ਜੈ ਜੈ ਕਾਰੁ ਜਗਤ੍ਰ ਮਹਿ ਲੋਚਹਿ ਸਭਿ ਜੀਆ ॥
जै जै कारु जगत्र महि लोचहि सभि जीआ ॥
सभी लोग जगत् में अपनी जय-जयकार ही चाहते हैं।
ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ਭਏ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਭੂ ਕਛੁ ਬਿਘਨੁ ਨ ਥੀਆ ॥੧॥
सुप्रसंन भए सतिगुर प्रभू कछु बिघनु न थीआ ॥१॥
सतगुरु प्रभु सुप्रसन्न हो गया है, उसकी कृपा से किसी भी कार्य में विघ्न नहीं आ रहा ॥१॥
ਜਾ ਕਾ ਅੰਗੁ ਦਇਆਲ ਪ੍ਰਭ ਤਾ ਕੇ ਸਭ ਦਾਸ ॥
जा का अंगु दइआल प्रभ ता के सभ दास ॥
दयालु प्रभु जिसका भी पक्ष लेता है, सभी जीव उसके दास बन जाते हैं।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਵਡਿਆਈਆ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਪਾਸਿ ॥੨॥੧੨॥੩੦॥
सदा सदा वडिआईआ नानक गुर पासि ॥२॥१२॥३०॥
हे नानक ! गुरु की ओर से मुझे सदैव बड़ाईयाँ मिलती रहती हैं।॥ २॥ १२॥ ३०॥
ਰਾਗੁ ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੫ ਚਉਪਦੇ
रागु बिलावलु महला ५ घरु ५ चउपदे
बिलावलु महला ५ ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਮ੍ਰਿਤ ਮੰਡਲ ਜਗੁ ਸਾਜਿਆ ਜਿਉ ਬਾਲੂ ਘਰ ਬਾਰ ॥
म्रित मंडल जगु साजिआ जिउ बालू घर बार ॥
परमात्मा ने मृत्यु-मण्डल रूपी ऐसा जगत् बनाया है, जैसे रेत के बने हुए घर-बार होते हैं।
ਬਿਨਸਤ ਬਾਰ ਨ ਲਾਗਈ ਜਿਉ ਕਾਗਦ ਬੂੰਦਾਰ ॥੧॥
बिनसत बार न लागई जिउ कागद बूंदार ॥१॥
जैसे वर्षा की बूंदों से कागज नाश हो जाता है, वैसे ही जगत् को नाश होते देरी नहीं लगती ॥ १॥
ਸੁਨਿ ਮੇਰੀ ਮਨਸਾ ਮਨੈ ਮਾਹਿ ਸਤਿ ਦੇਖੁ ਬੀਚਾਰਿ ॥
सुनि मेरी मनसा मनै माहि सति देखु बीचारि ॥
हे बंधु ! जरा मन लगाकर सुन, अपने मन में सत्य को विचार कर देख ले।
ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਗਿਰਹੀ ਜੋਗੀ ਤਜਿ ਗਏ ਘਰ ਬਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सिध साधिक गिरही जोगी तजि गए घर बार ॥१॥ रहाउ ॥
सिद्ध, साधक, गृहस्थी एवं योगी सभी घर बार छोड़कर दुनिया से चले गए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਜੈਸਾ ਸੁਪਨਾ ਰੈਨਿ ਕਾ ਤੈਸਾ ਸੰਸਾਰ ॥
जैसा सुपना रैनि का तैसा संसार ॥
जैसे रात्रि का सपना होता है, वैसे ही यह संसार है।
ਦ੍ਰਿਸਟਿਮਾਨ ਸਭੁ ਬਿਨਸੀਐ ਕਿਆ ਲਗਹਿ ਗਵਾਰ ॥੨॥
द्रिसटिमान सभु बिनसीऐ किआ लगहि गवार ॥२॥
हे गंवार आदमी ! दिखाई देने वाला यह सबकुछ ही नाश हो जाएगा, तू क्यों इससे लिपट रहा है॥ २॥
ਕਹਾ ਸੁ ਭਾਈ ਮੀਤ ਹੈ ਦੇਖੁ ਨੈਨ ਪਸਾਰਿ ॥
कहा सु भाई मीत है देखु नैन पसारि ॥
अपनी आंखें खोलकर देख, तेरे वे भाई एवं मित्र कहाँ हैं ?
ਇਕਿ ਚਾਲੇ ਇਕਿ ਚਾਲਸਹਿ ਸਭਿ ਅਪਨੀ ਵਾਰ ॥੩॥
इकि चाले इकि चालसहि सभि अपनी वार ॥३॥
उनमें से कुछ दुनिया छोड़कर चले गए हैं और कुछ चले जाएँगे।अपनी बारी आने पर सारे ही चले जाते हैं।॥ ३॥
ਜਿਨ ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿਆ ਸੇ ਅਸਥਿਰੁ ਹਰਿ ਦੁਆਰਿ ॥
जिन पूरा सतिगुरु सेविआ से असथिरु हरि दुआरि ॥
जिन्होंने पूर्ण सतगुरु की सेवा की है, वे हरि के द्वार में स्थिर हो गए हैं।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਹਰਿ ਕਾ ਦਾਸੁ ਹੈ ਰਾਖੁ ਪੈਜ ਮੁਰਾਰਿ ॥੪॥੧॥੩੧॥
जनु नानकु हरि का दासु है राखु पैज मुरारि ॥४॥१॥३१॥
हे प्रभु ! नानक तेरा दास है। मेरी लाज रखो ॥ ४॥ १॥ ३१॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਲੋਕਨ ਕੀਆ ਵਡਿਆਈਆ ਬੈਸੰਤਰਿ ਪਾਗਉ ॥
लोकन कीआ वडिआईआ बैसंतरि पागउ ॥
लोगों की तारीफ को तो अग्नि में डाल दूँगा।
ਜਿਉ ਮਿਲੈ ਪਿਆਰਾ ਆਪਨਾ ਤੇ ਬੋਲ ਕਰਾਗਉ ॥੧॥
जिउ मिलै पिआरा आपना ते बोल करागउ ॥१॥
जैसे मुझे अपना प्यारा प्रभु मिल जाए, मैं वही बोल बोलूंगा ॥१॥
ਜਉ ਪ੍ਰਭ ਜੀਉ ਦਇਆਲ ਹੋਇ ਤਉ ਭਗਤੀ ਲਾਗਉ ॥
जउ प्रभ जीउ दइआल होइ तउ भगती लागउ ॥
जैसे ही प्रभु जी मुझ पर दयालु हो जाए तो मैं उनकी भक्ति में लग जाऊँगा।
ਲਪਟਿ ਰਹਿਓ ਮਨੁ ਬਾਸਨਾ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਇਹ ਤਿਆਗਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
लपटि रहिओ मनु बासना गुर मिलि इह तिआगउ ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा मन वासनाओं से लिपटा हुआ है और गुरु को मिलकर इन्हें त्याग दूंगा ॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਰਉ ਬੇਨਤੀ ਅਤਿ ਘਨੀ ਇਹੁ ਜੀਉ ਹੋਮਾਗਉ ॥
करउ बेनती अति घनी इहु जीउ होमागउ ॥
मैं अपने प्रभु से बहुत प्रार्थना करूँगा और यह जीवन भी उसे कुर्बान कर दूँगा।
ਅਰਥ ਆਨ ਸਭਿ ਵਾਰਿਆ ਪ੍ਰਿਅ ਨਿਮਖ ਸੋਹਾਗਉ ॥੨॥
अरथ आन सभि वारिआ प्रिअ निमख सोहागउ ॥२॥
मैंने अपने प्रिय के क्षण भर के सुहाग के लिए अन्य सभी धन पदार्थ उस पर न्योछावर कर दिए हैं।॥ २॥
ਪੰਚ ਸੰਗੁ ਗੁਰ ਤੇ ਛੁਟੇ ਦੋਖ ਅਰੁ ਰਾਗਉ ॥
पंच संगु गुर ते छुटे दोख अरु रागउ ॥
गुरु-कृपा से काम, क्रोध, मोह, लोभ एवं अहंकार इन पाँचों से संगति छूट गई है और सारे दोष एवं राग द्वेष भी दूर हो गए हैं।
ਰਿਦੈ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ਪ੍ਰਗਟ ਭਇਆ ਨਿਸਿ ਬਾਸੁਰ ਜਾਗਉ ॥੩॥
रिदै प्रगासु प्रगट भइआ निसि बासुर जागउ ॥३॥
मेरे हृदय में ज्ञान का प्रकाश हो गया है, इसलिए अब मैं दिन-रात जागता रहता हूँ ॥३॥
ਸਰਣਿ ਸੋਹਾਗਨਿ ਆਇਆ ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗਉ ॥
सरणि सोहागनि आइआ जिसु मसतकि भागउ ॥
जिसके मस्तक पर उत्तम भाग्य है, वही जीव सुहागन बनकर प्रभु की शरण में आया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਨਿ ਪਾਇਆ ਤਨੁ ਮਨੁ ਸੀਤਲਾਗਉ ॥੪॥੨॥੩੨॥
कहु नानक तिनि पाइआ तनु मनु सीतलागउ ॥४॥२॥३२॥
हे नानक ! प्रभु को पा कर उसका तन-मन शीतल हो गया है॥ ४॥ २॥ ३२ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਲਾਲ ਰੰਗੁ ਤਿਸ ਕਉ ਲਗਾ ਜਿਸ ਕੇ ਵਡਭਾਗਾ ॥
लाल रंगु तिस कउ लगा जिस के वडभागा ॥
जिसका उत्तम भाग्य होता है, उसे ही प्रभु का प्रेम रूपी लाल रंग लगता है।
ਮੈਲਾ ਕਦੇ ਨ ਹੋਵਈ ਨਹ ਲਾਗੈ ਦਾਗਾ ॥੧॥
मैला कदे न होवई नह लागै दागा ॥१॥
यह प्रेम-रंग विकारों की मेल से कभी मैला नहीं होता और न ही इसे अहंत्व रूपी कोई दाग लगता है॥ १॥
ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਸੁਖਦਾਈਆ ਮਿਲਿਆ ਸੁਖ ਭਾਇ ॥
प्रभु पाइआ सुखदाईआ मिलिआ सुख भाइ ॥
सुखों के दाता प्रभु को पाकर सर्व सुख मिल गए हैं।
ਸਹਜਿ ਸਮਾਨਾ ਭੀਤਰੇ ਛੋਡਿਆ ਨਹ ਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सहजि समाना भीतरे छोडिआ नह जाइ ॥१॥ रहाउ ॥
वह अपने मन में सहज ही समाया रहता है और उससे सहज सुख छोड़ा नहीं जाता॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਰਾ ਮਰਾ ਨਹ ਵਿਆਪਈ ਫਿਰਿ ਦੂਖੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
जरा मरा नह विआपई फिरि दूखु न पाइआ ॥
उसे बुढ़ापा एवं मृत्यु प्रभावित नहीं करते और न ही कोई दुख प्राप्त हुआ है,
ਪੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਆਘਾਨਿਆ ਗੁਰਿ ਅਮਰੁ ਕਰਾਇਆ ॥੨॥
पी अम्रितु आघानिआ गुरि अमरु कराइआ ॥२॥
क्योंकि नामामृत का पान करके वह संतुष्ट हो गया है और गुरु ने उसे अमर कर दिया है॥ २॥
ਸੋ ਜਾਨੈ ਜਿਨਿ ਚਾਖਿਆ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਮੋਲਾ ॥
सो जानै जिनि चाखिआ हरि नामु अमोला ॥
जिसने अमूल्य हरि-नाम को चखा है, वही इसके स्वाद को जानता है।
ਕੀਮਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਈਐ ਕਿਆ ਕਹਿ ਮੁਖਿ ਬੋਲਾ ॥੩॥
कीमति कही न जाईऐ किआ कहि मुखि बोला ॥३॥
हरि-नाम का मूल्य मुझसे बताया नहीं जा सकता, मैं अपने मुँह से कहकर क्या बोलूं ?॥ ३॥
ਸਫਲ ਦਰਸੁ ਤੇਰਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਤੇਰੀ ਬਾਣੀ ॥
सफल दरसु तेरा पारब्रहम गुण निधि तेरी बाणी ॥
हे परब्रह्म ! तेरा दर्शन सफल है और तेरी वाणी गुणों का खजाना है।