ਅਹੰਬੁਧਿ ਮਨ ਪੂਰਿ ਥਿਧਾਈ ॥
अह्मबुधि मन पूरि थिधाई ॥
जिस व्यक्ति का मन अहंकारी बुद्धि की चिकनाई से भरा हुआ होता है,
ਸਾਧ ਧੂਰਿ ਕਰਿ ਸੁਧ ਮੰਜਾਈ ॥੧॥
साध धूरि करि सुध मंजाई ॥१॥
संतों के चरणों की धूलि से साफ करके शुद्ध हो जाता है॥ १॥
ਅਨਿਕ ਜਲਾ ਜੇ ਧੋਵੈ ਦੇਹੀ ॥
अनिक जला जे धोवै देही ॥
यदि शरीर को अनेक जलों से धोया जाए,
ਮੈਲੁ ਨ ਉਤਰੈ ਸੁਧੁ ਨ ਤੇਹੀ ॥੨॥
मैलु न उतरै सुधु न तेही ॥२॥
उससे इसकी मलिनता नहीं उतरती और यह शुद्ध नहीं होता।॥ २॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਓ ਸਦਾ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ॥
सतिगुरु भेटिओ सदा क्रिपाल ॥
मुझे सदैव ही कृपा का घर सतिगुरु मिल गया है,
ਹਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਕਾਟਿਆ ਭਉ ਕਾਲ ॥੩॥
हरि सिमरि सिमरि काटिआ भउ काल ॥३॥
और भगवान का सिमरन करने से मैंने मृत्यु के भय को निवृत कर दिया है॥ ३॥
ਮੁਕਤਿ ਭੁਗਤਿ ਜੁਗਤਿ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥
मुकति भुगति जुगति हरि नाउ ॥
भगवान का नाम ही मुक्ति, भुक्ति एवं युक्ति है।
ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਨਾਨਕ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥੪॥੧੦੦॥੧੬੯॥
प्रेम भगति नानक गुण गाउ ॥४॥१००॥१६९॥
हे नानक ! प्रेमा-भक्ति से ईश्वर की गुणस्तुति करते रहो॥ ४॥ १००॥ १६६॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਜੀਵਨ ਪਦਵੀ ਹਰਿ ਕੇ ਦਾਸ ॥
जीवन पदवी हरि के दास ॥
ईश्वर के सेवक (नाम सिमरन करके) जीवन पदवी प्राप्त कर लेते हैं।
ਜਿਨ ਮਿਲਿਆ ਆਤਮ ਪਰਗਾਸੁ ॥੧॥
जिन मिलिआ आतम परगासु ॥१॥
उन्हें मिलने से आत्मा को (ज्ञान का) प्रकाश मिलता है॥ १॥
ਹਰਿ ਕਾ ਸਿਮਰਨੁ ਸੁਨਿ ਮਨ ਕਾਨੀ ॥
हरि का सिमरनु सुनि मन कानी ॥
हे नश्वर प्राणी ! अपने मन से ध्यानपूर्वक भगवान का सिमरन सुनो,
ਸੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ਹਰਿ ਦੁਆਰ ਪਰਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुखु पावहि हरि दुआर परानी ॥१॥ रहाउ ॥
तुझे प्रभु के द्वार पर सुख प्राप्त होगा ॥ १॥ रहाउ॥
ਆਠ ਪਹਰ ਧਿਆਈਐ ਗੋਪਾਲੁ ॥
आठ पहर धिआईऐ गोपालु ॥
हे नानक ! हमें आठ प्रहर भगवान का ध्यान करना चाहिए,
ਨਾਨਕ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਨਿਹਾਲੁ ॥੨॥੧੦੧॥੧੭੦॥
नानक दरसनु देखि निहालु ॥२॥१०१॥१७०॥
जिसके फलस्वरूप भगवान के दर्शन करने से मनुष्य का मन कृतार्थ हो जाता है ॥२॥१०१॥ १७०॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਸਾਂਤਿ ਭਈ ਗੁਰ ਗੋਬਿਦਿ ਪਾਈ ॥
सांति भई गुर गोबिदि पाई ॥
गोविन्द गुरु ने जिस व्यक्ति को नाम की देन प्रदान की है, उसे शांति प्राप्त हो गई है।
ਤਾਪ ਪਾਪ ਬਿਨਸੇ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ताप पाप बिनसे मेरे भाई ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे भाई ! उस व्यक्ति की जलन एवं पाप नष्ट हो गए हैं॥ १॥ रहाउ॥
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨਿਤ ਰਸਨ ਬਖਾਨ ॥
राम नामु नित रसन बखान ॥
अपनी जिव्हा से नित्य ही राम के नाम का बखान करते रहो ।
ਬਿਨਸੇ ਰੋਗ ਭਏ ਕਲਿਆਨ ॥੧॥
बिनसे रोग भए कलिआन ॥१॥
तेरे समस्त रोग दूर हो जाएँगे और तुझे मुक्ति प्राप्त होगी॥ १॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਗੁਣ ਅਗਮ ਬੀਚਾਰ ॥
पारब्रहम गुण अगम बीचार ॥
अगम्य पारब्रह्म के गुणों का चिन्तन करते रहो।
ਸਾਧੂ ਸੰਗਮਿ ਹੈ ਨਿਸਤਾਰ ॥੨॥
साधू संगमि है निसतार ॥२॥
संतों की संगति में रहने से कल्याण की प्राप्ति होती है॥ २॥
ਨਿਰਮਲ ਗੁਣ ਗਾਵਹੁ ਨਿਤ ਨੀਤ ॥
निरमल गुण गावहु नित नीत ॥
हे मेरे मित्र ! जो मनुष्य सदैव हरि की पवित्र महिमा गायन करता है,
ਗਈ ਬਿਆਧਿ ਉਬਰੇ ਜਨ ਮੀਤ ॥੩॥
गई बिआधि उबरे जन मीत ॥३॥
उसके रोग दूर हो जाते हैं और वह भवसागर से बच जाता है।॥ ३॥
ਮਨ ਬਚ ਕ੍ਰਮ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਨਾ ਧਿਆਈ ॥
मन बच क्रम प्रभु अपना धिआई ॥
मन, वचन एवं कर्म से मैं अपने प्रभु की आराधना करता रहता हूँ।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ॥੪॥੧੦੨॥੧੭੧॥
नानक दास तेरी सरणाई ॥४॥१०२॥१७१॥
हे प्रभु ! दास नानक ने तेरी ही शरण ली है॥ ४॥ १०२॥ १७१॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਨੇਤ੍ਰ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ਕੀਆ ਗੁਰਦੇਵ ॥
नेत्र प्रगासु कीआ गुरदेव ॥
गुरदेव ने ज्ञान नेत्र दिए हैं।
ਭਰਮ ਗਏ ਪੂਰਨ ਭਈ ਸੇਵ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भरम गए पूरन भई सेव ॥१॥ रहाउ ॥
जिससे मेरे भ्रम दूर हो गए हैं और मेरी साधना सफल हो गई है॥ १॥ रहाउ॥
ਸੀਤਲਾ ਤੇ ਰਖਿਆ ਬਿਹਾਰੀ ॥
सीतला ते रखिआ बिहारी ॥
हे दयालु प्रभु ! तूने ही दया करके सीतला से बचाया है।
पारब्रहम प्रभ किरपा धारी ॥१॥
पारब्रहम प्रभ किरपा धारी ॥१॥
पारब्रह्म प्रभु ने अपनी कृपा धारण की है॥ १॥
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਜਪੈ ਸੋ ਜੀਵੈ ॥
नानक नामु जपै सो जीवै ॥
हे नानक ! जो प्रभु के नाम का जाप करता है, उसे ही जीवन प्राप्त होता है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਵੈ ॥੨॥੧੦੩॥੧੭੨॥
साधसंगि हरि अम्रितु पीवै ॥२॥१०३॥१७२॥
संतों की संगति में रहकर वह हरि अमृत का पान करता है ॥२॥१०३॥१७२॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਧਨੁ ਓਹੁ ਮਸਤਕੁ ਧਨੁ ਤੇਰੇ ਨੇਤ ॥
धनु ओहु मसतकु धनु तेरे नेत ॥
हे ईश्वर ! वह मस्तक धन्य है (जो तेरे समक्ष झुकता है), वे नेत्र भी धन्य हैं जो तेरे दर्शन करते हैं।
ਧਨੁ ਓਇ ਭਗਤ ਜਿਨ ਤੁਮ ਸੰਗਿ ਹੇਤ ॥੧॥
धनु ओइ भगत जिन तुम संगि हेत ॥१॥
वह भक्त धन्य हैं जिनका तेरे साथ अनुराग बना रहता है॥ १॥
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕੈਸੇ ਸੁਖੁ ਲਹੀਐ ॥
नाम बिना कैसे सुखु लहीऐ ॥
प्रभु के नाम-स्मरण के बिना कभी सुख नहीं मिल सकता।
ਰਸਨਾ ਰਾਮ ਨਾਮ ਜਸੁ ਕਹੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
रसना राम नाम जसु कहीऐ ॥१॥ रहाउ ॥
हमें अपनी रसना से राम नाम का ही यश बखान करना चाहिए॥ १॥ रहाउ॥
ਤਿਨ ਊਪਰਿ ਜਾਈਐ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥
तिन ऊपरि जाईऐ कुरबाणु ॥
हमें उन पर सर्वदा ही कुर्बान होना चाहिए
ਨਾਨਕ ਜਿਨਿ ਜਪਿਆ ਨਿਰਬਾਣੁ ॥੨॥੧੦੪॥੧੭੩॥
नानक जिनि जपिआ निरबाणु ॥२॥१०४॥१७३॥
हे नानक ! जिन्होंने निर्लिप्त प्रभु के नाम का जाप किया है, ॥२॥१०४॥१७३॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਤੂੰਹੈ ਮਸਲਤਿ ਤੂੰਹੈ ਨਾਲਿ ॥
तूंहै मसलति तूंहै नालि ॥
हे भगवान ! तू ही मेरा सलाहकार हैं और तू ही मेरे साथ रहता है।
ਤੂਹੈ ਰਾਖਹਿ ਸਾਰਿ ਸਮਾਲਿ ॥੧॥
तूहै राखहि सारि समालि ॥१॥
तू ही ध्यानपूर्वक मेरी रक्षा करता है॥ १॥
ਐਸਾ ਰਾਮੁ ਦੀਨ ਦੁਨੀ ਸਹਾਈ ॥
ऐसा रामु दीन दुनी सहाई ॥
हे मेरे भाई ! ऐसा है मेरा राम जो इहलोक एवं परलोक में मेरा सहायक है।
ਦਾਸ ਕੀ ਪੈਜ ਰਖੈ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दास की पैज रखै मेरे भाई ॥१॥ रहाउ ॥
वह अपने सेवक की लाज-प्रतिष्ठा रखता है॥ १॥ रहाउ॥
ਆਗੈ ਆਪਿ ਇਹੁ ਥਾਨੁ ਵਸਿ ਜਾ ਕੈ ॥
आगै आपि इहु थानु वसि जा कै ॥
जिस प्रभु के वश में यह लोक है, वही स्वयं परलोक में भी रक्षक है।
ਆਠ ਪਹਰ ਮਨੁ ਹਰਿ ਕਉ ਜਾਪੈ ॥੨॥
आठ पहर मनु हरि कउ जापै ॥२॥
यह मन दिन-रात भगवान के नाम का जाप करता रहता है॥ २ ॥
ਪਤਿ ਪਰਵਾਣੁ ਸਚੁ ਨੀਸਾਣੁ ॥
पति परवाणु सचु नीसाणु ॥
उसकी प्रतिष्ठा स्वीकृत होती है और उसको ही सत्यनाम का चिन्ह लगता है,
ਜਾ ਕਉ ਆਪਿ ਕਰਹਿ ਫੁਰਮਾਨੁ ॥੩॥
जा कउ आपि करहि फुरमानु ॥३॥
जिसके लिए प्रभु स्वयं हुक्म लागू करता है॥ ३॥
ਆਪੇ ਦਾਤਾ ਆਪਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਿ ॥
आपे दाता आपि प्रतिपालि ॥
ईश्वर स्वयं दाता है और स्वयं ही पालनहार है।
ਨਿਤ ਨਿਤ ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ॥੪॥੧੦੫॥੧੭੪॥
नित नित नानक राम नामु समालि ॥४॥१०५॥१७४॥
हे नानक ! हमेशा ही प्रभु के नाम की आराधना करते रहो ॥ ४॥ १०५॥ १७४॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਭਇਆ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ॥
सतिगुरु पूरा भइआ क्रिपालु ॥
जब पूर्ण सतिगुरु जी कृपा के घर में आ जाते हैं तो
ਹਿਰਦੈ ਵਸਿਆ ਸਦਾ ਗੁਪਾਲੁ ॥੧॥
हिरदै वसिआ सदा गुपालु ॥१॥
जगत् का मालिक गोपाल मनुष्य के हृदय में हमेशा के लिए निवास कर लेता है॥ १॥
ਰਾਮੁ ਰਵਤ ਸਦ ਹੀ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
रामु रवत सद ही सुखु पाइआ ॥
राम का चिन्तन करने से मुझे सदैव सुख प्राप्त हो गया है।