Hindi Page 1116

ਬਿਨੁ ਭੈ ਕਿਨੈ ਨ ਪ੍ਰੇਮੁ ਪਾਇਆ ਬਿਨੁ ਭੈ ਪਾਰਿ ਨ ਉਤਰਿਆ ਕੋਈ ॥
बिनु भै किनै न प्रेमु पाइआ बिनु भै पारि न उतरिआ कोई ॥
श्रद्धा-भय के बिना किसी ने भी प्रेम नहीं पाया और बिना श्रद्धा-भय के कोई भी पार नहीं हुआ।

ਭਉ ਭਾਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨਾਨਕ ਤਿਸਹਿ ਲਾਗੈ ਜਿਸੁ ਤੂ ਆਪਣੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਹਿ ॥
भउ भाउ प्रीति नानक तिसहि लागै जिसु तू आपणी किरपा करहि ॥
गुरु नानक का कथन है कि हे प्रभु ! भय, श्रद्धा एवं प्रीति उसी के अन्तर्मन में उत्पन्न होती है, जिस पर तू अपनी कृपा करता है।

ਤੇਰੀ ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰ ਅਸੰਖ ਜਿਸੁ ਤੂ ਦੇਵਹਿ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ਤਿਸੁ ਮਿਲਹਿ ॥੪॥੩॥
तेरी भगति भंडार असंख जिसु तू देवहि मेरे सुआमी तिसु मिलहि ॥४॥३॥
हे मेरे स्वामी ! तेरी भक्ति के भण्डार तो अनगिनत हैं, पर जिसे तू देता है, उसे ही यह मिलता है।॥ ४॥ ३॥

ਤੁਖਾਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
तुखारी महला ४ ॥
तुखारी महला ४॥

ਨਾਵਣੁ ਪੁਰਬੁ ਅਭੀਚੁ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਦਰਸੁ ਭਇਆ ॥
नावणु पुरबु अभीचु गुर सतिगुर दरसु भइआ ॥
गुरु का दर्शन हमारे लिए अभिजित् नक्षत्र में (कुरुक्षेत्र तीर्थ) स्नान का पुण्य फल पाना है,”

ਦੁਰਮਤਿ ਮੈਲੁ ਹਰੀ ਅਗਿਆਨੁ ਅੰਧੇਰੁ ਗਇਆ ॥
दुरमति मैलु हरी अगिआनु अंधेरु गइआ ॥
इससे दुर्मति की मैल निवृत्त हो गई है और अज्ञान का अंधेरा मिट गया है।

ਗੁਰ ਦਰਸੁ ਪਾਇਆ ਅਗਿਆਨੁ ਗਵਾਇਆ ਅੰਤਰਿ ਜੋਤਿ ਪ੍ਰਗਾਸੀ ॥
गुर दरसु पाइआ अगिआनु गवाइआ अंतरि जोति प्रगासी ॥
गुरु-दर्शन पाकर अज्ञान दूर हो गया है और अन्तर्मन में ज्योति का प्रकाश हो गया है।

ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖ ਖਿਨ ਮਹਿ ਬਿਨਸੇ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਪ੍ਰਭੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ॥
जनम मरण दुख खिन महि बिनसे हरि पाइआ प्रभु अबिनासी ॥
इससे जन्म-मरण का दुख क्षण में विनष्ट हो गया है और अविनाशी प्रभु पा लिया है।

ਹਰਿ ਆਪਿ ਕਰਤੈ ਪੁਰਬੁ ਕੀਆ ਸਤਿਗੁਰੂ ਕੁਲਖੇਤਿ ਨਾਵਣਿ ਗਇਆ ॥
हरि आपि करतै पुरबु कीआ सतिगुरू कुलखेति नावणि गइआ ॥
ईश्वर ने स्वयं ही इस पर्व का सुनहरी अवसर बनाया, सतगुरु (अमरदास जी) कुरुक्षेत्र तीर्थ स्नान के लिए गए।

ਨਾਵਣੁ ਪੁਰਬੁ ਅਭੀਚੁ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਦਰਸੁ ਭਇਆ ॥੧॥
नावणु पुरबु अभीचु गुर सतिगुर दरसु भइआ ॥१॥
वास्तव में गुरु का दर्शन ही अभिजित् नक्षत्र में तीर्थ-स्नान का पुण्य फल है॥ १॥

ਮਾਰਗਿ ਪੰਥਿ ਚਲੇ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਸੰਗਿ ਸਿਖਾ ॥
मारगि पंथि चले गुर सतिगुर संगि सिखा ॥
सतगुरु (अमरदास जी) के संग उनके शिष्य भी मार्ग पर चल पड़े,”

ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤਿ ਬਣੀ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਨਿਮਖ ਵਿਖਾ ॥
अनदिनु भगति बणी खिनु खिनु निमख विखा ॥
पल-पल रास्ते में भक्ति-ज्ञान की गोष्ठी हुई।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਬਣੀ ਪ੍ਰਭ ਕੇਰੀ ਸਭੁ ਲੋਕੁ ਵੇਖਣਿ ਆਇਆ ॥
हरि हरि भगति बणी प्रभ केरी सभु लोकु वेखणि आइआ ॥
शिष्यजनों के साथ प्रभु-भक्ति की चर्चा चलती रही और सब लोग उनके दर्शनार्थ आए।

ਜਿਨ ਦਰਸੁ ਸਤਿਗੁਰ ਗੁਰੂ ਕੀਆ ਤਿਨ ਆਪਿ ਹਰਿ ਮੇਲਾਇਆ ॥
जिन दरसु सतिगुर गुरू कीआ तिन आपि हरि मेलाइआ ॥
जिन्होंने गुरु का दर्शन किया, उनको प्रभु ने स्वयं मिला लिया।

ਤੀਰਥ ਉਦਮੁ ਸਤਿਗੁਰੂ ਕੀਆ ਸਭ ਲੋਕ ਉਧਰਣ ਅਰਥਾ ॥
तीरथ उदमु सतिगुरू कीआ सभ लोक उधरण अरथा ॥
लोगों का उद्धार करने के लिए सतगुरु (अमरदास जी) ने तीर्थ जाने का कार्य किया।

ਮਾਰਗਿ ਪੰਥਿ ਚਲੇ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਸੰਗਿ ਸਿਖਾ ॥੨॥
मारगि पंथि चले गुर सतिगुर संगि सिखा ॥२॥
गुरु के संग उनके शिष्यजन भी रास्ते पर चल पड़े॥ २॥

ਪ੍ਰਥਮ ਆਏ ਕੁਲਖੇਤਿ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਪੁਰਬੁ ਹੋਆ ॥
प्रथम आए कुलखेति गुर सतिगुर पुरबु होआ ॥
सतगुरु (अमरदास जी) पहले कुरुक्षेत्र आए, जहां उनके दर्शन का पर्व हो गया।

ਖਬਰਿ ਭਈ ਸੰਸਾਰਿ ਆਏ ਤ੍ਰੈ ਲੋਆ ॥
खबरि भई संसारि आए त्रै लोआ ॥
संसार में इसकी खबर हो गई और तीनों लोकों के जीव दर्शनार्थ आए।

ਦੇਖਣਿ ਆਏ ਤੀਨਿ ਲੋਕ ਸੁਰਿ ਨਰ ਮੁਨਿ ਜਨ ਸਭਿ ਆਇਆ ॥
देखणि आए तीनि लोक सुरि नर मुनि जन सभि आइआ ॥
तीनों लोकों के देवगण, मनुष्य एवं मुनिजन इत्यादि सभी गुरु-दर्शन के लिए आए।

ਜਿਨ ਪਰਸਿਆ ਗੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੂ ਪੂਰਾ ਤਿਨ ਕੇ ਕਿਲਵਿਖ ਨਾਸ ਗਵਾਇਆ ॥
जिन परसिआ गुरु सतिगुरू पूरा तिन के किलविख नास गवाइआ ॥
जिन्होंने पूरे गुरु के दर्शन व चरण-स्पर्श किए, उनके सब पाप-अपराध नाश हो गए।

ਜੋਗੀ ਦਿਗੰਬਰ ਸੰਨਿਆਸੀ ਖਟੁ ਦਰਸਨ ਕਰਿ ਗਏ ਗੋਸਟਿ ਢੋਆ ॥
जोगी दिग्मबर संनिआसी खटु दरसन करि गए गोसटि ढोआ ॥
योगी, दिगंबर एवं छ: प्रकार के सन्यासियों ने उनके साथ ज्ञान-गोष्ठी की और गुरु (के हरिनाम मंत्र) को माना।

ਪ੍ਰਥਮ ਆਏ ਕੁਲਖੇਤਿ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਪੁਰਬੁ ਹੋਆ ॥੩॥
प्रथम आए कुलखेति गुर सतिगुर पुरबु होआ ॥३॥
सतगुरु (अमरदास जी) पहले कुरुक्षेत्र आए, जहां उनका दर्शन-पर्व हो गया॥ ३॥

ਦੁਤੀਆ ਜਮੁਨ ਗਏ ਗੁਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਨੁ ਕੀਆ ॥
दुतीआ जमुन गए गुरि हरि हरि जपनु कीआ ॥
तदुपरांत गुरु जी यमुना पर गए, जहाँ उन्होंने हरिनाम का जाप किया।

ਜਾਗਾਤੀ ਮਿਲੇ ਦੇ ਭੇਟ ਗੁਰ ਪਿਛੈ ਲੰਘਾਇ ਦੀਆ ॥
जागाती मिले दे भेट गुर पिछै लंघाइ दीआ ॥
वहाँ पर कराधिकारी भेंट-उपहार देकर गुरु जी से मिले और गुरु के शिष्य कहलवाने वाले सब व्यक्ति बिना कर (टैक्स) ही आगे निकल गए।

ਸਭ ਛੁਟੀ ਸਤਿਗੁਰੂ ਪਿਛੈ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥
सभ छुटी सतिगुरू पिछै जिनि हरि हरि नामु धिआइआ ॥
जिन्होंने सतगुरु के निर्देशानुसार चलकर ईश्वर का भजन किया, वे सभी संसार के बन्धनों से मुक्ति पा गए।

ਗੁਰ ਬਚਨਿ ਮਾਰਗਿ ਜੋ ਪੰਥਿ ਚਾਲੇ ਤਿਨ ਜਮੁ ਜਾਗਾਤੀ ਨੇੜਿ ਨ ਆਇਆ ॥
गुर बचनि मारगि जो पंथि चाले तिन जमु जागाती नेड़ि न आइआ ॥
गुरु के वचन द्वारा जो सन्मार्ग पर चलते हैं, उन्हें यम रूपी कराधिकारी भी तंग करने नहीं आते।

ਸਭ ਗੁਰੂ ਗੁਰੂ ਜਗਤੁ ਬੋਲੈ ਗੁਰ ਕੈ ਨਾਇ ਲਇਐ ਸਭਿ ਛੁਟਕਿ ਗਇਆ ॥
सभ गुरू गुरू जगतु बोलै गुर कै नाइ लइऐ सभि छुटकि गइआ ॥
जगत के सब लोग गुरु का यश गाते हैं, गुरु का नाम जपने से सभी मुक्त हो गए।

ਦੁਤੀਆ ਜਮੁਨ ਗਏ ਗੁਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਨੁ ਕੀਆ ॥੪॥
दुतीआ जमुन गए गुरि हरि हरि जपनु कीआ ॥४॥
तदन्तर गुरु जी यमुना पर गए, जहाँ उन्होंने हरिनाम का भजन किया॥४॥

ਤ੍ਰਿਤੀਆ ਆਏ ਸੁਰਸਰੀ ਤਹ ਕਉਤਕੁ ਚਲਤੁ ਭਇਆ ॥
त्रितीआ आए सुरसरी तह कउतकु चलतु भइआ ॥
उसके उपरांत वे गंगा (हरिद्वार) आए और वहाँ पर उन्होंने विचित्र लीला-रची।

ਸਭ ਮੋਹੀ ਦੇਖਿ ਦਰਸਨੁ ਗੁਰ ਸੰਤ ਕਿਨੈ ਆਢੁ ਨ ਦਾਮੁ ਲਇਆ ॥
सभ मोही देखि दरसनु गुर संत किनै आढु न दामु लइआ ॥
संत-गुरु के दर्शन कर सभी मोहित हो गए और किसी ने कौड़ी भर दाम नहीं लिया।

ਆਢੁ ਦਾਮੁ ਕਿਛੁ ਪਇਆ ਨ ਬੋਲਕ ਜਾਗਾਤੀਆ ਮੋਹਣ ਮੁੰਦਣਿ ਪਈ ॥
आढु दामु किछु पइआ न बोलक जागातीआ मोहण मुंदणि पई ॥
धन-दान लेने वाले पुरोहित-पण्डितों की गोलक में कुछ भी नहीं डाला और वे दंग रह गए।

ਭਾਈ ਹਮ ਕਰਹ ਕਿਆ ਕਿਸੁ ਪਾਸਿ ਮਾਂਗਹ ਸਭ ਭਾਗਿ ਸਤਿਗੁਰ ਪਿਛੈ ਪਈ ॥
भाई हम करह किआ किसु पासि मांगह सभ भागि सतिगुर पिछै पई ॥
वे कहने लगे, हे भाई ! हम क्या करें, किससे मांगने का यत्न करें, सभी सतगुरु की शरण में जा रहे हैं।

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