गुरु का शब्द हरि की भक्ति को चित्त में दृढ़ कर देता है।
ਭਾਣਾ ਮੰਨੇ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥
भाणा मंने सदा सुखु होइ ॥
जो प्रभु की इच्छा को मानता है, वह सदा सुखी रहता है।
ਨਾਨਕ ਸਚਿ ਸਮਾਵੈ ਸੋਇ ॥੪॥੧੦॥੪੯॥
नानक सचि समावै सोइ ॥४॥१०॥४९॥
हे नानक ! ऐसा इन्सान सत्य में ही समा जाता है॥ ४ ॥ १० ॥ ४६ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ਪੰਚਪਦੇ ॥
आसा महला ३ पंचपदे ॥
आसा महला ३ पंचपदे ॥
ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਤਿਸੁ ਸਦਾ ਅਨੰਦ ॥
सबदि मरै तिसु सदा अनंद ॥
जो पुरुष प्रभु-शब्द में जुड़कर आत्माभिमान को मार देता है, वह सदा आनंद प्राप्त करता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਗੁਰ ਗੋਬਿੰਦ ॥
सतिगुर भेटे गुर गोबिंद ॥
वह सच्चे गुरु से मिलकर परमात्मा से मिल जाता है।
ਨਾ ਫਿਰਿ ਮਰੈ ਨ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥
ना फिरि मरै न आवै जाइ ॥
फिर वह दोबारा मरता नहीं और जन्म-मरण के चक्र से छूट जाता है।
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਸਾਚਿ ਸਮਾਇ ॥੧॥
पूरे गुर ते साचि समाइ ॥१॥
पूर्ण गुरु के माध्यम से वह सत्य में ही समा जाता है॥ १॥
ਜਿਨੑ ਕਉ ਨਾਮੁ ਲਿਖਿਆ ਧੁਰਿ ਲੇਖੁ ॥
जिन्ह कउ नामु लिखिआ धुरि लेखु ॥
जिनके माथे पर विधाता ने नाम-सुमिरन का लेख लिखा होता है,”
ਤੇ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਧਿਆਵਹਿ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਤੇ ਭਗਤਿ ਵਿਸੇਖੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ते अनदिनु नामु सदा धिआवहि गुर पूरे ते भगति विसेखु ॥१॥ रहाउ ॥
वह पुरुष दिन-रात नाम सुमिरन करते हैं और पूर्ण गुरु के माध्यम से उन्हें प्रभुभक्ति की देन प्राप्त हो जाती है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਿਨੑ ਕਉ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਲਏ ਮਿਲਾਇ ॥
जिन्ह कउ हरि प्रभु लए मिलाइ ॥
जिन्हें हरि-प्रभु अपने साथ मिला लेता है,”
ਤਿਨੑ ਕੀ ਗਹਣ ਗਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥
तिन्ह की गहण गति कही न जाइ ॥
उनकी गहरी आत्मिक अवस्था कही नहीं जा सकती।
ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰ ਦਿਤੀ ਵਡਿਆਈ ॥
पूरै सतिगुर दिती वडिआई ॥
पूर्ण सतिगुरु ने उसे नाम की महानता प्रदान की है।
ਊਤਮ ਪਦਵੀ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਈ ॥੨॥
ऊतम पदवी हरि नामि समाई ॥२॥
वह हरि नाम में लीन रहता है और उसने उत्तम पदवी पा ली है॥ २॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੇ ਸੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ॥
जो किछु करे सु आपे आपि ॥
प्रभु जो कुछ भी करता है, उसे वह आप ही करता है।
ਏਕ ਘੜੀ ਮਹਿ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਿ ॥
एक घड़ी महि थापि उथापि ॥
एक घड़ी में वह उत्पादित करके नष्ट कर देता है।
ਕਹਿ ਕਹਿ ਕਹਣਾ ਆਖਿ ਸੁਣਾਏ ॥
कहि कहि कहणा आखि सुणाए ॥
केवल बातें करते रहने एवं सुनाते रहने से
ਜੇ ਸਉ ਘਾਲੇ ਥਾਇ ਨ ਪਾਏ ॥੩॥
जे सउ घाले थाइ न पाए ॥३॥
सैंकड़ों बार से किया हुआ परिश्रम भी सत्य के दरबार में कबूल नहीं होता ॥ ३॥
ਜਿਨੑ ਕੈ ਪੋਤੈ ਪੁੰਨੁ ਤਿਨੑਾ ਗੁਰੂ ਮਿਲਾਏ ॥
जिन्ह कै पोतै पुंनु तिन्हा गुरू मिलाए ॥
जिनके प्रारब्ध के भण्डार में पुण्य हैं, उन्हें गुरु ही मिलता है।
ਸਚੁ ਬਾਣੀ ਗੁਰੁ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਏ ॥
सचु बाणी गुरु सबदु सुणाए ॥
वे सच्ची वाणी एवं गुरु-शब्द सुनते हैं।
ਜਹਾਂ ਸਬਦੁ ਵਸੈ ਤਹਾਂ ਦੁਖੁ ਜਾਏ ॥
जहां सबदु वसै तहां दुखु जाए ॥
जहाँ नाम का निवास है, वहाँ से दुख दौड़ जाता है।
ਗਿਆਨਿ ਰਤਨਿ ਸਾਚੈ ਸਹਜਿ ਸਮਾਏ ॥੪॥
गिआनि रतनि साचै सहजि समाए ॥४॥
ज्ञान रत्न के माध्यम से मनुष्य सहज ही सत्य में समा जाता है।॥ ४॥
ਨਾਵੈ ਜੇਵਡੁ ਹੋਰੁ ਧਨੁ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥
नावै जेवडु होरु धनु नाही कोइ ॥
प्रभु-नाम जैसा दूसरा कोई धन नहीं।
ਜਿਸ ਨੋ ਬਖਸੇ ਸਾਚਾ ਸੋਇ ॥
जिस नो बखसे साचा सोइ ॥
परन्तु यह धन उसे ही प्राप्त होता है, जिसे सत्य प्रभु प्रदान करता है।
ਪੂਰੈ ਸਬਦਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥
पूरै सबदि मंनि वसाए ॥
पूर्ण शब्द द्वारा नाम चित्त में बसता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥੫॥੧੧॥੫੦॥
नानक नामि रते सुखु पाए ॥५॥११॥५०॥
हे नानक ! नाम में अनुरक्त होने से मनुष्य सुख प्राप्त करता है। ॥५॥११॥५०॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥
आसा महला ३ ॥
आसा महला ३ ॥
ਨਿਰਤਿ ਕਰੇ ਬਹੁ ਵਾਜੇ ਵਜਾਏ ॥
निरति करे बहु वाजे वजाए ॥
जो मनुष्य नृत्य करता और अनेक प्रकार के वाद्ययंत्र बजाता है,”
ਇਹੁ ਮਨੁ ਅੰਧਾ ਬੋਲਾ ਹੈ ਕਿਸੁ ਆਖਿ ਸੁਣਾਏ ॥
इहु मनु अंधा बोला है किसु आखि सुणाए ॥
उसका यह मन ज्ञानहीन एवं बहरा है। तब वह कहकर किसे सुना रहा है ?
ਅੰਤਰਿ ਲੋਭੁ ਭਰਮੁ ਅਨਲ ਵਾਉ ॥
अंतरि लोभु भरमु अनल वाउ ॥
उसके अन्तर्मन में तृष्णा की अग्नि एवं भ्रम की हवा है।
ਦੀਵਾ ਬਲੈ ਨ ਸੋਝੀ ਪਾਇ ॥੧॥
दीवा बलै न सोझी पाइ ॥१॥
इसलिए ज्ञान का दीपक प्रज्वलित नहीं होता और न ही उसे ज्ञान प्राप्त होता है॥ १॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਘਟਿ ਚਾਨਣੁ ਹੋਇ ॥
गुरमुखि भगति घटि चानणु होइ ॥
गुरुमुख के मन में भक्ति का प्रकाश होता है।
ਆਪੁ ਪਛਾਣਿ ਮਿਲੈ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आपु पछाणि मिलै प्रभु सोइ ॥१॥ रहाउ ॥
वह अपने आत्मस्वरूप को पहचान कर ईश्वर से मिल जाता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਰਤਿ ਹਰਿ ਲਾਗੈ ਭਾਉ ॥
गुरमुखि निरति हरि लागै भाउ ॥
गुरुमुख के लिए प्रभु से प्रेम करना ही नृत्य है और
ਪੂਰੇ ਤਾਲ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ॥
पूरे ताल विचहु आपु गवाइ ॥
अन्तर्मन से अहंकार को मारना ही सुरताल को पूर्णतया कायम रखने के बराबर है।
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਚਾ ਆਪੇ ਜਾਣੁ ॥
मेरा प्रभु साचा आपे जाणु ॥
मेरा सच्चा प्रभु स्वयं ही सबकुछ जानता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਅੰਤਰਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਪਛਾਣੁ ॥੨॥
गुर कै सबदि अंतरि ब्रहमु पछाणु ॥२॥
(हे भाई !) गुरु के शब्द द्वारा ब्रह्म को अन्तर्मन में ही पहचान लो॥ २॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਅੰਤਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਿਆਰੁ ॥
गुरमुखि भगति अंतरि प्रीति पिआरु ॥
अन्तर्मन में ईश्वर हेतु प्रेम एवं प्रीति ही गुरुमुख की भक्ति है।
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਸਹਜਿ ਵੀਚਾਰੁ ॥
गुर का सबदु सहजि वीचारु ॥
वह सहज ही गुरु के शब्द का चिन्तन करता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਜੁਗਤਿ ਸਚੁ ਸੋਇ ॥
गुरमुखि भगति जुगति सचु सोइ ॥
गुरुमुख की भक्ति एवं जीवन-युक्ति सत्य ही है।
ਪਾਖੰਡਿ ਭਗਤਿ ਨਿਰਤਿ ਦੁਖੁ ਹੋਇ ॥੩॥
पाखंडि भगति निरति दुखु होइ ॥३॥
पाखण्डपूर्ण की भक्ति एवं नृत्य से दुख ही मिलता है।॥ ३॥